कूटनीति की राह है जटिल, लेकिन विश्व में युद्ध के बजाय शांति स्थापित करना है महत्त्वपूर्ण

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
28-09-2023 09:27 AM
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कूटनीति की राह है जटिल, लेकिन विश्व में युद्ध के बजाय शांति स्थापित करना है महत्त्वपूर्ण

छोटे-छोटे अनियमित युद्धों से लेकर बड़े युद्धों तक, कोई भी लड़ाई विनाशकारी ही होती है। और इसलिए, राष्ट्र या राज्य खुले संघर्ष से बचने की पूरी कोशिश करते हैं। जब युद्ध लड़ा जाता है, तो इसमें शामिल देशों के पास उन युद्धों को आगे न बढ़ाने और उनका विस्तार न करने के लिए युद्ध की लागत के रूप में एक विशिष्ट प्रोत्साहन होता है। युद्ध एक अंतिम उपाय है, और युद्ध की लागत जितनी अधिक होगी, इसके दोनों पक्षों को इससे बचने हेतु, उतना ही कठिन काम करना होगा। जब युद्ध की बात आती है, तो इन घटनाओं के मूल कारणों और पूर्ववर्ती घटनाओं के विश्लेषण से हमें अक्सर ही, कुछ परिचित कारकों की एक सूची मिल जाती है। अब प्रश्न उठता है कि यदि लड़ना या युद्ध करना दुर्लभ और विनाशकारी है, तो यह विनाशकारी युद्ध लड़े ही क्यों जाते हैं? शायद इस प्रश्न का उत्तर आसान है। क्योंकि युद्ध तभी होता है जब युद्ध में शामिल दोनों पक्ष या कोई एक पक्ष इसकी लागत को नजरअंदाज कर देते हैं। और जबकि, हर युद्ध का एक कारण होता है, ऐसे कई तार्किक तरीके भी होते हैं, जिनसे कोई युद्ध की लागत को ही नजरअंदाज कर देता है। आइए, इन कारणों पर प्रकाश डालने की कोशिश करते हैं।
ग़ैरजिम्मेदार नेता:  जब एक तानाशाह शासक अपने सैनिकों और नागरिकों के हितों का ध्यान नहीं रखता। उसका लक्ष्य बस अपने शासन का नियंत्रण बनाए रखना होता है। जब ऐसे नेता अनियंत्रित हो जाते हैं और अपने लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं, तो वे आम लोगों द्वारा वहन की जाने वाली लड़ाई की लागत को नजरअंदाज कर सकते हैं। इसके अलावा, युद्ध की स्थिति में शासक अपने स्वयं की कार्यावली को आगे बढ़ा सकते हैं।
विचारधारा: अपनी महिमा और विचारधारा की खोज में, तानाशाह शासक जो भी कीमत और जोखिम उठाते हैं, वह चुकाने को तैयार होते हैं। यह युद्ध के लिए अमूर्त और वैचारिक प्रोत्साहन का सिर्फ एक उदाहरण है जो कई नेताओं के पास है। ऐसे वैचारिक प्रोत्साहन युद्ध का कारण बन सकते हैं।
पक्षपात: निरंकुश लोग विशेष रूप से इस समस्या से ग्रस्त होते हैं, लेकिन कुछ विफलताएं लोकतांत्रिक देशों को भी प्रभावित करती हैं। कुछ नेता मनोवैज्ञानिक रूप से भी पक्षपाती हो सकते हैं। एक पक्ष अति आत्मविश्वासी हो सकता है, वह युद्ध की बर्बादी को कम आंक सकता है और अपनी जीत की संभावनाओं को अधिक महत्व दे सकता हैं। साथ ही, अपने विरोधियों की निंदा भी किसी को युद्ध की ओर ले जा सकती है।
अनिश्चितता: पूर्वाग्रह और गलत धारणाओं पर अधिक ध्यान अनिश्चितता की सूक्ष्म भूमिका को अस्पष्ट कर देता है। युद्ध की तैयारी में, नीति निर्माताओं को अपने विरोधी पक्ष की ताकत या संकल्प का पता नहीं चलता है। ऐसी अनिश्चित चीजें युद्ध को मौलिक रूप से प्रभावित कर सकती हैं। लेकिन अनिश्चितता का मतलब यह नहीं है कि, युद्ध की लागत अनिश्चित है। यह दरअसल, अच्छी जानकारी प्राप्त करने में वास्तविक रणनीतिक बाधाएं हैं।
अविश्वसनीयता: जब एक कम शक्तिशाली पक्ष, उससे अधिक शक्तिशाली पक्ष का सामना करता है, तो वह शक्तिशाली पक्ष पर शांति के लिए प्रतिबद्ध होने का भरोसा ही नहीं कर सकता है। इसलिए, अपने वर्तमान लाभ को बरकरार रखने के लिए, वह पक्ष युद्ध की लागत का भुगतान करना ही बेहतर समझता है। कुछ विद्वानों का तर्क है कि सत्ता में इस तरह के बदलाव, और उनके द्वारा पैदा की गई प्रतिबद्धता की समस्याएं, इतिहास में हर लंबे युद्ध की जड़ रही हैं। आज, युद्ध ने एक मनोवैज्ञानिक प्रतिस्पर्धा का रूप भी ले लिया है। हालांकि, हजारों वर्षों में इसमें थोड़ा बदलाव भी आया है। और अब अनुमान है कि, वर्तमान समय में प्रचलित कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial intelligence (AI), भी अंततः युद्ध की प्रकृति को हमेशा के लिए बदल सकती है। क्योंकि, तब लड़ाई मनुष्यों के मनोविज्ञान में निहित न होकर, इसके बजाय निर्णय लेने वाली मशीनों के बीच एक प्रतियोगिता बन सकती है।
अगर युद्ध तब होता है, जब किसी देश या उनके नेता इसकी लागत को नजरअंदाज कर देते हैं, तो शांति तभी स्थापित होतीहै, जब हमारी संस्थाएं इस लागत को नजरअंदाज करना कठिन बना देती हैं। सफल तथा शांतिपूर्ण समाजों ने, आज तक स्वयं को उपरोक्त सभी पांच प्रकार की विफलताओं से कुछ हद तक अलग रखा है। उन्होंने निरंकुश पक्षों की शक्ति की उचित जांच की है। उन्होंने ऐसे संस्थान बनाए हैं, जो अनिश्चितता को कम करते हैं, संवाद को बढ़ावा देते हैं और गलत धारणाओं को कम करते हैं। उनके पास लिखित संविधान और कानून निकाय हैं जो सत्ता में बदलाव को कम घातक बनाते हैं। उन्होंने प्रतिबंधों से लेकर शांति सेना और मध्यस्थ हस्तक्षेप विकसित किए हैं, जो समझौता करने के बजाय, लड़ने के हमारे रणनीतिक और मानवीय प्रोत्साहन को कम करते हैं। और इस प्रकार, वे शांति स्थापित करने में कुछ हद तक सफ़ल रहे हैं। शांति और व्यवस्था की खोज में दो घटक होते हैं जिन्हें कभी-कभी विरोधाभासी माना जाता है। ये घटक सुरक्षा के तत्वों की खोज और संधि के कार्यों की आवश्यकता हैं। यदि हम इन दोनों को प्राप्त नहीं कर सकते है, तो हम किसी एक से भी दूर ही रहेंगे। कूटनीति की राह जटिल और निराशाजनक लग सकती है। लेकिन इसमें प्रगति के लिए यात्रा शुरू करने के लिए दृष्टि और साहस दोनों की आवश्यकता होती है। निष्कर्ष यह हैं कि चाहें कारण कुछ भी हो, युद्ध में शामिल होने से पहले दोनों पक्षों को इसकी लागत का अवलोकन करना चाहिए तथा युद्ध के बजाय शांति स्थापित करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yrn942kk
https://tinyurl.com/4sjax52e
https://tinyurl.com/mw3zpdj7

चित्र संदर्भ
1. युद्ध के दुखद दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (pxfuel)
2. राजनितिक व्यंग को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
3. चिता जलाने की तैयारी को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. युद्ध की पीड़ा को दर्शाता एक चित्रण (libreshot)

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