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वस्त्र और आभूषण प्राचीन काल से ही व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। वस्त्र अलग-अलग प्रकार
के धागों और रंगों से बनाए जाते हैं। वस्त्रों में कढ़ाई के लिए विशेष धागे का उपयोग किया जाता है। इन धागों
से कपड़ों पर की गई कारीगरी एक शिल्प कला है। कढ़ाई (Embroidery) शब्द फ्रांसीसी शब्द ब्रोडरी
(Broderie) से आया है, जिसका अर्थ होता है अलंकरण या सजाना। विश्व भर में कढ़ाई अलग-अलग रूपों में
प्रचलित है जिसकी उत्पत्ति चीन और निकट पूर्व से हुई है। प्रारंभिक कढ़ाई आज से 30,000 ईसा पूर्व क्रो-
मैगनॉन के दिनों में खोजी गई थी। इसके सबूत कई पुरातात्विक खोजों में मिले हैं। स्वीडन (Sweden) में
कढ़ाई के सबसे पुराने सबूत 9वीं और 10वीं शताब्दी के आस-पास के हैं। उस समय को वाइकिंग युग (Viking
Age) के रूप में जाना जाता है।
मध्यकालीन इस्लामी समय में, कढ़ाई का विशेष महत्व था। उस समय यह मुस्लिम समाजों में उच्च और
प्रतिष्ठित सामाजिक स्थिति का संकेत था। दमिश्क (Damascus), इस्तांबुल (Istanbul) और काहिरा (Cairo)
जैसे शहरों में, रूमाल, झंडे, वर्दी, वस्त्र, घोड़े के जाल, पाउच (Pouch) और खोल जैसी वस्तुओं पर कढ़ाई
मिलती है। 18वीं सदी में इंग्लैंड और उसके उपनिवेशों में, कढ़ाई सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक थी। तत्पश्चात,
औद्योगिक क्रांति के दौरान कढ़ाई मशीन के विकास के साथ उत्पादन और तेजी से होने लगा। सन् 1800 के
दशक के मध्य में, फ्रांस (France) में पाई जाने वाली सबसे पुरानी कढ़ाई मशीन द्वारा की गई कढ़ाई में
मशीन करघे और हाथ की कढ़ाई का संयोजन देखने को मिलता था। सन् 1900 के आसपास, मेल ऑर्डर
कैटलॉग (Mail Order Catalogues) और पैटर्न पेपर (Pattern Papers) ने कढ़ाई को और भी अधिक
व्यापक स्वरूप दे दिया।
पहले महंगी सामग्री होने के कारण यह केवल उच्च वर्ग के लोगों का ही व्यवसाय था। किंतु समय के साथ
सामग्री सस्ती हुई और यह सभी लोगों का कौशल बन गया। सर्वप्रथम महिलाओं द्वारा कढ़ाई का कार्य किया
जाता था और इसका उपयोग मुख्य रूप से पुरुष करते थे। बाद में यह महिलाओं और पुरुषों दोनों का ही शौक
बन कर उभरा। वर्ष 1907 से लेकर 1950 के बीच स्वीडन (Sweden) के राजा गस्ताफ V (Gustaf V) एक
प्रसिद्ध पुरुष कढ़ाईकार थे।
प्राचीन काल की कढ़ाई में और वर्तमान समय की कढ़ाई में काफी भिन्नता है। अधिकांश समकालीन कढ़ाई को
कंप्यूटर सॉफ्टवेयर (computer software) के साथ "डिजिटल (Digital)" पैटर्न का उपयोग करके कम्प्यूटरीकृत
कढ़ाई मशीन से की जाती है। जबकि आधुनिक कढ़ाई की शैली फैशन (Fashion) और लोगों की पसंद के चलते
प्राचीन कड़ाई से अलग हो सकती है।
इस्लामी दुनिया में कढ़ाई इस्लाम की शुरुआत से लेकर औद्योगिक क्रांति तक जीवन के पारंपरिक तरीकों को
प्रकट करने की एक महत्वपूर्ण कला थी। प्रारंभिक इस्लामी समाज से ही महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए
कपड़ों पर कढ़ाई करना लोकप्रिय था। बीजान्टिन (Byzantine) और फारसी सासैनियन (Persian Sasanian)
दोनों साम्राज्यों ने आधुनिक टीशर्टों (T-Shirts) की तुलना में, बड़े मानव आकृतियों के साथ-साथ जानवरों सहित
डिजाइनों के कढ़ाई वाले कपड़ों का इस्तेमाल किया। यही नहीं, मक्का में काबा का बाहरी भाग इस्लाम से पहले
से ही "बहु-रंगीन कपड़े की लटकन" के साथ ढका हुआ था।
17वीं शताब्दी के तुर्की यात्री एवलिया सेलेबी (Turkish Traveller Evliya Çelebi) ने कढ़ाई को "दो हाथों का
शिल्प" कहा। कढ़ाई मुस्लिम समाज में उच्च सामाजिक स्थिति का संकेत था। इसलिए शिल्पकार सोने और
चांदी के धागों से भी कढ़ाई किया करते थे। इस्लामी समाज में कढ़ाई तकनीकों की एक विस्तृत विविधता का
उपयोग किया जाता था। मोरक्को (Morocco) और ट्यूनीशिया (Tunisia) में, सजावटी पर्दे और दर्पण खोल
जैसी वस्तुओं के लिए साटन सिलाई का उपयोग किया जाता था। अरब प्रायद्वीप के बेडौइन समाजों (Bedouin
societies of the Arabian Peninsula) में मौजूद साटन सिलाई का एक रूप, जिसे कभी-कभी खियत अल
मदरसा ("स्कूल-कढ़ाई") कहा जाता है, का उपयोग साज-सज्जा के लिए किया जाता था। सिलाई प्रक्रिया से
पहले, एक कुशल कलाकार द्वारा कपड़े पर एक आकृति तैयार की जाती थी। पक्षियों या फूलों जैसे प्राकृतिक
विषयों को शामिल करने वाले डिजाइन सबसे आम हुआ करते थे।
सतह साटन सिलाई, केवल ऊपरी सतह पर काम करती है, इसे एक अधिक किफायती लेकिन कमजोर तकनीक
माना जाता है। इस सिलाई से बनी वस्तुओं का उपयोग केवल कुछ खास मौकों पर ही किया जाता था।
चेन स्टिच (Chain Stitch), जो एक अनुकूलनीय तकनीक है और बनाने में अपेक्षाकृत आसान है। इसका
इस्तेमाल फारस (Persia) में ऊनी कपड़ों पर घने फूलों वाली कढ़ाई के साथ रेशट (Resht) कढ़ाई के लिए
किया गया था।
भारी चेन सिलाई के समान एक प्रकार की कढ़ाई, जिसे कुरार (Kurar) के नाम से जाना जाता
है, का इस्तेमाल पहले बेडौइन (Bedouin) द्वारा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए कपड़े बनाने के लिए किया
जाता था। इसमें चार लोगों की आवश्यकता पड़ती थी, प्रत्येक व्यक्ति के पास चार धागे होते थे जो या तो
अलग-अलग रंगों के थे या चांदी और सोने के थे। क्रॉस सिलाई (Cross Stitch) का उपयोग मध्य पूर्व
(Middle East) में सीरिया, जॉर्डन, फिलिस्तीन और सिनाई (Syria, Jordan, Palestine and Sinai) में लाल
रंग में बोल्ड कढ़ाई के साथ शादी के कपड़े बनाने के लिए किया जाता था, जिसमें काले रंग की पृष्ठभूमि पर
त्रिकोणीय ताबीज या कार्नेशन (Carnation) फूल होते थे। एक अन्य व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली
सिलाई तकनीक जिसे हेरिंगबोन (Herringbone) सिलाई कहा जाता है।
कढ़ाई ने इस्लामी सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ सुंदरता की एक कलात्मक परंपरा में भी विशेष योगदान दिया
है। इस्लामी कढ़ाई का कौशल बाद में मोरक्को (Morocco) तक पहुंचा। मोरक्को की हस्तशिल्प कला में रेशम,
कपास और लिनन (Linen) के कपड़ों पर कढ़ाई प्रचलित है। मोरक्कन हस्तकला बताती है कि कैसे मोरक्कन
महिलाओं ने इस सांस्कृतिक कला को अगली पीढ़ी तक पहुँचाया और कैसे कशीदाकारी पैटर्न का उपयोग
मेज़पोशों, पर्दों और चटाई सहित महिला शॉल, बेल्ट, रूमाल, और स्कार्फ (Scarf) जैसे कुछ पारंपरिक सामानों
को सजाने के लिए किया गया था।
संदर्भ:
https://bit.ly/3RJAyNA
https://bit.ly/3U1AOJO
https://bit.ly/3qsPc03
चित्र संदर्भ
1. विभिन्न वस्त्रों पर सुन्दर कढ़ाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, flickr)
2. बाध्य 'लिली' पैरों के लिए चीनी जूतों की एक जोड़ी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. रामल्लाहो की 19वीं सदी की महिला थोबे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. 18वीं-19वीं शताब्दी के चांदी के धागे से कशीदाकारी फ्लाई मास्क को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. चेन स्टिच (Chain Stitch), जो एक अनुकूलनीय तकनीक है और बनाने में अपेक्षाकृत आसान है, को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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