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बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
प्रसिद्ध कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित, कविता की उक्त पंक्तियों ने रानी लक्ष्मी बाई के माध्यम से भारत की आज़ादी में महिलाओं के योगदान को उजागर किया। झांसी की रानी के नाम से जानी जाने वाली, रानी लक्ष्मी बाई को "काशी की बहादुर बेटी" के रूप में भी संबोधित किया जाता है। 19 नवंबर 1828 को वाराणसी के भदैनी में जन्मी रानी लक्ष्मी बाई का जीवन काल 18 जून 1858 तक रहा। इतने छोटे जीवन काल में ही उन्होंने अंग्रेजों को धूल चटा दी! उनके बारे में लोग सहज ही जान सकें, इसके लिए भदैनी स्थित मंदिर में हाई और लो रिलीफ कला तकनीक पर आधारित, उनका जीवन चरित्र बनाया गया है। एक दर्जन से अधिक प्रतिमाओं को वहां लगाया गया है, जिसमें उनके बाल्य काल में नाना साहब के साथ प्रशिक्षण, उनकी घुड़सवारी, अंग्रेजों संग लड़ाई सहित कई प्रसंगों को दर्शाया गया है।
न केवल उनके जीवन बल्कि उनकी गौरवपूर्ण मृत्यु ने भी झाँसी की रानी रेजिमेंट के माध्यम से भारतीय महिलाओं को निडर एवं सक्षम बनने के लिए हमेशा प्रेरित किया है।
देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए, सुभाष चन्द्र बोस की “आजाद हिंद फौज” के नेतृत्व में झाँसी की रानी रेजिमेंट (Rani of Jhansi Regiment) के नाम के एक विशेष समूह का गठन किया गया था। बोस, महिलाओं को शिक्षित करने और उन्हें सशक्त बनाने में विश्वास रखते थे, इसलिए उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी (Indian National Army) में महिलाओं की एक विशेष रेजिमेंट बनाई। यह रेजिमेंट 1942 में भारतीय राष्ट्रियावादियो द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया में जापानी सहायता से औपनिवेशिक भारत को ब्रिटिश राज से आज़ादी दिलवाने के उद्देश्य से बनायी गयी थी। इस पलटन या रेजिमेंट का नाम झांसी की रानी, लक्ष्मी बाई के नाम पर रखा गया था जो अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करते-करते ही शहीद हो गई थी।
झाँसी की रानी रेजिमेंट का प्रमुख लक्ष्य भारत में ब्रिटिश शासन की सत्ता को उखाड़ फेंकना था। रेजिमेंट का नेतृत्व, डा. लक्ष्मी सहगल द्वारा किया जा रहा था। उनका जन्म 1914 में एक परंपरावादी तमिल परिवार में हुआ था। लक्ष्मी सहगल (1914–2012) को छोटी उम्र से ही भारत में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के प्रति जागरूक किया गया था। हाई स्कूल (High School) की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में अध्ययन किया और 1938 में अपनी मेडिकल डिग्री (Medical Degree) प्राप्त की। जब महात्मा गांधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो डा. लक्ष्मी सहगल ने इसमें हिस्सा लिया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो डा. लक्ष्मी सहगल, सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं थीं।
1943 में, सुभाष चंद्र बोस, आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान सौपने के लिए सिंगापुर (Singapore) पहुंचे। बोस के अनुरोध पर, डा. लक्ष्मी सहगल ने इसकी कमान संभाली, एक शिविर की स्थापना की और युवा महिलाओं को बल में भर्ती किया। इसके बाद सहगल को कैप्टन लक्ष्मी (Captain Lakshmi) के नाम से जाना जाने लगा। लक्ष्मी सहगल ने झाँसी की रानी रेजिमेंट की वीरांगनाओं को संगठित करने और उसका नेतृत्व करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बाद में, बर्मा (Burma) में, उन्होंने और शिविर स्थापित किए और राहत कार्य आयोजित किए। 1945 में जब युद्ध समाप्त हुआ, तो सहगल को गुरिल्ला लड़ाकों (Guerrilla Fighters) द्वारा बंदी बना लिया गया। 1946 में, उन्हें रंगून (Rangoon) में अंग्रेजों को सौंप दिया गया, और बाद में भारत वापस भेज दिया गया, जहाँ उन्हें रिहा कर दिया गया था ।
डा. लक्ष्मी ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल (Colonel Prem Kumar Sehgal) से शादी की, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) में शामिल होने के लिए ब्रिटिश भारतीय सेना छोड़ दी थी। शादी के बाद वह कानपुर में बस गईं। अपने बाद के वर्षों में, वह राजनीतिक संगठनों में शामिल हो गईं और 97 वर्ष की आयु (2012) में उनका निधन हो गया।
झाँसी की रानी रेजिमेंट की सैन्य टुकड़ी में 1,000 से अधिक भारतीय महिलाएँ थीं, जिनमें से अधिकांश सिंगापुर, मलाया (मलेशिया) और बर्मा में रहती थीं। रेजिमेंट में शामिल होने वाली लगभग 20 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित थीं जो कमांडिंग ऑफिसर (Commanding Officer) बन गईं। शेष 80 प्रतिशत, तमिल मजदूरों की पत्नियाँ और बेटियाँ थीं, जो मलाया में रबर के बागान पर काम करती थीं और बहुत कम शिक्षित थीं। प्रारंभिक समूह में लगभग 170 कैडेट (Cadets) थे और उन सभी को उनकी शिक्षा के आधार पर गैर-कमीशन अधिकारी या निजी (Private Cadet) का दर्जा दिया गया था। इनका प्रशिक्षण 23 अक्टूबर, 1943 के दौरान सिंगापुर में शुरू हुआ।
इन्ही कैडेट में से एक सितारा थीं, “जानकी थेवर” (25 फरवरी 1925 - 9 मई 2014), जो इस पलटन की सबसे बहादुर वीरांगनाओं में से एक थी। उन्हें अथि नहप्पन, के नाम से भी जाना जाता है। वह मलेशियाई भारतीय कांग्रेस (Malaysian Indian Congress) की संस्थापक सदस्य थीं और मलेशियाई (तब मलाया) स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल सबसे शुरुआती महिलाओं में से एक थीं। जानकी का जन्म तत्कालीन ब्रिटिश मलय में रहने वाले एक संपन्न तमिल परिवार में हुआ था। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मात्र 18 वर्ष की आयु में ही वह 'झांसी रेजिमेंट” समूह की नेता बन गई थी। अपने परिवार की आपत्तियों के बावजूद भी जानकी दृढ़ निश्चयी रहीं और 'झांसी की रानी' रेजिमेंट का एक हिस्सा बन गईं। उन्होंने भी कैप्टन लक्ष्मी सहगल की कमान में ही प्रशिक्षण लिया। जानकी ने सुभाष चंद्र बोस के शब्दों से प्रेरित होकर, रेजिमेंट में शामिल होने और स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करने का निर्णय लिया था। युद्ध के दौरान जानकी ने घायल सैनिकों को बचाने और अपने साथियों का नेतृत्व करके बहुत साहस दिखाया। युद्ध के बाद, भी उन्होंने समाज कल्याण संगठनों में अपनी सेवा जारी रखी। झाँसी की रानी रेजिमेंट के रंगरूटों को समूहों में विभाजित किया गया और उनकी शैक्षिक योग्यता के आधार पर उन्हें पदवी दी गई। इसके बाद उन्होंने अभ्यास, मार्च (March) और हथियार प्रशिक्षण सहित सैन्य तथा युद्ध प्रशिक्षण प्राप्त किया। 30 मार्च 1944 को सिंगापुर में 500 सैनिकों के साथ झाँसी की रानी रेजिमेंट की पहली पासिंग आउट परेड (Passing Out Parade) हुई। इस रेजिमेंट की महिलाओं ने कठिन प्रशिक्षण लिया और सशस्त्र बलों में पुरुषों की भांति इन्हें भी युद्ध के लिए तैयार किया गया। ये महिलाएं भारतीय राष्ट्रीय सेना का हिस्सा थीं और उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भी भाग लिया था।
आज रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि के दिन, देश की स्वतंत्रता के लिए इन सभी नायिकाओं ने जो प्रतिबद्धता दिखायी, उसके लिए उन्हें सम्मानपूर्वक याद करना हमारा परम कर्तव्य है।
संदर्भ
https://t.ly/qSDX
https://t.ly/HPk1
https://t.ly/qsol
https://t.ly/-Oui
https://t.ly/X583
https://shorturl.at/eqHW5
चित्र संदर्भ
1. झाँसी की रानी और महिला सैनिको का नेतृत्व कर रही लक्ष्मी सहगल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. झाँसी की रानी की जन्मस्थली भदैनी में उनकी प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. झाँसी की रानी की पेंटिंग को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ चल रही लक्ष्मी सहगल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. वृद्धा अवस्था में लक्ष्मी सहगल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. जानकी थेवर को दर्शाता चित्रण (facebook)
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