फैशन परस्त दुनिया की बदलती मांगों के अनुरूप विकसित होता जा रहा है कुर्ता

स्पर्शः रचना व कपड़े
06-01-2023 11:39 AM
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फैशन परस्त दुनिया की बदलती मांगों के अनुरूप विकसित होता जा रहा है कुर्ता

कुर्ता एक प्राचीन परिधान है जिसका इतिहास लगभग 1000 वर्ष पुराना है। यह पोशाक न केवल पूरे देश में पुरुषों और महिलाओं की पसंदीदा है वरन् भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर भी फैला हुआ है। यह एक सुविधाजनक वांछित परिधान होने के साथ साथ सुंदरता और अनुग्रह का परिधान भी है। कुर्ती या कुर्ता एक ऐसा पहनावा है जो भारतीय सीमाओं से परे फैला हुआ है, और फैशन परस्त दुनिया की लगातार बदलती मांगों के अनुरूप समय के हिसाब से विकसित होता जा रहा है।
एक कुर्ता दुनिया भर में, मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के कई क्षेत्रों में पहना जाने वाला ढीला कॉलर रहित शर्ट जैसा किंतु लंबा वस्त्र है। कुर्ता प्राचीन या प्रारंभिक-मध्ययुगीन युग में पहने जाने वाले खानाबदोश ट्यूनिक्स (Tunics) या ऊपरी शरीर के वस्त्र, में अपनी जड़ों का पता लगाते हुए सदियों से शैलीगत रूप से विकसित हुआ है। कुर्ता पारंपरिक रूप से कपास या रेशम से बना होता है। यह सादा या कशीदाकारी जैसे कि चिकन सजावट के साथ पहना जाता है । यह आमतौर पर ऊपर से ढीला तथा घुटनों या थोड़ा लंबा होता है। और यह दोनों तरफ से अलग-अलग लंबाई में खुला होता है। कुर्ता पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा पहना जा सकता है। यह परंपरागत रूप से कॉलर रहित होता है, हालांकि खड़े कॉलर वाले कुर्ते तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं । कुर्ते पारंपरिक रूप से साधारण पजामा, ढीले शलवार, या चूड़ीदार के ऊपर पहने जाते हैं। शहरी युवाओं के बीच, कुर्ता जींस के ऊपर पहना जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि भारत में कुर्ता को मुगलों द्वारा पेश किया गया था। लेकिन यहां एक संक्षिप्त ऐतिहासिक विश्लेषण है जो साबित करता है कि इस पारंपरिक पोशाक की जड़ें प्राचीन भारत में ही निहित हैं । ऐसा माना जाता है कि सिलाई प्राचीन भारत में एक असामान्य घटना थी तो ऐसे में 1000-800 ईसा पूर्व में कुर्ते के बारे में सोचना भ्रामक लगता है, किंतु खुदाई और कलाकृतियाँ कुछ और ही बयां करती है। सिलाई की कला के अभ्यास का संकेत देने वाले सबसे पुराने अवशेष उत्तरी और उत्तर-पश्चिम भारतीय उपमहाद्वीप की सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान प्रयोग किए जाने वाले सुई और बटन थे। इससे यह पुष्‍ट होता है कि हड़प्पा संस्कृति के अग्रदूत माने जाने वाली मेहरगढ़ बस्तियों में भारतीय छठवीं से तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से ही सिलाई से परिचित थे । यह माना जाता है कि हड़प्पावासी बिना सिले चिलमन वाले कपड़े पहनते थे जैसे कि साधारण शॉल और घुटने की लंबाई वाली स्कर्ट, या यहां तक कि एक साड़ी का शुरुआती तिरछा कपड़ा, साथ ही सिले हुए कपड़े जैसे बिना आस्तीन या आधी बांह का कुर्ता और सीधे कट वाले और ढीली ढाली पतलून। जब हड़प्पा सभ्यता के बाद, वैदिक युग में मौखिक ज्ञान पाण्‍डुलिपियों में समेटा जाने लगा, तो कशीदाकारी या मुद्रित घूंघट या अधिवस्त्र का उल्लेख ऋग्वेद में किया गया । इसके अलावा, अथर्ववेद, जो तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में रचा गया था, में भी ‘वावरी’ नामक एक ऊपरी परिधान के साथ ही उत्तरिया के रूप में जाने वाले धड़ के लिए एक शॉल जैसी पोशाक का उल्लेख किया गया है। इसलिए, यह इस तथ्य की पुष्टि करता है कि प्राचीन भारतीयों ने वैदिक युग में सिला हुआ ऊपरी वस्त्र पहनना जारी रखा, जो उत्तरीय शॉल से अलग था। इसलिए, यदि हम वर्गीकृत करना चाहते हैं, तो प्राचीन भारतीय सिले हुए ऊपरी शरीर के वस्त्र मोटे तौर पर चार प्रकार के होते थे:
1.वरबाना: किनारियों से खुला लगभग घुटने की लंबाई वाला परिधान, जो या तो आधा या पूरी बाजू वाला था, और जिसे कुर्ते का प्राचीन रूप कहा जा सकता है ।
2.कुर्ती: कमर या घुटनों तक की लंबाई वाली छोटी शर्ट बिना किनारों पर कट के।
3. चोली: साड़ी के ऊपर पहना जाने वाला सिला हुआ ब्लाउज। यह दक्षिण में भी व्यापक रूप में उपयोग में था।
4. अचकन या अंगरखा: लंबे, लहरदार, कोट की तरह दिखने वाली पोशाक, जो टखने तक की लंबाई के होती थी और अक्सर पूरी बाजू के होती थी, जिनमें कोई साइडस्लिट नहीं होता था। ये धीरे-धीरे अनारकली में विकसित हुए ।
19वीं शताब्दी में, बाहरी पहनने के लिए गोल गर्दन और किनारियों से कट के साथ एक परिधान के रूप में कुर्ते का विकास हुआ । 19वीं शताब्दी के लखनऊ के नवाबों द्वारा पहनी जाने वाली यह पोशाक धीरे धीरे दिल्ली जैसे अन्य केंद्रों में भी लोकप्रियता हासिल करने लगी। आमतौर पर चित्रों और तस्वीरों में देखे जाने वाले कुर्ते खुले पायजामे के साथ पहने जाते थे, कुर्ता की लंबाई अक्सर घुटनों के नीचे तक रहती थी। 19वीं सदी में सफेद चिकन की कढ़ाई वाले कुर्ते लखनऊ से मजबूती से जुड़े, जहां यह परंपरा आज भी कायम है। लेखक, इतिहासकार, रोशेन अल्काज़ी के अनुसार सिले हुए (अर्थात् कटे और सिले हुए) पोशाक मध्य एशिया से दक्षिण एशिया में लाए गए थे। उत्‍तर प्राचीन काल के सीथियन/पार्थियन/कुषाण आक्रमणों के दौरान प्रारंभ हुयी प्रक्रिया, महमूद गजनी की घुसपैठ के बाद स्पष्ट रूप से बढ़ गई, 12वीं शताब्दी के अंत में मुस्लिम विजय के साथ इनके दरवाजे खुल गए, तब तक कुर्ता मुगल काल के दौरान की पोशाक के रूप में आम वस्तु नहीं बना था।
अल्काज़ी के अनुसार: .....गजनवी काल में, अफगानिस्तान में लश्करी बाजार के दीवार चित्रों में महमूद गजनी के मामलुक (गुलाम) महल रक्षकों द्वारा पहने जाने वाले वास्तविक पोशाक के लिए हमारे पास केवल तत्‍कालीन दृश्‍य संदर्भ ही मौजूद हैं। वे समृद्ध पैटर्न वाले वस्त्रों से बने काबा पहनते थे। यह मध्य-भाग तक की लंबाई का अंगरखा था जिसमें लंबी संकीर्ण आस्तीन और तिराज़ थे। यह दाएं से बाएं ओर खुलता था और बाएं कंधे पर इसे बंद करने के लिए एक छोटा सा लूप होता था। इसका एक अवशेष अभी भी रूसी अंगरखा के रूप में और भारत के कुछ हिस्सों में इस्तेमाल होने वाले समकालीन कुर्तों में देखा जाता है, जो बाएं कंधे पर बंद होते हैं। प्रारंभिक शब्दकोशों में कुर्ता शब्द “कुर्ताऐ” (kurta aie) तुर्की और फारसी में पाया जाता है। फ़ारसी-इंग्लिश डिक्शनरी (Persian-English Dictionary) “कुर्ताक” को 'कुइरास” (cuirass) की तरह शरीर में एक छोटा अंगरखा, कोहनी तक की आस्तीन' के रूप में परिभाषित किया गया है। इससे कुर्ता शब्‍द की उत्‍पत्ति हुयी है। कुर्ताक शब्द कुछ शुरुआती चीनी शब्दकोशों में भी देखा गया जिस दौरान इसकी शुरूआत भारतीय मूल के होने में हुयी, हालांकि संस्कृत लेखों में इसका पता लगाना आसान नहीं है।
कुर्ते का एक छोटा संस्करण कुर्ती है, जो लंबाई को छोड़कर लगभग कुर्ते के समान ही दिखाई देती है। यह ज्यादातर महिलाओं द्वारा पहनी जाती थी। महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली कुर्ती, विशेष रूप से पंजाब में लोकप्रिय थी, कूल्हे तक की लंबाई, छोटी साइड-स्लिट्स (side slits) और एक सीधी गर्दन रेखा वाली यह कुर्ती अक्सर 19 वीं शताब्दी के चित्रों में देखी जा सकती है, जो चुड़ीदार पायजामें के ऊपर पहनी जाती थी। यह मुस्लिम महिलाओं से भी जुड़ी हुयी है।
भारतीय कुर्तियों ने वैश्विक फैशन की दुनिया में प्रभाव डाला है। बॉलीवुड या विदेशी फिल्मों से ज्यादा, यह भारतीय जीवन शैली का अभिन्‍न अंग है, जिस तक पश्चिमी दुनिया तेजी से पहुंच रही है। योग से लेकर होली जैसे रंग-बिरंगे भारतीय त्योहारों तक, सब में अमेरिका भारतीय चीजों से आकर्षित हो रहा है। तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्राडा (Prada), गूची (Gucci), डोल्से और गब्बाना (Dolce & Gabbana), रॉबर्टो कैवेली (Roberto Cavalli), वैलेंटिनो (Valentino), डायन वॉन फर्स्टनबर्ग (Diane von Furstenberg) जॉन बार्टलेट (John Bartlett) जैसे बड़े फैशन लेबल ने अपने संग्रह में कुर्तियां और कुर्ते जोड़े हैं।
भारतीय कुर्ते का विदेशों में भी अनुसरण किया जा रहा है और विश्व फैशन मंच में पुरुषों के कुर्ते को एक आरामदायक पोशाक के रूप में लोकप्रियता मिली है और इसे स्टाइल स्टेटमेंट (style statement) के रूप में भी स्वीकार किया गया है। आँकड़ों से पता चलता है कि भारत हर साल 60 करोड़ रुपये के भारतीय परिधानों का निर्यात करता है और इनकी प्रमुख माँग यूरोप (Europe), कनाडा (Canada), अमेरिका (USA), ऑस्ट्रेलिया (Australia) और इटली (Italy) जैसे देशों से आती है। वैश्विक ग्राहकों से मिली यह जबरदस्त प्रतिक्रिया वास्तव में भारतीय परिधान उद्योग के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। भारतीय संस्कृति ने पश्चिमी क्षेत्र में एक उल्लेखनीय छाप छोड़ी है। पश्चिम में भारतीय फैशन के बढ़ते आकर्षण ने न केवल उनकी पश्चिमी रुचि को आकर्षित किया है, बल्कि कई देशों में भी भारतीय बाजार की एक विशाल हिस्सेदारी भी बना दी है।
भारतीय आबादी की एक बड़ी संख्‍या विदेशी भूमि, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America), कनाडा (Canada), ब्रिटेन(Britain) में प्रवास कर रही है। इनके माध्‍यम से भारतीय रीति-रिवाज, परंपरा और फैशन की समझ ने विदेशियों पर एक बड़ा प्रभाव डाला है और वे इस शैली को और अधिक उजागर करना और आजमाना चाहते हैं।
विदेशी मुद्रा के बड़े अंतर के कारण विदेशी लोग भारतीय बाजार का दौरा करते हैं और थोक में खरीदारी करते हैं। वे लाभदायक दर पर विदेश में इन उत्पादों का विपणन करते हैं जिससे इसकी लोकप्रियता बढ़ाते हुए अन्य लोगों द्वारा इसकी शैली पर ध्यान दिया जाता है। विदेशों में प्रसिद्ध भारतीय डिजाइनर ब्रांडों की दुकान समकालीन शैलियों की खरीदारी की सुविधा प्रदान करती है। दुनिया भर में फैशन ई-कॉमर्स (fashion e-commerce) उद्योग की पहुंच दुनिया को समेट रही है। कुशल ग्राहक और कुशल वितरण सेवाओं के साथ, एक रोमांचक ऑनलाइन खरीदारी पसंद कर रहे हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3WNqdTn
https://bit.ly/3YR2EKW
shorturl.at/txKST

चित्र संदर्भ
1. कुर्तों के विकास को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 20 वीं शताब्दी के कुर्ते को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. लखनऊ के एक दरबारी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कुर्ता पहने व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. शार्ट कुर्ते को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ऑनलाइन बिक रहे कुर्तों को दर्शाता एक चित्रण (google)

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