चैतन्य महाप्रभु ने जगाई आध्यात्मिक चेतना:‘परमातमा कृष्ण की ऊर्जा विद्यमान प्रत्येक जीवात्मा में

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
07-03-2023 09:55 AM
Post Viewership from Post Date to 12- Mar-2023 (5th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1255 570 1825
चैतन्य महाप्रभु ने जगाई आध्यात्मिक चेतना:‘परमातमा कृष्ण की ऊर्जा विद्यमान प्रत्येक जीवात्मा में

’भारत के समृद्ध इतिहास में ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं, जो यह दावा करते थे कि उन्होंने ईश्वर के साक्षात् दर्शन किये हैं। किंतु ‘हरे कृष्ण' जैसे “महामंत्र' को लोकप्रिय बनाने वाली महान विभूति, “चैतन्य महाप्रभु" के बारे में उनके अनुयायियों द्वारा माना जाता है कि वह स्वयं ही भगवान कृष्ण के अवतार थे। उनके द्वारा दी गई शिक्षाएं, न केवल आध्यात्मिक स्तर की चेतना प्रदान करती हैं, बल्कि सांसारिक जीवन जीने का एक आदर्श मार्ग भी दिखाती हैं।
चैतन्य महाप्रभु 15वीं शताब्दी के एक वैदिक आध्यात्मिक नायक माने जाते हैं। महाप्रभु चैतन्य ने “गौड़ीय वैष्णववाद” की स्थापना की। गौड़ीय वैष्णववाद परम सत्य को प्राप्त करने की एक विधि के रूप में भक्ति योग को बढ़ावा देता है। चैतन्य महाप्रभु को ‘हरे कृष्ण मंत्र' नामक ‘महामंत्र' को लोकप्रिय बनाने का भी श्रेय दिया जाता है। उन्हें संस्कृत भाषा में आठ छंदों की एक प्रसिद्ध प्रार्थना की रचना करने के लिए भी जाना जाता है, जिसे ‘शिक्षाष्टकम' के रूप में जाना जाता है। बाल्यावस्था के दौरान, चैतन्य महाप्रभु एक विलक्षण बालक थे और बहुत कम उम्र में ही वह एक महान विद्वान के रूप में विख्यात हो गए । चैतन्य महाप्रभु का जन्म 18 फरवरी, 1486 को हुआ था, और उनके बचपन का नाम विश्वंभर मिश्र था। चैतन्य की माता का नाम सची देवी और पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र था। वह अपने माता-पिता की दूसरी संतान थे।
उनके अनुयायियों का मानना है कि चैतन्य महाप्रभु और भगवान श्री कृष्ण की छवि में आश्चर्यजनक समानताएं थीं। चैतन्य ने बाल्यकाल में ही भगवान श्री कृष्ण की स्तुति करना शुरू कर दिया था । छोटी उम्र में ही वह मंत्रों और अन्य धार्मिक भजनों को पढ़ने तथा उनका उच्चारण करने में सक्षम थे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने द्वारा अर्जित ज्ञान का प्रसार करना भी शुरू कर दिया।
मात्र 16 वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपने एक विद्यालय की स्थापना कर दी थी, जिसने कई विद्यार्थियों को आकर्षित किया। चैतन्य की प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि उन्होंने एक बार केशव कश्मीरी नाम के एक गौरवशाली विद्वान को एक बहस में हरा दिया था। कहा जाता है कि अगले दिन केशव कश्मीरी ने अपनी हार को सहर्ष स्वीकार करते हुए, चैतन्य के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। अपने पिता, जगन्नाथ मिश्र के निधन के बाद, चैतन्य ने अपने मृत पिता को श्रद्धांजलि देने हेतु एक धार्मिक अनुष्ठान के लिए, प्राचीन शहर “गया” का दौरा किया। गया में रहते हुए, उनकी भेंट ईश्वर पुरी नाम के एक तपस्वी से हुई, जिनको बाद में चैतन्य ने अपना गुरु बना लिया । उनके मार्गदर्शन में, चैतन्य ने परम सत्य को प्राप्त करने हेतु भक्ति योग का मार्ग चुना। चैतन्य ने भगवान श्री कृष्ण के नाम का निरंतर जप करके, न केवल स्वयं भक्ति योग का अभ्यास किया, बल्कि उन्होंने अपने अनुयायियों को भक्ति योग का पालन करने की उचित विधि भी सिखाई। उन्होंने कई वर्षो तक पूरे भारत में भक्ति योग का विस्तार किया। चैतन्य, श्री कृष्ण के नाम का जप करते हुए, पूर्ण आनंद या परमानंद की स्थिति में विभिन्न स्थानों की पैदल यात्रा करते थे। 1515 में, चैतन्य ने भगवान श्री कृष्ण की जन्म स्थली वृंदावन का भी दौरा किया।
माना जाता है कि चैतन्य, सात मंदिरों (सप्त देवालय) सहित श्री कृष्ण से जुड़े सभी महत्वपूर्ण स्थानों की खोज करने में सफल रहे, जहाँ आज भी वैष्णव धर्म के अनुयाई जाते हैं। वर्षों की यात्रा के बाद, चैतन्य अंततः ओडिशा के पुरी में बस गए, और अपने जीवन के अंतिम 24 वर्षों तक वहीं रहे। 16वीं शताब्दी के कई शासक भी उनके अनुयाई बन गए थे। उपनिषदों की शिक्षाओं को वेदांत के नाम से जाना जाता है। विभिन्न दार्शनिक विद्यालयों के अधिकतर सभी आध्यात्मिक नेताओं द्वारा वेदांत सूत्र के विचारों को अपनाया गया था। किंतु आदि गुरु शंकराचार्य ने वेदांत सूत्र से अलग विवर्त वाद (मायावाद) के भ्रामक परिवर्तन के सिद्धांत को स्थापित करने का प्रयास किया, जो भक्ति विज्ञान या भक्ति के सिद्धांतों के विपरीत है। इसके विपरीत, इस सिद्धांत से असंतुष्ट होकर चार वैष्णव आचार्यों ने सर्वोच्च भगवान के प्रति भक्ति में समर्पण के सत्य पर आधारित अपने विभिन्न दर्शन प्रस्तुत किए। श्री मध्वाचार्य ने द्वैतवाद का सिद्धांत तैयार किया, जहां सर्वोच्च भगवान को उनकी ऊर्जाओं से पूरी तरह से अलग माना जाता है। इसके बाद रामानुजाचार्य ने वेदों और वेदांत-सूत्रों के अनुसार योग्य अद्वैतवाद या विशिष्टाद्वैतवाद का दर्शन प्रस्तुत किया। कुछ समय पश्चात श्री निम्बार्काचार्य ने एक साथ द्वैत और अद्वैत के एक रूप सिद्धांत द्वैताद्वैतवाद को प्रतिपादित किया। और फिर विष्णुस्वामी ने शुद्धाद्वैतवाद या शुद्ध द्वैतवाद का सिद्धांत प्रतिपादित किया।
लेकिन श्री चैतन्य महाप्रभु ने इन चारों वैष्णव आचार्यों की शिक्षाओं को समेकित किया और सर्वोच्च ईश्वर और उसके अंशो या ऊर्जा के बीच एक अकल्पनीय एकता और अंतर दोनों के होने के सिद्धांत को “अचिंत्य भेदाभेद तत्त्व” के रूप में प्रस्तुत किया । अचिन्त्य भेदाभेद तत्त्व प्रतिपादित करता है कि परम ईश्वर और उनकी शक्तियाँ एक साथ एक होने के साथ-साथ एक दूसरे से भिन्न भी हैं। जिस प्रकार सूर्य और सूर्य के प्रकाश या सोने और सोने के कण एक साथ एक भी हैं और एक दूसरे से अलग भी हैं, उसी प्रकार आत्मा (जीव) और परमेश्वर एक साथ एक होने के साथ-साथ एक दूसरे से भिन्न भी हैं। व्यक्तिगत आत्मा (जीव), जो परमेश्वर का अंश है, उसमें परमेश्वर के सभी गुण तो हैं परंतु कम मात्रा में, जिसके कारण वह परमेश्वर से अलग है। आस्तिक दर्शन के एक प्रमुख शिक्षक अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने समझाया कि जब कृष्ण चेतना के संदर्भ में देखा जाता है तो कुछ भी भौतिक नहीं है। जब कोई वस्तु कृष्णभावनामृत में अर्पित की जाती है, तो वह स्वतः ही आध्यात्मिक हो जाती है। इस तरह, संसार की प्रत्येक वस्तु को कृष्ण के साथ संबंधित होने के कारण आध्यात्मिक रूप में सराहा जा सकता है। संसार को असत्य कहने वाला मायावाद दर्शन आस्तिक दर्शन में स्वीकार नहीं किया जाता है। यदि कृष्ण एक तथ्य हैं, तो उनकी रचना यह संसार भी एक तथ्य है।
अचिन्त्य-भेदाभेद की अवधारणा बताती है कि सब कुछ कृष्ण हैं, लेकिन आप कृष्ण के रूप में हर वस्तु की पूजा नहीं कर सकते। कृष्ण और उनकी शक्तियों के बीच एक साथ एकता और अंतर है। पत्थर सहित हर वस्तु में जो ऊर्जा है वह ऊर्जा कृष्ण है, लेकिन केवल उस पत्थर को कृष्ण के रूप में नहीं पूजा जा सकता है, क्यूंकि उस पत्थर या वस्तु में भगवान् कृष्ण की संपूर्ण ऊर्जा नहीं है अपितु उनकी ऊर्जा का केवल एक अंश है। कृष्ण हर जगह विद्यमान हैं। कृष्ण और कृष्ण की शक्ति दोनों ही पूजनीय हैं। इसलिए कृष्ण की ऊर्जा के उदाहरण के रूप में वृक्ष भी पूजनीय है।

संदर्भ
https://bit.ly/3YgFFrc
https://bit.ly/41GIk0k
https://bit.ly/41GnvC8

चित्र संदर्भ
1. कृष्ण स्तुति में लीन चैतन्य महाप्रभु को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. दिल्ली में गौरा निताई मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जगन्नाथ पुरी मंदिर, ओडीशा में, चैतन्य महाप्रभु को संदर्भित करती, सं 1900 की एक पेंटिंग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कृष्ण भक्ति में झूमते गौड़ीय वैष्णवो को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
5. गौरंगा पुल में श्री चैतन्य महाप्रभु की मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.