पवित्र अग्नि के समक्ष वैदिक 'यज्ञ' व् पारसी धर्म के 'यस्ना' के बीच समानताएं

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
20-09-2023 08:02 AM
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पवित्र अग्नि के समक्ष वैदिक 'यज्ञ' व् पारसी धर्म के 'यस्ना' के बीच समानताएं

हिंदू धर्म में ‘यज्ञ’ (Yajna) शब्द पवित्र अग्नि के सामने बैठकर किये जाने वाले मंत्रोच्चारण एवं धार्मिक अनुष्ठान को संदर्भित करता है। भारतीय संस्कृति में यज्ञ एक वैदिक परंपरा रही है, जिसका वर्णन यजुर्वेद में भी किया गया है। वैदिक उपनिषदों में निहित “ज्ञान-कांड” के विपरीत, यज्ञ के अनुष्ठान-संबंधी ग्रंथों को “वैदिक साहित्य के कर्म-कांड (अनुष्ठान कार्य)” कहा जाता है। हिंदू धर्म में विवाह, गृह प्रवेश और यज्ञोपवीत जैसे संस्कारों में, यज्ञ केंद्रीय भूमिका निभाता है। ‘यज्ञ’ शब्द का मूल संस्कृत शब्द “यज” में निहित है, जिसका अर्थ ‘पूजा करना, आराधना करना, सम्मान करना या आदर करना' है! यह शब्द सबसे पहले, दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में रचे गए प्रारंभिक वैदिक साहित्य में दिखाई देता है। यज्ञ के अनुष्ठान में देवताओं को भोजन, घी, शहद, पेय और फूल जैसी धार्मिक रूप से पवित्र सामग्रियां अर्पित की जाती हैं। इन सभी सामग्रियों की आहुति “अग्नि” में दी जाती है, जिसे हिंदू धर्म में एक पवित्र प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह अनुष्ठान मंत्रों या पवित्र छंदों के जाप के साथ ऋषि-मुनियों (वर्तमान में पुजारियों) द्वारा सम्पन्न किया जाता है।
चलिए “यज्ञ” के वास्तविक अर्थ को उक्त श्लोक के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं:
“अथ यद्यज्ञ इत्याचक्षते ब्रह्मचर्यमेव
तद्ब्रह्मचर्येण ह्येव यो ज्ञाता तं॥
विन्दतेऽथ यदिष्टमित्याचक्षते ब्रह्मचर्यमेव
तद्ब्रह्मचर्येण ह्येवेष्ट्वात्मानमनुविन्दते ॥ १ ॥

भावार्थ: “जिसे यज्ञ कहते हैं वह ब्रह्मचर्य है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जो स्वयं को जानता है वह ब्रह्मचर्य के माध्यम से ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है। फिर, जिसे इष्ट के रूप में जाना जाता है वह ब्रह्मचर्य है, क्योंकि वांछित आत्मा ब्रह्मचर्य के माध्यम से प्राप्त कर ली जाती है।” ऐसा माना जाता है कि यज्ञ करने से कई लाभ होते हैं! यज्ञ करने वाला मनुष्य सौभाग्य, समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ अर्जित करता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि संस्कृत शब्द “यज्ञ", पारसी धर्म के “अवेस्ता” (Avesta) में वर्णित शब्द ‘यस्ना’ (Yasna) के साथ भी कई समानताएं साझा करता है। पारसी धर्म के धार्मिक ग्रंथों के प्राथमिक संग्रह को अवेस्ता के नाम से जाना जाताहै। अवेस्ता ग्रंथ को कई अलग-अलग श्रेणियों, बोली या उपयोग के आधार पर व्यवस्थित किया गया है। अवेस्ता को ईरानी भाषा “अवेस्तान” में लिखा गया है।
अवेस्ता का फ़ारसी और अंग्रेजी सहित कई अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है। अवेस्ता के अलावा पारसी धर्म में दो अन्य धार्मिक ग्रंथ भी हैं, जिनका नाम डेनकार्ड (Denkard) और अर्दाविराफ नमक (Ardaviraf Namak) है। “यस्ना” (Yasna) को इस धार्मिक संग्रह में प्रमुख पाठ माना जाता है जिसका नाम “यस्ना समारोह” शब्द से लिया गया है, जो पारसी धर्म की पूजा का एक प्राथमिक अनुष्ठान माना जाता है। माना जाता है कि इसकी रचना स्वयं जारथुस्त्र (ज़ोरोआस्टर) (Zarathustra (Zoroaster) ने की थी। ज़ोरोआस्टर को ईरानी धार्मिक सुधारक और पारंपरिक रूप से पारसी धर्म का संस्थापक माना जाता है। ज़ोरोआस्टर द्वारा प्रचारित पारसी धर्म, ईरान में प्रचलित प्रोटो इंडो ईरानी धर्म (Proto Indo-Iranian religion (Vedic) के खिलाफ एक धार्मिक आंदोलन के रूप में उभरा, लेकिन ज़ोरोआस्टर ने पारसी ग्रंथों में बहुत सारी प्रोटो इंडो ईरानी पौराणिक कथाओं को भी शामिल किया।
संभवतः इसी कारण पारसी गाथाओं की पुरानी अवेस्तान भाषा और संस्कृत में रचित ऋग्वेद के बीच भाषाई समानता भी नजर आती है। दोनों ही ग्रंथों को भारत-ईरानी मूल का माना जाता है। यास्ना (Yasna) भी मूल रूप से संस्कृत शब्द “यज्ञ (Yajna)” का ही सजातीय शब्द प्रतीत होता है। यास्ना का उद्देश्य अहुरा मज़्दा “Ahura Mazda” (सर्वोच्च देवता) की अच्छी कृतियों को अंगरा मैन्यु (Angra Mainyu) की विनाशकारी ताकतों से बचाना है। इसके तहत पवित्र ग्रंथों का पाठ किया जाता है। इसके मुख्य भाग को ‘अब-ज़ोहर’ कहा जाता है, जिसमें जलार्पण (पानी का अर्पण) किया जाता है। वहीं वैदिक यज्ञ अनुष्ठानो के तहत “अग्नि” में आहूति दी जाती है। वैदिक मान्यताओं के समान ही पारसी मान्यताओं के अनुसार भी यास्ना का उद्देश्य ब्रह्मांड में संतुलन और व्यवस्था बनाए रखना है। इसे अराजकता और अव्यवस्था को रोकने के एक शक्तिशाली तरीके के रूप में देखा जाता है। यज्ञ की भांति ही “यस्ना" का शाब्दिक अर्थ भी 'अर्पण' या 'पूजा' होता है। यास्ना ग्रंथों में कुल मिलाकर 72 अध्याय हैं, जिनकी रचना अलग-अलग समय पर, अलग-अलग लेखकों द्वारा की गई है। वैदिक परंपरा में “यज्ञ" और पारसी धर्म के “यास्ना" दोनों में भक्त, अपनी भक्ति दिखाने और आशीर्वाद मांगने के तरीके के रूप में “अग्नि एवं जल में” भोजन एवं तरल पदार्थों को अर्पित करते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4ekwyhzr
https://tinyurl.com/4hhyzx4f
https://tinyurl.com/3fyewk53
https://tinyurl.com/bdh79cy7

चित्र संदर्भ

1. विश्व शांति महा यज्ञ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. यज्ञ समारोह को दर्शाता एक चित्रण (Pexels)
3. पारसी धर्म के पवित्र चिन्ह "फरवाहर" को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. यस्ना समारोह को दर्शाता एक चित्रण (snl.no)
5. प्रजापति दक्ष के यज्ञ में प्रकट हुए भगवान् शिव को दर्शाता एक चित्रण (Creazilla)

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