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हम इंसानों के अधिकांश फैसले, भावनाओं द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं। इसका एक बेहतरीन उदाहरण, आपको अपने घरों में मंदिरों में प्रयोग होने वाली अधिकांश पूजा सामग्रियों के रूप में देखने को मिल जायेगा। आपने गौर किया होगा कि मंदिर में प्रयोग होने वाली अगरबत्तियों और रुई के पैकेट में या कई बार त्यौहारों के अवसर पर चॉकलेट की पैकेजिंग (Chocolate Packaging) में भी भगवान की छवियों का प्रयोग किया जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि ईश्वर के नाम या छवि का प्रयोग करके यह कंपनियां आपके दिमाग में अपने उत्पाद के प्रति भरोसे की भावना को मजबूत करने का प्रयास करती हैं। हालांकि ये बातअलग है कि एक बार प्रयोग कर दिए जाने के बाद ईश्वर की छवि वाले इन उत्पादों के बाहरी आवरण यानी रैपर कभी किसी गंदी नाली में दिखाई देते हैं, या कभी किसी कूड़े के ढेर में दिखाई देते हैं।
धर्म और विज्ञापन का एक लंबा साझा इतिहास रहा है। कंपनियां लंबे समय से अपने विज्ञापनों में धार्मिक प्रतीकों, संदर्भों और आकृतियों का उपयोग करती आ रही हैं। उदाहरण के लिए, ऐसे विज्ञापन भी आए जिनमें ईश्वर को जूते पहने हुए, इत्र लगाते हुए और राक्षसों की जय-जयकार करते हुए भी दिखाया गया हैं। यह परंपरा किसी एक देश तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐसा पूरी दुनिया में होता है।
विज्ञापन में धार्मिक छवियों और प्रतीकों का प्रयोग कई बार विवादास्पद हो सकता है। कुछ लोगों को यह आपत्तिजनक लगता है, जबकि कई अन्य इसे विभिन्न धर्मों को एक एकीकृत संदेश में एक साथ लाने का एक तरीका मानते हैं। हाल ही में, वाहन निर्माता कंपनी, टोयोटा (Toyota) के एक सुपर बोल विज्ञापन (Super Bowl Commercials) में एक कैथोलिक पादरी (Catholic Priest), एक रबाय (Rabbi), एक इमाम (Imam) और एक बौद्ध भिक्षु, सभी को एक कार में एक साथ यात्रा करते हुए दिखाया गया था। यह विज्ञापन धार्मिक एकता के संदेश के साथ समाप्त होता है। हालाँकि कई लोगों को यह विज्ञापन पसंद आया, लेकिन कुछ धार्मिक समुदायों ने इसकी कड़ी आलोचना भी की।
लेकिन इस प्रकार के विज्ञापन, धर्म और मार्केटिंग (Marketing) के बीच की सीमाओं को धुंधला कर सकते हैं। विज्ञापनों का हमारे समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह संस्कृति को आकार देते हैं, और यह सामाजिक मानदंडों को सुदृढ़ कर सकते हैं, या उन्हें चुनौती भी दे सकते है।
धर्म एक संवेदनशील विषय है, खासकर आज के समय में जब, सोशल मीडिया (Social Media) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म (Digital Platform) के रूप में, लोगों को, अपनी बात रखने का एक खुला मंच मिल गया है। इसका मतलब यह है कि, आज छोटी-छोटी गलतियों के कारण भी उत्पादों पर लोगों के भड़कने का खतरा अधिक हो गया है।
इसका एक उदाहरण मई 2018 में, ज़ैन (Zain) नामक एक कुवैती (Kuwait) कंपनी द्वारा, रमजान से ठीक पहले जारी किये गए एक वीडियो में देखने को मिला। दरसल इस विडियो में एक युवा लड़के को डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump), जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) और किम जोंग-उन (Kim Jong-Un) जैसे वेश्विक नेताओं के साथ दिखाया गया था। यह वीडियो तुरंत वायरल हो गया और इसपर बड़ी बहस छिड़ गई, क्योंकि यह धार्मिक उत्पीड़न और मुस्लिम शरणार्थियों से जुड़ा हुआ मामला था। इसके बाद कई लोगों ने मुसलमानों को नकारात्मक रूप से चित्रित करने के लिए ज़ैन कंपनी की खूब आलोचना की, जबकि कई अन्य लोगों ने मानवीय संकट पर प्रकाश डालने के उनके प्रयासों की प्रशंसा भी की।
इसके अलावा सितंबर 2017 में, मीट एंड लाइवस्टॉक ऑस्ट्रेलिया (Meat And Livestock Australia) ने मेमने के मांस की खपत को बढ़ावा देने वाला, एक विज्ञापन जारी किया। इसमें विभिन्न धर्मों के देवताओं और पैगंबरों को एक साथ भोजन करते हुए दिखाया गया है। इस विज्ञापन में हिंदू देवता भगवान श्री गणेश को भी मांसाहार करते हुए दिखाया गया था, जो पूर्णतः शाकाहारी माने जाते हैं। फिर क्या था, लोगों ने सोशल मीडिया पर इस विज्ञापन की खूब आलोचना की और इससे जुड़ी कई आधिकारिक शिकायतें भी दर्ज की गईं। आखिरकार, विज्ञापन पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि कंपनियों को आम लोगों, समूहों या समुदायों की मान्यता को अपमानित करने से बचना चाहिए और ऐसे विज्ञापनों को शुरू करने से पहले उनके संबंध में सावधानीपूर्वक गहन शोध करना चाहिए।
भारत में, आपको हर शहर की सड़कों, दीवारों या चौराहों पर धार्मिक प्रतीकों या चिह्नों के दर्शन हो जायेंगे। कई जगहों पर लोगों को सार्वजनिक स्थानों में लोगों को शौच से रोकने के लिए देवी-देवताओं और पैगम्बरों जैसे धार्मिक प्रतीकों को टाइलों पर मुद्रित किया जाता है। हाल के उदाहरण में, एक विज्ञापन एजेंसी ने सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए दुर्गा, विष्णु और गणेश जैसे हिंदू देवताओं का इस्तेमाल किया। इसका उद्देश्य देवताओं की तुलना करके लोगों को यातायात नियमों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करना था। हालांकि, धार्मिक भावनाओं का अनादर करने के कारण इस अभियान को भी आलोचना और कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा। इसी तरह के विवाद पहले भी उठे हैं जब विज्ञापनों में महिला सशक्तिकरण के मुद्दों को उजागर करने के लिए देवी-देवताओं को घायल अवस्था में दर्शाया गया है।
इसी क्रम में चॉकलेट (Chocolate) बनाने वाली कंपनी नेस्ले (Nestle) को भी सोशल मीडिया पर, कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा और उसे हिंदू देवी-देवताओं वाली अपनी पूरी पैकेजिंग ही वापस लेनी पड़ी। नेस्ले ने अपनी चॉकलेट की पैकेजिंग में रैपर पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और माता सुभद्रा की छवियों का प्रयोग किया था। भारत समृद्ध सांस्कृतिक विविधता वाला देश है, इसलिए मार्केटिंग के लिए हिंदू देवताओं का उपयोग करना इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कभी-कभी कंपनियां, केवल सतही ज्ञान के आधार पर हिंदू देवताओं का प्रयोग अपने उत्पाद के प्रचार में कर देती हैं। भले ही मार्केटिंग के लिए धार्मिक प्रतीकों का उपयोग करने से उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है, लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि आज के समय में सभी कंपनियों को अपनी रणनीतियों में धर्म या राजनीति को शामिल करने से बचना चाहिए। साथ ही उनके द्वारा सांस्कृतिक रुझानों पर सतही रूप से सवार होने के बजाय सांस्कृतिक बारीकियों को गहराई से समझना और एकीकृत करना बेहद जरूरी है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4mvs329w
https://tinyurl.com/bdh8z435
https://tinyurl.com/2p82jzy4
https://tinyurl.com/ynxakefy
चित्र संदर्भ
1. एक भित्ति चित्र को दर्शाता चित्रण (pxhere)
2. धार्मिक स्तर पर विवादित छवि को दर्शाता चित्रण (pxhere)
3. टोयोटा (Toyota) के एक सुपर बोल विज्ञापन को दर्शाता चित्रण (youtube)
4. धार्मिक प्रतीकों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. सितंबर 2017 में, मीट एंड लाइवस्टॉक ऑस्ट्रेलिया ने मेमने के मांस की खपत को बढ़ावा देने वाला, एक विज्ञापन जारी किया। को दर्शाता चित्रण (youtube)
6. नेस्ले ने अपनी चॉकलेट की पैकेजिंग में रैपर पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और माता सुभद्रा की छवियों का प्रयोग किया था। को दर्शाता चित्रण (youtube)
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