गोवर्धन पूजा का इतिहास और महत्‍व

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
26-10-2022 10:03 AM
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गोवर्धन पूजा का इतिहास और महत्‍व

गोवर्धन पूजा एक शुभ त्योहार है जो दिवाली के एक दिन बाद भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की एक लीला के उपलक्ष्‍य में मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट (जिसका अर्थ है "भोजन का पहाड़") के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें भक्त गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं और इसमें भेंट स्‍वरूप शाकाहारी भोजन और मिठाई की 56 किस्मों (छप्पन भोग) को चढ़ाते हैं। वैष्णवों के लिए, इस दिन का महत्व भागवत पुराण में पाया जाता है, जहां वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्‍ण ने वृंदावन के ग्रामीणों को मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। यह घटना दर्शाती है कि भगवान कैसे उन सभी भक्तों की रक्षा करेंगे जो पूर्णत: उनकी शरण लेते हैं। गोवर्धन पूजा की शुरुआत में भक्‍त गाय के गोबर के ढेर से गोवर्धन पर्वत बनाते हैं और इसे विभिन्‍न रंगों व फूलों से सजाते हैं। फिर, भक्त कीर्तन (संगीत, नृत्य और भक्ति भजनों का एक संयोजन) करते हुए गाय के गोबर की पहाड़ियों के चारों ओर 'परिक्रमा' करते हैं। वे अपने परिवार की सुरक्षा और खुशी के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा और आरती करते हैं। पूरे देश में भगवान कृष्ण के मंदिरों में भजन, कीर्तन आयोजित होता हैं और देवताओं को विभिन्न खाद्य पदार्थ, मिठाई और फूल चढ़ाये जाते हैं, और सभी भक्तों के बीच प्रसाद वितरित करके इस त्योहार को मनाया जाता है । कुछ भक्त भोजन से बने पहाड़ को भगवान श्री कृष्‍ण को भोग स्‍वरूप चढ़ाते हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से गोवर्धन पर्वत का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह त्यौहार पूरे भारत और विदेशों में भी अधिकांशत: हिंदू संप्रदायों द्वारा मनाया जाता है। वैष्णवों के लिए, विशेष रूप से वल्लभ के पुष्टिमार्ग, चैतन्य के गौड़ीय संप्रदाय और स्वामीनारायण संप्रदाय के लिए, यह महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। अन्नकूट त्योहार कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष (उज्ज्वल पखवाड़े) के पहले चंद्र दिवस पर होता है, जो दिवाली के बाद का दिन होता है। भागवत पुराण के अनुसार, गोवर्धन के पास रहने वाले वनवासी ग्वाले बारिश और तूफान के देवता इंद्र को सम्मान देकर पतझड़ का मौसम मनाते थे। कृष्ण को यह स्‍वीकार नहीं था क्योंकि उनकी इच्छा थी कि ग्रामीण केवल एक पूर्ण परमात्मा की पूजा करें और किसी अन्य देवता और पत्थर, मूर्तियों आदि की पूजा न करें। इंद्र श्री कृष्‍ण के इस विचार से नाराज हो गए। श्री कृष्ण नगर में छोटे तो थे, किंतु उनके अपार ज्ञान और शक्ति के कारण सभी उनका सम्‍मान करते थे। तो, गोकुल के लोग श्री कृष्ण की सलाह से सहमत हुए। ग्रामीणों की भक्ति का झुकाव कृष्‍ण की ओर मुड़ते हुए देख इंद्र क्रोधित हो गए। इंद्र ने अपने अहंकार व क्रोध में आकर गांव में आंधी और भारी बारिश शुरू कर दी। प्रजा को तूफान से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर नगर के सभी लोगों तथा पशुओं को आश्रय प्रदान किया। 7-8 दिनों के लगातार तूफान के बाद, गोकुल के लोगों को अप्रभावित देखकर, इंद्र ने हार मान ली और तूफान को रोक दिया। इसलिए इस दिन को एक ऐसे त्यौहार के रूप में मनाया जाता है जिसने 'गिरियज्ञ' तैयार करके गोवर्धन पर्वत का सम्मान किया - " इंद्र ने सात दिनों तक मूसलाधार बारिश करने के बाद अंततः हार मान ली और कृष्ण की श्रेष्ठता को नमन किया। यह कहानी भागवत पुराण में सबसे अधिक पहचानी जाती है । गोवर्धन तब से कृष्ण के भक्तों के लिए ब्रज में एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन गया है। अन्नकूट के दिन, भक्त पहाड़ की परिक्रमा करते हैं और पहाड़ पर भोजन चढ़ाते हैं, यह ब्रज में सबसे पुराने अनुष्ठानों में से एक। परिक्रमा में ग्यारह मील का एक रास्‍ता है जिसमें जगह जगह पर कई मंदिर आते हैं, जहा भक्त फूल और अन्य प्रसाद चढ़ाते हैं।गोवर्धन पूजा कैसे की जाती है, इसके कई रूप हैं। अनुष्ठान के एक रूप में एक देवता (भगवान कृष्ण) को गाय के गोबर से क्षैतिज में बनाया जाता है। संरचना को पूरा करने के बाद, इसे मिट्टी के दीयों (दीपक या दीया), सेख (झाड़ू की भूसी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री), और मोमबत्तियों से सजाया जाता है। पूजा करने के बाद, भगवान की संरचना को भक्तों या उपासकों द्वारा खिलाया जाता है, और महिलाएं उपवास करती हैं। भगवान गोवर्धन से भी प्रार्थना की जाती है। 25 अक्तूबर को आंशिक सूर्यग्रहण लगा था, इस कारणइस दिन कोई त्योहार नहीं मनाया गया था। आज 26 अक्तूबर को गोवर्धन पूजा और 27 अक्तूबर को भाई दूज का पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक नजरिए से जब सूर्य ग्रहण लगता है तो सूतक काल प्रभावी हो जाता है और सू्तक काल सूर्य ग्रहण लगने के 12 घंटे पहले से शुरू होता है। 26 अक्तूबर को सूर्यग्रहण भारत में शाम साढ़े 4 बजे से लगना प्रारंभ हो जाएगा । इस कारण गोवर्धन पूजा 25 की जगह 26 अक्तूबर को मनाया जा रहा है। सूतक काल में कोई भी शुभ काम और पूजा -पाठ नहीं किया जाता है। इस दिन पर सभी मंदिरों के पट बंद कर दिए जाते है । ग्रहण की समाप्ति पर पूरे घर व् मंदिर में गंगाजल का छिड़काव किया जाता है।

संदर्भ:

https://bit.ly/3VH5PmT
https://bit.ly/3gpYAzW
https://bit.ly/3VB0TjL

चित्र संदर्भ
1. एक अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाए हुए श्री कृष्ण को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. इस्कॉन द्वारा वृंदावन में व्रजमंडल परिक्रमा के दौरान गोवर्धन पूजा उत्सव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. घर में गोवर्धन पूजा करती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. श्री कृष्ण ब्रज के ग्रामीणों को आश्रय देने के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाते हैं, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. गोवर्धन पूजा के एक दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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