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कवक विज्ञान या माइकोलॉजी (Mycology), कवक का अध्ययन है, जिसमें उनकी आनुवंशिक और जैव-रासायनिक विशेषताएं, वर्गीकरण, और मनुष्यों द्वारा लकड़ी,पारंपरिक चिकित्सा, भोजन और एंथोजेन के स्रोत के रूप में उपयोग, साथ ही उनसेहोने वाले खतरे , जैसे विषाक्तता और संक्रमण भी शामिल है। कवक विज्ञान और पादप रोग विज्ञान जो कि पौधों की बीमारियों का अध्ययन है, दोनो विषय आपस में जुड़े हुए हैं। , क्योंकि पौधों के ज्यादातर रोग कवक जनक ही है। कवक विज्ञान को पहले वनस्पति विज्ञान का एक हिस्सा माना जाता था।परंतु इस तथ्य के कारण कि कवक विकासवादी रूप से पौधों की तुलना में जानवरों से अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है, इस संबंध को अभी तक पहचाना नहीं गया है।
एलियास मैग्नस फ्राइज़(Elias Magnus Fries, )क्रिश्चियन हेंड्रिक परसून (Christian Hendrik Persoon), एंटोन डी बेरी (Anton de Bary), और एलिजाबेथ ईटन ( Elizabeth Eaton ) कुछ सबसे पहले कवक वैज्ञानिकों / माइकोलॉजिस्ट के नाम है। पियर एंड्रिया सैकार्डो (Pier Andrea Saccardo ) ने बीजाणु के रंग और आकृतियों के आधार पर अपूर्ण कवक की पहचान करने के लिए एक तकनीकी तैयार की थी, जो डीएनए-आधारित वर्गीकरण से पहले एक मानक दृष्टिकोण बन गया था। मशरूम के लिए इस्तेमाल होने वाले सभी नामों की एक पूरी सूची वाली उनकी ‘सिलॉज’ नामक पुस्तक, जो कि वानस्पतिक साम्राज्य फंगी के लिए व्यापक और कुछ हद तक वर्तमान होने के कारण अपनी तरह की एकमात्र पुस्तक बनी हुई है, ने उन्हें प्रसिद्ध बना दिया।
‘माइकोलॉजी’ / कवक विज्ञानऔर उसके पूरक कवक वैज्ञानिक शब्द ‘’का पहली बार उपयोग 1836 में एम.जे. बर्कले ( M.J. Berkeley) द्वारा किया गया। विषाक्त पदार्थ, एंटीबायोटिक्स और कुछ मेटाबोलाइट्स (metabolites) आम तौर पर कवक द्वारा ही निर्मित होते हैं। अब्राहम जोफ (Abraham Joffe) ने मनुष्यों में एलिमेंटरी टॉक्सिक एल्यूकिया(Elementary Toxic Aleukia)के घातक प्रकोप के संबंध में कॉस्मोपॉलिटन (वैश्विक) जीनस फुसैरियम(Cosmopolitan (Global) Genus Fusarium) और इसके विषाक्त पदार्थों की जांच की थी। कवक पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक हैं - जैसे माइकोराइजा, कीट सहजीवन और लाइकेन (Lichen) । कई कवक लिग्निन ( lignin) जैसे जटिल कार्बनिक मैक्रोमोलेक्यूल्स (Macromolecules)को गला सकते हैं, जो लकड़ी का टिकाऊ घटक है, साथ ही जेनोबायोटिक्स, पेट्रोलियम और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे प्रदूषको को भी। कवक इन यौगिकों का अपघटन करके वैश्विक कार्बन चक्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कवक और अन्य जीव (जिन्हें आमतौर पर कवक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है), जैसे कि, ओमीसाइकेट्स और मायक्सोमाइसेट्स,अक्सर आर्थिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे जानवरों (जिनमें मनुष्य भी शामिल है) और पौधों में बीमारी का कारण बनते हैं।
हानिकारक कवक के अलावा, पौधों के अनेक रोगों के प्रबंधन में विभिन्न प्रकार की कवक की प्रजातियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए, फिलामेंटस फंगस को रासायनिक उपचार के विकल्प के रूप में फसल रोग प्रबंधन के लिए सबसे महत्वपूर्ण जैविक नियंत्रण एजेंट के रूप में देखा जाता है। कहा जाता है कि मनुष्य ने प्रागैतिहासिक काल में जीविका के लिए मशरूम की कटाई शुरू कर दी थी। यूरिपिड्स (480-406 ईसा पूर्व) (Euripides (480-406 BC) के लेखों में सबसे पहले मशरूम का उल्लेख किया गया था। ग्रीक दार्शनिक ‘थियोफ्रास्टोस ऑफ एरेसोस’(Theophrastos of Eresos) (371-288 ईसा पूर्व) पौधों को व्यवस्थित तरीके से वर्गीकृत करने का प्रयास करने वाले पहले व्यक्ति हो सकते हैं।प्लिनी द एल्डर (23-79 ईस्वी) ने, अपने विश्वकोश ‘नेचुरलिस हिस्टोरिया’(Naturalis Historia) में, ट्रफल्स (Truffles) के बारे में भी लिखा था। उनके अनुसार कवक और ट्रफल्स जड़ी-बूटियों, जड़ों, फूलों या बीजों के बजाय पेड़ों, सड़ी हुई लकड़ी और अन्य सड़ने वाली सामग्री की नमी या गंदगी में पाए जाते हैं । यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि सभी कवक और ट्रफल्स, विशेष रूप से वे जो भोजन के लिए उपयोग किए जाते हैं, तूफान और बरसात के मौसम में पनपते हैं।
1737 में पियर एंटोनियो मिशेली द्वारा ‘नोवा प्लांटारमजेनेरा’ का प्रकाशन कवक विज्ञान / माइकोलॉजीके आधुनिक काल की शुरुआत का प्रतीक है। इस ऐतिहासिक पुस्तक ने घास, काई और कवक के व्यवस्थित वर्गीकरण के लिए आधार तैयार किया। 1729 में, उन्होंने पॉलीपोरस और ट्यूबर नामक वर्तमान जीनस बनाया हालांकि बाद में इसे आधुनिक नियमों द्वारा अमान्य के रूप में संशोधित किया गया था । पियर एंटोनियो मिशेली (Pier Antonio Micheli (11 दिसंबर, 1679 – 1 जनवरी, 1737) इटली के एक प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री थे। उनका नोवा प्लांटारम जेनेरा (Nova plantarum genera) (1729) कवक (Fungi) के ज्ञान में एक प्रमुख कदम था। इस कार्य में उन्होंने 1900 पौधों का वर्णन किया, जिनमें से लगभग 1400 पौधो का पहली बार वर्णन किया गया था। इसमें 73 प्लेटों में 900 कवक और लाइकेन (Lichen) थे। उन्होंने “कवक, म्यूकोर्स- Mucors और संबद्ध पौधों- Allied plants के रोपण, उत्पत्ति और विकास” पर जानकारी शामिल की और सबसे पहले यह बताया कि कवक में प्रजनन निकाय या बीजाणु होते हैं।
आईए, अब कवक विज्ञान / माइकोलॉजी का भारत के संदर्भ में इतिहास जानते है। कवक गैर-क्लोरोफिलस और सच्चे केन्द्रक जीवों के रूप में जाने जाते हैं जिनमें चिटिन और ऑस्मोट्रोफिक की कोशिका भित्ति होती है।आज, लगभग 1.5-5.1 मिलियन कवक अनुमानित हैं। दुनिया में अब तक एक लाख कवक प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है, और भारत से 29,000 कवकों की पहचान और वर्णन किया गया है। सुब्रमण्यन (1971-1992) द्वारा ही भारत में 32% कवकों की खोज की गई है, और शेष 68% का वर्णन अन्य वनस्पति शास्त्रियों ने किया है। ये सभी कवक ज़ोस्पोरिक समूह, ज़ाइगोमाइकोटा, एस्कोमाइकोटा / बेसिडिओमाइकोटा और एनामॉर्फिक कवक से संबंधित हैं। हालांकि, मेलबोर्न कोड और नए वर्गीकरण की एक कवक-एक नाम अवधारणा( one fungus-one name concept of Melbourne code and new classification) के अनुसार वर्तमान में एनामॉर्फिक कवक को एस्कोमाइकोटा / बेसिडिओमाइकोटा के साथ मिला दिया गया है।
हाल ही में, भारतीय कवक वैज्ञानिकों / माइकोलॉजिस्टके समूह ने कुछ विशेष कवक बीजाणुओं की खोज की है, जिन्हें 100-115 डिग्री सेल्सियस के तापमान का सामना करने में सक्षम माना गया है। विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल माइकोलॉजी (विंस्ट्रॉम) (Vivekananda Institute of Tropical Mycology (VINSTROM) ) के निदेशक टीएस सूर्यनारायणन के अनुसार “ये कवक रिकॉर्ड पर सबसे अधिक गर्मी प्रतिरोधी यूकेरियोट्स (एक झिल्ली से घिरे हुए न्यूक्लियस वाले जीव) में से हैं” । अग्नि के हिंदू देवता के नाम पर आधारित 'अग्नि की कवक' नामकरण किया गया है।यकवक विशेष रूप से दक्षिणी भारत के पश्चिमी घाटों में उष्ण कटिबंधीय अर्ध-शुष्क स्थान से पृथक पत्ती के कूड़े में पाए गए थे।
सूर्यनारायणन के अनुसार ,यह खोज कीटनाशकों के क्षेत्र में उपयोगी सिद्ध हो सकती है , क्योंकि कवक मुख्य रूप से कीटनाशक होते हैं, जो प्रयोगशाला स्तर पर अच्छे हैं । लेकिन बाहर के तापमान के कारण खेतों पर अप्रभावी हैं, इसके अलावा यदि बीजाणुओं को 100 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर उगाया जा सकता है तो यह बहुत महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इन उच्च तापमान स्थितियों के तहत, कवक जैव-प्रौद्योगिकी उपयोग और महत्व के एंजाइम जैसे जैव-अणुओं का उत्पादन कर सकता है ।
इसी के साथ,सदियों से, कुछ मशरूमों का चीन, जापान और रूस में लोक औषधि के रूप में उपयोग किया गया है। हालांकि लोक चिकित्सा में मशरूम का उपयोग काफी हद तक एशियाई महाद्वीप पर केंद्रित है। दुनिया के अन्य हिस्सों जैसे मध्य पूर्व, पोलैंड और बेलारूस में लोगों को औषधीय प्रयोजनों के लिए मशरूम का उपयोग करते हुए प्रलेखित किया गया है।
UV प्रकाश के संपर्क में आने पर कई मशरूम बड़ी मात्रा में विटामिन डी का उत्पादन करते हैं। पेनिसिलिन, सिक्लोस्पोरिन, ग्रिसोफुलविन, सेफलोस्पोरिन और साइलोसाइबिन ऐसी दवाओं के उदाहरण हैं जिन्हें मोल्ड या अन्य कवक से ही बनाया गया है।
संदर्भ–
https://bit.ly/3OJmovt
https://bit.ly/3GYeEUq
https://bit.ly/3EHG4vb
https://bit.ly/3gD1TE6
चित्र संदर्भ
1. ऑरेंज पोर फंगस (फेवोलास्चिया कैलोसेरा) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. पियर एंड्रिया सैकार्डो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. क्लोनोस्टैचिस-रोसिया_ब्राउन-हाइफा_10एम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. प्लिनियो, नेचुरलिस हिस्टोरिया, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कवक की एक श्रृंखला, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. अग्नि की कवक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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