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इतिहास से सीखने के लिए हमें, इतिहास को जानना जरूरी है। इतिहास को जानने के लिए किताबें पढ़ना, घर बैठे ज्ञान बढ़ाने का एक तरीका तो है ही । लेकिन अगर आप हमारे देश की ऐतिहासिक घटनाओं को, आज की वास्तविक दुनिया में, और बेहतर तरीके से समझना चाहते है, या फिर ऐतिहासिक धरोहरों और चित्रों को देखने के रोमांच का अनुभव करना चाहते है, तो यकीन मानिये आपके लिए "संग्रहालयों" से बेहतर कोई जगह नहीं है। इसके अलावा आप भारत में संग्रहालयों की स्थिति में सुधार आने के साथ ही इस क्षेत्र में रोजगार भी प्राप्त कर सकते हैं।
आसान शब्दों में संग्रहालय का अर्थ " वस्तुओं का संग्रह" है। प्राचीन काल से ही सभी सभ्यताएँ, ऐसी वस्तुओं को संचित करने की इच्छा साझा करती हैं जो सुंदर, महंगी, दुर्लभ या जिज्ञासा के तौर पर कहीं दूर किसी अन्य सभ्यता से एकत्रित की गई हो। धार्मिक समुदायों और शासकों ने अक्सर अपनी जनता के लिए संग्रह स्थापित किये जिनमें एक प्रारंभिक उदाहरण ग्रीस के प्राचीन डेल्फी शहर में उपस्थित "एथेनियन खजाना" है। एक अन्य प्रारंभिक 'संग्रह' वास्तव में अरस्तू की किताबों का था, जिसके पश्च्यात, अलेक्जेंड्रिया के महान पुस्तकालय के रूप में 'म्यूजियम' शब्द की उत्पत्ति हुई ।
भारत में संग्रहालयों (Museums) का एक लंबा इतिहास रहा है। देश में पहला सार्वजनिक संग्रहालय, “इंडियन म्यूज़ीयम” (Indian Museum) के नाम से, सन 1814 में कोलकाता में स्थापित किया गया था। हालांकि, लंबा समय बीत जाने के बावजूद, भारत में संग्रहालयों की स्थिति अभी भी बदहाल ही है।
इस विषम स्थिति के पीछे कई कारण हैं:
१. पारंपरिक दृष्टिकोण: भारत में अधिकांश संग्रहालय पुरानी पारंपरिक प्रथाओं ही का पालन करते हैं! इसलिए वे संरक्षण, संरक्षकीय और संग्रह अनुसंधान, प्रदर्शनियों और शैक्षिक सेवाओं में आधुनिक तकनीकों को लागू करने में विफल रहे हैं।
२. मान्यता और समर्थन का अभाव: संग्रहालयों को सरकार से भी पर्याप्त मान्यता, रुचि और समर्थन नहीं मिला है। स्वतंत्रता के बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute Of Technology (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (Indian Institute Of Management (IIM)) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के अलावा देश की विरासत के प्रबंधन के लिए कोई भी राष्ट्रीय स्तर का संस्थान समर्पित नहीं है। इसके विपरीत, यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका और कुछ प्रगतिशील एशियाई देशों में, 21वीं सदी के संग्रहालय की अवधारणा, 1990 के दशक से ही प्राथमिकता में रही है। सार्वभौमिक संग्रहालयों की अवधारणा को विकसित करने में, अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय परिषद (International Council Of Museums (ICOM) ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साथ ही इसने विभिन्न देशों को अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और साझा करने हेतु, एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया है।
एक आधुनिक संग्रहालय के लिए ICOM द्वारा निर्धारित मानक मापदंडों को पूरा करने या आधुनिक प्रथाओं को अपनाने में भारत में अधिकांश संग्रहालय विफल ही रहे हैं। आज भी भारतीय संग्रहालयों के समक्ष, वित्तीय संसाधनों की कमी, एनालॉग बनाम डिजिटल अभिविन्यास (Analog Vs Digital Orientation), निर्णय लेने की स्वतंत्रता बनाम बाधा और इतिहास बनाम समकालीन इतिहास की प्रदर्शनियां, जैसी कई चुनौतियाँ हैं। इसके अतिरिक्त, सरकारी उदासीनता, अपर्याप्त मानव संसाधन, अक्षम प्रक्रियाएँ, और स्थिर कला संग्रह, नए दर्शकों को आकर्षित करने में विफल रहे हैं।
ऐसे चुनौतीपूर्ण माहौल में, भारतीय संग्रहालयों को जीवित ही नहीं बल्कि लोकप्रिय रहने, और आधुनिक संस्थानों में बदलने के लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। पारंपरिक संग्रहालयों ने सांस्कृतिक साक्ष्यों के मानचित्रण, संग्रह और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि आधुनिक संग्रहालयों से समाज के साथ सीधे संपर्क करने की उम्मीद की जाती है। संग्रहालयों को आज सांस्कृतिक और सामाजिक स्थलों के साथ-साथ शिक्षा और सामाजिक संपर्क के केंद्र के रूप में माना जाता है।
हालांकि इन सभी चुनौतियों के बावजूद, कुछ भारतीय संग्रहालयों ने सफलतापूर्वक बदलती दुनिया को अपना लिया है। उदाहरण के लिए, मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय (Chhatrapati Shivaji Maharaj Vastu Sangrahalaya (CSMVS) एक सफल सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के रूप में उभरा है। इस संग्रहालय ने प्रदर्शन, रखरखाव, आगंतुक सुविधाओं, शिक्षा और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को संबोधित करते हुए आधुनिकीकरण में प्रवेश कर लिया है। यह अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा, शिक्षा और कला के संरक्षण में निवेश करता है। इसके अतिरिक्त, यह वैश्विक संस्कृतियों से जुड़े रहने के लिए, और वहाँ की विदेशी प्रदर्शनियों को हमारे देश वासियों के लिए यहां उधार पर लाने के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग करता है। दिल्ली का राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (National Gallery of Modern Art), डॉ भाऊ दाजी लाड संग्रहालय, मुंबई (Dr. Bhau Daji Lad Museum), बिहार संग्रहालय (Bihar Museum) और विक्टोरिया मेमोरियल, कोलकाता (Victoria Memorial) जैसे अन्य संग्रहालयों ने भी आधुनिकता को अपनाया है और मात्र कला तथा पुरावशेषों के भंडार से अधिक बनने का प्रयास किया है।
यदि आप भी संग्रहालय विज्ञान या म्यूजियोलॉजी (Museology) में करियर बनाने में रुचि रखते हैं, और इतिहास के इच्छुक छात्र हैं, तो आपके लिए भी इस क्षेत्र में शैक्षिक अवसर उपलब्ध हैं। अपना स्नातक पूरा करने के बाद, आप पुरातत्व और संग्रहालय विज्ञान में स्नातक की डिग्री (बीएससी) कर सकते हैं। उसके बाद, आपके पास संग्रहालय विज्ञान में मास्टर डिग्री (M.Sc.) करने का विकल्प होता है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, गया में मगध विश्वविद्यालय, वडोदरा में महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, दिल्ली में राष्ट्रीय कला संरक्षण और संग्रहालय विज्ञान संस्थान, और रवींद्र भारती विश्वविद्यालय सहित भारत में कई संस्थान संग्रहालय विज्ञान में पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। संग्रहालय विज्ञान का अध्ययन करने वाले छात्रों को व्यापक प्रशिक्षण दिया जाता है। एक कुशल संग्रहालय क्यूरेटर (Museum Curator) बनने के लिए छात्रों के पाठ्यक्रम में संग्रहालय प्रबंधन, प्रलेखन, संग्रह प्रबंधन, संग्रहालय शिक्षा, संग्रहालय प्रशासन, प्रदर्शनी सेटअप (Exhibition Setup), और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण जैसे विभिन्न पहलुओं को शामिल किया जाता है।
संग्रहालय विज्ञान पाठ्यक्रम, सैद्धांतिक और व्यावहारिक शिक्षा दोनों पर जोर देता है। इसके अलावा संग्रहालय प्रबंधन में रूचि रखने वाले छात्रों को, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (National Museum Of Modern Art), राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद (National Council Of Science Museums (NCSM) के तहत, क्षेत्रीय संग्रहालय, भारतीय फिल्म अभिलेखागार, राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला और त्रिवेणी संग्रहालय जैसे संस्थानों में व्यावहारिक प्रशिक्षण भी प्राप्त होता है। संग्रहालय विज्ञान पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद कोई भी संग्रहालय क्यूरेटर, संग्रहालय शिक्षाविद, संग्रह प्रबंधक, संग्रह के रजिस्ट्रार के रूप में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा वह स्वतंत्र रूप से भी विरासत क्षेत्र में काम कर सकते हैं। साथ ही वे संग्रहालयों के लिए ऑनलाइन लाइब्रेरी (Online Library) बनाने सहित डिजिटल प्रोजेक्ट (Digital Project) भी शुरू कर सकते हैं।
संग्रहालय हमारे समुदायों के कल्याण और सतत विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक वर्ष 18 मई को अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 का अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस "संग्रहालय, स्थिरता और भलाई" के विषय पर केंद्रित होगा। इस विषय के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को सम्बोधित करने, सामाजिक अलगाव को दूर करने और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करने जैसे प्रयास किये जायेंगे।
संदर्भ
https://bit.ly/3Wa4Qwq
https://bit.ly/41EBSpy
https://bit.ly/42I8wbf
चित्र संदर्भ
1. संग्रहालय और नटराज की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारतीय संग्रहालय में वाद्य यंत्रो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय परिषद की मीटिंग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. डॉ भाऊ दाजी लाड संग्रहालय, मुंबई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. साइंस एंड टेक्नोलॉजी हेरिटेज ऑफ इंडिया गैलरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. एक छवि के बारे में जानकारी प्रदान करते संग्रहालय क्यूरेटर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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