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वृक्ष हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, किंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि बढ़ते शहरीकरण और विकास परियोजनाओं के कारण आज भी एक बड़ी संख्या में वृक्षों को काटा जा रहा है। हमारे शहर जौनपुर में, जौनपुर से भदोही के बीच चार लेन (Four-lane) सड़क के निर्माण के लिए जितने वृक्षों को काटा गया था, उतने ही अनुपात में पौधारोपण की योजना बनाई गई थी। किंतु इस योजना को सुचारू रूप से सम्पन्न नहीं किया गया। शहर के योजनाकारों द्वारा सड़क निर्माण की योजना बनाते समय सिर्फ वाहनों के आवागमन को ही ध्यान में रखा गया है और पैदल या साइकल यात्रियों को पूरी तरह से नकार दिया गया है।
हमें उनसे यह सवाल पूछने की जरूरत है कि आखिर सड़कों का निर्माण किसके लिए किया जा रहा है, लोगों के लिए या वाहनों के लिए? दुर्भाग्य से, नगर प्रशासन निकायों का पूरा ध्यान सिर्फ चौड़ी सड़कें बनाने पर है। लखनऊ-वाराणसी चार लेन राजमार्ग पर जौनपुर जिले की सीमा में गए वर्ष जुलाई से लेकर अगस्त तक चार लेन के दोनों ओर 70 हजार पौधे लगाने की वृहद परियोजना को पूर्ण किया जाना था । पहले इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को दी गई थी, लेकिन बाद में परिवर्तन करते हुए इसकी जिम्मेदारी वन विभाग को सौंप दी गई। इस परियोजना के लिए राजस्व विभाग की ओर से अतिक्रमण को भी हटवा दिया गया था । किंतु वन विभाग ने कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए केवल कुछ ही पौधे लगाए । वृहद पौधारोपण की रूपरेखा मुख्य रूप से पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए बनाई गई थी, ताकि पेड़ों को काटने के कारण पर्यावरण को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई की जा सके। राजमार्ग के चार लेन निर्माण के दौरान बड़ी संख्या में वृक्षों की कटाई होने से राजमार्ग वीरान हो गए हैं, जिसे भरने के लिए सड़क के दोनों किनारों पर पौधारोपण किया जाना था।
बरसात के दिनों में कम बारिश होने की वजह से भी पौधारोपण अभियान प्रभावित हुआ, जो पौधे लगाए गए थे, वे भी पानी के अभाव में सूख गए। अंततः मजबूरी में इस अभियान को कुछ समय के लिए रोकना पड़ा। इन पौधों के संरक्षण की जिम्मेदारी वन विभाग की थी, किंतु वन विभाग द्वारा इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। जौनपुर से भदोही के बीच चार लेन बनाने की योजना को मंजूरी मिलने के बाद हाइवे की लंबाई 38.23 किलोमीटर हो जाएगी । इस परियोजना में करीब 5280 पेड़ काटे जाने की अनुमति दी गई थी, मगर अब इस नुकसान की भरपाई नहीं की जा रही है। यह दृश्य केवल जौनपुर का ही नहीं है, पूरे भारत में ऐसी कई विकास परियोजनाएं हैं, जिनके अंतर्गत भारी मात्रा में पेड़-पौधों को काटा गया है। 2020-21 में भारत भर में सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और विकास के लिए लगभग 31 लाख पेड़ काटे गए थे। मुंबई के गोरेगांव में चल रहे ‘मेट्रोकार शेड’ (Metro car shed) के निर्माण के लिए आरे कॉलोनी (Aarey Milk Colony) में 2702 पेड़ों की कटाई की गई थी। अप्रैल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने, गणेशपुर-देहरादून सड़क खंड (NH-72A) पर 11,000 पेड़-पौधों को काटने की अनुमति दी थी, जो दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे का हिस्सा है। इसी प्रकार मार्च 2022 में पणजी, गोवा में लिंक रोड के निर्माण के लिए लगभग 7218 पेड़ काटे गए थे। 2020 में अकेले कुलेम-मडगांव खंड पर सड़क दोहरीकरण के लिए 729 पेड़ काटे गए थे। अकेले गोवा में सरकारी परियोजनाओं के लिए अप्रैल 2012 से मार्च 2022 तक कुल मिलाकर 92,646 पेड़ काटे गए थे।
सितंबर 2021 में, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के तहत आने वाले ‘कॉर्बेट टाइगर रिजर्व’ (Corbett Tiger Reserve) में 106 हेक्टेयर में फैली सफारी परियोजना स्थापित करने के लिए 10,000 पेड़ काटे गए थे। इसी प्रकार दिल्ली में विभिन्न परियोजनाओं के लिए सरकार ने 2015 से 2021 के बीच 60,000 से अधिक पेड़ों की कटाई की अनुमति दी थी। ये सभी आंकड़े भारत में पेड़ों की हो रही अंधाधुंध कटाई को उजागर करते हैं। अब प्रश्न यह है कि क्या पेड़ काटना ही विकास का एकमात्र रास्ता है? दुनिया भर में, आदर्श रूप से प्रति व्यक्ति, 422 पेड़ मापे जाते हैं, लेकिन भारत में प्रति व्यक्ति केवल 28 पेड़ हैं। एक तरफ जहां भारत में पेड़ों की आबादी कम है तो दूसरी तरफ शहरी विकास के नाम पर पेड़ों को लगातार काटा जा रहा है। ऐसा नहीं है कि पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। लेकिन ये प्रयास पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पा रहे हैं। 2020-21 में सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और विकास के लिए काटे गए पेड़ों की भरपाई करने के लिए 3.6 करोड़ से भी अधिक पौधे लगाए गए थे, जिसके लिए सरकार ने 358.87 करोड़ रुपये खर्च किए थे। लेकिन पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है। रोपे गए पौधों को वयस्क, पूर्ण रूप से परिपक्व वृक्षों के रूप में विकसित होने में वर्षों लगेंगे और आने वाली पीढ़ियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि हम विकास परियोजनाओं के लिए पेड़ों को काटने के बजाय एक नए विकल्प की ओर अग्रसर हों।
संदर्भ:
https://bit.ly/3mk95HP
https://bit.ly/3ZCCuLB
https://bit.ly/3Ymc6Vx
चित्र संदर्भ
1. सड़क किनारे कटे हुए पेड़ों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. पेड़ काट रहे श्रमिकों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. कटकर बिखरे हुए पेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कटे हुए पेड़ों के ढेर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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