1855 में जब डाकिये का काम छोड़, इमरती बनाने का व्यवसाय शुरू कर चले,जौनपुर के बेनीराम

स्वाद- खाद्य का इतिहास
02-08-2023 10:11 AM
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1855 में जब डाकिये का काम छोड़, इमरती बनाने का व्यवसाय शुरू कर चले,जौनपुर के बेनीराम

भारत, जहां अनेक भाषाएं, संस्कृति और रंगमंच हैं, विविधता और समृद्धि का देश है। तभी तो यहां के लिए एक प्रसिद्द कहावत है कि कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी! इसी विविधता का प्रतिबिंब भारतीय पाक संस्कृति में भी मिलता है, जो उपलब्ध स्थानीय सामग्रियों के आधार पर परिभाषित हो जाता है। भारतीय खाना न केवल स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होता है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी है, जो भारत की धरोहर को बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जनसंख्‍या की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्‍यउत्‍तर प्रदेश के कोने-कोने में खाद्य विविधता देखी जा सकती है। उत्तर भारत में स्थित हमारे जौनपुर शहर, में आप अपनी भूख को संतुष्ट करने के लिए एक से बढ़कर एक स्‍वादिष्‍ट व्‍यंजनों की खोज आसानी से कर सकते हैं। यहां मिलने वाले अवधी व्यंजनों एवं मुगलई व्‍यंजनों में काफी समानता है, बस अव‍धी व्‍यंजनों में कम मात्रा में क्रीम और मसालों का उपयोग किया जाता है। जबकि,मुगलई व्‍यंजनों में थोड़ा अधिक होता है। आप हमारे जौनपुर में सभी प्रकार के अवधी व्यंजनों का स्‍वाद चख सकते हैं। प्राचीन कल से ही मुगलों ने तंदूर शैली के व्यंजनों को प्राथमिकता दी।जबकि, अवधी व्यंजन ज्यादातर तवे पर बनाए जाते हैं। अवधी व्यंजनों को बनाने के लिए जौनपुर में माही तवा, सीनी, लगन, भगोना या पतीली, देग या देगची, लोहे का तंदूर और कढ़ाई के बर्तनों का प्रयोग किया जाता है। जौनपुर में अधिकांश हिंदू समुदाय शुद्ध शाकाहारी हैं और उनका भोजन पूरी तरह से शाकाहारी व्यंजनों से संबंधित है, जिसमें आलू-पूरी से लेकर स्वादिष्ट मिठाइयां शामिल हैं।
जौनपुर के स्थानीय व्यंजनों में चटपटी चाट से लेकर स्वादिष्ट बनारसी पान तक शामिल हैं। हमारा शहर अपने स्ट्रीटफूड (Street Food) के लिए प्रसिद्ध है, जिसे जौनपुर आने वाले हर एक पर्यटक को चखना चाहिए। इमरती का नाम तो आपने सुना ही होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जौनपुर की इमरती क्यों मशहूर है? इसके अलावा यहां के खानपान का इतिहास से क्या संबंध है? जौनपुर भले ही एक छोटा शहर हो लेकिन यहां की इमरती के स्वाद का जादू चारों ओर फैला हुआ है। जलेबी के समान, लेकिन फिर भी कुछ अलग सी इस इमरती का जायका लेने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। कभी आपको इसका स्वाद चखने का मौका मिले तो आप इसे जलेबी न समझें, जलेबी इमरती से ज्‍यादा पतली और मीठी होती है। भारत में जलेबी की अपनी एक विशिष्‍ट छाप के बाद भी इमरती ने अपना एक विशेष स्‍थान बनाया है। औद्योगिक क्रांति का एक उत्पाद जलेबी को मैदे से बनाया जाता है और इमरती को उड़द की दाल से बनाया जाता है। दोनों मूल सामग्री का उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में वैदिक काल से किया जा रहा है। जलेबी और इमरती बनाने की प्रक्रियाएं एक-दूसरे से संबंधित हैं।लेकिन, संरचना या रूपांकन अलग-अलग हैं। जलेबी में एक श्रृंखला पैटर्न होता है।जबकि, इमरती हमेशा एकल रूप में बनाई जाती है, जहां पहले एक गोलाकार आधार बनाया जाता है और इसे पुष्प आकृति प्रदान करने के लिए गोलाकार रूप दिया जाता है। उड़द दाल से बैटर (Batter) या घोल तैयार करके घुमावदार, गोलाकार में इसे तैयार करके ​डीप फ्राई (Deep Fry) किया जाता है। बैटर को तलने से पहले, चीनी की चाशनी तैयार की जाती है और इसमें पौष्टिक कपूर, लौंग, इलायची, केवड़ा और केसर का स्वाद दिया जाता है।तलने के बाद इसे चाशनी में भिगोया जाता है।
इस लज़ीज इमरती का इतिहास अंग्रेज़ों से जुड़ा है। ब्रिटिश राज में “बेनीराम देवी प्रसाद” नाम के एक डाकिया हुआ करते थे। एक दिन उनके अंग्रेज़ अफ़सर ने उनसे खाना बनाने को कहा। बेनीराम ने खाने के साथ मीठे में इमरती बनाई और उनके सामने पेश की। अंग्रेज़ अफ़सर ने जब उसका स्वाद चखा तो वो उंगलियां चाटता रह गया। तब उसने बेनीराम को नौकरी छोड़ने को कहा। बेनीराम को लगा कि शायद उनसे खाना बनाने में कोई ग़लती हो गई है। इसलिए उन्होंने माफ़ी मांगते हुए आगे से ऐसा न करने की बात कही। लेकिन, अंग्रेज़ अफ़सर ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा, “तुम्हें तो डाकिये का काम छोड़ इमरती बनाने का व्‍यवसाय शुरू कर देना चाहिए। तुम्हारे हाथ में जादू है। ऐसी मिठाई मैंने आज से पहले कभी नहीं खाई!” बेनीराम ने उनसे कहा “हम तो इस मिठाई को तीज त्योहार पर अपने नाते-रिश्तेदारों के लिए बनाते हैं - हम इसे बेचते नहीं हैं”। अफ़सर के ज़्यादा जोर देने पर वो मान गए और डाक विभाग से एक साल की छुट्टी लेकर 1855 में इमरती बनाने का काम शुरू किया। उनकी दुकान चल पड़ी और आज भी लोग दूर-दूर से बेनीराम की इमरती खाने आते हैं।
“अमित्ति”, “अमृता”, ओम्रित्ती या जहांगीरी/जहांगीर के नाम से भी पहचानी जाने वाली हमारी “इमरती”, बांग्लादेश और भारत की एक बंगाली मिठाई है। अमिताई बांग्लादेश में एक बहुत लोकप्रिय इफ्तार का हिस्‍सा है। जौनपुर में बेनीराम की ईमरती लगभग 200 सालों से आज भी प्रसिद्ध है। यहां पर बेनीराम इमरती बेचने वाली सबसे पुरानी स्थायी दुकान है। कोई भी व्यक्ति जो शहर की प्राचीन भव्यता को देखने के लिए यहां आता है वह पूरी कोशिश करता है कीप्रतिष्ठित बेनीराम की इमरती को जरूर चखा जाए। यह इमरती इतनी मुलायम होती है, कि लम्‍बे समय के लिए याददाश्त में अंकित हो जाती है, हल्की मीठी इस इमरती का हल्का-भूरा रंग, यह दर्शाता है कि इसे तैयार करने के लिए इसमें किसी प्रकार के किसी भी रंग का कोई उपयोग नहीं किया गया है। बेनीराम की इमरती की दुकान के चौथी पीढ़ी के मालिक राकेश मोदनवाल, गर्व से कहते हैं कि ‘जब से उनके पूर्वज बेनीराम ने दुकान खोली है, तब से उन्होंने रेसिपी में कोई बदलाव नहीं किया है और वे अभी भी इसे उसी विधि से तैयार करने के लिए उड़द दाल, शुद्ध घी और पारंपरिक रूप से शुद्ध कच्ची चीनी के हरे मिश्रण का उपयोग करते हैं।’ यह इतनी प्रसिद्ध है कि, लोग इसे खरीदने के लिए कई सौकिलोमीटर की यात्रा करके आते हैं।

संदर्भ:
https://rb.gy/7rv12
https://rb.gy/xkjsf
https://rb.gy/7rv12

चित्र संदर्भ
1. जौनपुर में बेनीराम इमरती की दुकान को दर्शाता चित्रण (Youtube)
2. रेस्तरां में परोसे गए भारतीय व्यंजनों को दर्शाता चित्रण (Lets Travel More)
3. इमरती के कारीगर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. बेनीराम इमरती की दुकान के बाहर लगे बोर्ड को दर्शाता चित्रण (Youtube)
5. बिक्री हेतु रखी गई बेनीराम इमरती को दर्शाता चित्रण (Youtube)

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