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आपने उपयोग किये जा चुके या आम भाषा में कहें तो सेकंड हैंड लैपटॉप (Second Hand Laptop), मोबाइल या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग न भी किया हो लेकिन उन्हें किसी के पास या ऑनलाइन देखा अवश्य होगा, जिन्हें यूके (UK) या अमेरिका (America) जैसे पश्चिमी देशों से भारतीय ग्राहकों को बेचने के लिए भारत में लाया जाता है। लेकिन संभवतः आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन पश्चिमी देशों से सैकड़ों टन उपयोग किये जा चुके (Second Hand) कपड़े भी भारत में आयात किये जाते हैं। साथ ही रूस और पाकिस्तान जैसे देशों को पछाड़ते हुए, आज भारत उपयोग किये जा चुके पुराने कपड़ों का शीर्ष आयातक देश भी बन गया है।
जबकि , भारत को प्रीमियम वैश्विक फैशन ब्रांड (Premium Global Fashion Brand) भी एक संभावित बाजार के रूप में देखते हैं, इसके साथही भारतीय खुदरा श्रृंखला में एक और खंड भी वैश्विक ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। दरअसल हमारा देश पुराने कपड़ों और वस्त्रों के सबसे बड़े आयातक के रूप में उभरा है।
2013 में उपयोग किये गए कपड़ों और वस्त्रों के वैश्विक व्यापार पर यूएन कॉमट्रेड (UN Comtrade) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि भारत ने कुल $ 182 मिलियन डॉलर खर्च करके, उपयोग किये गए कपड़े आयात किये थे, जो कुल वैश्विक आयात $ 4,179 मिलियन का 4.3 प्रतिशत था, जिसके साथ ही भारत पुराने कपड़ों का शीर्ष आयातक बन गया। इसके बाद, रूस और पाकिस्तान दूसरे स्थान पर थे तथा अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी शीर्ष तीन निर्यातक रहे थे।
उपयोग किए गए कपड़े भारत में दो श्रेणियों के तहत आयात किए जाते हैं।
१.पहनने योग्य कपड़े: पहनने योग्य कपड़ों के आयात के लिए 100 प्रतिशत पुनः निर्यात की शर्त के साथ सरकार से लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। कुल आयात में इस श्रेणीका लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा होता है।
२.कटे-फटे कपड़े: कटे-फटे कपड़ों के आयात के लिए सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती है, तथा यह पहने हुए कपड़ों के कुल आयात का लगभग 60 प्रतिशत है। इन कटे-फटे चीथड़ों और ऊनी कपड़ों से निकाले गए धागों का इस्तेमाल कंबल बनाने में किया जाता है, जो खुले बाजार में लगभग 80-100 रुपये में बिकते हैं।
उपयोग किए जा चुके कपड़े दो स्रोतो के माध्यम से भारतीय खुदरा बाजार में प्रवेश करते हैं।
१. विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones (SEZ) से तस्करी : घरेलू परिधान विनिर्माताओं का कहना है कि सेज के माध्यम से होने वाले कुल आयात का 30 फीसदी घरेलू बाजार में तस्करी कर लाया जाता है।
२. कस्टम चेकपॉइंट्स (Custom Checkpoints): कस्टम चेकपॉइंट्स पर उपयोग किए जा चुके कपड़ों पर50 रुपये प्रति किलोग्राम के मामूली जुर्माने का भुगतान किया जाता है। जबकि तुलनात्मक रूप से, नए आयातित वस्त्रों पर 15 प्रतिशत का आयात शुल्क लगता है।
क्लोथिंग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Clothing Manufacturers Association of India) के अध्यक्ष राहुल मेहता के अनुसार, “सरकार इस्तेमाल किए जा चुके कपड़ों के आयात के लिए लाइसेंस की संख्या 22 से बढ़ाकर 200 करने पर विचार कर रही है। इस कदम से पश्चिम से पुराने कपड़ों के आयात के साथ घरेलू बाजार में बाढ़ आ सकती है।”
पुनर्विक्रय प्लेटफॉर्म थ्रेडअप (Resale Platform (ThredUp) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में, 2026 तक उपयोग किये गए कपड़ों के उद्योग में सालाना 127 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद की जा रही है।
हालांकि उपयोग किये गए कपड़े बेचना उतना भी आसान नहीं है जितना कि यह प्रतीत होता है। यह प्रक्रिया उत्पादों को स्रोतो से प्राप्त करने (Sourcing), उन्हें साफ करने, फोटो शूट के लिए स्टाइल करने, उनका प्रचार करने, पैकिंग करने और उन्हें बाजार में उतारने के साथ (Dispatch) शुरू होती है। उपयोग किये गए कपड़े खरीदने और बेचने के लिए, विभिन्न व्यवसाय, विक्रेताओं को अपने प्लेटफॉर्म पर बिक्री के लिए विभिन्न वस्तुओं को सूचीबद्ध करने के लिए एक छोटी राशि भी वसूल करते है। अशोक , जो उपयोग किए गए कपड़ों के विक्रेता है, स्वीकार करते हैं कि “पिछले कुछ वर्षों में इसकी तीव्र वृद्धि के बावजूद उपयोग किए गए कपड़ों को खरीदने की अवधारणा भारत में "प्रारंभिक" बनी हुई है।” किंतु अब वह इस उद्योग में अधिक संभावनाएं देखते हैं और कहते हैं कि अब हमारे पास अधिक मितव्ययी ग्राहक है जो कम धन खर्च करना चाहते हैं।
इसी कड़ी में भारत में इंस्टाग्राम पर कई भारतीय उपयोगकर्ता उन कपड़ों को सस्ते में बेच रहे हैं जिनका वह प्रयोग नहीं कर रहे हैं। उन्हें काफी अच्छी प्रतिक्रिया भी मिल रही है, क्योंकि 18 से 24 वर्ष की आयु के बहुत से लोग त्वरित फैशन के खतरों के बारे में अधिक जागरूक हो गए हैं, और स्थायी विकल्पों की तलाश करने लगे हैं।
रिया रोकाडे (Riya Rokade) अपनी साइट विंटेज लॉन्ड्री (Vintage Laundry) पर फंकी प्रीलव्ड कपड़े (Funky Preloved Dresses) बेचती हैं, जिसे उन्होंने इसलिए शुरू किया था, क्योंकि उन्हें त्वरित फैशन उबाऊ लगने लगा था।
28 साल की दिव्या सैनी (Divya Saini) ने भी 2018 में बॉडमेंट्स (Bodments) साइट की शुरुआत कीजहां पर उन्होंने दुनिया भर के विंटेज स्टोर्स (Vintage Stores) और छोटे बाजारों से खरीदे गए डिजाइनर कपड़े, जूते और सामान की बिक्री की। उन्होंने यह स्वीकार किया कि वह त्वरित फैशन की पृष्ठभूमि तथा पर्यावरण और सामाजिक प्रभावों को पूरी तरह से समझ नहीं पाई थी।
आज भारत कुल 49 देशों से पुराने कपड़ों का आयात करता है। उपयोग किए गए कपड़ों के आयात का मूल्य 2018 में 10.81 मिलियन डॉलर और 2020-2021 (अप्रैल-नवंबर) में 24.76 मिलियन डॉलर था। भारत उपयोग किए गए कपड़ों को चीन से 4.12 मिलियन डॉलर, यूएसए से 1.76 मिलियन डॉलर, फ्रांस से 1.08 मिलियन डॉलर, जर्मनी से 1.02 मिलियन डॉलर, और डेनमार्क से 0.71 मिलियन डॉलर खर्च कर उपयोग किए गए कपड़े खरीदता हैं। इन 5 देशों ने भारत को कुल 8.69 मिलियन अमरीकी डालर मूल्य के पुराने कपड़े बेचे। भारत में उपयोग किए गए कपड़ों के आयात के प्रमुख बंदरगाह कोलकाता समुद्र (141.8099 मिलियन अमरीकी डॉलर), न्हावा शेवा समुद्र (Nhava Sheva Sea (39.7887 मिलियन अमरीकी डॉलर), और रेवाड़ी (12.9497 मिलियन अमरीकी डॉलर) से किया जाता है।
आगे उपलब्ध कराए गए आंकड़े शीर्ष 10 देशों को दिखाते हैं जहां से भारत पुराने कपड़े आयात करता है।
किंतु इन उपयोग किए हुए कपड़ों के आयात का एक दुष्प्रभाव भी है। इन आयातित पहने हुए कपड़ों की सस्ती बिक्री संभावित रूप से परिधान उद्योग में सीधे तौर पर कार्यरत 72 लाख श्रमिकों के रोजगार को प्रभावित करती है, जिनमें से लगभग 80% महिलाएं परिवार की आय का समर्थन करती हैं, और इसके साथ ही अन्य सहायक उद्योगों जैसे बटन, ज़िप, बकल, धागा, पैकिंग सामग्री, को भी प्रभावित करती है ।
क्लॉथिंग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Clothing Manufacturers Association of India (CMAI) के अध्यक्ष प्रेमल उदानी का तर्क है, "भारत अपने लोगों को कपड़े बनाने और तैयार करने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित है। वे उद्योग, विशेष रूप से छोटे, स्थानीय, गैर-ब्रांडेड परिधान निर्माता, पुराने कपड़ों के आयात के साथ कैसे प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं जो बहुत कम कीमतों पर बेच रहे हैं।" अतः "हमने सरकार को इस मुद्दे का प्रतिनिधित्व किया है और देश में पुराने रेडीमेड कपड़ों के आयात पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।" इस प्रकार जहां उपयोग किए गए कपड़े सस्ते कपड़ों का विकल्प प्रस्तुत करते हैं वहीं दूसरी तरफ वे भारत के छोटे उद्योगों को भी प्रभावित करते हैं ।
संदर्भ
https://bit.ly/3HvaOTg
https://bit.ly/3HyAgao
https://bit.ly/3PsnlJ5
चित्र संदर्भ
1. बाजार से थोक में कपड़े ले जाती महिला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. खुले में पड़े कपड़ों को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
3. सड़क किनारे सेकंड हैंड कपड़ों के स्टाल को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
4.अफ्रीका में पुराने कपड़े बेचने वाली महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. बॉडमेंट्स (Bodments) साइट पर बिक रहे कपड़ों को दर्शाता एक चित्रण (Bodments)
6. कपड़े खरीदती युवती को दर्शाता एक चित्रण (pixels)
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