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आप देश या दुनिया के किसी भी हिस्से से आते हो आपने कभी ना कभी तो ऑटो रिक्शे की सवारी अवश्य की होगी । इस माने जाने वाले वाहन का काफी उतार-चढ़ाव वाला इतिहास रहा है और आज भी यह खुद को नए नए रूपों में बदलता रहता है। हमारा विनम्र 3-पहिया या ऑटो रिक्शा, जैसा कि हम बोलचाल की भाषा में कहते हैं, परिवहन के सबसे विश्वसनीय शहरी तरीकों में से एक में बदल गया है। अगली बार जब आप किसी तिपहिया वाहन पर सवार हों, तो उसके इतिहास के बारे में सोचें।
भारत में ऑटो रिक्शा की कहानी लगभग 80 साल पहले शुरू हुयी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इटली (Italy) बुरी तरह प्रभावित हुआ था। युद्ध के बाद के पुर्नविकास के लिए लोगों और समान का परिवहन आवश्यक हो गया था। हालाँकि, इटली में आमतौर पर संकरी शहरी गलियाँ और खड़ी ढलान वाली संकरी पहाड़ी सड़कें थीं, जो खराब स्थिति में थीं। (Piaggio), एक इतालवी कंपनी है जो अपने स्कूटरों के लिए दुनिया भर में जानी जाती थी, यह युद्ध के दौरान लड़ाकू विमानों की भी एक बड़ी निर्माता कंपनी थी। पियाजियो के होनहार विमान डिजाइनर कोराडिनो डी'एस्कैनियो (Corradino D’Ascanio) ने दोपहिया वाहन स्कूटर का विचार लाया जिसको वेस्पा ( Vespa) नाम दिया गया । स्कूटर से लोग तो चल पड़े लेकिन माल ढोने की समस्या जस की तस बनी रही। 1947 में डी'एस्कैनियो ने फिर एक तीन पहियों वाले 'एप' (Ape) (इतालवी में 'मधुमक्खी') को डिजाइन किया। ‘एप’ में मधुमक्खी जैसी आवाज आती थी, इसका इंजन पीछे की तरफ एक फ्लैट माल वाहक के साथ बनाया गया था।
अगस्त 1947 में, आजादी के बाद भारत के नागरिक जल्दबाजी में किए गए बंटवारे के बाद के प्रभावों से परेशान थे, वहीं नेताओं के हाथ में एक बहुत बड़ा कार्य था। उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से नए राष्ट्र के विकास के लिए योजना बनाने और कार्य करने की आवश्यकता थी। प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-52 से 1955-56) के उद्देश्यों में चित्रित अर्थव्यवस्था में "असंतुलन को ठीक करना" और लोगों के "जीवन स्तर" में सुधार करना शामिल था। तत्कालीन बंबई विधान सभा के फरवरी 1947 के सत्र में एक सदस्य ने रिक्शा चालकों की अमानवीय स्थितियों का मुद्दा उठाया। बंबई प्रांत के तत्कालीन गृह मंत्री मोरारजी देसाई ने सुझाव दिया कि साइकिल रिक्शा को बंद कर दिया जाना चाहिए।
इसी दौरान, जब स्वतंत्र भारत खड़ा हो रहा था, एन.के. फिरोदिया (N.K. Firodia), फोर्स मोटर्स (Force Motors) के दिग्गज, एक स्वतंत्रता सेनानी और उद्योगपति, ने एक व्यापार पत्रिका में इस 'तिपहिया' माल वाहक की तस्वीर देखी। बारीकियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए, फिरोदिया ने इटली की कंपनी से एक वेस्पा स्कूटर और दो तिपहिया माल वाहक ‘एप’ खरीदे, उनके मॉडल का अध्ययन किया और अंतिम उत्पाद तक पहुंचने के लिए कई संशोधन किए ।बाद में उन्होंने अपने संशोधित मॉडल को प्रधान मंत्री नेहरू और गृह मंत्री मोरारजी देसाई को दिखाया, दोनों इस योजना से प्रभावित हुए। फिरोदिया की ‘जया हिंद इंडस्ट्रीज’ ने बछराज ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (बाद में बजाज ऑटो प्राइवेट लिमिटेड (Bajaj Auto Private Limited)) के साथ एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया। पियाजियो और बजाज ऑटो (तब एक अलग नाम से जाना जाता था) के सहयोग से पुणे में इसका उत्पादन शुरू हुआ।
यह नेहरू को 1948 में विधानसभा में प्रदर्शित किया गया था। इस तरह ‘एप’ ऑटो रिक्शा बन गया और देखते ही देखते एक बहुत लोकप्रिय यात्री वाहन भी बन गया। हरे और पीले रंग में रंगा यह ऑटो उस समय की हाथ से खींची जाने वाली गाड़ियों और स्वचालित दोपहिया वाहनों का मिश्रण था। यह मिश्रण जल्द ही भारतीय सड़कों पर आम हो गया था और भारतीय मानसिकता पर अपनी विश्वसनीयता स्थापित कर चुका था। यह जल्द ही अन्य देशों में भी फैल गया। दिसंबर 1950 तक, बैंगलोर के मेयर ने मैसूर रियासत की राजधानी में दस ऑटो रिक्शा के लाइसेंस को मंजूरी दी। ये वाहन "एक स्कूटर जैसा दिखता था इसके पीछे बने कैबिन में यात्रीयों को ले जाया जाता था"। जहां लोगों ने ऑटो की सराहना की, वही बैंगलोर में जाटका यूनियन (jatka union) (हाथ से खींची जाने वाली गाड़ी) और पुणे में तांगा वाले इससे अप्रभावित थे क्योंकि ऑटो रिक्शा द्वारा प्रदान की जाने वाली और सार्वजनिक परिवहन से कोने कोने तक पहुंचने वाली संयोजकता (Conectivity) उनके रास्ते में खड़ी थी।
शुरुआत में, बजाज ऑटो को प्रति माह 1,000 स्कूटर और ऑटो रिक्शा बनाने का लाइसेंस दिया गया था। 1962 में, इन्होंने प्रति वर्ष 30,000 और 6,000 ऑटो रिक्शा बनाने की क्षमता बढ़ाने के लिए आवेदन किया। 1963 में, इन्होंने क्षमता को 24,000 स्कूटरों से बढ़ाकर 48,000 करने के लिए आवेदन किया। 1970 में, इन्होंने 100,000 लाइसेंस मांगे। आखिरकार, 1971 में, सरकार ने 48,000 लाइसेंस तक की वृद्धि को मंजूरी दी। 1971 तक बजाज ऑटो (Bajaj Auto) ने स्वतंत्र रूप से वाहनों का निर्माण शुरू कर दिया था। आज जबकि बजाज ऑटो का इसके विनिर्माण में एक बड़ा हिस्सा बना हुआ है, अन्य कंपनियों में टीवीएस, महिंद्रा, अतुल लोहिया और अन्य शामिल हैं। पियाजियो ने अपने एप उत्पादन को भारत में स्थानांतरित कर दिया।
इस दौरान तक मध्यम वर्ग के भारतीयों के पास वाहनों के लिए पर्याप्त प्रयोज्य आय नहीं थी, ऑटो रिक्शा की लोकप्रियता को आगे बढ़ाया गया और यह किफायती शहरी परिवहन का प्रतीक बन गया। यह न केवल भारत के लिए, बल्कि अन्य विकासशील देशों के लिए भी सच था। 1973 तक, बजाज ऑटो नाइजीरिया (Nigeria), बांग्लादेश (Bangladesh), ऑस्ट्रेलिया (Australia), सूडान (Sudan), बहराइन (Bahrain), हांगकांग (Hong Kong) और यमन (Yemen) को तिपहिया वाहनों का निर्यात कर रहा था।
इसके अतिरिक्त, ऑटो रिक्शा संघ देश के सबसे संगठित श्रमिक समूहों में से एक है। वे नवीनतम रुझानों का पालन करते हैं जैसे एक प्रचलित अभिनेता के बाल की स्टाईल से लेकर वाहन पर अच्छे विचार व्यक्त करते हैं। जबकि ऑटो चालकों की किराया प्रणाली में अनियमितताओं और यात्रियों की सुरक्षा की उपेक्षा के लिए आलोचना भी की जाती है, ऑटो एक भारतीय के लिए मध्यवर्ती या यहां तक कि एंड-टू-एंड परिवहन का सर्वोत्कृष्ट साधन है।भारत और विदेश में पैदा हुए टैक्सी एग्रीगेटर्स (taxi aggregators) ने इस पर ध्यान दिया है, और परिणामस्वरूप, इस वाहन को अपने व्यापार मॉडल में शामिल किया है। दिलचस्प बात यह है कि फ़िरोदिया न केवल इटली से तिपहिया वाहन लाने और इसे भारत में एक यात्री वाहन में परिवर्तित करने के लिए ज़िम्मेदार थे, बल्कि इसको 'ऑटो-रिक्शा' नाम भी इन्होंने ही दिया था ।
इस शब्द को अब ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी (Oxford Dictionary) में जगह मिल गयी है और 1949 में इसकी शुरुआत के बाद से, ऑटो सड़क से दूर नहीं गया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3FKuL5V
https://bit.ly/3FCwJoY
https://bit.ly/3FNPhT4
चित्र संदर्भ
1. एक शुरुआती ऑटोरिक्शा को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. पियाजियो वेस्पा 150 - च्लेविस्का में संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. पियाजियो एप 50 पैनल वैन को संदर्भित करता चित्रण (wikimedia)
4. जकार्ता, इंडोनेशिया में एक बजाज आरई ऑटोरिक्शा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. ऑटोरिक्शा की कतार को दर्शाता एक चित्रण (pixhive)
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