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हाल ही में की गई एक खोज से पता चलता है कि, पुराने रोगजनकों का सामना करने पर, हमारी प्रतिरक्षा कोशिकाएं, किस प्रवृत्ति का प्रदर्शन करती हैं। हमारे शरीर में मौजूद, इन कोशिकाओं को “सेंट्रल मेमोरी सीडी8+ टी कोशिकाएं (Central memory CD8+ T cells)” कहा जाता है। यहां तक कि, जब हमारे शरीर में एंटीबॉडी(Antibody) कम हो जाती हैं, तब भी, अगर शरीर को किसी होने वाले संक्रमण को हराने की जरूरत हो, लंबे समय तक जीवित रहने वाली ये कोशिकाएं बनी रहती हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि, ‘ये कोशिकाएं कैसे काम करती हैं?’ इस प्रश्न का उत्तर, हमारे शरीर की संक्रामक रोगों और कैंसर से लड़ने की क्षमता को बढ़ावा देने के नए तरीकों के लिए, द्वार खोल सकती है।
जब ये कोशिकाएं हमलावर वायरस(Virus) या बैक्टीरिया(Bacteria) से लड़ने के लिए जागती हैं, इनमें महत्वपूर्ण जीन(Gene) सक्रिय हो जाते हैं, जिन्हें उन्होंने पिछली प्रतिरक्षा लड़ाइयों से याद रखा हुआ था। प्रत्येक अलग-अलग प्रतिरक्षा कोशिका प्रकार में, कोई जीनोम(Genome) कैसे काम करता है, इसकी समझ एक महामारी में, न केवल संक्रामक रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करने के लिए चिकित्सीय प्रक्रिया विकसित करने के लिए निहितार्थ हो सकती है, बल्कि कैंसर के अध्ययन में भी यह सहायक हो सकती है।
एंटीबॉडीज़ हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का सिर्फ एक घटक हैं, और किसी संक्रमण से समय बीतने के साथ वे स्वाभाविक रूप से कम हो जाते हैं। फिर, इन रोगजनकों के खिलाफ़ लड़ने की प्रक्रिया की स्मृति प्रतिरक्षा कोशिकाओं की ज़िम्मेदारी बन जाती है। यह इसलिए, ताकि कोशिकाएं किसी वायरस या अन्य रोगजनकों को “याद रखें”, जिससे, हमारा शरीर इन्हीं रोगजनकों द्वारा दोबारा होने वाले हमले से बचने के लिए तैयार रहें।
इन कोशिकाओं की उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को हर बार किसी रोगाणु का सामना करने पर नए सिरे से शुरुआत करने की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि, पुनः संक्रमण पर स्मृति कोशिकाएं, एंटीबॉडीज को याद दिलाती हैं कि, आक्रमणकारी को कैसे हराया जाए।
वैसे तो, सेंट्रल मेमोरी सीडी8+ टी कोशिकाएं अधिकांश समय निष्क्रिय रहते हैं। परंतु, शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि, इन कोशिकाओं के केंद्रक(Nucleus) में पाया जाने वाला, टीसीएफ1(Tcf1) यह प्रोटीन, स्मृति कोशिकाओं को दिशा निर्देश देता है। और, इस प्रकार शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में, ये कोशिकाएं एक महत्वपूर्ण निर्देशक बनता है।
इंपीरियल कॉलेज लंदन(Imperial College London) के वैज्ञानिकों के एक नए शोध से पता चलता है कि, बैक्टीरिया के प्रति भी दृढ़ रहने वाली अर्थात पर्सिस्टर कोशिकाएं(Persister cells) हमारी प्रतिरक्षा कोशिकाओं में कैसे हेरफेर करती हैं। और फिर, संभावित रूप से हमारा शरीर इन बैक्टीरिया कोशिकाओं को साफ करने के तरीके खोजने और बैक्टीरिया संक्रमण की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए, नए रास्ते खोजता हैं।
जब भी, साल्मोनेला(Salmonella) जैसे बैक्टीरिया हमारे शरीर पर आक्रमण करते हैं, तो इनमें से कई कोशिकाएं शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के हमले के जवाब में, एक प्रकार के निष्क्रिय ढंग में प्रवेश करते हैं, जिसका अर्थ है कि वे एंटीबायोटिक दवाओं से नहीं मारे जाते हैं। ये जीवाणु प्रतिरोधी कोशिकाएं प्रतिकृति बनाना बंद कर देती हैं और कई दिनों, हफ्तों या यहां तक कि महीनों तक इस निष्क्रिय या ‘स्लीपर-सेल(Sleeper-cell)’ अवस्था में रह सकती हैं।
ये स्थायी कोशिकाएं तब बनती हैं, जब बैक्टीरिया को मैक्रोफेज(Macrophage) या भक्षक कोशिकाओं द्वारा ग्रहण किया जाता है। भक्षक कोशिका मानव प्रतिरक्षा कोशिकाएं हैं, जो बैक्टीरिया और वायरस को निगलकर शरीर को संक्रमण से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन पर्सिस्टर कोशिकाओं की खोज वर्ष 1944 में की गई थी, और ऐसा माना जाता था कि, ये शरीर में निष्क्रिय बैक्टीरिया थे, जो अपनी पुनरावृत्ति के लिए, कुछ समय निष्क्रिय रहते थे।वैज्ञानिकों ने इस शोध में, चूहों के मैक्रोफेज के साल्मोनेला संक्रमण का अध्ययन किया था। लेकिन, कई प्रकार के बैक्टीरिया जो आमतौर पर बीमारीयों का कारण बनते हैं, वे मनुष्यों में लगातार बने रहने के लिए जाने जाते हैं। इनमें, ई.कोली(E. coli) और तपेदिक के लिए जिम्मेदार बैसिलस(Bacillus) और स्वयं साल्मोनेला शामिल हैं। वैज्ञानिक अब आगे की जांच कर रहे हैं।
इन अध्ययनों से उजागर हुए, निष्कर्ष हमें यह समझाने में मदद कर सकते हैं कि, क्यों कुछ लोग एंटीबायोटिक्स लेने के बावजूद, बार-बार उसी बीमारी से पीड़ित होते हैं।
पर्सिस्टर्स का इलाज करना कठिन होता है, क्योंकि, वे एंटीबायोटिक दवाओं के लिए अदृश्य होते हैं। लेकिन, हमारी प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कमजोर करने वाला यह तंत्र इन पर्सिस्टर्स की भेद्यता को बढ़ा सकता है। अतः उपचारक संभावित रूप से इस तंत्र को लक्षित कर सकते हैं, और अधिक कुशलता से इलाज में मुश्किल संक्रमणों को दूर कर सकते हैं।
यदि शोधकर्ता किसी अंग के विभिन्न हिस्सों में रोगजनकों के साथ क्या होता है, इसके बारे में अधिक सटीक जानकारी प्राप्त करते हैं, तो वे एंटीबायोटिक उपचारों को अधिक विशेष रूप से लक्षित करने में सक्षम हो सकते हैं और साल्मोनेला, स्टेफिलोकोकस(Staphylococcus) और माइकोबैक्टीरिया(Mycobacteria) से लड़ने में, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को अनुरूप सहायता प्रदान कर सकते हैं। लेकिन इससे पहले कि, ऐसे उपचार को इस तरह से बेहतर बनाया जा सके, हमें कई प्रश्नों के उत्तरों को ढूंढना होगा।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2rjdnbhp
https://tinyurl.com/4f92pztc
https://tinyurl.com/nhcp56mv
https://tinyurl.com/5n87srh2
चित्र संदर्भ
1. बैक्टीरिया की सूक्ष्म फोटोग्राफी को दर्शाता एक चित्रण (pickpik)
2. सेंट्रल मेमोरी सीडी8+ टी कोशिका को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. एंटीबॉडी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. इंसानी दिमाग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. साल्मोनेला बैक्टीरिया को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. साल्मोनेला टाइफिम्यूरियम को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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