जौनपुर में यातायात संकट के लिए फ्लाईओवर और चौड़ी सड़कों का निर्माण समाधान है या समस्या?

नगरीकरण- शहर व शक्ति
19-05-2023 09:11 AM
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जौनपुर में यातायात संकट के लिए फ्लाईओवर और चौड़ी सड़कों का निर्माण समाधान है या समस्या?

जौनपुर-आजमगढ़ मार्ग पर गोमती नदी पर बने शास्त्री पुल का मरम्मत कार्य लगभग 60 प्रतिशत पूरा हो चुका है। करीब एक माह तक इस मार्ग से दोपहिया वाहनों को छोड़कर बड़े वाहनों पर रोक लगा दी गई थी, किंतु अब बड़े वाहनों का आवागमन भी शुरू हो गया है। इससे लोगों को आए दिन लगने वाले जाम से निजात मिलेगा। आवागमन में लोगों को दिक्कतें न हो इसके लिए रूट डायवर्जन किया गया था।
बड़े वाहनों का शहर के अंदर प्रवेश करने से आए दिन जाम लग रहा था। इससे लोगों को समय से अपने गंतव्य पर पहुंचने के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब पुल की मरम्मत के बाद लोगों की यातायात से सम्बंधित यह समस्या दूर हो गई है।अब प्रश्न यह है, कि क्या पुल की मरम्मत और शहरों में फ्लाईओवरों के निर्माण जैसे उपायों से यातायात से सम्बंधित समस्याओं को वास्तव में दूर किया जा सकता है? हमारे शहरों में बढ़ती यातायात समस्याओं के लिए तत्काल और प्रभावी उपायों की आवश्यकता है। हालांकि हमें लगता है, कि पुराने समाधान जैसे फ्लाईओवर, चौड़ी सड़कें और ऊंचे एक्सप्रेसवे (Expressway) यातायात से सम्बंधित समस्याओं को दूर कर सकते हैं, लेकिन वास्तव में ये सभी यातायात से सम्बंधित समस्याओं को और भी बदतर बनाते हैं। केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान के एक अध्ययन के अनुसार, भीड़भाड़ और भारी सड़क यातायात को कम करने के लिए फ्लाईओवर और सुरंगों का निर्माण, सड़कों को चौड़ा करना आदि बेहतर दृष्टिकोण और समाधान नहीं हैं। एक अध्ययन में यह पाया गया कि, फ्लाईओवरों और सुरंगों के निर्माण और सड़कों को चौड़ा करने के कुछ वर्षों के भीतर, इस तरह के उपायों ने सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या में वृद्धि की और भीड़भाड़ को कम किए बिना परिस्थिति को और भी खराब कर दिया।
फ्लाईओवर की अवधारणा 20वीं सदी में अत्यधिक लोकप्रिय हुई, जिसमें यह माना गया था, कि इसकी मदद से वाहनों की आवाजाही सरल हो जाएगी। इसके बाद दुनिया भर के योजना और विकास प्राधिकरणों ने फ्लाईओवर को 'आधुनिकता' या 'तकनीकी उन्नति' के प्रतीक के रूप में चित्रित किया। परिणामस्वरूप सड़कों पर निजी वाहनों की आवाजाही और भी तेज हो गई। शहरी क्षेत्रों में आज भी फ्लाईओवरों का निर्माण अपनी चरम सीमा पर है, जो विभिन्न आवासों और अर्थव्यवस्थाओं को विस्थापित कर रहा है। इस तरह के बुनियादी ढांचे यातायात संकट से राहत का एक अल्पकालिक समाधान हो सकते हैं, लेकिन इससे लोग अपने स्वयं के वाहनों का अधिक उपयोग करने लगते हैं जिससे यातायात और भीड़भाड़ और भी बढ़ जाती हैं।इस स्थिति को समझते हुए दुनिया भर के विभिन्न शहर जैसे सियोल (Seoul),सैन फ़्रांसिस्को (San Francisco) आदि, अपने शहर के फ्लाईओवरों को तोड़ रहे हैं तथा उनके नीचे मौजूद स्थानों को हरित क्षेत्र में बदलकर फिर से जीवंत कर रहे हैं। ऐसा करने से शहर में प्रदूषण और सड़कों पर तेज़ गति से वाहन चलाने के हादसों को काफी कम किया जा सकता है।यह उपाय उच्च गुणवत्ता वाले सार्वजनिक परिवहन की आवाजाही को भी बढ़ाता है। भारत के कुछ शहर भी अब यह जानने लगे हैं, कि शहरी गतिशीलता की कुंजी लोगों का आवागमन है, न कि वाहनों का आवागमन। उदाहरण के लिए 2016 में, झारखंड की राजधानी रांची ने एक साहसिक कदम उठाते हुए मुख्य रोड पर दो फ्लाईओवरों के निर्माण को रोक दिया था। शहरी विकास और आवास विभाग, झारखंड सरकार ने फ्लाईओवर परियोजना को रद्द करते हुए एक नई सड़क को डिजाइन करने पर ध्यान केंद्रित किया, ताकि लोगों द्वारा पैदल चलने, साइकिल चलाने और सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता दी जा सके। भारत के शहरों में एक तिहाई से अधिक आबादी हर दिन काम पर जाने और शहरों में घूमने के लिए पैदल चलने, साइकिल चलाने और मानव-संचालित परिवहन के अन्य रूपों पर निर्भर है।
स्वास्थ्य के साथ-साथ कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन को कम करने के लिए जहां साइकिल के उपयोग को बढ़ाना सबसे किफायती और व्यावहारिक तरीकों में से एक है, वहीं सार्वजनिक परिवहन की गतिशीलता भी प्रदूषण के स्तर को कम करने में सहायक है। अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, हमारे शहरों को प्रत्येक 10 लाख निवासियों के लिए 20-30 किलोमीटर चलने वाले उच्च क्षमता के सार्वजनिक परिवहन की आवश्यकता है।इसका मतलब यह है कि देश के बड़े शहरों जैसे चेन्नई को 300 किलोमीटर से अधिक रैपिड ट्रांसिट (Rapid transit) की आवश्यकता है। उच्च क्षमता वाले सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाने के लिए सबसे प्रभावी विकल्पों में से एक विकल्प बस परिवहन है। इस प्रणाली में बसों के लिए एक विशेष माध्यिका लेन बनाई गई है,जिससे यात्रियों को मिश्रित ट्रैफिक लेन में भीड़ से बचने में सहायता मिलती है। इसके अलावा इसकी लागत फ्लाईओवर की लागत से बहुत कम है। एक फ्लाईओवर की लागत लगभग 200 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर है, जबकि बस रैपिड ट्रांजिट की लागत 15-20 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3odJXnj
https://bit.ly/2sX7bOG
https://bit.ly/3BOfOyp

 चित्र संदर्भ
1. फ्लाईओवर के निर्माण कार्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. गोमती नदी पर बने शाही पुल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. फ्लाईओवर बनाते मजदूरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. निर्माणाधीन फ्लाईओवर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. साइकिलिंग करते भारतियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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