समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
Post Viewership from Post Date to 05- Jul-2023 31st | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1374 | 519 | 1893 |
प्रकृति ने हमारे जौनपुर शहर को गोमती नदी के रूप में एक जीवनदाई उपहार प्रदान किया है। किंतु बेहतर देखरेख के अभाव में, और लापरवाही करके, हमने अपने कार्यों से इस अनमोल उपहार को इतना जहरीला बना दिया है कि आज नदी का पानी न चाहते हुए भी हमारे स्वास्थ के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।
जौनपुर जिले का अधिकांश क्षेत्रफल रेतीली, दोमट और चिकनी मिट्टी से घिरा है। जौनपुर में औसत वार्षिक तापमान 4.30 डिग्री सेल्सियस (Celsius) और 44.60 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है और जिले में लगभग 987 मिलीमीटर (millimeter) की औसत वार्षिक वर्षा होती है। गोमती नदी, जो गंगा नदी की एक सहायक नदी है, और उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के माधोगनी टांडा गाँव के पास गोमठ ताल से निकलती है, हमारे शहर के बीचो-बीच से होकर बहती है। गोमती नदी में बढ़ता प्रदूषण, जौनपुर की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बन गया है। यह नदी वाराणसी के पास गंगा नदी में शामिल होने से पहले लगभग 940 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए उत्तर प्रदेश के नौ जिलों से होकर बहती है। और आज इस गोमती नदी का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि जो लोग इसमें नहाते हैं, और इसमें से मछली पकड़कर खाते हैं, उन लोगों की जान पर बात बन आई है। हमारी इस नदी में प्रदूषण का मुख्य कारण औद्योगिक अपशिष्ट और अनुपचारित सीवेज डिस्चार्ज (Untreated Sewage Discharge) है। और इस विकट समस्या के समाधान के लिए जौनपुर में आज भी कोई ठोस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (Sewage Treatment Plant) मौजूद नहीं है।
जौनपुर की गोमती नदी में शाही पुल और सद्भावना पुल के बीच बढ़ता प्रदूषण एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। सीवेज से जैविक कचरे के अपघटन के कारण इस क्षेत्र में नदी का पानी काला हो गया है। नदी के किनारों पर कचरा जमा हो गया हैं, जिसमें मानव और पशु अपशिष्ट तथा प्लास्टिक जैसे बेहद हानिकारक पदार्थ शामिल हैं। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि आज इस नदी का पानी मानव उपभोग, एवं मछलियों के लिए उपयुक्त नहीं रह गया है। आसपास के सभी खुले और बंद नालों का जहरीला और प्रदूषित पानी नदी में छोड़ा जा रहा है। नदी के किनारे हनुमान घाट के पास जंग लगे ऑटोरिक्शा (Auto Rickshaw) भी पड़े हुए हैं, जिनसे बरसात के दिनों में जंग बहकर नदी के पानी में जाता है । इसके अलावा, शाही पुल के पास एक छोटा तालाब, कचरा डंप, और खुले में शौच के लिए एक आदर्श क्षेत्र बन गया है। नदी को साफ रखने के लिए साइन बोर्ड (Signboard) और चेतावनी के बावजूद भी, कोई इस नदी के बेहतर स्वास्थ्य की सुध लेने को तैयार नहीं है।
गोमती नदी में भारी प्रदूषण के बावजूद, बहुत से लोग अभी भी नदी में स्नान करते हैं और इसके किनारे स्थित हिंदू मंदिरों में पूजा करते हैं। उन्हें इस बात का आभास तक नहीं है कि उन्हें स्वास्थ्य के संदर्भ में इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। यहाँ के मछुआरे, जो अपनी आजीविका के लिए इस नदी पर निर्भर हैं, वह भी इस प्रदूषित पानी में काफी समय बिताते हैं, और इसी प्रदूषित पानी में रहने वाली मछलियों को नदी के किनारे ही बेचते हैं।
न केवल जौनपुर से, बल्कि लखनऊ और सुल्तानपुर जैसे शहरों से भी मानव, कृषि और औद्योगिक कचरे के निर्वहन के कारण गोमती नदी अत्यधिक प्रदूषित हो गई है। गोमती नदी के प्रदूषण एवं इसके रासायनिक और जैविक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई अध्ययन किए गए हैं। इन अध्ययनों में नदी के पानी और तलछट में पारा और सीसा (Mercury and
Lead) जैसी धातुओं, कीटनाशकों और अन्य प्रदूषकों की उच्च सांद्रता पाई गई है।
नदियों के जल में प्रदूषण के साथ ही आज भूजल संदूषण भी एक गंभीर समस्या बन गया है।जमीन के भीतर मौजूद पानी में हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति को भूजल संदूषण कहा जाता है।
भूजल संदूषण विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण हो सकता है, जैसे:
सैप्टिक टैंक और सेसपूल का रिसाव (Leakage Of Septic Tanks And Cesspools)
हानिकारक कचरे का अनुचित निपटान
कृषि अपवाह
तेल का रिसाव
भूजल संदूषण के कई नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं, जैसे:
स्वास्थ्य समस्याएं
पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान
आर्थिक नुकसान
भूजल संदूषण को रोकने के लिए कई उपाय किये जा सकते हैं, जैसे:
हानिकारक कचरे का उचित निपटान करें।
कम विषैले कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रयोग करें।
सेप्टिक टैंक और सेसपूल से रिसाव की रोकथाम करें।
इन सभी उपायों के अलावा भारत सरकार सहित कुछ कंपनियां भी भूजल तथा नदियों की सफाई करने हेतु कारगर उपायों के साथ उभर रही हैं। एल्फेमॅर्स लिमिटेड (Alphamers Ltd.) नामक कंपनी इसका एक अच्छा उदाहरण हो सकती है। बेंगलुरु की इस कंपनी ने नदियों की सफाई के लिए एक नई और अनोखी तकनीक विकसित की है। यह कंपनी, नदियों के कचरे और मलबे को फंसाने के लिए स्टील (Steel) की जाली और जंजीरों से बने हुए फ्लोटिंग बैरियर (Floating Barrier) नामक एक शानदार तकनीक का नदी के बहते जल के विरुद्ध प्रवाह में उपयोग करती है। इस तकनीक का प्रयोग करने पर कचरा अपने आप नदी के किनारे पर आ जाता है। इसके बाद इस कचरे को भूमि आधारित उत्खनन -कर्ताओं द्वारा उठाया जाता है, और ट्रकों द्वारा ले जाया जाता है। यह बैरियर नाव यातायात को निर्बाध रूप से गुजरने की अनुमति देता है।
यह तकनीक भारी मानसून के बीच भी नदी के प्रवाह का सामना करने में सक्षम है और इसे उथली तथा तेज नदियों या नालों में भी तैनात किया जा सकता है। कंपनी की इस तकनीक को आठ भारतीय शहरों में स्थापित किया गया है और इसने अपने संचालन के पहले ही वर्ष में नदियों से 2200 टन प्लास्टिक कचरे का सफाया कर दिया है। इसके साथ ही यह तकनीक लागत प्रभावी भी है।
इस तरह की भारतीय कंपनियों के साथ-साथ भारत को नदियों की सफाई हेतु विदेशों से भी मदद मिल रही है। इन देशों में डेनमार्क (Denmark) सबसे आगे है, जिसने गंगा नदी को साफ करने के लिए भारत की मदद करने की पेशकश की है। डेनिश (Danish) सरकार परियोजना के लिए तकनीकी सहायता और धन मुहैया कराएगी। गंगा नदी, सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र मानी जाती है और लाखों लोगों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है। लेकिन आज जीवनदायिनी मानी जाने वाली हमारी यह गंगा नदी भी औद्योगिक कचरे, सीवेज और कृषि अपवाह से प्रदूषित हो गई है।
भारत सरकार कई वर्षों से गंगा नदी को साफ करने की कोशिश कर रही है, लेकिन यह समस्या बेहद जटिल है। वहीं डेनिश सरकार के पास जल प्रबंधन में बहुत अधिक अनुभव है, और उनका प्रदूषित नदियों की सफाई करने में एक सफल ट्रैक रिकॉर्ड (Track Record) रहा है। डेनिश सरकार की मदद से गंगा नदी की सफाई से लाखों लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, और पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी। डेनिश सरकार की मदद की पेशकश वास्तव में प्रशंसनीय और स्वागत योग्य है, साथ ही यह कदम भारत और डेनमार्क के बीच मजबूत संबंधों का भी संकेत है।
आज के दिन, 5 जून को प्रतिवर्ष पर्यावरण की सुरक्षा हेतु जागरुकता और कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिए ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ (World Environment Day) मनाया जाता है। इस वर्ष ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ को एक अनुस्मारक के रूप में मनाया जा रहा है, क्योंकि प्लास्टिक प्रदूषण पर लोगों की कार्रवाई मायने रखती है। प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारें और व्यवसाय जो कदम उठा रहे हैं, वे इसी कार्रवाई का परिणाम हैं। अब इस कार्रवाई में तेजी लाने, अधिनियम, प्रतिबद्ध और नए मानदंड और मानक निर्धारित करने, और एक परिपत्र अर्थव्यवस्था में परिवर्तन लाने का समय है। आइए, आज ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के इस मौके पर हम भी अपने शहर जौनपुर की गोमती नदी को स्वच्छ बनाने का प्रण लें।
संदर्भ
https://shorturl.at/eCLN4
https://rb.gy/ab71a
https://rb.gy/8it5n
https://rb.gy/1jn0l
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर के गोमती नदी के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. गोमती नदी पर नाव की सवारी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. क्लार्क होटल, लखनऊ से गोमती नदी के दृश्य का एक चित्रण (flickr)
4. नदी के बांध में प्रदूषण को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. गंगा नदी की सफाई को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.