क्या सड़क निर्माण के लिए जमीन देने वाले किसानों को उचित मुआवजा मिल पायेगा?

नगरीकरण- शहर व शक्ति
10-12-2022 12:06 PM
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क्या सड़क निर्माण के लिए जमीन देने वाले किसानों को उचित मुआवजा मिल पायेगा?

जौनपुर वासियों के लिए एक बहुत अच्छी खबर यह हैकि , भदोही शहर की सीमा से हमारे शहर जौनपुर की पालीटेक्निक (Polytechnic) तक 395 करोड़ रुपये की लागत से चार लेन (Four Lane) सड़क का निर्माण किया जाएगा। इसकी अनुमानित लंबाई 38 किलोमीटर बताई जा रही है। हो सकता है कि यह खबर आपने पहले भी सुनी हो। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महत्वकांशी योजना के लिए दो तहसीलों के किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत 43 गांवों के 8543 काश्तकारों से, 19.4261 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की जानी है।
हालाँकि, सड़क निर्माण या किसी भी अन्य प्रकार के विकास के लिए, किसानों की भूमि का अधिग्रहण पूरे देश में कई दशकों से किया जा रहा है।सन 2000 में, केंद्र सरकार द्वारा यह उम्मीद की गई थी कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत निर्मित सड़कें भारत के गांवों की दशा और दिशा दोंनो को बदल देंगी। इस महत्वकांशी योजना से, ग्रामीणों की ‘कृषि आय और नौकरियों’ दोंनो को बढ़ावा मिलने की उम्मीद थी। लेकिन अमेरिका स्थित शिक्षाविदों सैम अशर और पॉल नोवोसैड (Sam Usher & Paul Novosaid) द्वारा लिखित पेपर में बताया गया है कि भारत में कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की हिस्सेदारी में 9 प्रतिशत अंक की गिरावट आई है, जबकि विनिर्माण, शिक्षा और खुदरा क्षेत्र में श्रमिकों की हिस्सेदारी में 7 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। इससे पता चलता है कि आज गांवों के निवासी खेती छोड़कर, दूसरे क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूर बन गए हैं। शोध में पाया गया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों, विशेष रूप से युवा आयु वर्ग में, खेती-किसानी छोड़ने की संभावना अधिक थी। लेखकों का अनुमान है कि बेहतर परिवहन के कारण, प्रति गाँव औसतन 14 श्रमिक प्रतिदिन गाँव से बाहर कार्य करने के लिए निकल जाते हैं। कृषि छोड़ने वाले किसानों में ऐसे व्यक्तियों की संख्या अधिक थी, जिनके पास बहुत कम जमीन थी, क्योंकि उनके पास कृषि करने के लिए कुछ भी नहीं था। बिना भूमि वाले श्रमिकों में से 33% ने कृषि छोड़ दी। साथ ही, ऐसे किसान जिनके पास चार एकड़ से अधिक जमीन है, उनमें से भी केवल 10% लोग ही कृषि कर रहे हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि यदि सरकार ग्रामीण भारत में कृषि और विकास को बढ़ावा देना चाहती है, तो सड़क संपर्क में सुधार और परिवहन लागत को कम करना स्पष्ट रूप से पर्याप्त नहीं है। कृषि विकास को सीमित करने वाले अन्य कारक भी हैं, जिन पर हमें पहले ध्यान देना होगा। भूमि अधिग्रहण कानून में सुधार की तरफ उठाए गए एक कदम के रूप में सरकार के द्वारा भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, या (RFCTLARR) 2013 में लागू किया गया । उचित मुआवजे और पारदर्शिता का यह अधिकार, औपनिवेशिक भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की जगह पर लागू हुआ। 2013 में लागू हुआ यह नया कानून, भूमि अधिग्रहण के संदर्भ में लोगों को अपनी बात कहने का अधिकार देता है, और अधिग्रहण की प्रक्रिया को सहभागी, मानवीय तथा अधिक पारदर्शी बनाने का दावा करता है। यह अधिनियम जबरन अधिग्रहण को समाप्त करने का वादा करता है तथा भूस्वामियों का मुआवजा बढाने, भूमि अधिग्रहण से विस्थापित परिवारों का पुनर्वास करने और भूमि अधिग्रहण में ग्राम सभा को निर्णय लेने की शक्ति देता है। साथ ही, यह अनिश्चित सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए, अनियंत्रित भूमि अधिग्रहण करने से रोकने के लिए सरकार पर भी नियंत्रण रखने का दावा करता है। यह भूमि अधिग्रहण से प्रभावित 70 प्रतिशत लोगों और निजी परियोजनाओं में 80 प्रतिशत लोगों से सहमति लेकर, अधिक सार्वजनिक भागीदारी सुनिश्चित करता है। इस अधिनियम के मुआवजे के गणित (Formulas) के अनुसार, भूस्वामियों को ग्रामीण भूमि के बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी भूमि का दोगुना मिलता है। साथ ही, भूमि धारकों और आजीविका खोने वाले लोगों का पुनर्वास करना भी अनिवार्य है। हालांकि, एक तरह से अधिनियम ने सरकार की शक्तियों को छीन लिया और उन्हें भूस्वामियों को दे दिया। लेकिन कई जानकार मानते हैं कि, 1 जनवरी, 2014 को अधिनियमित होने के तुरंत बाद, नव-निर्वाचित एनडीए सरकार (NDA Govt) ने एक अध्यादेश के माध्यम से अधिनियम को कमजोर कर दिया। इसने समान विवादास्पद प्रावधानों के साथ अधिनियम में संशोधन करने का भी प्रयास किया। इसके लिए यह तर्क दिया जा रहा था कि नया अधिनियम बोझिल, समय लेने वाला और लागत बढ़ाने वाला था, जिससे इसका कार्यान्वयन कठिन हो गया था। साथ ही यह भी कहा गया की अध्यादेश अधिग्रहण की प्रक्रिया को भी सरल बनाता है। राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश के अनुसार "अध्यादेश ने नया कानून बहुत कुछ 1894 के कानून जैसा बना दिया है।" हालाँकि यह संशोधन विधेयक 24 फरवरी, 2015 को संसद में पेश किया गया था और लोकसभा में पारित किया गया था। लेकिन यह राज्य सभा में पारित नहीं हो सका और इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया। अपनी कई बैठकों में, समिति एक आम सहमति नहीं बना सकी। संशोधन विधेयक का भाग्य अब संसद की संयुक्त समिति के पास है। सीएसई जांच (CSE Inquiry) से पता चलता है कि सात राज्यों-तमिलनाडु, तेलंगाना, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और आंध्र प्रदेश- ने इस नए कानून को दरकिनार कर दिया और अध्यादेश की नकल करके अपने स्वयं के अधिनियमों को लागू किया। हमारे जौनपुर को भी तरक्की की राह पर लाने के लिए भदोही की सीमा से जौनपुर की पॉलीटेक्निक तक फोरलेन सड़क बनाने के प्रयास जारी है। इस योजना के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 135-ए को फोर लेन किया जा रहा है। यह सड़क मिर्जापुर, जौनपुर, शाहगंज, अकबरपुर, अयोध्या मार्ग तक बनेगी। भदोही से जौनपुर पालीटेक्निक चौराहा तक यह सड़क दो तहसील क्षेत्रों से होकर गुजरेगी। लेकिन अच्छी खबर यह है कि इसके लिए अधिग्रहण की प्रक्रिया मुआवजे की राशि मिलने के बाद शुरू होगी। इस संदर्भ में वन विभाग भी सर्वे रिपोर्ट (Survey Report) तैयार कर रहा है। इसमें पेड़ों व भवनों की गणना की जाएगी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में घोषणा की थी कि राजमार्ग परियोजनाओं के लिए अपनी जमीन देने वाले किसानों को यदि पुराने कानून के तहत अभी तक मुआवजा नहीं मिला है तो उन्हें ए भूमि अधिग्रहण (A Land Acquisition) कानून के तहत बढ़ा हुआ मुआवजा मिलेगा। इस कदम से तकरीबन 2,000 मामलों में फंसी करोड़ों रुपये की परियोजनाओं को शुरू करने में मदद मिलेगी। 2013 का भूमि अधिग्रहण कानून जनवरी 2015 से राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं के लिए लागू हो गया है और प्रभावित मालिकों द्वारा बड़ी संख्या में विवाद हुए हैं, जो अधिक मुआवजे की मांग कर रहे थे। सरकार किसानों को अधिक भुगतान करने पर विचार कर रही है और उनके लिए इक्विटी (Equity) पर भी विचार कर रही है। मंत्रालय ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) तथा राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (NHIDCL) और अन्य को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, (RFCTLARR अधिनियम) 2013 के उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के प्रावधानों के अनुसार किसानों को मुआवजा बढ़ाने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला उन किसानों पर भी लागू होगा, जिनका भूमि अधिग्रहण के लिए अनुबंध एक जनवरी, 2015 से पहले तय किया गया था, लेकिन अधिग्रहित भूमि का भौतिक कब्जा नहीं लिया गया है।

संदर्भ
https://bit.ly/3F5Bl6H
https://bit.ly/3VV6VuJ
https://bit.ly/2FA7zLb
https://bit.ly/3UPit1T

चित्र संदर्भ
1. सड़क निर्माण को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. मेरठ में एनएच-58 सरधना रोड क्रॉसिंग पर निर्माणाधीन फ्लाईओवर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हल जोतते को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
4. अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, पर चर्चा को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. अपनी फसल को देखते किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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