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विभिन्न पौधों के अनुसंधान, उत्पादन, संरक्षण और प्रदर्शन के लिए देश भर में अनेकों वनस्पति उद्यान बनाए गए हैं। भारत में अभी तक 122 ज्ञात वनस्पति उद्यान मौजूद हैं। वनस्पति उद्यान, आमतौर पर एक ऐसा उद्यान होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इन प्रजातियों को आमतौर पर उनके वैज्ञानिक नामों के साथ लेबल किया जाता है। भारत में पौधों की प्रजातियों की एक विस्तृत विविधता पाई जाती है तथा ऐसा अनुमान लगाया गया है कि भारत के वनस्पति उद्यानों में लगभग 200,000 प्रजातियों के जीवित पौधे मौजूद हैं।
हमारे शहर जौनपुर के नजदीक, वाराणसी में ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ परिसर के अंदर औषधीय पौधों का एक वनस्पति उद्यान मौजूद है, इसके साथ ही इसमें एक आयुर्वेदिक औषधालय भी स्थापित किया गया है। इस औषधालय को ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ के प्रणेता महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित किया गया था। इस उद्यान में औषधीय गुणों वाले पौधों का भली-भांति संरक्षण किया जाता है। इस उद्यान में स्थानीय औषधीय पौधों, पेड़ों और जड़ी-बूटियों की ब्राह्मी, जलनिंब, शतावरी, करकरा, तुलसी, त्रिफला, अशोक, तेज पत्ता, दाल चीनी और कई अन्य औषधीय प्रजातियों सहित लगभग 350 प्रजातियाँ मौजूद हैं । इसके अलावा बगीचे में त्रिवेंद्रम में उगाई जाने वाली स्ट्रीक्नोस पोटैटोरम (Strychnos Potatorum) जैसी दूषित पानी को शुद्ध करने वाली प्रजातियां मौजूद हैं। गारो पहाड़ियां, असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र और कई ठंडे स्थानों के पौधे भी यहां उगाए जा रहे हैं। यूं तो वाराणसी में 3 आयुर्वेदिक उद्यान मौजूद हैं, लेकिन इनमें से केवल बनारस हिंदू विश्वविद्यालय परिसर वाला आयुर्वेदिक उद्यान ही अच्छा काम कर रहा है।
जिस तरह से लोगों का रूझान आयुर्वेद की ओर बढ़ रहा है तथा लोग आयुर्वेद के लाभों को समझने लगे हैं, भारत में और अधिक जड़ी-बूटियों के बागानों की स्थापना किए जाने की आवश्यकता है । भारत में शुरुआत से ही आयुर्वेदिक एवं हर्बल गार्डन विकसित किए गए थे। ये उद्यान आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अवशोषित करते हैं जिससे मन को शांति प्राप्त होती है। भारत में विकसित किए गए विभिन्न प्रकार के प्राचीन आयुर्वेदिक एवं हर्बल उद्यानों में नवग्रहवन, राशिवन, शिवपंचायतन, अशोकवन, नक्षत्रवन, नंदनवन और सप्तर्षिवन शामिल हैं। हर्बल उद्यानों में औषधीय गुणों वाली विभिन्न वनस्पतियों जैसे अश्वगंधा, बर्गमोट मिंट (Bergamot Mint), भूमि आमलकी (BhumyAmalaki), ब्राम्ही, सिट्रोनेला (Citronella), जेरेनियम (Geranium), घृतकुमारी, गिलोय, ईसबगोल, कालमेघ आदि को उगाया जाता है, ।
अपने समग्र दृष्टिकोण के कारण आयुर्वेद अब एक अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा कला बनता जा रहा है। कई देश आयुर्वेद को एक प्रमुख स्वास्थ्य विज्ञान के रूप में लागू करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। चूंकि आयुर्वेदिक यौगिकों का मुख्य कच्चा माल औषधीय पौधे हैं, और वे मुख्य रूप से भारत में उगाए जाते हैं, इसलिए इन पौधों की व्यावसायिक खेती से निकट भविष्य में आय का एक समृद्ध स्रोत उत्पन्न किया जा सकता है।आयुर्वेदिक पौधों की मांग को पूरा करने के लिए ‘डॉ.यू. कृष्ण मुनियाल मेमोरियल ट्रस्ट’ (Dr. U. Krishna Muniyal Memorial Trust) ने हर्बल उद्यान की एक नई अवधारणा विकसित की है। इन जड़ी-बूटियों के बागानों से अनुसंधान केंद्र और निर्माण इकाइयां अपना कच्चा माल प्राप्त करती हैं। इन बागानों में नियंत्रित वातावरण में जड़ी-बूटियों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाए गए हैं। यहां दुर्लभ और आवश्यक औषधीय पौधों का संरक्षण और व्यापक खेती प्राकृतिक तरीके से की जाती है ताकि उत्पादन इकाई को बेहतर गुणवत्ता वाले कच्चे माल की आपूर्ति की जा सके। आयुर्वेदिक औषधालय को इसलिए शुरू किया गया था, ताकि आयुर्वेदिक औषधियां तैयार की जा सके,छात्रों को सूत्रीकरण सिखाया जा सके तथा आम जनता को सस्ती कीमतों पर आयुर्वेदिक दवाएं उपलब्ध कराई जा सकें।
कुछ समय पूर्व उत्तराखंड में बद्रीनाथ मंदिर के पास भारत के सबसे ऊंचे हर्बल उद्यान का उद्घाटन किया गया था। यह उद्यान 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। चमोली जिले के माणा गांव में स्थित उद्यान को माणा वन पंचायत द्वारा दी गई तीन एकड़ भूमि पर राज्य वन विभाग के अनुसंधान विभाग द्वारा विकसित किया गया है। इसका लक्ष्य क्षेत्र की वनस्पतियों और इनके पारिस्थितिक महत्व को उजागर करना है। साथ ही इसका लक्ष्य पार्क में दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण करना भी है। उद्यान को चार भागों में बांटा गया है, पहले खंड में ऐसी प्रजातियां शामिल हैं, जो भगवान बद्रीनाथ से जुड़ी हुई हैं, जैसे बद्री तुलसी, बद्री बेर, बद्री वृक्ष और भोजपत्र का पवित्र वृक्ष। दूसरे खंड में अष्टवर्ग प्रजातियां शामिल हैं, जो हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली 8 जड़ी बूटियों का एक समूह हैं, जैसे रिद्धि, वृद्धि, जीवक, ऋषभक, काकोली, क्षीर काकोली, मैदा और महा मैदा। ये सभी बूटियां च्यवनप्राश के महत्वपूर्ण तत्व हैं। इनमें से चार जड़ी-बूटियाँ लिली (Lily) परिवार से सम्बंधित हैं, जबकि शेष ऑर्किड (Orchid) परिवार से सम्बंधित है। तीसरे खंड में सोसुरिया (Saussurea) प्रजाति शामिल है और इसमें उत्तराखंड का राजकीय फूल ब्रह्मकमल भी शामिल है । चौथे खंड में अन्य विविध प्रजातियाँ हैं जिनमें अतीश, मीठाविश, वंकाकडी और चोरू शामिल हैं। ये सभी बहुत महत्वपूर्ण औषधीय जड़ी-बूटियाँ हैं, जिनका उपयोग स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3ZboSXh
https://bit.ly/3ZbcTce
https://bit.ly/3JHuLFM
https://bit.ly/3JB5QDL
https://bit.ly/3ndxnno
चित्र संदर्भ
1. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ परिसर के अंदर औषधीय पौधों के एक वनस्पति उद्यान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय परिसर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के केंद्रीय कार्यालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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