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आज भी हमें इस तथ्य के प्रचुर एवं प्रामाणिक साक्ष्य मिलते हैं कि प्राचीन भारतीय संस्कृति की आयुर्वेद जैसी कारगर चिकित्सा प्रणाली, विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में, अपना एक सम्पन्न और स्वतंत्र अस्तिव रखती थी, एवं जिसका प्रयोग आज भी भारत की बड़ी जनसंख्या द्वारा प्रचुरता से किया जाता है। प्राचीन भारत की आयुर्वेद जैसी चिकित्सा प्रणालीके समान ही विश्व की अन्य संस्कृतियों में भी औषधियों से संबंधित चिकित्सा प्रणालियों के अनेकों प्रमाण नज़र आते हैं । “यूनानी चिकित्सा” (Unani or Yunani medicine) भी ऐसी ही उपचार प्रणालियों में से एक मानी जाती है।
यूनानी चिकित्सा, एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है जो फारसी और अरब संस्कृतियों में उत्पन्न हुई और अभी भी दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में प्रचलित है। यूनानी शब्द का अर्थ “ग्रीक” होता है, क्योंकि चिकित्सा की फारसी-अरबी प्रणाली यूनानी चिकित्सकों हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) और गैलेन (Galen) की शिक्षाओं पर आधारित थी। माना जाता है कि यूनानी चिकित्सा पारंपरिक भारतीय और चीनी चिकित्सा प्रणाली से भी प्रभावित है।
यूनानी चिकित्सा एक समग्र प्रणाली है जिसका उद्देश्य शरीर के चार देहद्रवों (Body Fluids)- ‘कफ , रक्त, पीला पित्त और काला पित्त’- को संतुलित करना तथा समग्र स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देना है। यह आहार, व्यायाम और हर्बल उपचार के साथ-साथ शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं सहित विभिन्न तकनीकों को नियोजित करती है। हालांकि, इसे छद्म वैज्ञानिक (Pseudoscientific) चिकित्सा प्रणाली भी माना जाता है, क्योंकि इसकी प्रभावशीलता का समर्थन करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाणों का अभाव है।
इब्न सिना (Ibn Sina) और अल-राज़ी(Al-Razi) जैसे प्राचीन चिकित्सकों द्वारा यूनानी चिकित्सा प्रणाली के अरब और फारसी विस्तार ने यूनानी चिकित्सा के प्रारंभिक विकास को प्रभावित किया।
सिकंदर (Alexander) के भारत पर आक्रमण के समय यूनानी चिकित्सा, भारतीय बौद्ध चिकित्सा के साथ भी घुल मिल गई। उस समय ज्ञान का व्यापक रूप से आदान-प्रदान हुआ था। मध्ययुगीन इस्लामी चिकित्सा परंपरा 12 वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ भारत में पेश की गई थी और अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) के शाही दरबार में कई प्रतिष्ठित चिकित्सक (हकीम) मौजूद थे, जो सुश्रुत और चरक जैसे भारतीय चिकित्सकों से प्रभावित थे । इस शाही संरक्षण के कारण भारत में यूनानी चिकित्सा का विकास हुआ, और यूनानी साहित्य का निर्माण भी हुआ।
भारत में ऐसे कई विश्वविद्यालय हैं जो यूनानी चिकित्सा के लिए समर्पित हैं। यूनानी चिकित्सा पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए दी जाने वाली स्नातक उपाधियों में यूनानी चिकित्सा और शल्य चिकित्सा स्नातक उपाधि, यूनानी तिब्ब (Unani Tibb) और शल्य चिकित्सा स्नातक उपाधि शामिल हैं। हालांकि, यूनानी चिकित्सा में स्नातकोत्तर की उपाधि बहुत कम विश्वविद्यालय प्रदान करते हैं।
‘आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष)’ विभाग ( Department of Ayurveda, Yoga and Naturopathy, Unani, Siddha and Homoeopathy (AYUSH) के तहत 1971 में स्थापित एक वैधानिक निकाय ‘सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन’ (Central Council of Indian Medicine (CCIM), आयुर्वेद, यूनानी और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली सहित भारतीय चिकित्सा के क्षेत्रों में उच्च शिक्षा की निगरानी करता है। आयुष का एक अन्य उपखंड, ‘सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन यूनानी मेडिसिन’ (the Central Council for Research in Unani Medicine (CCRUM), राष्ट्रव्यापी अनुसंधान संस्थानों और इकाइयों के एक नेटवर्क के माध्यम से यूनानी चिकित्सा पद्धति में वैज्ञानिक अनुसंधान में सहायता और समन्वय करता है।
‘जैविक संसाधनों की चोरी’ (Biopiracy) और अनैतिक पेटेंट (Immoral Patent) की जाँच करने के लिए, भारत सरकार ने 2001 में ‘पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी’ (Traditional Knowledge Digital Library) की स्थापना की, जिसमें 98,700 यूनानी सूत्रीकरण (Formulation) सहित भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग किए जाने वाले सूत्रों का भंडार था।
हालांकि, यूनानी चिकित्सा की कुछ आलोचना भी होती है साथ ही इसके साथ कुछ सुरक्षा मुद्दे भी जुड़े हुए हैं। यूनानी चिकित्सकों द्वारा परंपरागत रूप से उपयोग की जाने वाली कई दवाएं जहरीली भी मानी जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization (WHO) के अनुसार, चिकित्सीय एकाग्रता पर दवाओं के लिए किसी भी अप्रिय प्रतिकूल प्रतिक्रिया का पता लगाने, मूल्यांकन करने, समझने और रोकथाम की निगरानी के लिए ‘औषधि सतर्कता प्रक्रियाएं’ (Pharmacovigilance Procedures) अपनाई जाती हैं। ये दवाएं जानवरों और मनुष्यों के लिए जड़ी-बूटियों, खनिजों आदि सहित कोई भी पदार्थ या उत्पाद हो सकती हैं। इन औषधियों को यूनानी या आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों द्वारा भी निर्धारित किया जा सकता है । हाल के दिनों में, यूनानी दवाओं सहित हर्बल दवाओं की सुरक्षा और प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया निगरानी के संबंध में जागरूकता बढ़ी है।
भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी कोविड-19 (Covid-19) संकट से निपटने के लिए पारंपरिक उपचारों का सुझाव दिया था। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने आयुर्वेद पर आधारित हर्बल दवा की एक प्राचीन प्रणाली द्वारा वायरस के हल्के मामलों के लिए निवारक उपायों और उपचारों का प्रस्ताव दिया गया था। हालांकि, उनके इस प्रस्ताव की एक लाख से अधिक आधुनिक चिकित्सकों के एक समूह, ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ (Indian Medical Association (IMA) द्वारा आलोचना भी की गई थी।
आयुष मंत्रालय की कोविड-19 संबंधी सलाह में नाक के अंदर मक्खन लगाना, काली मिर्च, अदरक, और अन्य जड़ी-बूटियों का ,गर्म मिश्रण, एवं इसके साथ-साथ पेटेंटेड आयुष-64, जो चार जड़ी-बूटियों का मिश्रण है, एवं जिसे 1980 के दशक में विकसित किया गया था, जैसे उपचार शामिल हैं। इन उपचारों को केवल वायरस के हल्के मामलों के लिए अनुशंसित किया जाता है, हालांकि, विशेषज्ञ उनकी प्रभावशीलता पर संदेह करते हैं। अतः किसी भी दवा को प्रभावशीलता के सबूत के बिना बढ़ावा देना एक बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति है।
संदर्भ
https://bit.ly/3QW9Jq2
https://bit.ly/3wouZvs
चित्र संदर्भ
1. यूनानी चिकित्सा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. यूनानी दवाओ के हकीम को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. यूनानी दवाओ को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. यूनानी मेडिकल कॉलेज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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