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वर्तमान में सभी को हर भाषा का ज्ञान हो, ऐसा संभव नहीं है। लेकिन, अनुवाद के माध्यम से किसी भी भाषा को
सरलता से अपनी भाषा में समझ सकते हैं। आज विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस (International Translation
Day) मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य अनुवाद पेशे के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, ताकि उन भाषाओं के बारे में
जागरूकता लाई जा सके जो हमारे समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस दिन भाषा अनुवादकों के
काम के लिए उन्हें सम्मान दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस भाषा पेशेवरों के काम को श्रद्धांजलि देने के
अवसर के रूप में है, जो राष्ट्रों को एक साथ लाने, संवाद, समझ और सहयोग को सुविधाजनक बनाने, विकास में
योगदान देने और विश्व शांति और सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अंग्रेजी में अनुवाद के लिए ट्रांसलेशन (Translation) शब्द का प्रयोग होता है। यह शब्द लैटिन के 'ट्रांसलेटियो'
(translatio) शब्द से आयातित है। इसमें ट्रांस (Trans) का अर्थ है-पार या दूसरी ओर तथा लैटस (latus) का अर्थ
है-ले जाना। इन दो शब्दों मेल से बना है 'ट्रांसलेशन' जिसका अर्थ होता है एक भाषा के पार दूसरी भाषा में ले जाना।
अंग्रेजी शब्दकोष में भी ट्रांसलेशन शब्द का यही अर्थ मिलता है।
भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात देश की आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन आया, और भारत 22 मान्यता
प्राप्त भाषाओं और सैकड़ों मातृभाषाओं और बोलियों को बोलने वाले लोगों का घर बन गया। विश्व के अन्य देशों के
साथ भारत के आर्थिक एवं राजनीतिक समीकरण बदले। जिसके फलस्वरूप विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों में सम्पर्क
की स्थिति उभर कर सामने आयी।
वस्तुत: अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के
क्षेत्र में बढ़ती हुई आदान-प्रदान की अनिवार्यता ने अनुवाद एवं अनुवाद कार्य के महत्त्व को बढ़ा दिया है। 21वीं
शताब्दी के मौजूदा समय में अनुवाद एक अनिवार्य आवश्यकता बन गया है। भारत जैसे बहुभाषा-भाषी देश के जन-
समुदायों के बीच अंत:संप्रेषण के संवाहक के रूप में अनुवाद का बहुआयामी प्रयोजन सर्वविदित है। यदि आज के इस
युग को ‘अनुवाद का युग’ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि आज जीवन के हर क्षेत्र में अनुवाद की
उपादेयता को सहज ही सिद्ध किया जा सकता है। धर्म, दर्शन, शिक्षा, विज्ञान-तकनीकी, वाणिज्य व्यवसाय,
राजनीति, साहित्य इन सभी क्षेत्रों से अनुवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, जिससे भारत में अनुवाद उद्योग में वृद्धि
हुई है। भाषा अनुवाद से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचने का दायरा बढ़ा है।
अनुवाद स्थानीयकरण प्रक्रिया (Localization) में भी प्रमुख भूमिका निभाता है। स्थानीयकरण को आमतौर पर
किसी उत्पाद या सेवा को किसी विशिष्ट भाषाई बाजार या दर्शकों के अनुकूल बनाने के रूप में परिभाषित किया
जाता है। जहां स्थानीय भाषा के अनुरूप उत्पाद या सेवा को प्रदान किया जाता है, हाल ही में एक मोबाइल फोन
निर्माता कंपनी ने अपने लोकप्रिय उत्पादों को, विशेष रूप से मोबाइल फोनों में, 10 भारतीय भाषाओं में स्थानीयकृत
किया है। गूगल (Google), माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft), फेसबुक (Facebook) और कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां भारत
में फल-फूल रही हैं क्योंकि वे भारत के विभिन्न हिस्सों में लोगों तक पहुंचने के लिए भाषा अनुवाद सेवाओं का उपयोग
कर रही हैं।
यदि अनुवादक ना होते तो हमें गोस्वामी तुलसीदास द्वारा भगवान श्री राम के चरित्र पर लिखे महाकाव्य के ओड़िआ,
बांग्ला, तेलुगु आदि में इतने संस्करण देखने को नहीं मिलते। और ना ही स्वतंत्रता आन्दोलन में जिस साम्राज्यवाद और
सामन्तवाद के विरोध की चिंगारी सुलगी थी, उसका उत्कर्ष छायावादी दौर की विभिन्न भारतीय भाषाओं की कविता
में नहीं मिलती। साहित्य के अध्ययन में अनुवाद का महत्व आज व्यापक हो गया है। साहित्य यदि जीवन और समाज
के यथार्थ को प्रस्तुत करता है तो विभिन्न भाषाओं के साहित्य के सामूहिक अध्ययन से किसी भी समाज, देश या विश्व
की चिन्तन-धारा एवं संस्कृति की जानकारी मिलती है। भारत के प्रमुख साहित्य अनुवादक श्री अरबिंदो जिन्हें मुख्य
रूप से एक दार्शनिक के रूप में जाना जाता है, लेकिन वे एक अच्छे कवि और एक प्रतिभाशाली अनुवादक भी रहे है;
वह अंग्रेजी, संस्कृत और बंगाली भाषाओं में साहित्य का समान रूप से अनुवादन करने में कुशल थे।
उन्होंने
उपनिषदों, भगवद गीता के साथ-साथ बंकिम चंद्र चटर्जी के आनंदमठ का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। उन्होंने 'ऑन
ट्रांसलेटिंग कालिदास' (On Translating Kalidasa) जैसे अनुवाद के सिद्धांत और व्यवहार पर निबंध भी लिखे हैं।
अनुवाद के प्रति अरबिंदो का दृष्टिकोण भी दार्शनिक था। उन्होंने अनुवाद की प्रक्रिया को भारतीय दर्शन द्वारा
प्रतिपादित आत्म-साक्षात्कार की चरण-दर-चरण यात्रा से जोड़ा। उन्होंने अनुवाद को एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया के रूप
में देखा, क्योंकि एक अनुवादक को पाठ पढ़ने, विश्लेषण और व्याख्या के माध्यम से समझ में आता है। अनुवाद के कार्य
के लिए यह समझ बहुत आवश्यक है, अनुवाद के प्रत्येक कार्य में भाव की अभिव्यक्ति शामिल होती है। इसी प्रकार
ए.के. रामानुजन जो स्वयं एक कवि होने के अलावा, एक अनुवादक भी थे जिन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों के साथ-
साथ आधुनिक क्षेत्रीय लेखकों के कार्य का भी अनुवादन किया है। उन्होंने तमिल में शास्त्रीय और भक्ति कविता, कन्नड़
में वीरशैव वचन (काव्य सूत्र), तेलुगु में भक्ति और दरबारी साहित्य से लेकर 19 वीं शताब्दी में लिखी गई
लोककथाओं और महिलाओं के मौखिक आख्यानों और स्वतंत्रता के बाद भारत की कविता और गद्य का भी अनुवादन
किया है।
वस्तुतः किसी भी देश की सांस्कृतिक परंपराओं, साहित्यिक मान्यताओं, वैज्ञानिक शोधों, औद्योगिक विकास,
चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति से परिचय प्राप्त करने के लिए अनुवाद एक अनिवार्य माध्यम है। अनुवाद जहाँ सांस्कृतिक
साहित्यिक राजदूत की भूमिका निभाता है वहीं वह वैज्ञानिक एवं तकनीकी विषयों से साक्षात्कार कर हमारे भौतिक
जीवन के स्तर को समृद्धतर करता है। वर्तमान समय में अनुवाद का क्षेत्र बड़ा व्यापक और निरंतर महत्त्वपूर्ण होता जा
रहा है। यह दो देशों या दो भाषा के लोगों के बीच परस्पर संपर्क का साधन एवं परिचय कराने वाला नियामक तत्व
भी बन गया है। एक ओर इसका महत्व ललित तथा सृजनात्मक साहित्य की प्रस्तुति में है तो दूसरी ओर भौतिक,
तकनीकी, वैज्ञानिक, औद्योगिक आदि शब्दावलियों के भावुकता रहित अनुवाद में बरकरार है। खासकर पारिभाषिक
शब्दावलियों के निर्माण कार्यालयीय पत्र-व्यवहार, साहित्य, दूरदर्शन तथा संचार माध्यमों में अनुवाद ने अपना एक
विशिष्ट स्थान बना लिया है।
अनुवाद एक व्याख्यात्मक प्रक्रिया है। अनुवाद की प्रकृति दस्तावेज़ की प्रकृति पर निर्भर करती है। किसी तकनीकी या
प्रचारात्मक दस्तावेज़ का अनुवाद करना आसान है लेकिन साहित्य के पाठ के अनुवाद के लिए कौशल और विशेषज्ञता
की आवश्यकता होती है। एक सफल अनुवादक लक्षित दर्शकों की जरूरतों को ध्यान में रख कर पाठ के अर्थ के उचित
तरीके से अनुवादन करता है। स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा में समान विशेषज्ञता रखने के अलावा, एक अच्छे
अनुवादक के पास लक्ष्य भाषा को लिखने की क्षमता भी होनी चाहिए और उस संबंधी सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ से
परिचित होना चाहिए। एक सफल अनुवादक किसी पाठ का यांत्रिक अनुवादन नहीं करता, वह अपनी रचनात्मकता
को पूरी हद तक लगाता है और पाठ की आत्मा में चला जाता है, यानी उसके शब्दों से ज्यादा उसके भावों को समझने
की कोशिश करता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3fbnx17
https://bit.ly/3xTcAb7
https://bit.ly/3xNHQZe
चित्र संदर्भ
1. विभिन्न देशों के अनुवादकों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. अंग्रेज़ी हिंदी बांग्ला अनुवाद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. श्रीमद भागवत गीता को विभिन्न भाषाओँ में दर्शाता एक चित्रण (Quora)
4. अकेले भारत में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओँ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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