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यदि आप कभी भी जौनपुर की जिला कारागार (District Jail) के बाहर गए हों, तो जेल के बाहर कोर्ट में पेशी के लिए जाते कैदियों को आपने जरूर देखा होगा। इन कैदियों के जुर्म भले ही अलग-अलग हो लेकिन इनमें से सभी कैदियों या यूँ कहें कि पूरे देश के कैदियों में एक समानता दूर से ही नजर आ जाती है, और वह समानता है, “उनकी हथकड़ी"! आज हम पुलिसवालों और कैदियों को आपस में जोड़े रखने वाले इसी बंधन के रोमांचक और ऐतिहासिक सफर और भारत में इसे लगाने से जुड़े नियमों पर एक नजर डालेंगे।
हथकड़ी (Handcuffs), खतरनाक या अनियंत्रित कैदियों को नियंत्रित करने के लिए, कानून प्रवर्तन और सुरक्षा कर्मियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले सामान्य उपकरण होते हैं। पुलिस अधिकारी अपने काम में नियमित रूप से हथकड़ी का उपयोग करते हैं। दुनियाभर के देशों में हथकड़ी उपयोग सदियों से किया जा रहा है। लोग इनका उपयोग धातु के प्रयोग होने से भी पहले से करते आ रहे हैं। प्राचीन समय में लोग कभी-कभी रस्सी या जानवरों की खाल या किसी अन्य चीज़ का हथकड़ी के रूप उपयोग करते थे जो काफी मजबूत होती थी।
हथकड़ी के बारे में पहली बार एक ग्रीक देवता प्रोटियस (Proteus) से जुड़े एक पुराने ग्रीक मिथक में सुनने को मिलता है। कहा जाता है कि वह बहुत सी गुप्त बातें जानता था, जिस कारण लोग उसका यह गुण उससे सीखना चाहते थे। लेकिन उसे अपने रहस्य साझा करना पसंद नहीं था, इसलिए जब भी कोई उससे पूछता तो वह अपना रूप बदल लेता और भाग जाता। एक दिन, अरिस्टियस (Aristius) नामक देवता प्रोटियस से यह जानना चाहता था कि उसकी मधुमक्खियां क्यों मर रही हैं? लेकिन चूंकि प्रोटियस बार-बार भाग जाता था इसलिए अरिस्टियस ने उसे पकड़ने के लिए मानव इतिहास में पहली बार हथकड़ी का उपयोग किया। उसने प्रोटियस को हथकड़ी लगा दी और इस प्रकार उसे अपना आकार बदलने और भागने से रोक दिया।
माना जाता है कि आधुनिक हथकड़ी जैसी दिखने वाली, विश्व में पहली धातु की हथकड़ी, लोगों द्वारा कांस्य और लोहे का उपयोग करना सीखने के बाद बनाई गई थी। लेकिन इसे समायोजित करना बहुत मुश्किल काम साबित होता था, क्यों कि ये हथकड़ी अपराधियों की कलाइयों में या तो बहुत तंग या बहुत ढीली हो जाती थी, जिस कारण इसका इस्तेमाल करने में काफी परेशानी होती थी। इस समस्या का समाधान साल 1862 में जब डब्ल्यू.वी. एडम्स (W.V. Adams) ने खोज लिया, जिन्होंने विश्व की पहली ऐसी हथकड़ी बनाई जिसे विभिन्न कलाई के आकार में फिट करने के लिए समायोजित किया जा सकता था। इसके लिए उन्होंने हथकड़ी में रैचेट्स (Ratchets) जोड़ दिए, जो ऐसे हिस्से हैं जो एक दिशा में तो चल सकते हैं लेकिन दूसरी दिशा में नहीं। इसके कुछ साल बाद ऑरसन सी. फेल्प्स (Orson C. Phelps) नामक एक अन्य वैज्ञानिक ने, रैचेट के आकार को बदलकर इस डिजाइन में सुधार किया।
साल 1865 में एक अमेरिकी व्यापारी जॉन टावर (John Tower) ने एक कंपनी शुरू की, जो एडम्स और फेल्प्स के डिजाइन का उपयोग करके हथकड़ी बनाती थी। उन्होंने दो प्रकार (एक जंजीर वाली और दूसरी उनके बीच छल्ले वाली) की हथकड़ियां बनाईं। उन्होंने हथकड़ी खोलने के लिए चाबी लगाने का स्थान भी बगल से नीचे की तरफ कर दिया। साथ ही उन्होंने कलाई के चारों ओर जाने वाले हिस्से को चौकोर के बजाय गोल बना दिया। 1874 में उन्हें अपने इस गोल डिजाइन के लिए पेटेंट (Patent) भी प्राप्त हो गया। दरअसल “पेटेंट एक तरह का विशेष अधिकार होता, जो किसी नए उत्पाद या प्रक्रिया की खोज करने वाले आविष्कारक या खोजकर्ता को दिया जाता है। इस अधिकार के तहत केवल उस आविष्कारक को आम तौर पर 20 साल की अवधि के लिए उसके द्वारा खोजे गए उत्पाद को बनाने, उपयोग करने और बेचने की विशेष अनुमति दी जाती है।” दूसरे शब्दों में “पेटेंट ऐसा कानूनी अधिकार होता है, जो आविष्कारों को उनके उत्पादों को बिना उनकी अनुमति के दूसरों द्वारा चुराने, कॉपी (Copy) किए जाने या उपयोग किए जाने से बचाते हैं।” पेटेंट प्राप्त करने के लिए, आविष्कार के बारे में तकनीकी जानकारी को पेटेंट आवेदन में जनता के सामने प्रकट किया जाना चाहिए। पेटेंट हमारे रोजमर्रा के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
टॉवर ने 1879 में हथकड़ियों में एक और सुधार किया। उन्होंने उन्हें डबल-लॉकिंग (Double-Locking) बना दिया, यानी उनमें हथकड़ी को लॉक करने के एक के बजाय दो तरीके थे। इससे लोगों के लिए इन हथकड़ियों को स्वयं या किसी अन्य चीज़ से खोलना कठिन हो गया। डबल-लॉकिंग हथकड़ी में दो मोड (सिंगल-लॉक और डबल-लॉक (Single-Lock And Double-Lock) थे। आप चाबी को एक या दूसरे तरफ घुमाकर उनके बीच स्विच कर सकते हैं।
1912 में हथकड़ी और भी बेहतर हो गई, जब जॉर्ज कार्नी (George Carney) ने पहली स्विंग कफ (Swing Cuff) का आविष्कार किया। यह एक नया डिज़ाइन था जिसने कानून प्रवर्तन अधिकारियों के लिए केवल एक हाथ से लोगों को हथकड़ी लगाना आसान बना दिया। आज पीयरलेस हैंडकफ (Peerless Handcuffs) नामक एक कंपनी को हथकड़ी बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी माना जाता है। इसी कंपनी ने पहली बार स्विंग कफ को बेचना शुरू किया। तब से लेकर आज तक हथकड़ी की कार्यशैली और इसके रूप में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया है।
हालाँकि, आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में, हथकड़ी लगाना एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का तर्क है कि यह प्रथा किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। कानूनी ढांचा, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इस अधिकार में आंदोलन की स्वतंत्रता और मनमानी हिरासत से सुरक्षा का अधिकार शामिल है। हालाँकि, दंड प्रक्रिया संहिता (Code Of Criminal Procedure) की धारा 46 किसी आरोपी व्यक्ति की गिरफ्तारी या उसके भागने को रोकने के लिए उचित बल के उपयोग की अनुमति देती है। हथकड़ी का उपयोग भी इस प्रावधान के अंतर्गत आता है, और यदि पुलिस आवश्यक समझे तो उनका उपयोग कर सकती है।
हालांकि, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी हथकड़ी के उपयोग पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं। सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1978) के मामले में, अदालत ने कहा कि हथकड़ी के इस्तेमाल को पुलिस द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए और इसे सजा के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि अहिंसक अपराधों, महिलाओं और किशोरों में हथकड़ी का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। अदालत ने आगे कहा कि हथकड़ी का इस्तेमाल अंतिम उपाय होना चाहिए ।
अदालत ने अपने फैसले को मानवीय गरिमा के सिद्धांत पर आधारित किया, जो अनुच्छेद 21 में निहित है। अदालत ने कहा कि हथकड़ी लगाना एक "बर्बर प्रथा" है जो किसी व्यक्ति को "अपमानित” करती है। अदालत ने यह भी कहा कि हथकड़ी लगाना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों, जैसे मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध के विपरीत है।
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद, भारत में हथकड़ी लगाने की प्रथा व्यापक रूप से बनी हुई है। 2010 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, हथकड़ी का उपयोग सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, बिहार और जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में किया जाता है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पुलिस अक्सर सज़ा के तौर पर हथकड़ी का इस्तेमाल करती है और कुछ मामलों में, बंदियों को लंबे समय तक हथकड़ी में रखा जाता है, जिससे उन्हें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर आघात पहुचता है। हथकड़ी लगाने के कारण मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़े कई मामले भी हमारे सामने आये हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में, एक महिला को तपेदिक के इलाज के दौरान अस्पताल के बिस्तर पर हथकड़ी लगा दी गई थी। बिहार में साइकिल चुराने के आरोप में एक व्यक्ति को तीन दिनों तक हथकड़ी लगाकर पेड़ से लटकाया गया।
हथकड़ियों के दुरुपयोग के लिए कई कारक हैं, जिनमें पुलिस के बीच जागरूकता की कमी, जवाबदेही तंत्र की कमी, न्यायिक निरीक्षण की कमी और संयम के वैकल्पिक तरीकों की कमी भी शामिल है। प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन (1980) इस मामले में, अदालत ने माना कि हथकड़ी का उपयोग अनिवार्य नहीं है और इसे मामले-दर-मामले के आधार पर तय किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि हथकड़ी के इस्तेमाल को रिकॉर्ड किया जाना चाहिए और मजिस्ट्रेट (Magistrate) को रिपोर्ट किया जाना चाहिए। एक मामले में अदालत ने यह भी कहा कि हथकड़ी का उपयोग एक न्यायिक अधिकारी द्वारा अधिकृत होना चाहिए और न्यायिक समीक्षा के अधीन होना चाहिए।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3yvfdska
https://tinyurl.com/mr2sjdfb
https://tinyurl.com/2s57z572
https://tinyurl.com/mr3ts6e2
चित्र संदर्भ
1. हथकड़ी पहने व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक पुरानी हथकड़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ग्रीक देवता प्रोटियस को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
4. कैदी को नियंत्रित करने वाले औजारों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. 1840-1900 के बीच इंग्लैंड में प्रचलित हथकड़ी को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
6. पीछे की तरफ बंधी हुई हथकड़ी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
7. जंजीरों से पूरी तरह से जकड़े गए कैदी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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