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स्मार्टफोन के हमारे जीवन पर कब्ज़ा करने से बहुत पहले, कलाई घड़ियाँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिली विरासत थीं, जो आकांक्षाओं और भावनाओं की कहानियाँ बताती थीं। और स्विस घड़ियाँ(Swiss- watches) इस शाश्वत परंपरा के प्रमुख प्रतीक के रूप में सामने आईं। ऐसा ही एक ब्रांड 280 साल पुरानी स्विस घड़ी कंपनी फेवरे-लेउबा (Favre-Leuba) थी, जिसने 1865 में भारतीय बाजार में प्रवेश किया था।फेवरे-लेउबा भारत में आने वाला पहला स्विस ब्रांड (Swiss brand )था, यह ब्रांड टाटा (Tata ) समूह के टाइटन ब्रांड (Titan brand)में सम्मिलित होने से पहले लगभग 140+ वर्षों तक भारत में बहुत लोकप्रिय रहा।फेवरे-लेउबा की शुरुआत 1737 में अब्राहम फेवरे द्वारा की गई थी।
अब्राहम के परपोते फ्रिट्ज फेवरे (Fritz Favre) ने 1860 के दशक में भारत की यात्रा की और ब्रिटिश (British) राज की शुरुआत के दौरान, भारतीय बाजार में अपना ब्रांड लॉन्च किया।फेवरे-लेउबा की लंबी और सफल यात्रा उत्पाद नवाचार, उत्कृष्टता, दूरदर्शिता और बदलते समय के साथ प्रासंगिक बने रहने के दृष्टिकोण पर आधारित है।इसकी उच्च-क्वालिटी की घड़ियोंनेखासकर 1960, 70 और 80 के दशक में मध्यम वर्ग के लोगों को बहुत आकर्षित किया।
हालांकि प्रारंभिक "सन वॉच" (Sun Watch) के साक्ष्य 1500 ईसा पूर्व मिस्र से मिलते हैं, आगे चलकर जिसका विकास पहली आधुनिक कलाई घड़ी और पॉकेट घड़ियों के रूप में हुआ, जो उस दौरान समृद्ध लोगों तक ही सीमित थीं। किंतु वास्तव में आधुनिक कलाई घडि़यों की शुरूआत अमेरिका (America) से हुई थी जहाँ पीटर हैमलिन (Peter Hamlin) ने 1524 में पहली पॉकेट घड़ी (pocket watch) बनाई और आगे चलकर 1575 तक ये पॉकेट घड़ियां पूरे स्विट्जरलैंड (Switzerland) में फैल गयीं। यहां से 1848 में लुई ब्रांड (Louis Brand) द्वारा "ओमेगा वॉच कंपनी" (Omega Watch Company) की स्थापना हुई, 1905 में क्राउन (रोलेक्स) (Crown (Rolex)) का अविष्कार हुआ। जिसने लोगों की पसंद के अनुसार हर आकार और साइज की घड़ियाँ उपलब्ध कराई। भारत भी इस परंपरा से बहुत दूर नहीं रहा।
फ्रिट्ज़ फेवरे (Fritz Favre) के ब्रांड फेवरे-लेउबा ने भारत में एक बड़ा बाजार विकसित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद,1954 के आसपास, फेवरे-लेउबा का कार्यालय बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) में स्थापित किया गया। बॉम्बे के भारत की आर्थिक राजधानी होने के कारण इसकी स्थिति भारत में अत्यधिक सुदृढ़ हो गयी थी।फेवरे-लेउबा के लिए भारत एक बहुत ही महत्वपूर्ण बाजार बन गया।आगे चलकर इसकी साथी कंपनियों ने पहले स्विट्जरलैंड (Switzerland) में, फिर यूरोप (Europe) में, और बाद में अमेरिका (America) और अफ्रीका (Africa) के बाज़ारों में अपनी स्थिति मजबूत की।
हालांकि, 1975 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान आपातकाल की स्थिति के कारण, स्विस ब्रांडों ने भारत में अपने व्यवसाय को सीमित कर दिया । ओमेगा (Omega) या राडो (Rado) जैसे कुछ बड़े ब्रांडों के अलावा, अधिकांश स्विस घड़ियाँ भारत में आनी बंद हो गईं। उसी समय, भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, प्रतिष्ठित घड़ी निर्माता ‘एचएमटी’(HMT) का संचालन और प्रचार भी शुरू कर दिया था। और इस प्रकार स्विस घड़ियाँ भारतीय बाज़ार से बाहर हो गईं।
अपने 300 साल के इतिहास में कंपनी ने शुरुआती घड़ियों से लेकर आधुनिक घडि़यों तक कई मॉडल विकसित किए। 1925 के आसपास, फेवरे-लेउबा ने एक एकल बटन क्रोनोग्राफ (Single Cronograph) का निर्माण किया और 1940 में रिवर्सोतंत्र (Reverso mechanism) बनाया। कंपनी ने कई नवाचार भी अपनाये जैसे कि 1955 में निर्मित एफएल 101 (FL101) । 1957 में, उन्होंने स्वचालित कैलिबर (Caliber ) घड़ी को डिज़ाइन किया। 1962 में, हाथ से घूमने वाली कलाई घड़ी, बिवौक(Bivouac) बनाई, जो अल्टीमीटर और एनरॉइड बैरोमीटर (altimeter & aneroid barometer) के साथ पहली यांत्रिक घड़ी थी। 1964 में पहली गोता घड़ियों में से एक, डीपब्लू, (Deep blue) 200 मीटर तक पानी प्रतिरोधी, लॉन्च की गई, इसके बाद 1968 में बाथी लॉन्च की गई, यह पहली यांत्रिक घड़ी थी जो न केवल गोता लगाने के समय और अवधि को इंगित करती थी बल्कि गोता की गहराई को भी सटीक रूप से मापती थी। 1968 में, फेवरे-लेउबा ने अपने डबल-बैरल कैलिबर में एक स्वचालित वाइंडिंग(Winding) जोड़ी, जिससे यह श्रृंखला उत्पादन में इस संयोजन का उपयोग करने वाले पहले ब्रांडों में से एक बन गया। 1969 में शुरू किए गए अपेक्षाकृत सस्ते क्वार्ट्ज आंदोलन द्वारा लाई गई चुनौती ने कंपनी की तुलनात्मक रूप से महंगी मैकेनिकल घड़ियों के लिए प्रतिस्पर्धा को काफी बढ़ा दिया। हालांकि 1969 में अपेक्षाकृत सस्ती क्वार्ट्ज घड़ियों के आने के साथ ही इनका बाजार में टिके रहना मुश्किल हो गया। परिणामस्वरूप, परिवार ने कंपनी बेनेडॉम एस ए और एलवीएमएच (Benedom SA and LVMH) जैसी कंपनियों को बेच दी। 2007 में, फेवरे-लेउबा ने तीन नए मॉडल: ‘द मर्करी कलेक्शन’(The Mercury Collection) के लॉन्च के साथ घड़ी उद्योग में वापसी की। जिसके बाद16 नवंबर, 2011 को, फेवरे-लेउबा को टाटा समूह द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया और इसके कंपनी मुख्यालय को ज़ुग, स्विट्जरलैंड (Zug, Switzerland) में स्थानांतरित कर दिया गया। इस ब्रांड को टाइटन कंपनी (Titan Company) ने 13.8 करोड़ रुपये में खरीदा। दशकों पहले बनी ब्रांड की पहचान को मजबूत करने की कोशिश करते हुए, फेवरे-लेउबा अपनी पुरानी शैलियों पर कायम रहा और परिणामस्वरूप इन घड़ियों की मांग घटने लगी। जबकि पुरानी पीढ़ी ने ब्रांड की वापसी के लिए लंबा इंतजार किया लेकिन युवा पीढ़ी ने इस ब्रांड में ज्यादा रूचि नहीं दिखाई।इस कंपनी ने लगभग पांच दशकों तक भारत में कारोबार किया, 1990 के दशक और उसके बाद ब्रांड ने अपना आकर्षण खो दिया, नईघड़ियों ने बाजार में अपना रास्ता बना लिया और स्मार्टफोन के उदय के साथ घड़ियां अप्रचलित होने लगीं।
संदर्भ:
https://shorturl.at/muFUY
https://shorturl.at/kqvM4
https://shorturl.at/yNVW1
https://shorturl.at/lyM24
चित्र संदर्भ
1. स्विस घड़ी कंपनी फेवरे-लेउबा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. फेवरे-लेउबा के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. विंटेज फेवरे-लेउबा "हार्पून" स्वचालित-पवन घड़ी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. फेवरे-लेउबा की अलार्म घड़ी को दर्शाता एक चित्रण (openverse)
5. फेवरे-लेउबा की कलाई घड़ी को दर्शाता एक चित्रण (openverse)
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