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कश्मीर की शान माने जाने वाले केसर को दुनिया का सबसे महंगा मसाला माना जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि दुनिया का दूसरा सबसे महंगा मसाला “वैनिला” (Vanilla) है। सौंदर्य प्रसाधनों, आइक्रीम (Ice Cream), परफ्यूम (Perfume) और कई प्रकार के पेय पदार्थों में इसका प्रयोग कई दशकों से होता आ रहा है। अपनी मनमोहक सुगंध और अत्यधिक कीमत के लिए जाने जाने वाले मसाले वैनिला का इतिहास भी कई उतार चढ़ावों से भरा पड़ा है।
वैनिला एक सुगंधित और अत्यधिक मूल्यवान मसाला है, जिसका समृद्ध इतिहास रहा है। वैनिला की खेती सबसे पहले मेक्सिको (Mexico) के पूर्वी तट पर तत्कालीन देशज ‘टोटोनैक’ (Totonac) द्वारा की गई थी। बाद में एज़्टेक साम्राज्य (Aztec Empire) ने टोटोनैक पर विजय प्राप्त कर ली, जिससे वैनिला एज़्टेक लोगों के पास पहुंच गया। एज़्टेक ने चॉकलेट (Chocolate) का स्वाद बढ़ाने के लिए वैनिला का उपयोग किया। वहीं जब स्पेन (Spain ) ने एज़्टेक पर विजय प्राप्त की, तो स्पेन के लोग वैनिला को यूरोप (Europe) ले गए।
17 वीं शताब्दी की शुरुआत तक वेनिला को मात्र चॉकलेट के सहायक के रूप में उपयोग किया जाता था, किंतु जब क्वीन एलिजाबेथ प्रथम (Queen Elizabeth I) के एक पेशेवर चिकित्सक ह्यू मॉर्गन (Hugh Morgan) ने वैनिला के स्वाद वाली मिठाई का आविष्कार किया,तो रानी को यह मिठाई बेहद पसंद आई थी। बाद में 1780 के दशक में फ्रांस (France) में अमेरिकी मंत्री के रूप में काम करने वाले व्यक्ति थॉमस जेफरसन (Thomas Jefferson) ने वैनिला का प्रयोग आइसक्रीम में किया। 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में वैनिला की पाक विधि (Recipe) पाक कला किताबों में दिखाई देने लगी थी। खाद्य इतिहासकार वेवरली रूट (Waverly Root) के अनुसार, पहली ज्ञात वैनिला पाक विधि हन्ना ग्लासि (Hannah Glasse) की पाक पुस्तक ‘द आर्ट ऑफ़ कुकरी’ (The Art of Cookery) के 1805 के संस्करण में दिखाई देती है। यह किताब चॉकलेट के साथ वैनिला के उपयोग का सुझाव देती है। वहीं वैनिला आइसक्रीम के लिए पहली पाक विधि मैरी रैंडोल्फ (Mary Randolph) की पुस्तक ‘द वर्जीनिया हाउसवाइफ’ (The Virginia Housewife (1824) में पाई जाती है। 19वीं सदी के उत्तरार्ध तक, वैनिला की मांग आसमान छू गई थी।
आज वैनिला का उपयोग आइसक्रीम, शीतल पेय और अन्य खाद्य पदार्थों के स्वाद के रूप में किया जाता है। वैनिला, केसर के बाद दुनिया का दूसरा सबसे महंगा मसाला है। जैसाकि, इसके उत्पादन में कड़ी मेहनत और लंबा समय लगता है, जिसके कारण वैनिला बेहद महंगा भी है। वैनिला का पौधा एक लता के रूप में उगता है, जिसकी लंबाई लगभग 300 फीट तक होती है, जिसमें से लगभग चार इंच व्यास वाले हल्के हरे-पीले फूल निकलते हैं । ये फूल आमतौर पर सुबह जल्दी खुलते हैं और लगभग 6 घंटे तक परागण के लिए ग्रहणशील अर्थात पूरी तरह से तैयार होते हैं। प्रत्येक फूल सिर्फ 24 घंटों के लिए खुला रहता है, जिसके बाद परागण न होने पर यह मुरझाकर मर जाता है और जमीन पर गिर जाता है। वैनिला की फली फूल के परागण से उत्पन्न होती है। वैनिला के पौधे का फल एक फली होती है जिसमें हजारों बीज होते हैं। इन्हीं बीजों से वैनिला को निकाला जाता है। इसका परागण मेलिपोना मधुमक्खियों (Melipona Bees) और हमिंग बर्ड्स (Hummingbirds) द्वारा किया जाता है। वैनिला की प्राथमिक प्राकृतिक परागणकर्ता, मेलिपोना मधुमक्खी, केवल मेक्सिको में पाई जाती है, किंतु अब वह भी लगभग विलुप्त हो चुकी हैं। इसलिए आज वैनिला को हाथ से परागित करना पड़ता है। वैनिला को हाथ से परागित करने का अभ्यास, 1841 में हिंद महासागर में रियूनियन द्वीप समूह पर एडमंड एल्बियस (Edmund Albius) नाम के एक 12 वर्षीय अफ्रीकी दास द्वारा विकसित किया गया था।
वैनिला की कीमत चांदी से भी अधिक होने का एक और कारण दुनिया भर में प्राकृतिक वैनिला की कमी भी है। हिंद महासागर में स्थित एक द्वीप देश मेडागास्कर (Madagascar), कुल वैनिला आपूर्ति का 75% से अधिक का उत्पादन करता है। लेकिन हाल के चक्रवातों ने इसके उत्पादन को बहुत प्रभावित किया है, जिसकी वजह से कीमतें भी काफी बढ़ गई हैं। इसके साथ ही वैनिला की प्राथमिक परागणकर्ता, मेलिपोना मधुमक्खी, भी लगभग विलुप्त हो चुकी है। प्राकृतिक वैनिला की फलियों के पकने के साथ-साथ देखभाल की प्रक्रिया भी बेहद जटिल होती है। इन सभी चुनौतियों के कारण वैनिला बाज़ार में इतना महंगा है।
वैनिला पौधों के आर्किड (Orchid) परिवार का एकमात्र फल देने वाला सदस्य है। हालांकि, वैनिला मूल रूप से दक्षिण और मध्य अमेरिका में उगाया जाता है, किंतु जलवायु और अन्य स्थितियों में समानता के कारण वैनिला, भारत में भी अच्छी तरह से बढ़ता है।
आज वैनिला, मेडागास्कर से लेकर भारत, ताहिती (Tahiti) और इंडोनेशिया (Indonesia) तक, दुनिया भर के बागानों में फ़ैल गया है। दुनिया का 75% वैनिला मेडागास्कर और रीयूनियन (Reunion) से आता है। आज वैनिला का दुनिया भर में कुल उत्पादन लगभग 2000 मीट्रिक टन है। इसके बावजूद मांग की तुलना में इसका उत्पादन काफी कम है। भारत में वैनिला ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) द्वारा पहली बार साल 1835 में पेश किया गया था। हालांकि शुरुआत में पौधा फूलने के तुरंत बाद मुरझा गया था। कंपनी ने केरल, असम, बिहार, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी वैनिला उगाने की कोशिश की, लेकिन सारे प्रयास विफल रहे।
भारत में 1945 में नीलगिरी के ‘कल्लार फल अनुसंधान केंद्र’ और 1960 के दशक में केरल के वायनाड जिले के ‘बागवानी अनुसंधान केंद्र’ में इसकी खेती और अनुसंधान किये गए। किंतु 1990 के दशक तक इस फसल का कोई नियमित खरीदार नहीं था।
लेकिन भारत में वैनिला के विकास एवं प्रसार की असली कहानी सन 1996 के आसपास पोलाची में शुरू हुई। दरसल, इस दौरान रबर, नारियल और कॉफी की गिरती कीमतों ने दक्षिण भारत के हताश किसानों को अन्य लाभदायक फसलों की ओर रुख करने को मजबूर किया। इसी दौरान पोलाची के एक मेहनती किसान डॉ. महेंद्रन (Dr. Mahendran) ने वैनिला की खेती करने का फैसला किया। उन्होंने यह विकल्प इसलिए चुना क्योंकि इससे पहले किसी ने भी वैनिला की व्यावसायिक रूप से या सफलतापूर्वक खेती नहीं की थी। उनके द्वारा की गई ऑर्किड वैनिला की खेती को भारत की पहली वेनिला पहल कहा जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि महज एक साल के भीतर अर्थात सन 1998 तक, डॉ. महेंद्रन तकरीबन पांच टन वैनिला का निर्यात भी करने में सफल रहे । 2003 तक, यह निर्यात 30 टन तक बढ़ गया था। वर्तमान में, डॉ. महेंद्रन दुनिया के कुछ सबसे बड़े स्वाद निर्माताओं के लिए वैनिला का उत्पादन कर रहे है।
महेंद्रन के समान ही अब अन्य किसान भी वैनिला की खेती से लाभ कमा रहे हैं । उदाहरण के लिए, दक्षिण केरल के कोलेनचेरी के एक किसान थम्पी थॉमस ने भी जहां सन 1999 में कच्ची वैनिला फलियों को 500 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर बेचा था,लेकिन अब मौजूदा समय में उनके द्वारा उगाई गई वैनिला 3,750 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकती है।
इनके अलावा भी जिन-जिन लोगों ने वैनिला प्रसंस्करण में परिश्रम किया है, उनमें से अधिकांश लोग शानदार रकम कमा रहे हैं। 1998 में प्रसंस्कृत वैनिला बीन्स का अंतर्राष्ट्रीय मूल्य केवल $19 था वहीं 2002 में यह बढ़कर $200 हो गया और आज की तारीख में इसकी कीमत बढ़कर तकरीबन $350-400 हो गई है।
हालांकि, विशेषज्ञों का अनुमान है कि वैनिला के अधिक उत्पादन से इसकी कीमतों में गिरावट आ सकती है। साथ ही कई मृदा जनित कवक रोगजनकों और विषाणुओं के उद्भव के कारण भी वैनिला उगाना एक जोखिम भरा उद्योग भी बन सकता है। इसके अलवा फफूंद संक्रमण भी वैनिला प्रसंस्करण को भी प्रभावित कर सकता है। वैनिला का बाज़ार भी अत्यधिक अस्थिर और अनियमित माना जाता हैं। ऊपर से प्रसंस्कृत वैनिला फलियों की खरीद में केवल 10 निगमित दिग्गजों का ही दबदबा है।
हालांकि, वर्तमान में प्राकृतिक वैनिला की कुल वैश्विक मांग लगभग 4,000-5,000 टन प्रति वर्ष है। साथ ही कृत्रिम उत्पादों के प्रति उपभोक्ताओं की बढ़ती अरुचि के साथ इसके और बढ़ने की उम्मीद है। हाल ही में, देश में वैनिला की खेती का तेजी से विस्तार भी हुआ है। केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के दक्षिणी राज्यों के साथ-साथ वैनिला की खेती, उड़ीसा और पूर्वोत्तर राज्यों में भी जोर पकड़ रही है। मसाला उद्योग के पर्यवेक्षकों के अनुसार, केरल में इसी वर्ष वैनिला की खेती में 25 फीसदी की वृद्धि देखी गई है,जिसका प्रमुख कारण मसाले की उपज अवधि का कम होना और खेती की लागत कम होना है। साथ ही इसे अन्य फसलों के साथ मिश्रित खेती के तौर पर भी उगाया जा सकता है। इसलिए वैनिला की खेती भी कॉफी, काली मिर्च, नारियल और सुपारी जैसी पारंपरिक फसलों के बीच अपनी पहचान स्थापित करने में सफल रही है। इन सभी कारणों से वैनिला की फसल को छोटे किसानों के द्वारा भी बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है।
संदर्भ
https://bit.ly/3DZo1kx
https://bit.ly/3JZJCxi
https://on.natgeo.com/3DTqpcr
चित्र संदर्भ
1. वैनिला और वैनिला आइसक्रीम को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. सूखे वेनिला बीन्स को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ‘द आर्ट ऑफ़ कुकरी’ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. वेनिला प्लैनिफ़ोलिया को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
5. सूखने के लिए रखे गए वेनिला बीन्स को दर्शाता करता एक चित्रण (Peakpx)
6. वेनिला अर्क की एक बोतल को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
7. सांबावा, मेडागास्कर में वैनिला बीन्स की ग्रेडिंग को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
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