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आज दुनिया युद्ध, जलवायु परिवर्तन एवं महामारी जैसी विनाशक परिस्थितियों से गुजर रही है।
यहां पर आज पूरे विश्व को ऐसे दूरदर्शी मार्गदर्शकों की आवश्यकता है जो दुनियां को इन मुश्किलों
के भंवर से उबारते हुए, सही एवं हितकारी मार्ग पर लेकर जाए। इस संदर्भ में सभी भारतवासियों के
लिए यह बड़े गर्व की बात है की, हमारे पास महात्मां गांधी जी जैसे महान नेता हुए जिहोंने अपने
अहिंसावादी एवं शांतिप्रिय सिद्धांतों से न केवल देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने में अहम् भूमिका
निभाई, साथ ही अपने नैतिकता मूल्यों से पूरे देश को एकजुट किया एवं शांति भी बहाल की। आज
इस बेहद कठिन दौर से गुजर रही दुनिया के लिए यह बेहद जरूरी हो गया है की, हम पूज्य बापू के
नैतिक मूल्यों एवं उनके द्वारा दी गई चेतावनियों का पुनः अवलोकन करें।
महात्मा गांधी जी ने कहा था कि “सात कर्म या आदतें” हमें नष्ट कर देंगी। उनके द्वारा दी गई
सेवन सोशल सिन्स (Seven Social Sins) अर्थात सात सामाजिक पाप, एक उत्कृष्ट सूची है जिसे
उन्होंने 22 अक्टूबर, 1925 को अपने साप्ताहिक समाचार पत्र यंग इंडिया (Young India) में
प्रकाशित किया था।
इन सात पापों की सूची तथा इनमें निहित गूण अर्थ निम्नवत दिए गए हैं:
1.काम के बिना धन (Wealth without work): यह बिना कुछ किये, कुछ पाने के अभ्यास को
संदर्भित करता है। इसके अंतर्गत बाजारों और संपत्तियों में हेरफेर करना ताकि आपको काम न
करना पड़े या अतिरिक्त मूल्य का उत्पादन न करना पड़े, और चीजों में हेरफेर करना आदि शामिल
है। आज बिना काम किए धन कमाने, करों का भुगतान किए बिना ज्यादा पैसा कमाने, मुफ्त
सरकारी कार्यक्रमों से लाभ उठाने और देश की नागरिकता तथा निगम की सदस्यता के सभी लाभों
का आनंद लेने का चलन बढ़ता जा रहा है। कुछ नेटवर्क मार्केटिंग और पिरामिड संगठन
(Network Marketing and Pyramid Organization) में बहुत से लोग अपने नीचे एक संरचना
बनाकर जल्दी अमीर हो जाते हैं जो उन्हें बिना काम किये पोषित करते है। 1980 के दशक जिन्हें
अक्सर लालच का दशक कहा जाता है में चलाई गई कपटपूर्ण योजनाओं में से कई मूल रूप से
जल्दी-जल्दी अमीर बनाने वाली योजनाएं ही थीं।
2. विवेक के बिना आनंद (Pleasure without conscience): अपरिपक्व, लालची, स्वार्थी और
कामुक व्यक्ति का मुख्य प्रश्न हमेशा यही रहा है, "इसमें मेरा क्या फायदा है? क्या यह मुझे प्रसन्न
करेगा? क्या इससे मुझे आराम मिलेगा?" बहुत से लोग इन सुखों को विवेक या जिम्मेदारी की
भावना के बिना चाहते हैं। देना और लेना सीखना, निःस्वार्थ रूप से जीना, संवेदनशील होना,
विचारशील होना, आज हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। विवेक के बिना आनंद आज के अधिकारियों के
लिए प्रमुख प्रलोभनों में से एक है।
3. चरित्र के बिना ज्ञान (Knowledge without character): आधा- अधूरा ज्ञान जितना
खतरनाक है, बिना मजबूत, सैद्धांतिक चरित्र के अधिक ज्ञान भी उतना ही खतरनाक है। कुछ
लोगों को चारित्रिक शिक्षा पसंद नहीं है, जबकि गांधी के अनुसार चरित्र के बिना ज्ञान का कोई
मतलब नहीं है, भले ही हम बहुत कुछ जानते हों। वह कहना चाह रहे है की, क्योंकि हम यह नहीं
समझते हैं कि हमारी वास्तविक जरूरतें क्या हैं, इसलिए हम अपनी जबरदस्त तकनीकी
विशेषज्ञता का उपयोग इस तरह से करने में असमर्थ हैं, जो हमारे जीवन को अधिक सुरक्षित और
पूर्ण बना सके। इसके बजाय, हम हर समस्या को ऐसे मानते हैं जैसे कि यह तकनीक, या रसायन
विज्ञान, या अर्थशास्त्र का मामला हो, भले ही इन चीजों से उसका कोई लेना-देना न हो।
4.नैतिकता के बिना वाणिज्य (Commerce without morality): नैतिकता के बिना वाणिज्य
का अर्थ है की, किसी भी तरह से अधिक पैसा कमाने के लिए सही और गलत या नैतिकता की
भावना को ताक पर रख देना। यदि हम नैतिक नींव की उपेक्षा करते हैं और आर्थिक प्रणालियों को
नैतिक नींव के बिना और निरंतर शिक्षा के बिना संचालित करने की अनुमति देते हैं, तो हम जल्द
ही पूरे समाज और व्यवसाय को अनैतिक बना देंगे। आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाएँ अंततः
एक नैतिक आधार पर ही आधारित होती हैं। व्यापार में निष्पक्षता और परोपकार मुक्त उद्यम
प्रणाली के आधार हैं।
5.मानवता के बिना विज्ञान (Science without humanity): जब गांधीजी ने "सात घातक
पापों" के अपने विचार की गणना की, तो उन्होंने "मानवता के बिना विज्ञान" को भी इन पापों में से
एक के रूप में पहचाना, जिसके अनुसार, हम तकनीकी उपनिवेश के गुलाम या शिकार बन सकते हैं,
जो अंततः हमें हमारे मानवीय मूल्यों से वंचित कर सकता है। उदाहरण के तौर पर आज
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (artificial Intelligence) की व्यापक उपस्थिति में, संज्ञानात्मक
असंगति के साथ चकाचौंध वाली वास्तविकताएं उभर रही हैं, जो हमें खतरनाक रूप से अकेलेपन
की ओर ले जा रही हैं। हालांकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने बाकी सब चीजों का चेहरा बदल दिया है,
लेकिन मूलभूत बातें अभी भी लागू होती हैं।
6.त्याग के बिना धर्म (Religion without sacrifice): सभी धर्मों में लोग पूजा करते हैं, लेकिन
अगर हम समाज की सेवा हेतु त्याग करने को तैयार नहीं हैं, तो किसी भी पूजा का कोई मूल्य नहीं
है। संक्षेप में बिना त्याग के पूजा करना भी पाप ही है। गांधी जी हमेशा चाहते थे कि लोग भगवान
की पूजा के साथ वफादारी से त्याग भी करें। उन्होंने महसूस किया कि आम तौर पर सभी धर्म लोगों
को, उचित कर्म करने के लिए शिक्षित करते हैं। लेकिन क्योंकि लोग भगवान के वचनों का पालन
नहीं करते हैं, और भगवान के वचनों से विश्वासघात करते हैं ,इसलिए उन्होंने इसे पाप कहा है।
7. सिद्धांत के बिना राजनीति (Politics without principle): "सिद्धांत के बिना राजनीति"
के बारे में, गांधी ने कहा था की सत्य या सिद्धांत के बिना राजनीति करने से अराजकता पैदा होती
है, जो अंततः हिंसा की ओर ले जाती है। गांधी ने इन गलत कदमों को "निष्क्रिय हिंसा" कहा, 'जो
अपराध, विद्रोह और युद्ध की सक्रिय हिंसा को बढ़ावा देता है।'
अपने पहले प्रकाशन के बाद के दशकों में, इस सूची की व्यापक रूप से उद्धृत और चर्चा की जाती
रही है।
संदर्भ
https://bit.ly/2SMz4bt
https://bit.ly/2Wnl5d7
https://bit.ly/3E19ztc
https://bit.ly/3dM266w
चित्र संदर्भ
1. धन और लालच को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
2. सात सामाजिक पाप की सूची के साथ बराक ओबामा को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. हाथ में पकड़े धन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. व्यापारिक बंटवारे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. लंगर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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