जौनपुर के निकट वाराणसी शहर में स्थित सारनाथ जैन तीर्थ का इतिहास एवं अद्भुत वास्तुकला

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
04-04-2023 11:09 AM
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जौनपुर के निकट वाराणसी शहर में स्थित सारनाथ जैन तीर्थ का इतिहास एवं अद्भुत वास्तुकला

हमारे शहर जौनपुर के निकट शहर वाराणसी से उत्तरपूर्व दिशा में 10 किलोमीटर दूर स्थित सारनाथ जैन तीर्थ, जिसे ‘श्रेयांसनाथ जैन मंदिर’ भी कहा जाता है, जैन अनुयायियों के बीच विशेष महत्व रखता है। आज महावीर जयंती के इस शुभ अवसर पर, आइये, इस मंदिर की प्रभुता को समझें और भगवान श्रेयांसनाथ के जीवन वृतांत को जाने।
भगवान श्रेयांसनाथ जैन धर्म में वर्तमान अवसर्पिणी काल के ११वें तीर्थंकर माने जाते हैं। जैन अनुयायियों के अनुसार, वह एक सिद्ध पुरुष थे अर्थात वह एक ऐसी आत्मा थे, जो सभी कर्म ऋणों से मुक्त हो गई थी। उनके पिता का नाम विष्णु और माता का नाम विष्णा देवी था। उनका जन्म, भारतीय कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष के बारहवें दिन हुआ था। भगवान श्रेयांसनाथ 84 लाख वर्ष पूर्व तक जीवित रहे, जिसमें से उन्होंने 21 लाख वर्ष तपस्वी के रूप में और 2 महीने ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास (सहदान / तप) के रूप में बिताए। ऐसा माना जाता है कि श्रेयांसनाथ प्रभु की लंबाई 80 धनुष के माप अर्थात लगभग 240 मीटर थी ।लंबे जीवन काल के बाद, उन्होंने फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष के 13 वें दिन 1000 अन्य पुरुषों के साथ दीक्षा ली। 2 महीने की दीक्षा और सांसारिक जीवन त्याग के बाद भगवान श्रेयांसनाथ ने माघ महीने के कृष्ण पक्ष और श्रावण के नक्षत्र के 15 वें दिन (केवलज्ञान) मोक्ष प्राप्त किया। श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया के दिन, भगवान श्रेयांसनाथ ने सम्मेत शिखर (पर्वत) पर निर्वाण प्राप्त किया ।
वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ जैन तीर्थ मंदिर को श्रेयांसनाथ को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक माना जाता है। हालांकि, इस मंदिर के अलावा कई अन्य मंदिर और कलाकृतियाँ भी उन्हें समर्पित हैं, जिनमें चित्रकला , मूर्तियाँ और पैरों के निशान शामिल हैं। सारनाथ जैन तीर्थ मंदिर जैन धर्म के दिगंबर संप्रदाय से संबंधित है। यह मंदिर सारनाथ में धमेक स्तूप से लगभग 50 मीटर दक्षिण पूर्व में स्थित है। धमेक स्तूप उस स्थान को चिह्नित करता है जहां बुद्ध ने अपने पहले पांच शिष्यों (कौंडिन्य, असाजी, भद्दिया, वप्पा और महानामा) को अपना पहला प्रवचन दिया था, और जहां अंततः ये सभी बंधनों से मुक्त हो गए थे। 544 ईसा पूर्व में बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद, उनके अवशेषों का अंतिम संस्कार किया गया और राख को विभाजित कर आठ स्तूपों के नीचे दफन कर दिया गया। धमेक स्तूप संभवतः इन आठ स्तूपों में से एक था। 249 ईसा पूर्व में, मौर्य राजा अशोक ने धमेक स्तूप का विस्तार किया। 500 CE में धमेक स्तूप का और अधिक विस्तार किया गया । सिम्हापुरी, जिसे अब सिंहपुरी गांव के रूप में जाना जाता है, को श्रेयांसनाथ का जन्म स्थान माना जाता है। यह स्थान श्रेयांसनाथ के ‘पांच कल्याणक’ घटनाओं में से चार (च्यवन (तीर्थंकर का अपनी मां के गर्भ में प्रवेश), जन्म, दीक्षा और केवल ज्ञान) को भी चिन्हित करता है। 'पंच कल्याणक' जैन धर्म में तीर्थंकर के जीवन में होने वाली पाँच प्रमुख शुभ घटनाओं को संदर्भित करता है । इन्हें कई जैन अनुष्ठानों और त्यौहारों के रूप में मनाया जाता है। श्रेयांसनाथ के जन्मस्थान को सम्मानित करने के लिए 1824 ईसवी में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर प्रांगण में मंदिर के प्राथमिक देवता श्रेयांसनाथ की एक विशाल मूर्ति और पैरों के निशान मौजूद हैं। मंदिर में जैन धर्म के एक और प्रमुख तीर्थंकर महावीर के जीवन को दर्शाते हुए सुंदर भित्ति चित्र भी मौजूद हैं।
मंदिर का शासी निकाय ‘श्री 1008 श्रेयांसनाथ दिगंबर जैन मंदिर ट्रस्ट’ (Shree 1008 Shreyansnath Digambar Jain Temple Trust) के हाथों में है। इस मंदिर में महावीर जयंती का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। मुख्य मंदिर के पास के खंडहर, श्वेताम्बर द्वारा बनवाए गए एक प्राचीन जैन मंदिर के बताए जाते हैं।
सारनाथ में स्थित दिगंबर जैन मंदिर एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल है। यह मंदिर जैन धर्म के दिगंबर संप्रदाय को समर्पित है। दिगंबर कपड़े पहनने में विश्वास नहीं करते क्योंकि वे कपड़ों को एक भौतिक संपत्ति मानते हैं जो निर्भरता और इच्छा को बढ़ाती है। इसलिए, वे ज्ञान प्राप्त करने के लिए कपड़ों का त्याग करते हैं, और मानते हैं कि नग्नता इच्छा हीनता और भावनाहीनता का चरम रूप है जो स्वाभाविक रूप से हर इंसान के पास नहीं आ सकती है। दिगंबर भी जैन ग्रंथों (अंग, उपांग, प्राकिर्णक, वेदसूत्र और मूलसूत्र) में विश्वास नहीं करते हैं। वे मानते हैं कि महावीर भगवान थे और उन्हें मोक्ष मिला। इस संप्रदाय में महिलाओं को काफी बाद में जगह दी गई है। त्यागी महिलाएं सफेद वस्त्र पहनती हैं और आर्यिका कहलाती हैं।
मंदिर में जैन परंपरा के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की काली मूर्ति है। यह मंदिर वाराणसी के मुख्य शहर से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहां टैक्सी, ऑटो रिक्शा या सारनाथ रेलवे स्टेशन से पैदल पहुंचा जा सकता है। मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच होता है, और यह मंदिर प्रत्येक दिन सुबह 5:30 से रात 8:30 बजे तक खुला रहता है, और इस मंदिर में प्रवेश निःशुल्क है। यहाँ के स्थानीय बाजार सभी प्रकार के सामानों से भरे हुए हैं , साथ ही यहाँ के मॉल और मल्टीप्लेक्स (Mall and Multiplex) हजारों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यहां मौजूद सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक सारनाथ संग्रहालय है ।
दिगंबर जैन मंदिर प्राचीन परंपरा के तत्वों के साथ आधुनिक वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यदि आप साहित्य के प्रति उत्साही हैं या धर्मों के दर्शन के माध्यम से गहराई तक जाने की उत्सुकता रखते हैं तो आप मंदिर संरचना में दर्शाई गई दंतकथाओं की खोज कर सकते हैं। जिसके लिए आप महावीर जयंती के दिन इस मंदिर की यात्रा कर सकते हैं! महावीर जयंती महावीर स्वामी के जन्म दिवस के रूप में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी के दिन मनाई जाती है। इस दिन सभी जैन भिक्षु इकट्ठा होते हैं और गंगा में स्नान करते हैं। इस वर्ष यह आज 4 अप्रैल को मनाई जा रही है ।

संदर्भ
https://bit.ly/42SQFPc
https://bit.ly/3KngIXq
https://bit.ly/3lX8rQO
https://bit.ly/42SQJhU

चित्र संदर्भ
1. श्रेयांसनाथ जैन मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भगवान श्रेयांसनाथ की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सारनाथ जैन तीर्थ मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. धमेक स्तूप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. जैन परंपरा के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की काली मूर्ति को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

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