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भारतीय संस्कृति में वाद्य यंत्रों को संगीत की आत्मा माना जाता है। आमतौर पर ढोल और हारमोनियम जैसे लोकप्रिय वाद्ययंत्रों से तो हम सभी परिचित हैं, किंतु हमारे इस विशाल देश की विविध संस्कृतियों में कई ऐसे वाद्ययंत्र भी हैं, जिनके बारे में हम भले ही बहुत कम जानते हैं, लेकिन एक बार इनकी धुन या ताल सुन लेने पर आप भी इन गुमनाम वाद्य यंत्रों के मुरीद हो जायेंगे। आज हम आपको ऐसे ही दो कम चर्चित किंतु शानदार वाद्ययंत्रों से परिचित कराने जा रहे हैं। इनमें से आज के हमारे पहले वाद्य यंत्र का नाम है, “गुबगुबा।”
दिलचस्प नाम वाला “गुबगुबा” एक भारतीय ताल वाद्ययंत्र (Percussion Instruments) है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसे गुबा, गुबगुब्बी, आनंद लहरी, प्रेमताल, खमक, खोमोक, चोंका, जमुकु और बापांग के नाम से भी जाना जाता है। इसमें एक सुखी हुई लौकी या लकड़ी का अनुनादक (Resonator) होता है, जिसके माध्यम से एक गट स्ट्रिंग (Gut String) जुड़ी होती है। खोकली की गई लौकी या कद्दू का उपयोग सदियों से संगीत वाद्य यंत्रों के निर्माण में किया जाता रहा है। इन्हें अक्सर वाद्य यन्त्र को हल्का रखने और ध्वनि को बढ़ाने के लिए अनुनादक के रूप में उपयोग किया जाता है।
गुबगुबा बजाने के लिए, वाद्ययंत्र के मुख्य भाग को बांह के नीचे रखा जाता है, और तार के मुक्त सिरे को उसी बांह की मुट्ठी में रखा जाता है। दूसरे हाथ में प्लेक्ट्रम (Plectrum) से डोरी को खींचा जाता है। गुबगुबा की कुछ किस्मों, विशेष रूप से बंगाली खोमोक या खमक में दो तार होते हैं। गुबगुबा लोक संगीत और पारंपरिक भारतीय संगीत में एक लोकप्रिय वाद्ययंत्र है। इसकी ध्वनि तीव्र और कर्कश होती है, और इसे अक्सर गायन और नृत्य के साथ बजाया जाता है।
गुबगुबा के बाद कम लोकप्रिय किंतु बेहतरीन वाद्य यंत्रों में “उडुक्कई” भी शामिल है। उडुक्कई (Udukai) भारत और नेपाल में प्रचलित मेम्ब्रानोफोन पर्कशन वाद्ययंत्रों (Membranophone Percussion Instruments) के परिवार का एक सदस्य है। इसे मुख्य रूप से तमिलनाडु के लोक संगीत और धार्मिक प्रार्थना समारोह में बजाया जाता है।
उडुक्कई, लकड़ी या पीतल से बनी होती है और बहुत पोर्टेबल “Portable” (परिवहनीय) होती है। इस वाद्ययंत्र को हाथ से बजाया जाता है। उडुक्कई एक बहुमुखी वाद्ययंत्र साबित होता है, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ पैदा करने के लिए किया जा सकता है। उडुक्कई को कटहल की लकड़ी या पीतल के ढांचे और फैली हुई बकरी की खाल की झिल्लियों से निर्मित किया जाता है। वादक ड्रम (Drum) के बीच में लगी लेस को दबाकर झिल्लियों के तनाव को संशोधित कर सकता है, जिससे ध्वनि की पिच (Pitch) भी बदल जाती है। उडुक्कई को बाएं हाथ में पकड़कर और दाहिने हाथ से एक तरफ बकरी की खाल की झिल्ली पर प्रहार करके बजाया जाता है। हालांकि उडुक्कई को आमतौर पर हाथ से ही बजाया जाता है, लेकिन कभी-कभी ध्वनि की तीव्रता बढ़ाने के लिए छड़ी का भी उपयोग किया जाता है। आप ऑनलाइन भी उडुक्कई को बजाना सीख सकते हैं।
केरल में, उडुक्कई का उपयोग भगवान अयप्पा के भक्ति गायन के लिए एक ताल संगत के रूप में किया जाता है। भक्ति गायन की यह परंपरा इतनी महत्वपूर्ण है, कि इसने उडुक्कु कोट्टी पट्टू (Udukku Kotti Pattu) नामक गीतों की एक विशिष्ट शैली का निर्माण कर दिया है। तमिलनाडु में, उडुक्कई का उपयोग उडुक्कई अरुल पाडल नामक भक्ति गायन की एक अनुष्ठान शैली में भी किया जाता है। इस शैली में, ट्रांस (Trans) यानी ईश्वर की चेतना को प्रेरित करने के लिए पुजारी के नृत्य के साथ, उडुक्कई को गायन के साथ बजाया जाता है। उडुक्कई और उसके वादक, ब्राह्मण जाति के एक सदस्य के नेतृत्व में एक अनुष्ठान प्रक्रिया में शामिल होते हैं। उडुक्कई वादन मंदिरों के भीतर भी हो सकते हैं।
उडुक्कई कई भारतीय संगीत परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है। इसका उपयोग लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत और धार्मिक संगीत में किया जाता है। यह एकल प्रदर्शन के लिए भी एक लोकप्रिय वाद्ययंत्र है। इसकी उत्पत्ति भी तमिलनाडु में ही हुई थी। उडुक्कई परिवार के अन्य वाद्ययंत्र सदस्यों में (हुर्की, हुरको, हुड़को, या हुक्का और उटुकाई) भी शामिल हैं।
चलिए इनके बारे में भी संक्षेप में जान लेते हैं:
हुडुक्का: यह एक छोटा सा ड्रम (Drum) या ताल आधारित वाद्य यंत्र होता है, जिसमें बकरी की खाल की दो झिल्लियाँ एक मोटी रिंग से जुड़ी होती हैं। इसे हाथों से बजाया जाता है और इसकी पिच अलग-अलग होती है। इसका उपयोग केरल में अनुष्ठान संगीत और लोक नृत्यों के साथ किया जाता है।
हुरुक: यह बांस या अंजीर के पेड़ की रिंग से जुड़ी बकरी की खाल की दो झिल्लियों वाला एक छोटा ड्रम होता है। इसे दाहिने हाथ से बजाया जाता है और इसकी पिच निश्चित होती है। इसका उपयोग उत्तरी भारत में लोक संगीत, मार्शल गाथागीतों और नृत्यों के साथ किया जाता है।
हुडको: यह एक मध्यम आकार का ड्रम होता है, जिसमें बकरी की खाल की दो झिल्लियां रस्सी से बंधे छल्ले से जुड़ी होती हैं। इसे दाहिने हाथ से बजाया जाता है और इसमें परिवर्तनशील पिच होती है। इसका उपयोग उत्तरी भारत और नेपाल में लोक संगीत और समारोहों में किया जाता है।
उडुक्कू: उडुक्कू भी हुरुक के समान ही एक छोटा सा ड्रम होता है। इसमें हलचल पैदा करने के लिए बायीं झिल्ली के नीचे एक धातु या पौधे या पशु फाइबर की मोहर लगी होती है। इसका उपयोग केरल में मंदिर के अनुष्ठानों में किया जाता है। साथ ही इसे फसल गीतों के साथ भी बजाया जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ycxche7z
https://tinyurl.com/nhzaunmy
https://tinyurl.com/ym63eksa
https://tinyurl.com/kbmnmdra
चित्र संदर्भ
1. गुबगुब्बी को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
2. गुबगुब्बी पकड़ने की शैली को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. उडुक्कई वादन को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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