क्या भारत के ऊपर की अदृश्य सुरक्षा कवच, अर्थात ओजोन परत हट रही है?

जलवायु व ऋतु
19-09-2022 10:15 AM
Post Viewership from Post Date to 19- Oct-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2811 14 2825
क्या भारत के ऊपर की अदृश्य सुरक्षा कवच, अर्थात ओजोन परत हट रही है?

ओजोन ज्यादातर समताप मंडल में पायी जाती है, जो पृथ्वी की सतह से छह से 30 मील (10-50 किमी) के बीच वायुमंडल की एक परत है। यह ओजोन परत हमारे ग्रह पर एक अदृश्य सुरक्षा कवच बनाती है, जो सूर्य से हानिकारक अल्ट्रा-वॉयलेट रेडिएशन (ultra-violet radiation) यानी पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होगा। इन किरणों का पृथ्वी तक पहुँचने का मतलब है अनेक तरह की खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का जन्म लेना। इसके अलावा यह पेड़-पौधों और जीवों को भी भारी नुकसान पहुँचाती है। पराबैंगनी विकिरण मनुष्य, जीव जंतुओं और वनस्पतियों के लिये अत्यंत हानिकारक है।
1990 के दशक में, पृथ्‍वी की ओजोन परत में छेद मिलना एक गंभीर वैश्विक संकट बन जाता - अगर हमने इसे अनदेखा किया होता, तो आज ऐसे कई छेद होते। संभावित क्षरण प्रवृत्तियों के लिए भारतीय वैज्ञानिक भारत से ओजोन परत की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं। सैटेलाइट (satellite) अवलोकनों से पता चला है कि ओजोन का छिद्र बड़ा होकर 2.48 करोड़ वर्ग किलोमीटर हो गया है। अंदाजन यह भारत के आकार से आठ गुना बड़ा है। 1970 के दशक के उत्तरार्ध में, ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण (British Antarctic Survey) के एक मौसम विज्ञानी जोनाथन शंकलिन (Jonathan Shanklin) ने अपना अधिकांश समय कैम्ब्रिज (Cambridge) के एक कार्यालय में बिताया, जो हमारे ग्रह पर सबसे दक्षिणी महाद्वीप के डेटा के बैकलॉग के माध्यम से काम कर रहा था।   1984 तक, अंटार्कटिका के हैली बे (Halley Bay) अनुसंधान केंद्र के ऊपर ओजोन परत पिछले दशकों की तुलना में अपनी एक तिहाई मोटाई खो चुकी थी। शंकलिन और उनके सहयोगियों फ़ार्मन (Farman) और ब्रायन गार्डिनर (Brian Gardiner) ने अपने जो निष्कर्ष प्रकाशित किए, इसमें एरोसोल (aerosol) और शीतलन उपकरणों में उपयोग किए जाने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) (Chlorofluorocarbons (CFCs)) नामक मानव निर्मित यौगिक को ओजोन की क्षति के लिए उत्‍तरदायी बताया। उनकी खोज, अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत का पतला होना, ओजोन छिद्र के रूप में जाना जाने लगा। जैसे ही खोज की खबर फैली, दुनिया भर में अलार्म बज उठा। अनुमान है कि ओजोन परत के विनाश से मनुष्यों और पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, लोगों में भय पैदा हुआ, वैज्ञानिक जांच हुई और दुनिया की सरकारों को बढ़चढ़कर सहयोग करने के लिए प्रेरित किया। 
  1974 में वैज्ञानिक, मारियो मोलिना और एफ शेरी रॉलैंड ने एक पेपर प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया था कि सीएफसी पृथ्वी के समताप मंडल में ओजोन को नष्ट कर सकते हैं। तब तक सीएफसी को हानिरहित माना जाता था, लेकिन मोलिना और रॉलैंड ने सुझाव दिया कि धारणा गलत थी। उनके निष्कर्षों पर उद्योग द्वारा सीएफसी का अत्यधिक उपयोग किया गया, जिन्होंने जोर देकर कहा कि उनके उत्पाद सुरक्षित हैं। वैज्ञानिकों के बीच, उनके शोध को चुनौती दी गई थी। अनुमानों ने संकेत दिया कि ओजोन रिक्तीकरण मामूली होगा - 2-4% के बीच - और कई लोगों ने सोचा कि यह सदियों के समय पर होगा।
सीएफसी का उपयोग बेरोकटोक जारी रहा और 1970 के दशक तक वे दुनिया भर में सर्वव्यापी हो गए, जिनका उपयोग रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर में शीतलक के रूप में, एयरोसोल स्प्रे कैन में किया जाता था। इनके असीमित उपयोग के घातक दुष्परिणामों की तब कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। लेकिन बाद में देखा गया की सीएफसी के इस व्यापक उपयोग के कारण ओजोन की निष्क्रियता एवं स्थिरता बढ़ गई। केवल एक दशक बाद, 1985 में, ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण ने सीएफसी के कारण ओजोन परत में एक छेद की पुष्टि की। इससे भी बदतर बात यह थी की कमी अपेक्षा से कहीं अधिक तेजी से हो रही थी। यह वास्तव में काफी चौंकाने वाला सत्य था।   जलवायु परिवर्तन का एक और रूप अंटार्कटिका (Antarctica) में कई साल पहले दिखाई दिया था, जब दुनिया में पहली बार अंटार्कटिका के ऊपर एक ओजोन छेद (Ozone Hole) देखा गया था, जो अब तक का सबसे बड़ा छेद हो गया है, 2021 का ओजोन छिद्र अपने अधिकतम पर पहुंच गया है और 1979 के बाद से यह 13वां सबसे बड़ा छिद्र है। नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा (National Aeronautics and Space Administration (NASA))) और ओसियानिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए (Oceanic and Atmospheric Administration (NOAA) के वैज्ञानिकों ने बताया कि 2021 का ओजोन छिद्र पिछले साल की तुलना में बड़ा छिद्र है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि दक्षिणी गोलार्द्ध में सामान्य से अधिक ठंड होने से ओजोन परत का छेद औसत से ज्यादा बड़ा हो गया है, जो संभवतः नवंबर या दिसंबर की शुरुआत में बना होगा। नासा के अर्थ साइंस (Earth Science) के मुख्य वैज्ञानिक पॉल न्यूमैन (Paul Newman) का कहना है कि यह ओजोन छिद्र बड़ा इसलिए है, क्योंकि इस साल समताप मंडल के हालात औसत से ज्यादा ठंडे हैं। लेकिन मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol) के बिना यह और ज्यादा विशाल हो जाता। सैटेलाइट अवलोकनों ने दिखाया है कि ओजोन छिद्र अधिकतम 2.48 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला है, जो अक्टूबर के मध्य में सिमटने से पहले करीब भारत के आकार से आठ गुना ज्यादा था। वैज्ञानिकों का कहना है कि औसत तापमान से ठंडा मौसम और समताप मंडल में अंटार्कटिका को घेरती तेज हवाओं के कारण ओजोन परत का छेद इतना बड़ा हो गया। ओजोन छिद्र वास्तव में ओजोन परत का पतला होता वह हिस्सा है, जो अंटार्कटिका के ऊपर समताप मंडल में स्थित है।
हर साल सितंबर में अंटार्कटिका के ऊपर जब मानव-निर्मित यौगिकों से प्राप्त क्लोरीन और ब्रोमीन के सक्रिय रासायनिक रूप उच्च आकाश के ध्रुवीय बादलों में जमा होने लगते हैं। जब अंटार्कटिका में सर्दी का मौसम खत्म होता है और सूर्योदय होता है, तो यहां जमा क्लोरीन और ब्रोमीन ओजोन खत्म करने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाएं शुरू कर देते हैं। एक क्लोरीन या ब्रोमीन का अणु ओजोन के अणुओं को नष्ट कर देता है। इस ओजोन परत के छेद पर वैज्ञानिक दक्षिणी ध्रुव स्टेशन से मौसमी गुब्बारे में ओजोन मापी यंत्र रख कर छोड़ते हैं जो ओजोन की बदलती मात्रा का मापन करते हैं।
ओजोन परत में छिद्र से विश्व भर के वैज्ञानिक परेशान हैं। पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में तेजी से ओजोन की कमी के कारण भारतीय वैज्ञानिक भी चिंतित हैं वे भारत पर ओजोन परत की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं, जिसको लेकर कई विविध राय हैं। नई दिल्ली में नेशनल ओजोन सेंटर के प्रमुख एस के श्रीवास्तव के अनुसार, भारत पर ओजोन की कमी के कोई आसार अभी तो नहीं दिख रहे हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अधिकारी भी बताते हैं कि ओजोन परत की माप वर्ष -दर -वर्ष परिवर्तित होती हैं, लेकिन भारत पर इसकी प्रवृत्ति बढ़ती या घटती नहीं दिखाई देती हैं। हालांकि, नेशनल ओजोन सेंटर के पूर्व निदेशक, के चटर्जी ने चेतावनी देते हुए कहा हैं कि उनकी गणना के अनुसार अक्टूबर के महीने में 1980 से 1983 तक नई दिल्ली और पुणे के समताप मंडल की परतों में ओजोन की कमी की प्रवृत्ति देखी गई है, चूंकि भारत में पहले से ही पराबैंगनी विकिरण का प्रभाव रहा है इसलिए हम बोल सकते है की जल्द ही यहाँ ओजोन की परत में कमी देखने को मिल सकती है जो भारत के लिए कहीं अधिक विनाशकारी हो सकता है। साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च काउंसिल (Council of Scientific and Industrial Research) के पूर्व महानिदेशक पी मित्रा ने भी स्पष्ट किया कि ओजोन परत में कमी कोई प्रवृत्ति नहीं दिखाई देती है, हाँ उच्च ऊंचाई (लगभग 30 से 40 krn) पर ओजोन की कमी के कुछ सबूत जरूर मिलते हैं।
ओजोन की परत के गुणों का विस्तार से अध्ययन ब्रिटेन के मौसम विज्ञानी जी एम बी डोबसन ने किया था। उन्होने एक सरल स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (spectrophotometer) विकसित किया था जो स्ट्रेटोस्फेरिक ओजोन को भूतल से माप सकता था। ओजोन की परत की सघनता के मापन के लिए डॉबसन यूनिट का प्रयोग किया जाता है। भारत भी लंबे समय से डॉब्सन स्पेक्ट्रोफोटोमीटर का उपयोग कर ओजोन डेटा एकत्रित कर रहा है, जिसके लिए श्रीनगर, नई दिल्ली, वाराणसी, अहमदाबाद, कोडैकानल को इसमें शामिल किया गया है। ओजोन प्रोफाइल भी नियमित रूप से गुब्बारे का उपयोग करके रिकॉर्ड किए जाते हैं। कोडैकानल में ओजोन की परत की सघनता 240 से 280 डॉबसन यूनिट (डीयू) है, नई दिल्ली में 270 से 320 डीयू और श्रीनगर में 290 से 360 डीयू है।   

संदर्भ:
https://bbc.in/3L2ttW2
https://bit.ly/3L29arQ
https://bit.ly/3L1jb8T

चित्र संदर्भ
1. अंतरिक्ष से भारत को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. ओज़ोन परत के प्रभाव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. 2010 में ओज़ोन छिद्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. 2014 में विशाखापत्तनम में पीपुल्स क्लाइमेट मार्च को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.