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आज हम ऐसी कई फिल्मों को देखते हैं, जिनकी कहानी किसी घटना या व्यक्ति के वास्तविक जीवन से प्रेरित होती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बॉलीवुड की एक ऐसी ही हाई वोल्टेज ड्रामा फिल्म (High Voltage Drama Film) "बंदूक" की पटकथा भी दो महान संस्कृत साहित्यों “कालिदास के नाटक, “मालविकाग्निमित्र” और भास के नाटक, “कर्ण भार” (महाभारत के युद्ध में कर्ण की दुर्दशा।)” से प्रेरित है। कालिदास के बारे में तो हम सभी ने सुना है, लेकिन भास के नाटकों के बारे में लोगो को स्पष्ट रूप से तब तक पता न था, जब तक कि उनके “तेरह नाटकों” को 1913 में गणपति शास्त्री नामक एक भारतीय विद्वान द्वारा पुनः खोजा नहीं गया।
तब तक भास का उल्लेख केवल अन्य लेखकों के कार्यों में मिलता था। जैसे कि 880-920 ईसवी की "काव्यमीमांसा" में राजशेखर “स्वप्नवासवदत्तम्” नामक नाटक का श्रेय भास को देते हैं। उनके नाम से जुड़े तेरह नाटक, आमतौर पर पहली या दूसरी शताब्दी ईस्वी के करीब के बताए जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि अपने पहले नाटक “मालविकाग्निमित्रम” के परिचय में, कालिदास ने भी यह लिखा था कि "क्या हम भास, सौमिल और कवि पुत्र जैसे प्रतिष्ठित लेखकों के कार्यों की उपेक्षा करेंगे?
भास के जन्म की तारीख अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन उन्हें पहली शताब्दी ईसा पूर्व तक एक प्रसिद्ध नाटककार के रूप में जाना जाता था। उनका काम उन्हें प्रारंभिक तौर पर उत्तर-मौर्य काल (322-184 ईसा पूर्व) और नवीनतम चौथी शताब्दी ई.पू. के बीच का दर्शाता है। भास की भाषा, अश्वघोष (पहली-दूसरी शताब्दी) की तुलना में, कालिदास (5वीं शताब्दी सीई) के अधिक निकट नजर आती है।
भास की रचनाएँ नाट्यशास्त्र के भी सभी निर्देशों का पालन नहीं करती हैं। नाट्यशास्त्र, नाट्य कला पर विस्तृत ग्रंथ और पुस्तिका है जो शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच के सभी पहलुओं से संबंधित है। इसकी रचना पौराणिक ब्राह्मण ऋषि भरत (पहली शताब्दी ईसा पूर्व- तीसरी शताब्दी सीई) द्वारा की गई थी। कालिदास के बाद लिखे गए किसी भी नाटक में नाट्यशास्त्र के नियमों को नहीं तोड़ा गया है। इसके अलावा उरुभंगा जैसे नाटकों की भांति, भास के दृश्य भी मंच पर शारीरिक हिंसा के लक्षण प्रस्तुत करते हैं, लेकिन नाट्यशास्त्र में इसकी सख्त आलोचना की गई है। जिससे यह पता चलता है कि भास संभवतः नाट्यशास्त्र से भी पहले रहे होंगे। हालाँकि, अकेले ये तथ्य हमें पूरे कालक्रम की जानकारी नहीं दे सकते।
बहुत बाद में जाकर उनके नाटकों की खोज भी एक दिलचस्प घटना मानी जाती है। दरसल साल 1912 में महामहोपाध्याय टी. गणपति शास्त्री जी को 13 संस्कृत नाटक मिले, जिनका उपयोग कूडियाट्टम नाटकों में किया गया था। उन्हें अपनी पहली खोज में दस पूर्ण पांडुलिपियाँ (स्वप्नवासवदत्तम, प्रतिज्ञायौगंधरायण, पंचरात्र, चारुदत्त, दूतघटोत्कच, अविमारक, बालचरित, मध्यमाव्यायोग, कर्णभार और उरुभंग) और एक के कुछ अवशेष मिले। शेष दो नाटक (अभिषेक और प्रतिमानतक) उन्हें बाद में मिले। अंत में, उन्हें दूतवाक्यम की अक्षुण्ण पांडुलिपि मिली, जिसमें भास द्वारा लिखे गए कुल तेरह नाटक शामिल थे। भास के नाटकों में कुछ विशिष्ट विशेषताएं हैं जो उन्हें अन्य नाटकों से अलग करती हैं। उनके नाटकों में त्रासदी से लेकर प्रहसन तक और रोमांस से लेकर सामाजिक नाटक तक विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला दिखाई देती है। भास की कृतियों के छंद अन्य ग्रंथों में भी दिखाई देते हैं। इन नाटकों को भाषा और अभिव्यक्ति की एक सुसंगत शैली में लिखा गया है, जिससे पता चलता है कि वे सभी एक ही व्यक्ति (संभवतः भास) द्वारा लिखे गए थे।
संस्कृत साहित्य के इतिहास में सबसे पुराने ज्ञात शास्त्रीय नाटककारों में से एक होने के कारण भास को संस्कृत नाटक के जनक के रूप में भी जाना जाता है। वह एक विपुल कवि और नाटककार थे, जिनकी प्रशंसा कालिदास, बाणभट्ट, राजशेखर और अभिनवगुप्त जैसे आलोचकों ने भी खूब की है। उनकी सबसे उत्कृष्ट कृति "स्वप्नवासवदत्तम" को 9वीं-12वीं शताब्दी ईस्वी की टिप्पणियों में उद्धृत किया गया है। दुर्भाग्य से, भास की पहचान के संबंध में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उनके बारे में ऐसा माना जाता है कि वह भगवान विष्णु के परम भक्त हुआ करते थे, और संभवतः एक ब्राह्मण कुल के थे। हमारे पास इस बात का भी कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है कि, उनके दौर में कौन से राजा का शासन हुआ करता था, हालांकि उनके कुछ नाटकों में राजा राजसिम्हा का उल्लेख मिलता है। यहां तक कि अभी भी हमें यह ज्ञात नहीं है कि, 'भास' वास्तव में उनका मूल नाम था या यह उनका छद्म नाम था।
यदि आप भी संस्कृत के पहले नाटककार, भास की लेखन और अभिव्यक्ति की शैली के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो आप "भास के तेरह नाटक: Thirteen Plays Of Bhasa" नामक पुस्तक को पढ़ सकते हैं। यह पुस्तक भास द्वारा लिखित तेरह प्राचीन नाटकों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है। इन नाटकों की खोज दक्षिण भारत में की गई और इनका अनुवाद दो संस्कृत विद्वानों द्वारा किया गया। इस पुस्तक में इन नाटकों के अनुवाद शामिल हैं, और इसे पहली बार 1930 में प्रकाशित किया गया था।
संदर्भ
Https://Tinyurl.Com/2p88ueas
Https://Tinyurl.Com/2p638cfu
Https://Tinyurl.Com/Kfr87hdw
Https://Tinyurl.Com/5b9uc3c8
Https://Tinyurl.Com/5b9uc3c8
Https://Tinyurl.Com/3fzv37tj
Https://Tinyurl.Com/2fuasp4c
चित्र संदर्भ
1. महाकवि कालिदास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. कर्ण वध को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
3. नाट्यशास्त्र पुस्तक को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
4. भास शब्द को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
5. एक नाटक के प्रदर्शन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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