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प्राचीन काल से ही मनुष्य भोजन और कपड़ों के लिए जानवरों पर निर्भर रहा है। जहां उसने जानवरों का इस्तेमाल भोजन और कपड़ों के लिए किया, वहीं कला, साहित्य, पौराणिक कथाओं और विभिन्न धर्मों में भी मनुष्य ने जानवरों को प्रतीकात्मक रूप दिया। उदाहरण के लिए, घोड़े के बाल का उपयोग जहां वायलिन (Violin) और अन्य तार वाले वाद्ययंत्रों को बनाने में किया गया, वहीं मोर के पंखों का उपयोग हाथ से चलाए जाने वाले पंखे को बनाने में किया गया। तो आइए, आज मानव इतिहास में जानवरों के उत्पाद की भूमिका को समझते हैं।
मनुष्य ने जानवरों का उपयोग कई तरह से किया, फिर चाहे वह मांस के रूप में हो या किसी कार्य या परिवहन के लिए श्रम शक्ति के रूप में। जैविक अनुसंधान, जैसे आनुवंशिकी और दवा परीक्षण में जानवरों का उपयोग एक नमूने के तौर पर किया जाता रहा है। कई प्रजातियों को मनुष्य ने पालतू जानवरों के रूप में पाला, जिनमें कुत्ते और बिल्लियां सबसे मुख्य हैं। कला क्षेत्र की बात करें, तो घोड़े और हिरण कुछ ऐसे जानवर हैं, जिनका उपयोग कला क्षेत्र में सम्भवतः सबसे पहले हुआ था। घोड़े और हिरण की छवियों को पुरापाषाण काल के अंतिम समय के गुफा चित्रों में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए लैसकॉक्स (Lascaux), जो कि फ़्रांस (France) में स्थित गुफाओं का एक समूह है, में घोड़े और हिरण की छवियां देखी जा सकती हैं। कुछ प्रमुख कलाकारों जैसे अल्ब्रेक्ट ड्यूरर (Albrecht Dürer), जॉर्ज स्टब्स (George Stubbs) और एडविन लैंडसीर (Edwin Landseer) को उनके पशु चित्रों के लिए जाना जाता है। साहित्य, फिल्म, पौराणिक कथाओं और धर्म में भी जानवरों ने विविध प्रकार की भूमिकाएं निभाई हैं। घोड़े के बाल का उपयोग वायलिन और अन्य तार वाले वाद्ययंत्रों को बनाने के अलावा मिट्टी के बर्तनों को सजाने और टोकरियों को बुनने में भी किया गया। तार वाले वाद्ययंत्रों में तार को बनाने के लिए जिन घोड़ों के बालों का उपयोग किया जाता है, वे साइबेरिया (Siberia), मंगोलिया (Mongolia) और कनाडा (Canada) की ठंडी जलवायु में पाए जाने वाले घोड़ों की पूंछ के होते हैं। ठंडी जलवायु के कारण उनकी पूंछ के बाल अधिक घने और मजबूत हो जाते हैं। अधिकांश बालों को बूचड़खाने से प्राप्त किया जाता है, न कि जीवित घोड़ों से। तार वाले वाद्य यंत्रों में घोड़ों की पूंछ के बालों का एक बहुत ही छोटा हिस्सा उपयोग किया जाता है। इसके अलावा मछलियों को पकड़ने के लिए भी घोड़े के बाल का उपयोग व्यापक रूप से किया जाता रहा है। मध्यकालीन युग में ठंडी जलवायु में मछली पकड़ने के लिए घोड़ों के बालों से बने दस्तानों का उपयोग किया जाता था।
घोड़ों के बालों की तरह मोर के पंखों का उपयोग भी अनेक कार्यों के लिए किया जाता रहा है। पारंपरिक वेशभूषा, टोपी, पंखे इत्यादि में मोर के पंखों का उपयोग प्रमुखता से किया गया। जहां कुछ संस्कृतियों में मोर के पंख को राजशाही, सुंदरता और बुरी आत्माओं से सुरक्षा का प्रतीक माना है, वहीं कुछ संस्कृतियां, मोर के पंख को अहंकार और दुर्भाग्य का प्रतीक मानती हैं। वर्तमान समय में फैशन उद्योग में मोर के पंख महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए बहुतायत में उपयोग किए जा रहे हैं। हालांकि, मोर को वन्यजीव नियमों के तहत संरक्षित किया गया है तथा भारत और लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सभा द्वारा उनके पंखों और उनसे बनी वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन देश में प्राकृतिक रूप से झड़े मोर के पंखों को एकत्रित करना और बेचना गैरकानूनी नहीं है। ट्रैफिक इंडिया (Traffic India) के 2008 के एक अध्ययन के अनुसार सालाना लगभग 20 मिलियन मोर पंखों का व्यापार होता है तथा आगरा में एक पूरा समुदाय इस व्यापार में शामिल है।
घोड़े के बाल और मोर के पंख के अलावा हाथी के दांत भी एक अन्य महत्वपूर्ण सामग्री है, जो पारंपरिक रूप से हाथियों से ही प्राप्त होती है। यह हाथी के दांतों का एक कठोर सफेद पदार्थ है, जिसमें दांतों का प्रमुख घटक डेंटाइन (Dentin) मौजूद होता है। यूनान (Greek) और रोम (Rome) की सभ्यताओं में बड़ी मात्रा में उच्च मूल्य की कलाकृतियों, कीमती धार्मिक वस्तुओं और महंगी वस्तुओं और सजावटी बक्से बनाने के लिए हाथी दांत का उपयोग किया जाता था। मूर्तियों की आंखों का सफेद भाग बनाने के लिए अकसर हाथी के दांत का उपयोग किया जाता रहा है। बेग्राम हाथीदांत (Begram Ivories) से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि, भारत प्राचीन काल से ही हाथी दांत की नक्काशी का एक प्रमुख केंद्र रहा है। बेग्राम हाथीदांत, एक हजार से अधिक सजावटी पट्टिकाओं, छोटी आकृतियों इत्यादि का समूह है, जिन्हें हाथी के दांत और हड्डी से बनाया गया था। बेग्राम हाथीदांत को अफगानिस्तान में स्थित बेग्राम में पहली या दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के कुषाण साम्राज्य के एक महल में पाया गया, जिनका उपयोग फर्नीचरों के लिए किया गया था। माना जाता है कि, इनमें से अधिकांश की नक्काशी संभवतः उत्तर भारत में की गई थी, हालांकि, बेग्राम के खजाने में मिली कई अन्य विलासितापूर्ण वस्तुएँ यूनान और रोम की थी। इसके अलावा 79 ईस्वी में हुए पोम्पेई (Pompeii) शहर के विनाश के बाद उसके अवशेषों में भारत में निर्मित “पोम्पेई लक्ष्मी” की मूर्ति पाई गई थी, जो कि हाथीदांत से बनी थी। भारत में हाथियों के संरक्षण के लिए संभवतः सभी प्रकार के कानून बनाए गए हैं। 1986 में भारतीय वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत हाथीदांत और उसके उत्पादों की घरेलू बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन फिर भी अफ्रीकी (African) हाथीदांत की आड़ में एशियाई (Asian) हाथीदांत बेचे जा रहे थे। 1991 में एक संशोधन द्वारा अफ्रीकी हाथीदांत के आयात, नक्काशी और बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। जानवर हमारे पारिस्थितिक तंत्र का एक अनिवार्य अंग हैं, और यदि हम उनके आवासों को नष्ट करते रहेंगे या उन्हें मारते रहेंगे, तो हमारा पूरा पारिस्थितिक तंत्र जल्द ही नष्ट हो जाएगा, परिणामस्वरूप मनुष्य भी विलुप्त हो जाएंगे।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/2p95972z
https://tinyurl.com/m5u7bp4d
https://tinyurl.com/mr3hbcrx
https://tinyurl.com/rvhh2spx
https://tinyurl.com/24h9e47w
https://tinyurl.com/j5vxf2wh
https://tinyurl.com/mwsmnj5
https://tinyurl.com/57hvrn8w
https://tinyurl.com/2p8m7ss9
चित्र संदर्भ
1. भेड़ के ऊन से निर्मित कपड़ों को दर्शाता चित्रण (Hippopx, Wallpaper Flare)
2. जानवर की खाल पहने महिला को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
3. लैसकॉक्स गुफाओं में जानवरों की छवियों को दर्शाता चित्रण (World History Encyclopedia)
4. घोड़े की पूँछ के साथ एक बालिका को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. गोजे, उत्तरी घाना का एक दो-तार वाला वायोला है। इसमें साँप की खाल से पोरोंगो कटोरे को ढका जाता है, और एक घोड़े के बाल वाली रस्सी को ऊपर लटका दिया जाता है। गोजे को एक डोरी वाले धनुष के साथ बजाया जाता है। इसका प्रयोग अक्सर हौसा संगीत में किया जाता है। को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. मोर के पंखों से निर्मित सामग्री को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7. बेग्राम हाथीदांत, एक हजार से अधिक सजावटी पट्टिकाओं, छोटी आकृतियों इत्यादि का समूह है, जिन्हें हाथी के दांत और हड्डी से बनाया गया था। को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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