उर्दू पुस्तकों और पत्रिकाओं के व्यापक प्रकाशन के लिए प्रसिद्ध था, जौनपुर शहर

ध्वनि 2- भाषायें
23-11-2023 10:01 AM
Post Viewership from Post Date to 24- Dec-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2494 220 2714
उर्दू पुस्तकों और पत्रिकाओं के व्यापक प्रकाशन के लिए प्रसिद्ध था, जौनपुर शहर

किसी समय, हमारे शहर जौनपुर में, उर्दू पुस्तकों और पत्रिकाओं का काफ़ी प्रकाशन हुआ करता था। इसी लिए, जौनपुर हमारे पूरे भारत देश में प्रसिद्ध था।जबकि, मध्य जौनपुर में,आज भी एक क्षेत्र मौजूद है, जिसे "उर्दू बाज़ार" के नाम से जाना जाता है। लेकिन आज,यहां से होने वाला प्रकाशन बहुत कम हो गया है। हमारे देश को आजादी मिलने के बाद भी, हमारे शहर में, ‘शिराज-ए-हिंद प्रकाशक’ जैसे कुछ अच्छे प्रकाशक थे। 1960 के दशक में इनकी कई किताबें भी, भारत और पाकिस्तान में लोकप्रिय थीं। उर्दू के साहित्यिक दिग्गज एवं हमारे पसंदीदा, सैयद इकबाल अहमद जौनपुरी ने अपनी किताबें यहीं से प्रकाशित की थीं। आज, भले ही पूरे भारत में उर्दू लिपि की लोकप्रियता कम हो गई है, लेकिन, दुनिया भर में पुस्तक मुद्रण पर ऑनलाइन या इंटरनेट के प्रभाव ने निश्चित रूप से, हमारे जौनपुर के पुस्तक प्रकाशन को प्रभावित किया है। हालांकि, ऑनलाइन प्रकाशन में जौनपुर से बहुत कम नवाचार हुए हैं। और, आज उर्दू बाज़ार वेबसाइट(Website) वास्तव में,जौनपुर के बजाय दिल्ली से संचालित और प्रबंधित होती है।
इसके अलावा, जौनपुर कभी इस्लामिक अध्ययन का भी एक महत्वपूर्ण स्थान तथा गंगा-जमुना संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। यहां शर्की सुल्तानों द्वारा भव्य मस्जिदों का निर्माण किया गया था और उनसे विशाल मदरसे भी जुड़े थे। इससे, जौनपुर इस्लामी शिक्षा का क्षेत्र बन गया था।तब,शहर के कई मुस्लिम घरों में इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं को महत्व दिया जाता था। हालांकि, धीरे-धीरे चीजें बदल गई और शिक्षा का यह स्तर कम होने लगा।
जौनपुर में सक्रिय रह चुके,चिश्ती क्रम के सूफ़ीवाद, अली हजवेरी–की पुस्तक कासफ़-उल-महज़ोब (Kashf-ul-Mahjoob) में भी जौनपुर का काफी महत्व देखने को मिलता है। कासफ़-उल-महज़ोब सूफीवाद पर सबसे प्राचीन और अद्वितीय फारसी (Persian) ग्रंथ है, जिसमें अपने सिद्धांतों और प्रथाओं के साथ सूफीवाद की पूरी पद्धति मौजूद है।मूल रूप से फारसी में लिखी गई, इस पुस्तक का पहले ही विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। कासफ़-उल-महज़ोब की पांडुलिपियां कई यूरोपीय पुस्तकालयों(European libraries) में संरक्षित हैं। इसका शिलामुद्रण तत्कालीन भारतीय उपमहाद्वीप के लाहौर में किया गया था। साथ ही,रेनॉल्ड ए. निकोल्सन (Reynold A. Nicholson) द्वारा कासफ़-उल-महज़ोब का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था। और, अली हजवेरी का यह ऐसा एकमात्र कार्य है, जो आज तक हमारे बीच मौजूद है। अब तो शहर के शिराज-ए-हिंद पब्लिशिंग हाउस(Sheeraj-E-Hind Publishing house),ऑनलाईन पुस्तकें(e-books)भी प्रकाशित कर रहे हैं।आप, इस संग्रह की कुछ पुस्तकें निम्न प्रस्तुत लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं। https://tinyurl.com/mufmfx5z
 इसी तरह, आप सैयद इकबाल अहमद जौनपुरी, की किताबें भी, ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।
परंतु, कई लोग उर्दू भाषा की घटती लोकप्रियता को लेकर सवाल उठा रहे हैं, जबकि, सच्चाई असल में, थोड़ी अलग है। “उर्दू” नाम, जिसका अर्थ–‘शाही शिविर या शहर’है, दिल्ली को संदर्भित करता है,जहां इस भाषा की उत्पत्ति हुई थी।वैसे, अकादमिक रूप से, उर्दू और हिंदी को एक ही भाषा के साहित्यिक रजिस्टर(Literary registers) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। परंतु, इसकी खड़ी बोली ऐतिहासिक रूप से दिल्ली शहर और उसके आसपास बोली जाती है। यहां, वर्गीकृत भाषा की एक शैली है, जिसका उपयोग स्थिति, वर्ग और हिंदी-उर्दू के मामले में सामाजिक पहचान के अनुसार किया जाता है। हर भाषा के विशेष रजिस्टर होते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि, भले ही ये दोनों शैलियां शब्दावली में भिन्न हैं, लेकिन उनका व्याकरण समान ही है। क्रिस्टोफर किंग(Christopher King) अपनी पुस्तक– वन लैंग्वेज टू स्क्रिप्ट्स( One Language Two Scripts) में लिखते हैं कि, “आमतौर पर, भाषा विद्वान खड़ी बोली के दो प्रमुख विभाजनों को हिंदी और उर्दू के रूप में नामित करते हैं। हालांकि, कुछ लोगों का तर्क है कि, इन्हें भाषाई नहीं बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक आधार पर दो अलग-अलग भाषाएं माना जाना चाहिए। महत्वहीन व्याकरणिक विविधताओं के अलावा, इनकी शब्दावली और लिपि दोनों के बीच प्रमुख अंतर हैं। हिंदी का सबसे औपचारिक स्तर, जिसे कभी-कभी “उच्च हिंदी” कहा जाता है, संस्कृत से समृद्ध शब्दावली का उपयोग करता है, जबकि, उर्दू का संबंधित उच्च उर्दू स्तर, फ़ारसी और अरबी भाषाओं का उपयोग करता है।”
जब लोग उर्दू की समाप्ति पर शोक मनाते हैं, तो उनका वास्तव में मतलब यह होता है कि, इसका भारी फ़ारसीकृत रजिस्टर, जिसे क्रिस्टोफर किंग “उच्च उर्दू” कहते हैं, समाप्त हो चुका है। जबकि, रोजमर्रा की उर्दू, अर्थात जो भाषा लोग बोलते हैं, वह वास्तव में, फल-फूल रही है। उच्च उर्दू की तीव्र गिरावट के बारे में विलाप भी अनावश्यक है। उच्च उर्दू ने अपनी कुलीन स्थिति को देखते हुए एक ऊंचे स्थान पर कब्जा कर लिया है।लेकिन, यह कभी भी एक सामूहिक रजिस्टर नहीं था, केवल बहुत कम संख्या में शरीफ मुसलमानों, खत्रियों, कश्मीरी पंडितों(ज्यादातर उत्तर प्रदेश या दिल्ली में बसे) और कायस्थों द्वारा बोली जाती थी। और, निःसंदेह, उच्च उर्दू, उन्नीसवीं सदी में, दिल्ली के अन्य सभी निचली जाति के मुसलमानों और हिंदुओं के लिए दुर्गम थी, जो आज के नागरिकों की तरह, रोजमर्रा की खड़ी बोली या अपनी ग्रामीण भाषाएं बोलते थे।

संदर्भ
https://tinyurl.com/dsfejczk
https://tinyurl.com/2y4bmfua
https://tinyurl.com/mufmfx5z
https://tinyurl.com/4j97v78k
https://tinyurl.com/332uytza
https://tinyurl.com/49naxvr6
https://tinyurl.com/bddchftd

चित्र संदर्भ
1. जौनपुर शहर के एक पुराने चित्र को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. जौनपुर के उर्दू बाजार को दर्शाता एक चित्रण (wikimapia)
3. जौनपुर में सक्रिय रह चुके,चिश्ती क्रम के सूफ़ीवाद, अली हजवेरी–की पुस्तक कासफ़-उल-महज़ोब को दर्शाता एक चित्रण (archive)
4. उर्दू किताबों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.