बाल दिवस विशेष: देश के सभी बच्चों के लिए सुरक्षित व् स्वस्थ भविष्य का प्रण

नगरीकरण- शहर व शक्ति
14-11-2022 10:24 AM
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बाल दिवस विशेष: देश के सभी बच्चों के लिए सुरक्षित व् स्वस्थ भविष्य का प्रण

भारत में युवा बेरोजगारी की व्यापकता से हम सभी भली-भांति परिचित हैं। किंतु क्या आपने कभी सोचा है की, न केवल बेरोज़गारी बल्कि कुछ परिस्थितियों में रोजगार प्रदान करना भी देश के भविष्य को धूमिल कर सकता है।
2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल श्रमिकों (मजदूरी करने वाले बच्चों) की संख्या 10.1 मिलियन है, जिसमें 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में बाल श्रम की दर में गिरावट के बावजूद, अभी भी बच्चों का उपयोग बाल श्रम के कुछ गंभीर रूपों जैसे बंधुआ मजदूरी, बाल सैनिकों और तस्करी में किया जा रहा है।
भारत भर में बाल मजदूर विभिन्न प्रकार के उद्योगों जैसे ईंट भट्टों, कालीन बुनाई, परिधान निर्माण, घरेलू सेवा, भोजन और जलपान सेवाओं (जैसे चाय की दुकान), कृषि, मत्स्य पालन और खनन में देखे जा सकते हैं। बाल श्रम और शोषण कई कारकों का परिणाम है, अर्थात ऐसे कई कारण है जिनकी वहज से बच्चे मजदूरी करते हैं या उनसे कराई जाती है, जिसमें गरीबी, सामाजिक मानदंड, वयस्कों और किशोरों के लिए अच्छे काम के अवसरों की कमी, प्रवास और आपात स्थिति शामिल हैं। ये कारक भेदभाव द्वारा प्रबलित सामाजिक असमानताओं का भी परिणाम हैं।
बाल श्रम बच्चों को स्कूल जाने के उनके अधिकार से वंचित करता है और गरीबी के अंतर-पीढ़ी चक्र को मजबूत करता है। बाल श्रम शिक्षा में एक प्रमुख बाधा के रूप में कार्य करता है, जो उनकी स्कूल में उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों को प्रभावित करता है। बाल श्रम और शोषण की निरंतरता राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए खतरा बन गई है, और बच्चों में इसके शिक्षा का आभाव तथा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर होने जैसे गंभीर नकारात्मक लघु और दीर्घकालिक परिणाम हैं। बाल तस्करी को भी बाल श्रम से जोड़ा जाता है। अवैध व्यापार किए गए बच्चे सभी प्रकार के शारीरिक, मानसिक, यौन और भावनात्मक उत्पीड़न जैसे दुर्व्यवहार का सामना करते हैं। अवैध व्यापार किए गए बच्चों को वेश्यावृत्ति के अधीन किया जाता है, शादी के लिए मजबूर किया जाता है या अवैध रूप से गोद लिया जाता है। वे सस्ते या अवैतनिक श्रम प्रदान करते हैं, उन्हें गृह सेवक या भिखारी के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है और उन्हें सशस्त्र समूहों में भर्ती किया जा सकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल 16% की वृद्धि के साथ देश में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1,49,404 मामले सामने आए, जिनमें से 982 मामले बाल श्रम अधिनियम के तहत औपचारिक शिकायतों के रूप में दर्ज किए गए।
पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के बोझ और समुदाय में बाल श्रम प्रथा की स्वीकृति के कारण हजारों बच्चे अभी भी खतरनाक प्रक्रियाओं में चुपचाप काम कर रहे हैं। दशकों के प्रयासों और कई पहलों के बावजूद, कम लागत वाले देशों में श्रमिक अधिकारों का उल्लंघन अभी भी जारी है। इस तरह की घटनाओं को संबोधित करने के लिए वकालत समूहों, वित्तीय विश्लेषकों और मीडिया के बढ़ते दबाव ने पश्चिमी उत्पादों, गैर सरकारी संगठनों और तीसरे पक्ष के प्रमाणन निकायों को विविध प्रयासों तथा मार्गों को विकसित करने के लिए प्रेरित किया है। बच्चे समाज के सबसे हाशिए पर और कमजोर सदस्यों में से हैं। सामुदायिक विकास और निर्णय लेने में उन्हें भी शायद ही कभी शामिल किया जाता है। हालांकि, भाग लेने का मौका देने पर वे महत्वपूर्ण वैकल्पिक विचारों की पेशकश कर सकते हैं और महत्वपूर्ण योगदान भी दे सकते हैं। इस संदर्भ में सेव द चिल्ड्रन (Save The Children) भारत के 18 राज्यों और 120 अन्य देशों में बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और मानवीय आवश्यकताओं से संबंधित मुद्दों पर काम करता है। भारत के साथ सेव द चिल्ड्रन का जुड़ाव 80 साल से अधिक पुराना है।
बाल तस्‍करी भी बाल मजदूरी से ही जुड़ी है जिसमें हमेशा ही बच्‍चों का शोषण होता है। ऐसे बच्‍चों को शारीरिक, मानसिक, यौन तथा भावनात्मक सभी प्रकार के उत्पीड़न सहने पड़ते हैं , इनसे कम और बिना पैसे के मजदूरी कराना, घरों में नौकर या भिखारी बनाने पर मजबूर किया जाता है और कई मामलों में तो इनके हाथों में हथियार भी थमा दिए जाते हैं। बाल मजदूरी तथा शोषण, एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से रोके जा सकते हैं जो बाल सुरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने के साथ-साथ गरीबी तथा असमानता जैसे मुद्दों, गुणात्‍मक शिक्षा के बेहतर अवसरों, और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए जन सहयोग जुटाने में मदद करते हैं। अध्यापक तथा शिक्षा व्यवसाय से जुड़े अन्‍य लोग भी बच्‍चों के हितों की रक्षा के लिए आगे आ सकते हैं, और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे समाज के हितधारकों को बच्‍चों की दयनीय स्थिति से अवगत करा सकते हैं।
बच्‍चों को काम से बाहर निकाल कर उन्‍हें स्‍कूल भेजने के लिए इच्छुक परिवारों को जागरूक करने के लिए सरकारी नीतियों में व्यापक बदलाव करने की जरूरत है। हम सभी बाल मजदूरी की सांस्कृतिक स्‍वीकृति को बदलने में समुदायों का सहयोग सकते हैं, वहीं दूसरी ओर परिवारों को वैकल्पिक आमदनी, प्री स्‍कूल, गुणात्‍मक शिक्षा तथा संरक्षण सेवाओं की पहुंच का भी ध्‍यान रख सकते हैं। बाल मजदूरी समाप्‍त करने में बच्‍चों की बात सुनना सफलता के लिए बेहद जरूरी है।

संदर्भ

https://uni.cf/3Abu0kl
https://bit.ly/3g07hks
https://bit.ly/3WUVh4n

चित्र संदर्भ
1. बाल मजदूरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2003 में 10-14 आयु वर्ग में बाल श्रम के लिए मानचित्र।
रंग कोड इस प्रकार है: पीला (<10% काम करने वाले बच्चे),
हरा (10-20%),
नारंगी (20-30%),
लाल (30-40%),
काला (>40%) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. दुकान में काम करते बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सर पर बोझा ढोती बच्ची को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पढाई करते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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