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आज दुनियां भर में, विशेषतौर पर भारत में बढ़ती आबादी और सिकुड़ती कृषि भूमि के कारण, कृषि के क्षेत्र में “जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान” करना बहुत जरूरी हो गया है, क्योंकि इससे वैज्ञानिकों को फसलों के जीन (Genes) और जीव विज्ञान के बारे में अधिक जानने में काफी मदद मिलती है। जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान के तहत फसलों का अध्ययन करके, वैज्ञानिक जैव-इनपुट (Bio-Inputs) और फसल की कई नई किस्में विकसित कर सकते हैं। फसलों की यह नई किस्में, कीट प्रतिरोधी और पर्यावरण के दुष्प्रभावों के प्रति अधिक लचीली साबित होती हैं। इन किस्मों से अधिक मात्रा में भोजन (अनाज, फल, सब्ज़ी) का उत्पादन किया जा सकता है, और साथ ही इनमें पोषक तत्व भी अधिक किए जा सकते हैं। इसलिए टिकाऊ कृषि पद्धतियों को विकसित करने के लिए जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
पौधों और पशुधन को बेहतर या उत्पादक बनाने के लिए, विज्ञान का उपयोग करने के तरीके को “कृषि जैव प्रौद्योगिकी (Agricultural Biotechnology) या एग्रीटेक (Agritech)” कहा जाता है। इसके तहत जीवित जीवों को संशोधित करने के लिए “आनुवंशिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering (GE) जैसे वैज्ञानिक उपायों और तकनीकों का उपयोग किया जाता है। फसल जैव प्रौद्योगिकी (Crop Biotechnology) भी कृषि जैव प्रौद्योगिकी (Agricultural Biotechnology) का ही एक पहलू है, जो फसलों को बेहतर बनाने पर केंद्रित है। फसलों को बेहतर बनाने के लिए इनके जीन को एक पौधे की प्रजाति से दूसरी प्रजाति में स्थानांतरित किया जा सकता है, या पौधे के डीएनए (DNA) को संशोधित करने के लिए अन्य तकनीकों का उपयोग करके किया जा सकता है।
दुनियाभर के किसान हजारों वर्षों से चयनात्मक प्रजनन (Selective Breeding) के माध्यम से पौधों और पशुधन के गुणों में सुधार कर रहे हैं। 20वीं सदी में, नई तकनीकों के उद्भव ने कृषि जैव प्रौद्योगिकी के विकास को जन्म दिया, जिससे वैज्ञानिकों को फसलों की उपज बढ़ाने और इनमें कीट प्रतिरोध, सूखा प्रतिरोध और शाकनाशी प्रतिरोध जैसे विशिष्ट गुणों को विकसित करने की अनुमति मिल गई। दुनिया का पहला बायोटेक खाद्य उत्पाद (biotech food products) साल 1990 में बेचा गया था। 2003 आते-आते, 7 मिलियन किसान बायोटेक फसलों का उपयोग कर रहे थे।
क्या आप जानते हैं कि 2020 में कृषि जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र का बाजार100 बिलियन डॉलर के करीब पहुच चुका था, जिसके, साल 2025 तक बढ़कर 160 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है। जैव प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग पौधों, जानवरों और रोगाणुओं सहित जीवों के गुणों को विकसित करने या संशोधित करने के लिए किया जाता है, ताकि इनके रंग, उपज या आकार जैसी विशेषताओं में सुधार किया जा सके। जैव प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग विभिन्न प्रकार के कृषि अनुप्रयोगों में किया जा रहा है, जिसमें आणविक प्रजनन, ऊतक संस्कृति, आनुवंशिक रूप से संशोधित या संपादित फसलें और आणविक निदान प्रौद्योगिकियां शामिल हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और यूरोप सहित, दुनिया भर में कई ऐसी कंपनियां हैं, जो कृषि जैव प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण प्रगति दिखा रही हैं। ये कंपनियां कृषि और किसानों को अधिक टिकाऊ और उत्पादक बनने में मदद कर रही हैं।
इनमें से कुछ कंपनियों की सूची निम्नवत दी गई है:
1. एब्सोल्यूट “Absolute” (भारत): यह कंपनी फसलों की पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ सिंथेटिक रसायनों (synthetic chemicals) की आवश्यकता को कम करने के लिए जैव-इनपुट विकसित करती है।
2. एग्रोसस्टेन Agrostain, Switzerland): यह कंपनी भी फसल सुरक्षा के लिए ऐसे प्राकृतिक समाधान विकसित करती है जो सिंथेटिक रसायनों की आवश्यकता को कम करते है।
3. बेन्सन हिल (Benson Hill, USA): यह कंपनी फसल की विशेषताओं और स्थिरता में सुधार के लिए कम्प्यूटेशनल जीव विज्ञान (Computational Biology) और जीन संपादन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करती है।
4. इनारी (Inari, USA): यह कंपनी सहनशील, बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता और बेहतर पोषण जैसे वांछनीय गुणों वाली फसलें विकसित करने के लिए जीन संपादन और मशीन लर्निंग (Machine Learning) का उपयोग करती है।
5. इंडिगो एग्रीकल्चर (Indigo Agriculture, USA): यह कंपनी फसल की पैदावार में सुधार करने और कृषि में सिंथेटिक रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए पौधों के रोगाणुओं और अन्य जैविक इनपुट का विकास करती है।
जैसा कि हमने पढ़ा, कृषि जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग फसलों के पोषण मूल्य में सुधार के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, वैज्ञानिकों ने आनुवंशिक रूप से विटामिन ए (Vitamin A) से भरपूर सुनहरे चावल का उत्पादन कर, विकासशील देशों में अंधेपन की समस्या से निपटान पाने का सोचा। साथ ही वैज्ञानिकों ने अधिक विटामिन ए और आयरन युक्त केले को भी आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किया है, जो अफ्रीका में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से निपटने में मदद कर सकता है। इसके अतिरिक्त, फसलों में विषाक्तता को कम करने, या एलर्जी को दूर करने वाली किस्मों का उत्पादन करने के लिए भी इन्हें इंजीनियर किया जाता है। भारत में केवल एक प्रकार की आनुवंशिक रूप से इंजीनियर्ड (जीई) फसल, बीटी कपास (BT Cotton), उगाने की अनुमति है।
हालांकि इसके अलावा भारत में कुछ जीई खाद्य उत्पादों, जैसे सोयाबीन और कैनोला तेल, और जीई रोगाणुओं से बनी कुछ खाद्य सामग्री के आयात की अनुमति भी दी गई है। 2021 में, भारत ने जीई सोयाबीन के आयात की अनुमति देना शुरू कर दिया, लेकिन देश में अभी भी अन्य जीई उत्पादों (जैसे कि जीई मकई और जीई अल्फाल्फा घास (GE Alfalfa Hay) के साथ सूखे अनाज) के आयात की अनुमति नहीं दी गई है।
हालांकि भारत में विभिन्न प्रकार की जीई फसलें विकसित करने की कोशिश जरूर की जा रही है, जिनमें केला, पत्तागोभी, कसावा, फूलगोभी, चना, बैंगन, सरसों, पपीता, मूंगफली, अरहर, आलू, चावल, ज्वार, गन्ना, टमाटर, तरबूज और गेहूं आदि शामिल हैं। हालांकि, नीतिगत अनिश्चितता और विनियामक अनुमोदन प्रणाली में देरी के कारण जीई फसलों पर उत्पाद विकास चरण और अनुसंधान की प्रगति बाधित हो रही है। भारत में जीई फसलों को मंजूरी देने में हो रही देरी के कई कारण हैं, जिसमें पर्यावरण समूहों और किसान संघों का विरोध भी शामिल है। इन समूहों का तर्क है कि जीई फसलें हमारे पर्यावरण के लिए सुरक्षित नहीं हैं और इसके पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभाव काफी नकारात्मक हो सकते हैं।
भारत में जीएम फसलों के बारे में आम जनता की राय, अभी तक स्पष्ट नहीं है। लेकिन कई बायोटेक विरोधी समूह, जीएम फसलों के खिलाफ ही हैं। इसके अलावा देश के अधिकांश किसान इस तकनीक से पूरी तरह से अनजान हैं। हालांकि देश के प्रमुख उद्योग संघ आम तौर पर जीएम फसलों का समर्थन कर रहे हैं।
भारत में कपास के बीज की कीमत को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय नियंत्रित करता है, जिसमें आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीजों के लिए रॉयल्टी भी शामिल है। 2015 में, मंत्रालय ने बोल्गार्ड II कॉटनसीड (Bollgard II Cottonseed) की कीमत को 39 रुपये ($0.60) प्रति पैकेट पर सीमित कर दिया।
भले ही देश के अधिकांश किसान जीई फसलों के लाभों से अनजान हैं, लेकिन सूचनाएं ऐसी भी प्राप्त हो रही हैं, जिनमें जीई फसलों की अवैध खेती की बात की जा रही है।
देश के दस या अधिक फ़ीड निर्माताओं (Feed Manufacturers) ने, जीई मकई से इथेनॉल उत्पादन के उपोत्पाद डीडीजीएस (DDGS) को आयात करने की अनुमति के लिए सरकार के पास आवेदन किया है। कई अध्ययनों में यह भी दिखाया गया है कि “बीटी कपास”, जो कि एक जीई फसल है, इसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ भी हुआ है, लेकिन अन्य जीई फसलों और उत्पादों से जुड़ा कोई भी डेटा हमारे पास अभी तक उपलब्ध नहीं है।
कुल मिलाकर भारत में जीएम या जीई फसलों के स्वतंत्र विपणन को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसका प्रमुख कारण जनता की राय, नीतिगत अनिश्चितता और किसानों के बीच जागरूकता की कमी शामिल है। हालांकि, ऐसा देखा गया है कि देश के पशु चारा उद्योग में जीई फसलों को लेकर रुचि बढ़ रही है, और कई किसान जीई फसलों की खेती करने के इच्छुक नजर आ रहे हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5hcvkdj7
https://tinyurl.com/bde8w37x
चित्र संदर्भ
1. फसलों पर शोध करते किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (CGIAR Excellence in Breeding)
2. प्रयोगशाला में प्रयोग करते शोधकर्ता को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. प्रयोगशाला में उगते बीजों को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
4. बीन्स को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. नन्हे पौंधों के साथ शोधकर्ता को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. बीटी कपास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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