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भारत में कपड़ा उद्योग अत्यंत महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक है, क्योंकि यह रोजगार की असीम संभावनाएं, विदेशी मुद्रा राजस्व और मानव कल्याण के लिए आवश्यक उत्पाद प्रदान करता है। कपड़ा उद्योग में एक बड़ी आबादी कार्यरत हैं, जिसमें अधिकतर महिलाएं हैं। उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के लिए कपड़ा उद्योग द्वारा लगातार पूंजीगत व्यय और प्रौद्योगिकी में निवेश किया जा रहा है, लेकिन दुख की बात यह है कि इसे निवेश के अनुपात में उतना लाभ प्राप्त नहीं हो पा रहा है।
‘फॉर्च्यून इंडिया’ (Fortune India) के ‘द नेक्स्ट 500’ (The Next 500) सूची के इस साल के संस्करण में, कपड़ा उद्योग ऐसा चौथा सबसे बड़ा क्षेत्र है, जिसका इस सूची में सम्मिलित कुल संचयी कारोबार में 7.73% और इसके संचयी शुद्ध लाभ में 4.72% हिस्सा है। एक पारंपरिक कपड़ा निर्माण प्रणाली में अच्छा स्तर हासिल करना बहुत मुश्किल है, और इसका अंदाजा सूची में शामिल उन नौ कंपनियों की उपस्थिति से लगाया जा सकता है, जिनका कारोबार या टर्नओवर 2,000 करोड़ रुपए का है। 16 कंपनियों की बिक्री 1,000 करोड़ रुपए से 2,000 करोड़ रुपए के बीच और 15 कंपनियों की बिक्री 1,000 करोड़ रुपए से कम लेकिन 700 करोड़ रुपए से अधिक है। विभिन्न उद्योगों के बीच कपड़ा उद्योग का मुनाफा भी सबसे कम है। कपड़ा उद्योग विशेष रूप से पश्चिम में कपास की उच्च कीमतों और कम मांग के कारण एक कठिन दौर से गुजर रहा है। नतीजतन, इस क्षेत्र की अधिकांश कंपनियां अपनी क्षमता से कम काम कर रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मांग कम होने के कारण 40% से अधिक भारतीय स्पिनर या सूत कातने वाले उद्योग या तो बंद हो गए हैं या अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।
कपड़ा उद्योग में कपास का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इस उद्योग में इस्तेमाल किए जाने वाले कुल फाइबर (Fibre) में कपास का हिस्सा 58% है। चीन (China), ब्राजील (Brazil) और तुर्की (Turkey) में प्रति हेक्टेयर भूमि पर 1,800 किलोग्राम लिंट तक कपास पैदा होती है, जबकि भारत में कपास की उपज अपेक्षाकृत कम है। यहां कपास की उपज लगभग 460 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि विश्व की औसत उपज को देंखे तो यह 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। नतीजतन, भारत के पास कपास की खेती का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होने के बाद भी यह कुल कपास उत्पादन में केवल 23% का योगदान देता है। विश्लेषकों के अनुसार, माल ढुलाई के बढ़ते खर्च और मुद्रास्फीति के कारण, 2022 में कपास की कीमतों में 30% से अधिक की बढ़ोतरी के कारण घरेलू कपड़ा उद्योग को मार्जिन (Margin) और वॉल्यूम (Volume) वृद्धि में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है।
कपड़ा उद्योग एक ऐसा उद्योग है, जो व्यापार चक्र के प्रति अति संवेदनशील होता है। अर्थात आर्थिक समृद्धि की स्थिति में इस उद्योग के राजस्व में आम तौर पर वृद्धि होती है, किंतु आर्थिक मंदी और संकुचन की स्थिति में उद्योग के राजस्व में कमी आ जाती है। इस प्रकार की अस्थिरता से निपटने के लिए कंपनियां या तो कर्मचारियों की छंटनी करती हैं या फिर कुछ अन्य तरीके जैसे कि गुणवत्ता, उत्पादन में कमी आदि अपनाती हैं।
कपड़ा उत्पाद के निर्यात में कमी और कच्चे माल तथा परिवहन लागत में तेजी से होने वाली वृद्धि से घरेलू कपड़ा निर्माताओं की मुश्किलें बढ़ रही हैं। 2022 में घरेलू कपड़ा निर्माताओं के परिचालन लाभ में लगभग 150-200 बीपीएस या 13 प्रतिशत कमी आने की संभावना जताई गई थी।
क्रिसिल रेटिंग्स (Crisil Ratings) की रिपोर्ट के अनुसार, कपड़ा निर्यात, भारतीय घरेलू कपड़ा उद्योग द्वारा राजस्व में 60-70% का योगदान दिया जाता है। निर्यात के द्वारा लगभग 58% कपड़ा उत्पाद अकेले अमेरिका (America) को ही भेजा जाता है। रिपोर्ट में कहा गया था कि घरेलू कपड़े की वैश्विक मांग निकट भविष्य में मुद्रास्फीति से प्रभावित हो सकती है। अमेरिकी बाजारों में मंदी के कारण जनवरी और अप्रैल 2022 के बीच भारत से कुल घरेलू कपड़ा निर्यात में 5-6% की गिरावट आई थी।
कपड़ा उद्योग को इस प्रकार के नुकसानों से बचाने के लिए सरकार ने ‘राष्ट्रीय कपड़ा निगम पुनरुद्धार योजना’ शुरू की है, लेकिन इसके बावजूद भी कपड़ा उद्योग को कुछ अधिक फायदा नहीं हो पाया है। 2006-2007 के बाद से ‘नेशनल टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (National Textile Corporation Ltd) को उच्च निवेश लागत, उच्च कर्मचारी टर्नओवर, मजदूरी लागत और कम बाजार प्रतिस्पर्धात्मकता सहित अन्य कारणों से लगातार परिचालन घाटा हो रहा है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3mUuU0U
https://bit.ly/3ThIHed
https://bit.ly/3TmRMlV
https://bit.ly/3l4X5tw
चित्र संदर्भ
1. सिलाई करती महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. रेशम की साड़ी के निर्माण को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. बुनाई मशीन को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. कपड़े के निरीक्षण को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
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