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हिंदू धर्म में सावन के महीने का बहुत अधिक महत्व है। इस पूरे महीने में शिवभक्त, पूरी आस्था और भक्ति के साथ भगवान शिव की पूजा करते हैं। भगवान शिव की पूजा में, भक्त भगवान शिव को विभिन्न प्रकार के ऐसे फूल और फल भी चढाते हैं जो भगवान शिव को अत्यंत प्रिय माने जाते हैं । इन सभी में मुख्य रूप से गुड़हल, बेलपत्र, धतूरा, मदार, अपराजिता और मोगरा के फूल भगवान शिव को अत्यंत प्रिय माने जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि ये सभी फूल और फल सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होते हैं।
यूं तो ये भगवान शिव को भक्ति और श्रद्धा के साथ अर्पित एक पत्ती भी अत्यंत प्रिय है, लेकिन विशेषतौर पर धतूरा और बेलपत्र उनके हृदय के अत्यंत करीब माने जाते है। ऐसा माना जाता है कि भोलेनाथ को धतूरा अत्यंत पसंद है। धतूरे को शिव-शेखर अर्थात “शिव का मुकुट” भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान शिव के सीने से तब निकला था, जब उन्होंने समुद्र के मंथन के दौरान, समुद्र से निकला हुआ घातक जहर (हलाहल) पिया था। सावन में भोलेनाथ को विशेष रूप से बेलपत्र एवं धतूरा चढ़ाया जाता है।
धतूरा, नाइटशेड परिवार (सोलेनेसी) (Nightshade Family (Solanaceae) से संबंधित अत्यधिक जहरीले, वेस्परटाइन-फूल वाले पौधों (Vespertine-Flowering Plants) की नौ प्रजातियों में से एक है। इसे आमतौर पर थॉर्न एप्पल या जिमसन वीड (Thorn-apple Or Jimson Weeds) के नाम से भी जाना जाता है। धतूरे की सभी प्रजातियाँ बेहद जहरीली और संभावित रूप से मनो-सक्रिय होती हैं। इसके बीज और फूल श्वसन अवसाद, अतालता, बुखार, प्रलाप, मतिभ्रम, एंटीकोलिनर्जिक सिंड्रोम (Anticholinergic Syndrome), मनोविकृति और यहां तक कि मृत्यु का कारण भी बन सकते हैं।
आयुर्वेदिक ग्रंथ “सुश्रुत संहिता” में, धतूरे की विभिन्न प्रजातियों को कनक और उन्मत्त के नाम से भी जाना जाता है। धतूरे की प्रजातियाँ पत्तेदार और अल्पकालिक बारहमासी होती हैं, जिनकी ऊंचाई 2 मीटर तक हो सकती है। इसकी पत्तियाँ 10-20 सेंटीमीटर लंबी, 5-18 सेंटीमीटर चौड़ी और लोबदार या दांतेदार किनारे वाली होती हैं। इसके फूल तुरही के आकार के होते हैं और सीधे या फैले हुए होते हैं। ये फूल सफेद, पीले और हल्के बैंगनी रंग के भी हो सकते हैं। धतूरे का फल एक कांटेदार कैप्सूल (Capsule) की तरह होता है, जो 4-10 सेमी लंबा और 2-6 सेमी चौड़ा होता है। इसके फल में कई बीज होते हैं जो आसानी से चरागाहों, खेतों और यहां तक कि बंजर भूमि पर भी आसानी से उग जाते हैं।
आयुर्वेद में इस जड़ी बूटी को "उपविशा वर्ग" में वर्गीकृत किया गया है जो एक द्वितीयक विषैला पौधा है। आयुर्वेद के अनुसार उपविशा श्रेणी के अंतर्गत आने वाले ये पौधे कम मात्रा में प्रभावी होते हैं और इनका औषधीय उपयोग होता है, लेकिन यदि शोधन प्रक्रिया(Purification process) के माध्यम से इनको शुद्ध न किया जाए या अधिक मात्रा में लिया जाए तो यह घातक हो सकते हैं। चरक संहिता और राज निघंटु के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में बताया गया है कि धतूरा पाचन, त्वचा विकारों, अपच, मतली और उल्टी, ,जलन , मधुमेह , हृदय रोग , खांसी और सर्दी को रोकता है और सांस की बीमारियों में लाभदायक होता है ।
धतूरे के साथ ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर ‘बेलपत्र’ भी अनिवार्य रूप से चढ़ाए जाते हैं । बेलपत्र के बिना भगवान शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है। बेल को अंग्रेजी में एगल मारमेलस (Aegle Marmelos) के नाम से जाना जाता है। यह भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में प्रचुरता से उगता है। इस पेड़ को हिंदुओं के साथ-साथ बौद्ध धर्म में भी पवित्र माना जाता है। बेल या एगल मारमेलस एक पर्णपाती झाड़ी या एक मध्यम आकार का पेड़ होता है, जो 13 मीटर तक लंबा होता है।
बेल की पत्तियां अर्थात बेलपत्र त्रिपर्ण होती हैं। इसकी नई पत्तियाँ हल्के हरे या गुलाबी रंग की होती हैं, जबकि परिपक्व पत्तियाँ गहरे हरे रंग की और पूरी तरह से चिकनी होती हैं। प्रत्येक पत्ती में 4-12 जोड़ी पार्श्व शिराएं होती हैं, जो किनारे पर जुड़ी होती हैं।
बेल पत्र एक अनोखा पौधा है और इसके कई औषधीय लाभ हैं। बेल फल में विटामिन और खनिज होते हैं, विशेष रूप से विटामिन सी, कैल्शियम (calcium), पोटेशियम (potassium), फाइबर (fibre) और बी 6 (B6), बी 12 (B12) और बी 1 (B1)। ये खनिज और विटामिन शरीर के समग्र विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं। बेल का फल विटामिन सी (Vitamin C) से भरपूर होता है। इसका शरबत बनाया जा सकता है, जिसे बेल-पन्ना कहा जाता है। बेल के एक बड़े फल से पांच से छह लीटर तक शरबत बन सकता है। इसके अलावा बेल की पत्तियों, छाल, जड़ों, फलों और बीजों का उपयोग विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए पारंपरिक चिकित्सा में भी किया जाता है। बेलपत्र के पेड़ के विभिन्न भागों से मसूड़ों से खून आना, अस्थमा, पीलिया, पेचिश, एनीमिया (Anemia) और कई अन्य बीमारियों को ठीक किया जा सकता है।
हिंदू धर्म में बेल पत्र के पेड़ को एक दिव्य वृक्ष माना जाता है। मान्यता है कि इस पौधे में प्रचुर मात्रा में सत्व तत्व होते हैं जो वातावरण में रज-तम कणों को अवशोषित कर निष्क्रिय करते हैं और सात्विक कणों को उत्सर्जित करते हैं। त्रिपर्णीय बेल पत्र भगवान शिव की तीन आंखों का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ ही इसे त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी माना जाता है। ये तीन आँखें, या शक्तियाँ, निर्णय लेने, कार्रवाई और ज्ञान से जुड़ी हुई हैं। बेल पत्र के पेड़ को जैन धर्म में भी शुभ माना जाता है। माना जाता है कि 23वें तीर्थंकर पार्श्व पंत ने इसी वृक्ष के नीचे निर्वाण प्राप्त किया था।
शिव पुराण में बेल पत्र के पेड़ या उसके पत्तों की पूजा के महत्व की एक सुंदर व्याख्या की गई है। पुराणों के अनुसार, “जो मनुष्य शिवलिंग पर श्रद्धापूर्वक तीन बेलपत्र अर्पित करता है, भगवान शिव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।” कहा जाता है कि बेलपत्र का पत्ता शिव की ऊर्जा को अवशोषित करता है और जब इसे भगवान को अर्पित किया जाता है, तो उपासक इस ऊर्जा को अपने साथ घर ले जाते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4cj38bpt
https://tinyurl.com/4fuhx2ty
https://tinyurl.com/d886xrh4
https://tinyurl.com/3hp2bfxd
https://tinyurl.com/4u3peff2
https://en.wikipedia.org/wiki/Datura
चित्र संदर्भ
1. धतूरा और बेलपत्र को दर्शाता एक चित्रण (pxfuel,Creazilla)
2. धतूरे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. धतूरे के फूल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. धतूरे के बीजों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बेल पत्र के पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. बेल पत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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