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आज के आधुनिक बच्चे मोबाइल (Mobile) पर कोई गेम (Game) खेलते हुए या किसी दिलचस्प विडियो (Video) को देखते-देखते सो जाते हैं। लेकिन मोबाइल और इंटरनेट के जमाने से पहले के बच्चों को रात ढलने का इंतजार इसलिए रहता था ताकि रात होने पर वे आराम से बैठकर “चंपक” और “चंदामामा” जैसी पत्रिकायें पढ़ सकें।
चंपक बच्चों के बीच खूब पसंद की जाने वाली एक लोकप्रिय पत्रिका है, जो महीने में दो बार निकलती है। इसे सन 1969 से भारत में विश्वनाथ जी के द्वारा दिल्ली प्रेस ग्रुप (Delhi Press Group) के माध्यम से प्रकाशित किया जा रहा है। यह पत्रिका अंग्रेजी और हिंदी सहित 8 अन्य भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध है। चंपक बच्चों पर केंद्रित अन्य पत्रिकाओं जैसे “अमर चित्र कथा” और “चंदामामा” को कड़ी चुनौती देती है। चंपक की एक मासिक स्कूल पत्रिका भी है जिसका नाम “चंपक प्लस (Champak Plus)” है। अपनी स्थापना के समय, चंपक को बच्चो पर केंद्रित अन्य लोकप्रिय पत्रिकाओं जैसे चंदामामा, पराग और नंदन के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी।
हालांकि आज चंपक, भारत में बच्चों के बीच सबसे अधिक पसंद की जाने वाली पत्रिकाओं में से एक बन गई है। आज आप चंपक का मल्टीमीडिया संस्करण (Multimedia Edition) भी खरीद सकते हैं, जिसके साथ आपको एक सीडी या डीवीडी (CD Or DVD) मुफ्त में मिलती है। इस डिस्क (Disc) में बच्चों के सीखने के लिए गेम और इंटरैक्टिव ग्राफिक्स (Games And Interactive Graphics) होते हैं।
वर्ष 2008 से चंपक के प्रकाशकों द्वारा, 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए “कहानी लेखन प्रतियोगिता” भी आयोजित की जाती है। इस प्रतियोगिता का अंतिम दौर नई दिल्ली में आयोजित किया जाता है। इसके अलावा 'चंपक क्रिएटिव चाइल्ड कांटेस्ट (Champak Creative Child Contest)' नामक एक अन्य वार्षिक लेखन और पेंटिंग प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है। 'चंपक' पत्रिका में मौजूद 'चीकू' की कहानी बच्चों को खूब पसंद आती है। यह आठ भाषाओं में प्रकाशित होती है और 6 मिलियन से अधिक बच्चे इसे पढ़ते हैं। चंपक की कहानियाँ, बच्चों को अधिक रचनात्मक बनाने, और उन्हें बेहतर ढंग से समझने में मदद करने के लिए डिज़ाइन (Design) की गई हैं। ये कहानियाँ बच्चों को अपने बारे में अच्छा महसूस करने में भी मदद करती हैं।
चंपक की एक विशेष कहानी “चंपकवन” नामक जंगल पर आधारित है। इस कहानी के सभी पात्र जानवर होते हैं, जो इंसानों की तरह व्यवहार करते हैं। वे बच्चों को दूसरों के प्रति दयालु और सम्मानजनक व्यवहार करने की सीख देते हैं। चंपक में जिग्सॉ पहेलियां (Jigsaw Puzzles) भी होती हैं, जो बच्चों को बेहतर ढंग से सोचने में मदद करती हैं।
इस कॉमिक (Comic) में एक आकर्षक आदर्श वाक्य, और जिंगल (Jingle) भी है, जिसे बच्चे खूब पसंद करते हैं। जिंगल कुछ इस प्रकार है: “यदि आपको धमकाया जा रहा है और आप नहीं जानते कि क्या करना है, तो चीकू और मीकू से मिलें, जो हर एक स्थिति से गुजर चुके हैं। वे आपको धमकाने वाले का सामना करने में मदद करेंगे और उसे दिखाएंगे कि जब पासा पलट जाता है तो कैसा महसूस होता है।''
ये अनोखे पात्र अक्सर अकेले रहना पसंद करने वाले बच्चों के मित्र बन जाते हैं। चंपक वन की रोमांचक दुनिया कल्पना से निर्मित एक जादुई जंगल की तरह है। चंपकवन में एक शक्तिशाली शेर भी रहता है जिसकी दहाड़ बहुत तेज होती है, लेकिन वह कभी आक्रमण नहीं करता । वहाँ एक हाथी भी है जो दोपहर में घूमता है, एक बंदर है जो हमेशा घूमता रहता है, तितलियाँ लुका-छिपी खेलती हैं, और एक काला भालू एक बड़े पेड़ के पीछे छिपा हुआ रहता है। इन सभी कारणों से तमाम आधुनिक तकनीक और कार्टून के प्रचलन के बावजूद चंपक, आज भी भारतीय बच्चों की पसंदीदा पत्रिकाओं में से एक बनी हुई है। आप अक्सर बच्चों को लंबी रेल यात्रा के दौरान इसे पढ़ते हुए देख सकते हैं। चंपक पहली बार 1968 में आई और अपने आगमन के तुरंत बाद ही यह बहुत लोकप्रिय हो गई।
उस समय, इसे “चंदामामा” नामक एक अन्य मासिक पत्रिका से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी थी, जो उस समय की सबसे अधिक बिकने वाली पत्रिकाओं में से एक थी। चंदामामा में लोककथाएँ, पौराणिक कहानियाँ (जैसे महाभारत, रामायण, बैताल पचीसी और विष्णु पुराण की कहानियाँ), पाठकों द्वारा प्रस्तुत कहानियाँ और नैतिक कहानियों के साथ-साथ भारत के विभिन्न राज्यों में घटने वाली घटनाएँ और विभिन्न संस्कृतियों से जुड़े मजेदार तथ्य भी शामिल थे। चंपक की भांति चंदामामा भी भारत में बच्चों के बीच एक पसंदीदा मासिक पत्रिका हुआ करती थी।
चंदामामा 13 भाषाओं (अंग्रेजी सहित) में प्रकाशित हुई थी, और लगभग 200,000 बच्चे इसे नियमित रूप से पढ़ते थे। चंदामामा को पहली बार जुलाई 1947 में फिल्म निर्माता बी. नागी रेड्डी और चक्रपाणि द्वारा, तेलुगु और तमिल भाषा में प्रकाशित किया गया था। इसका संपादन तेलुगु साहित्य के प्रसिद्ध लेखक कुटुम्बा राव ने अगस्त 1980 में निधन होने तक (28 वर्षों तक) किया। चंदामामा में प्रकाशित कहानियाँ भारत के साथ-साथ अन्य देशों के कई ऐतिहासिक और आधुनिक ग्रंथों से ली गई थीं। इस पत्रिका को राजा विक्रमादित्य और बेताल (पिशाच) की कभी न खत्म होने वाली कहानी में अंतर्निहित कहानियों ने जन-जन के बीच लोकप्रिय बना दिया। चंदा मामा 1970 और 80 के दशक में बहुत लोकप्रिय थीं। लेकिन नई कॉमिक्स (Comics), टीवी शो (TV Shows) और मनोरंजन के अन्य रूपों के आगमन के साथ इसकी लोकप्रियता घटने लगी।
पत्रिका की शुरुआत से ही इसका प्रबंधन हमेशा एक ही परिवार द्वारा किया जाता रहा है। वर्तमान प्रकाशक, बी विश्वनाथ रेड्डी ने अपने पिता से पदभार संभाला। 1999 में कंपनी एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी (Public Limited Company) बन गई और एक बड़ी कंपनी मॉर्गन स्टेनली (Morgan Stanley) ने इसका एक बड़ा हिस्सा खरीद लिया। 2007 में, चंदामामा को जियोडेसिक इंफॉर्मेशन सिस्टम्स (Geodesic Information Systems) नामक एक प्रौद्योगिकी कंपनी ने खरीद लिया था। नवंबर 2008 में, चंदामामा की भाषा, रूप, कलाकृति और सामग्री को और अधिक आधुनिक बनाने के लिए इसमें कई बदलाव किये गए। जियोडेसिक के पास पत्रिका को फिर से शुरू करने की बड़ी योजनाएं थीं। उन्होंने इसके डिजाइन को अपडेट (Update) किया और इसे Ios पर भी उपलब्ध कराया।
लेकिन यह नई शुरुआत ज़्यादा समय तक नहीं चल सकी क्योंकि टैक्स धोखाधड़ी और धन के दुरुपयोग के कारण जियोडेसिक को बंद कर दिया गया। जिसके साथ हमारे प्यारे “चंदामामा” का सफर भी यही पर रुक गया। जियोडेसिक के अंतिम संपादक प्रशांत मूलेकर थे।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3kpxpmrd
https://tinyurl.com/3n22r93c
https://tinyurl.com/mrypkecy
https://tinyurl.com/yckf65nb
https://tinyurl.com/3929br3d
https://tinyurl.com/2h2hbh99
चित्र संदर्भ
1. चंपक और चंदामामा पत्रिका को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, youtube)
2. चंपक में वर्णित कहानी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. चंपक के पाठों की सूची को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. आज आप चंपक का मल्टीमीडिया संस्करण (Multimedia Edition) भी खरीद सकते हैं, जिसके साथ आपको एक सीडी या डीवीडी (CD Or DVD) मुफ्त में मिलती है। जिसके विज्ञापन को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. चंदामामा पत्रिका के कवर पेज को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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