मंदिर में भजन, चर्च में क्रिसमस कैरल:भक्ति संगीत की परिवर्तनकारी शक्ति

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
24-12-2022 11:48 AM
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मंदिर में भजन, चर्च में क्रिसमस कैरल:भक्ति संगीत की परिवर्तनकारी शक्ति

संगीत हमेशा से ही मनुष्यों के लिए परमात्मा से जुड़ने और गहरी आंतरिक शांति पाने का एक आदर्श और आसान तरीका रहा है। कई धर्मों में, यह माना जाता है कि भक्ति गीतों की लय और धुनों में हमें चेतना के उस उच्च स्तर तक ले जाने की शक्ति होती है, जहाँ हम परमात्मा से जुड़ सकते हैं। यदि आप भी भक्ति संगीत के आनंद और गहरी आध्यात्मिक पूर्णता का अनुभव करना चाहते हैं, तो जौनपुर के पास वाराणसी में स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर के दर्शन करने पर विचार कर सकते। इस मंदिर को अपने आनंदमय भजनों और भक्ति संगीत के लिए जाना जाता है। भारत में हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं को संगीत वाद्ययंत्रों के साथ चित्रित दिखाया जाता है जिससे ज्ञात होता है कि वे संगीत से जुड़े हुए भी होते हैं, जैसे कि माता सरस्वती वीणा बजाती हैं और श्रीकृष्ण मधुर बांसुरी बजाते हैं। इसके अलावा संगीत को श्रद्धा एवं भक्ति की अभिव्यक्ति करने का भी एक साधन माना जाता है। माना जाता है कि त्यागराज जैसे महान भारतीय संतों ने भगवान तक पहुंचने के लिए संगीत का ही प्रयोग किया था। भक्ति संगीत में एक साधारण स्थान को भी आध्यात्मिक स्थान में बदल देने की शक्ति होती है और यह लोगों में एक साझा अनुभव तथा आनंद पैदा कर सकता है। यह लोगों को अपने अहंकार तथा सांसारिक चिंताओं को दूर करके, मन को शांति प्रदान करने में भी सहायता कर सकता है। इसका एक सर्वोत्तम उदाहरण हमें देवर्षि नारद तथा रामभक्त श्री हनुमान जी की एक सुंदर एवं प्रेरणादायक किवदंती में देखने को मिलता है। कथा के अनुसार, देवर्षि नारद बड़ी कुशलता से अपना वाद्ययंत्र वीणा बजाते थे। लेकिन एक बार वह भी अपनी वाद्ययंत्र कुशलता को अद्वितीय मानकर गर्व से भर गए और खुद को सभी लोकों में सबसे महान संगीतकार मानने लगे।
एक दिन, हनुमान और उनकी मां अंजना देवी ने देवर्षि नारद को आकाश में भ्रमण करते हुए देखा, जो निरंतर भगवान की स्तुति गा रहे थे। माता अंजना ने भी देवर्षि नारद को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार घोषित करते हुए, उनकी ओर इशारा किया। यह सुनकर देवर्षि नारद का अहंकार और भी बढ़ गया। हालाँकि, हनुमान अब नारद के अभिमान से परिचित हो चुके थे और उन्होंने उन्हें पुनः विनम्र बनाना चाहा। इस विचार के साथ ही पवनपुत्र हनुमान उंचे आकाश की ओर उड़ चले और देवर्षि नारद के पैर पकड़ लिए और उनसे संगीमय गुणों को सीखने का आशीर्वाद मांगा। इसके पश्चात् नारदजी ने उत्तर दिया कि “हनुमान, आपके पास तो पहले से ही देवताओं के सभी आशीर्वाद हैं, जो आपको अपने पिता पवन देवता के अनुरोध पर सभी देवताओं द्वारा दिए गए थे।“ लेकिन जब हनुमान ने हठ की, तो अंततः नारद उन्हें संगीत शिक्षा का उपहार देने के लिए तैयार हो गए। हनुमान पहले से ही एक बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार थे। आशीर्वाद प्रदान करने के बाद, नारद ने जाने का विचार किया, तो हनुमान उन्हें अपना प्रदर्शन देखने और उनकी प्रतिभा का न्याय करने पर निवेदन करने लगे।
अंततः अनिच्छा से ही सही किंतु नारद मान गए और अपनी दिव्य वीणा के साथ हनुमान के संगीतमय प्रदर्शन को सुनने के लिए तैयार हो गए। उनकी दिव्य वीणा लेकर पवनपुत्र हनुमान ने अपनी आँखें बंद कर लीं, भगवान का आह्वान किया और गाना शुरू कर दिया। उनकी वाणी इतनी मधुर थी कि सभी देवता सुनने के लिए स्वर्ग से उतर आए। यहां तक कि स्वयं नारद भी हनुमान की संगीत शक्ति से स्तब्ध रह गए थे। जिस चट्टान पर उनकी वीणा टिकी थी, वह भी पिघलने लगी। वीणा स्वयं तरल चट्टान में धँस गई। जब हनुमान ने गाना समाप्त किया, तो नारदजी ने उन्हें रुकने के लिए कहा ताकि वे अपनी यात्रा जारी रख सकें। हनुमान के संगीत के बंद करने पर, चट्टान एक बार फिर जम गई। नारद ने अपनी वीणा निकालने की कोशिश की, लेकिन वह चट्टान में फंस गई थी। नारद हनुमान की संगीत क्षमताओं से चकित थे, लेकिन वे यह देखकर और भी चकित थे कि उनके संगीत में निर्जीव वस्तुओं को भी पिघलाने की शक्ति थी। अंततः उनका अहंकार पूरी तरह से चूर-चूर हो गया, और नारद ने पहचान लिया कि यह प्रतिभा नहीं थी बल्कि भक्ति थी जिसने वास्तव में, संगीत को सुंदर और दिव्य बनाया। उन्होंने हनुमान से एक बार और गाने के लिए विनती की, और जबहनुमान ने दोबारा गाना गाया , तो चट्टान फिर से पिघल गई और नारद को अपनी वीणा पुनः वापस मिल गई। तब से, देवर्षि नारद ने विनम्रतापूर्वक हनुमान को सभी लोकों में सबसे महान संगीतकार के रूप में स्वीकार कर लिया। केवल सनातन धर्म में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी संगीत की शक्ति पर कई प्रयोग किये गए हैं। इसका एक प्रबल उदाहरण हमें इसाई धर्म में क्रिसमस के दौरान देखने को मिलता है।
दरसल, क्रिसमस के दौरान गाए जाने वाले संगीत में विभिन्न प्रकार की शैलियाँ शामिल होती हैं। इनमें विशुद्ध रूप से वाद्य रचनाएँ हो सकती हैं या कैरल(Carols) के गीतों द्वारा यीशु(Jesus Christ) के जन्म, उपहार देने, आमोद-प्रमोद, अथवा सांता क्लॉज़ (Santa Claus) की आकृतियों का भी वर्णन किया जा सकता है । हालांकि 1930 से पहले, अधिकांश क्रिसमस धुनें केवल धार्मिक प्रकृति की ही होती थीं। 1930 के दशक की महामंदी के दौरान, ऐसे कई अमेरिकी गीत उभरे, जिनमें स्पष्ट रूप से ईसाई धर्म के आनंदमय स्वरूप के बजाय क्रिसमस (Christmas) से जुड़े धर्मनिरपेक्ष विषयों और परंपराओं पर ध्यान केंद्रित किया गया था। उदाहरणों में बच्चों के गाने जैसे "सांता क्लॉज़ इज़ कॉमिन टू टाउन (Santa Claus Is Coming To Town)" और "रूडोल्फ द रेड-नोज्ड रेनडियर (Rudolph the Red-Nosed Reindeer)" तथा युग के प्रसिद्ध गायकों द्वारा प्रस्तुत गीत जैसे "हैव योरसेल्फ ए मेरी लिटिल क्रिसमस (Have Yourself a Merry Little Christmas)" और "व्हाइट क्रिसमस (White Christmas)" जैसे भावुक गाथागीत शामिल हैं। एल्विस प्रेस्ली (Elvis Presley) का "एल्विस 'क्रिसमस एल्बम (Elvis' Christmas Album)" (1957) आज तक का सबसे अधिक बिकने वाला क्रिसमस एल्बम है, जिसकी दुनिया भर में 20 मिलियन से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं।संगीत समारोहों, गिरिजाघरों (Church) , मॉलों, शहर की सड़कों पर और निजी समारोहों में क्रिसमस संगीत का प्रदर्शन, दुनिया भर की कई संस्कृतियों में क्रिसमस की छुट्टी का एक केंद्रीय हिस्सा होता है। रेडियो स्टेशन भी निरंतर क्रिसमस संगीत प्रारूप या कभी-कभी हैलोवीन (Halloween) के बाद के दिन से ही , "क्रिसमस क्रीप (Christmas Creep)" बजाते रहते हैं। पारंपरिक ब्लैक गॉस्पल (Black Gospel) एक प्रकार का ईसाई संगीत है जो अफ्रीकी अमेरिकी ईसाई मान्यताओं को व्यक्त करता है और अक्सर मुख्यधारा के धर्मनिरपेक्ष संगीत का एक विकल्प माना जाता है।
इसका उपयोग धार्मिक समारोहों और मनोरंजन सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, लेकिन आमतौर पर इसका मुख्य विषय स्तुति, पूजा या ईश्वर का धन्यवाद अभिव्यक्त करना है। यह 20वीं शताब्दी के मध्य में लोकप्रिय था और इसने शहरी समकालीन सुसमाचार और ईसाई हिप हॉप (Christian Hip Hop) के विकास को प्रभावित किया है।
क्रिसमस आध्यात्मिक गीतों (Christmas Spiritual Songs) के बोल हमें वर्तमान शरणार्थी संकट से भी जोड़ते हैं, क्योंकि लाखों लोग, जिनमें ईसाई भी शामिल हैं, युद्ध, उत्पीड़न, भूख और गुलामी की पीड़ा झेल रहे हैं और अक्सर उनके साथ घृणा और तिरस्कार का व्यवहार किया जाता है। प्रारंभिक ताल और ब्लूज़ कलाकारों (Blues Artists) विशेष रूप से ओरिओल्स (Orioles), रेवेन्स (Ravens) और फ्लेमिंगो (Flamingo) जैसे समूह पर गॉस्पल संगीत (Gospel Music) का महत्वपूर्ण प्रभाव था, जिन्होंने 1940 के दशक में पॉप गीतों में गॉस्पल क्वार्टेट तकनीकों (Gospel Quartet Techniques) को शामिल किया था। इन समूहों ने धर्मनिरपेक्ष दर्शकों के लिए लोकप्रिय गीतों के सुसमाचार-शैली के संस्करण बनाने का भी प्रयास किया। एल्विस प्रेस्ली, जेरी ली लुईस और लिटिल रिचर्ड (Elvis Presley, Jerry Lee Lewis & Little Richard) जैसे रॉक एंड रोल अग्रदूतों (Rock and Roll Pioneers) की पृष्ठभूमि भी धार्मिक थी और वे सुसमाचार संगीत (Gospel Music) से काफी प्रभावित थे। धर्मनिरपेक्ष गीतकारों ने अक्सर सुसमाचार गीतों को विनियोजित किया, जबकि धर्मनिरपेक्ष संगीतकारों ने गीतों कोमशहूर बनाने के लिए सुसमाचार परंपरा से वाक्यांशों और शीर्षकों को धर्मनिरपेक्ष गीतों से जोड़ा।

संदर्भ
https://bit.ly/3PLpUWP
https://bit.ly/3VhyJJ9.
https://bit.ly/3VeEhUO
https://bit.ly/3GcAVNP
https://bit.ly/3jg22yl
https://bit.ly/3Wjh84M

चित्र संदर्भ
1. मंदिर में भजन-कीर्तन और क्रिसमस कैरल, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मां सरस्वती की भूमिका में युवती को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
3. वैकुण्ठलोक को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
4. वाद्ययंत्र के साथ हनुमान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. क्रिसमस कैरल, को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. चर्च में क्रिसमस कैरल, को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
7. कैरल गाती युवतिओं को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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