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मौखरि राजवंश (Maukhari Dynasty), जो कि गुप्त साम्राज्य (Gupta Dynasty) के पतन के बाद उभरा था, के शासकों ने “कन्नौज” से छह पीढ़ियों से अधिक समय तक अपने द्वारा शासित गंगा-यमुना के विशाल मैदानों को नियंत्रित किया। । छठी शताब्दी की शुरुआत तक मौखरि साम्राज्य के शासक पहले गुप्त राजवंश और बाद में हर्षवर्धन साम्राज्य के सामंतों के रूप में कार्य करते थे, जिसके बाद ही मौखारियों ने छठी शताब्दी के मध्य में अपनी पूर्ण स्वतंत्रता स्थापित की। इस साम्राज्य ने उत्तर प्रदेश और मगध के अधिकांश भाग पर शासन किया। हालांकि 606 ईसवी के आसपास इनके साम्राज्य का एक बड़ा क्षेत्र बाद के गुप्त शासकों द्वारा पुनः वापस ले लिया गया था।
मौखरि साम्राज्य के शासक और लोग कट्टर हिन्दू थे। उन्होंने लोगों के बीच पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था को लागू करने और बनाए रखने का प्रयास किया। हालांकि, हिंदू धर्म को इस राज्य में भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ, लेकिन इसी बीच बौद्ध धर्म भी एक प्रमुख धर्म के रूप में प्रचलित था। हालांकि मौखरि साम्राज्य की सेना में हाथी, घुड़सवार सेना और पैदल सेना शामिल थी। मौखरी शासक मुख्य रूप से दुश्मन सेनाओं को हराने के लिए हाथियों की तैनाती पर निर्भर थे।। उन्होंने अल्कन हूणों (Alchon Huns) और बाद की गुप्त सेनाओं के विरुद्ध युद्ध भी लड़े । मौखरियो ने अल्चोन हूणों के खिलाफ गंगा के दोआब और मगध के क्षेत्रों में लड़ाई लड़ी।
ज्ञात मौखरि शासकों की सूची निम्नवत दी गई है:
हरिवर्मन (Harivarman)
आदित्यवर्मन् (Adityavarman)
ईश्वरवर्मन (Iśvaravarman)
ईशानवर्मन (Iśanavarman), 550–574 ईसवी)
शर्ववर्मन (Śarvavarman), 574–586 ईसवी)
अवन्तिवर्मन (Avantivarman)
ग्रहवर्मन (Grahavarman, 600–605 ईसवी)
मौखरि राजा कवियों और लेखकों को संरक्षण देने के लिए जाने जाते थे, जिसके कारण उनके शासनकाल के दौरान कई साहित्यिक कृतियों का भी निर्माण हुआ। ऐसा माना जाता है कि मौखरी राजा सर्ववर्मन ने खुसरो प्रथम को शतरंज का खेल ईरान भेजा था। उनके साम्राज्य में शतरंज और चौसरजैसे बौद्धिक खेलों की उपस्थिति से पता चलता कि वे लोग सासैनियन साम्राज्य (Sasanian Empire) के साथ भी संपर्क में थे।
आज शोधकर्ताओं के पास, मौखरि साम्राज्य से जुड़ी अहम् जानकारी प्राप्त करने के लिए दो शिलालेख उपलब्ध हैं। इनमें से पहला वर्ष 554 ईसवी में ईशानवर्मन साम्राज्य के आसपास का प्रसिद्ध हरहा पत्थर शिलालेख (Harha Stone Inscription) है। इसमें उनके पुत्र सूर्यवर्मन के बारे में लिखा गया है। वहीँ दूसरा प्रमुख शिलालेख, हमारे जौनपुर में खोजा गया है। अनुमान है कि जौनपुर में खोजा गया यह शिलालेख, अपने मूल शिलालेख की चौड़ाई का केवल एक तिहाई हिस्सा मात्र है। जौनपुर शिलालेख में प्रति पंक्ति, अक्षरों की संख्या 91 और 99 के बीच है। इससे पता चलता है कि मूल शिलालेख कई श्लोकों से बना था, जिनमें से प्रत्येक में अक्षरों की एक विशिष्ट संख्या थी।
जौनपुर शिलालेख के निर्माण का श्रेय मौखरि शासक ईश्वरवर्मन (I´svaravarman) को दिया जाता है, लेकिन इसके पद्य पैटर्न से पता चलता है कि इसकी रचना संभवतः ईश्वरवर्मन या उनके उत्तराधिकारियों में से किसी ने की होगी।हालांकि इसे करीब से देखने तथा इसके अधिक विश्लेषण की जरूरत है।
जब हम इस शिलालेख की तुलना पहले खोजे गए हरहा शिलालेख से करते हैं, तो हमें दोनों लेखों में एक समान शैली दिखाई देती है। हालांकि, हरहा शिलालेख, जौनपुर शिलालेख की तुलना में अधिक सजावटी छंदों के साथ थोड़ा अधिक आकर्षक लगता है। दोनों की मूल संरचना और लेखों में राजा हरिवर्मन और आदित्यवर्मन के लिए दो श्लोक आरक्षित हैं। हरहा शिलालेख में, ईशानवर्मन को समर्पित तीन श्लोक हैं, जबकि जौनपुर शिलालेख में ऐसा लगता है कि श्लोक 8 ईश्वरवर्मन के पुत्र ईशानवर्मन को समर्पित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि श्लोक 8 में ‘शेर सिंहासन’ का उल्लेख किया गया है, जिसका उल्लेख हरहा शिलालेख के श्लोक 13 में भी किया गया है, जो ईशानवर्मन को समर्पित है। हरहा शिलालेख में, ईशानवर्मन को समर्पित पांच छंद हैं। छठे श्लोक में उनके पुत्र सूर्यवर्मन का परिचय दिया गया है।
छठी शताब्दी को आम तौर पर भारतीय इतिहास में ‘अंधकार युग’ माना जाता है, क्योंकि इस अवधि के बारे में हमारे पास अधिक लिखित साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। हालांकि, ये दो मौखरि शिलालेख इस अवधि के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। जौनपुर का शिलालेख मौखरि वंश के इतिहास का एक बहुमूल्य साक्ष्य माना जाता है। इनके अध्ययन से यह पता चलता है कि मौखरि साम्राज्य उत्तरी भारत में एक शक्तिशाली और प्रभावशाली साम्राज्य हुआ करता था।
इन दो शिलालेखों के साथ-साथ मौखरि साम्राज्य अपने पीछे सात मुहरें और कई सिक्के भी छोड़ गया है। कन्नौज से प्राप्त मौखरि राजवंश के सिक्के में एक तरफ अर्धचंद्राकार मुकुट के साथ एक राजा और दूसरी तरफ ब्राह्मी शिलालेख 'विजित्वनिर-अवनपति श्री अवन्तिवम्मा दिवम जयति' के साथ एक गरुड़ पक्षी अंकित है। इस सिक्के पर राजा का नाम अवंतीवम्मा स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इस प्रकार का सिक्का बहुत दुर्लभ होता है, क्योंकि इतिहास की किसी भी संदर्भ पुस्तक में इसका उल्लेख नहीं मिलता है। इसी कारण से यह सिक्का बेहद खास है ।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2thpdt8p
https://tinyurl.com/4bkrazzr
https://tinyurl.com/4yevxh4c
https://tinyurl.com/43vtdxsw
चित्र संदर्भ
1. छठी शताब्दी की मौखरि राजवंश की असीरगढ़ मुहर शिलालेख को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मौखरि राजवंश के विस्तार मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. राजा सर्ववर्मन के शिलालेख को दर्शाता एक चित्रण (worldhistory)
4. हरहा पत्थर शिलालेख को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मौखरि राजवंश के सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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