क्यों भारत में फिर से मंडरा रहा है स्वाइन फ्लू का खतरा?

कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल
15-09-2022 10:46 AM
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क्यों भारत में फिर से मंडरा रहा है स्वाइन फ्लू का खतरा?

कोरोनावायरस (Coronavirus) की दहशत अभी खत्म नहीं हो पायी है कि इसी बीच स्वाइन फ्लू (Swine flu) ने लोगों की चिंता को बढ़ा दिया है।लेकिन सोचने की बात तो यह है कि इस वर्ष भारत में स्वाइन फ्लू का पुनरुत्थान क्यों देखा जा रहा है? जुलाई के अंत तक, देश में 1,455 मामले और 30 मौतें दर्ज की गईं, जो 2021 के आंकड़ों के दोगुने से अधिक हैं। इस वर्ष संपूर्ण भारत में स्वाइन फ्लू के मामले के कम से कम 2,800 को पार करने की संभावना है, जो पिछले साल की तुलना में तीन गुना अधिक है। इसके विपरीत, 2021 में पूरे देश में H1N1 से होने वाली मौतें 12 थीं।
महाराष्ट्र में पिछले तीन महीनों में स्वाइन फ्लू से 72 लोगों की मौत हो चुकी है। विषाणुजनित संक्रमण, जो H1N1 विषाणु के कारण होता है, इस साल पश्चिमी भारत में फिर से उभर रहा है, अकेले महाराष्ट्र में 23 अगस्त तक 1,870 मामले दर्ज किए गए हैं। दरसल, H1N1 एक विषाणुजनित संक्रमण है जिसमें सर्दी, बुखार, गले में खराश, शरीर में दर्द और सिरदर्द शामिल हैं।गंभीर मामलों में, यह निमोनिया (Pneumonia) और तीव्र श्वसन संकट के लक्षणों को दर्शाता है। H1N1 महामारी पहली बार अप्रैल 2009 में शुरू हुई और, कोविड -19 के विपरीत, 2010 तक जल्दी से कम हो गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अगस्त 2010 तक H1N1 श्‍लैष्मिक ज्‍वर महामारी के अंत की घोषणा कर दी थी। तब से यह एक मौसमी फ्लू के रूप में होने वाली स्थानिक बीमारी रही है।
फिर एक बात ध्यान देने वाली है कि H1N1 कोरोनावायरस की तरह संक्रामक नहीं है।हालांकि इसके बाद 2012 में महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में बड़ी संख्या में दुबारा से मामलों में वृद्धि को देखा गया। क्योंकि समय के साथ आबादी में संक्रमण की संभावना काफी बढ़ गई है।तब से, H1N1 ने एक चक्रीय पैटर्न बनाए रखा है। मानसून और सर्दियों के आसपास मामले बढ़ते हैं, भारत में सर्दियों की तुलना में मॉनसून में मामलों की एक बड़ी हिस्सेदारी को देखा जा सकता है।पिछले दशक में, 2015 में H1N1 के मामले में बढ़ोतरी देखी गई, फिर 2017 में और फिर 2019 में। हालांकि, पिछले दो वर्षों से, H1N1 मामलों की संख्या में गिरावट को देखा गया है। वहीं भारत में मामले 2019 में 28,798 से घटकर 2020 में 44 मौतों के साथ 2,752 हो गए थे। और 2021 में, 778 मामलों और 12 मौतों में और गिरावट को देखा गया।
लेकिन इस वर्ष मामलों में काफी वृद्धि को देखा जा सकता है। कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले दो वर्षों में H1N1 में खामी 2020 की शुरुआत में कोविड-19 महामारी के प्रकोप से संबंधित हो सकती है। क्योंकि कोविड -19 ने परीक्षण संसाधनों को बदल कर रख दिया, जिसके कारण स्वाइन फ्लू के मामलों को पहचानने में कमी आई। विश्व भर में सुअर की आबादी में स्वाइन श्‍लैष्मिक ज्‍वरविषाणु आम है। सूअरों से मनुष्यों तक विषाणु का संचरण आम नहीं है और हमेशा मानव में बुखार का कारण नहीं बनता है। यदि संचरण मानव बुखार का कारण बनता है, तो इसे ज़ूनोटिक स्वाइन फ्लू (Zoonotic swine flu) कहा जाता है। वहीं सूअरों से नियमित संपर्क वाले लोगों में स्वाइन फ्लू संक्रमण के जोखिम में काफी अधिक वृद्धि को देखा जा सकता है।
20 वीं शताब्दी के मध्य के आसपास, श्‍लैष्मिक ज्‍वर उपप्रकारों की पहचान संभव हो गई, जिसने मनुष्यों में संचरण के सटीक निदान की अनुमति दी।तब से, केवल 50 ऐसे प्रसारणों की पुष्टि की गई है। स्वाइन फ्लू के ये उपभेद शायद ही कभी मानव से मानव तक प्रसारित होते हैं। मनुष्यों में ज़ूनोटिक स्वाइन फ्लू के लक्षण श्‍लैष्मिक ज्‍वर जैसी बीमारी के समान होते हैं, अर्थात् ठंड लगना, बुखार, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द, गंभीर सिरदर्द, खांसी, कमजोरी, सांस की तकलीफ, और सामान्य असुविधा को देखा जा सकता है। वहीं यह अनुमान लगाया जाता है कि, 2009 के फ्लू महामारी में, तत्कालीन वैश्विक आबादी का 11-21% (लगभग 6.8 बिलियन), या लगभग 700 मिलियन से 1.4 बिलियन लोग इस बीमारी की चपेट में आए थे, जो कि स्पेनिश फ्लू महामारी की तुलना में निरपेक्ष रूप से अधिक थे। हालांकि, 2012 के एक अध्ययन में, सीडीसी (CDC) ने विश्व भर में 284,000 से अधिक संभावित मृत्यु संख्या का अनुमान लगाया, जिसमें 150,000 से 575,000 तक की थी। वहीं 2015 में भारत में स्वाइन फ्लू के बाद के मामले सामने आए, जिसमें 31,156 से अधिक सकारात्मक परीक्षण मामले और 1,841 मौतों को दर्ज किया गया था।
स्वाइन श्‍लैष्मिक ज्‍वर को पहली बार 1918 के फ्लू महामारी के दौरान मानव फ्लू से संबंधित बीमारी होने का प्रस्ताव दिया गया था, जब सूअर और मनुष्य एक ही समय में बीमार हुए थे। सूअरों में बीमारी के कारण के रूप में श्‍लैष्मिक ज्‍वरविषाणु की पहली पहचान लगभग दस साल बाद 1930 में हुई।अगले 60 वर्षों के लिए, स्वाइन श्‍लैष्मिक ज्‍वर उपभेद लगभग विशेष रूप से H1N1 थे। फिर, 1997 और 2002 के बीच, तीन अलग-अलग उपप्रकारों और पांच अलग-अलग आनुवंशिक रूप के नए उपभेद उत्तरी अमेरिका (America) में सूअरों के बीच श्‍लैष्मिक ज्‍वर के कारणों के रूप में उभरे। 1997-1998 में, H3N2 उपभेद उभरे। ये उपभेद, जिनमें मानव, स्वाइन और एवियन वायरस से पुनर्मूल्यांकन द्वारा प्राप्त जीन (Gene) शामिल हैं, उत्तरी अमेरिका में स्वाइन इन्फ्लूएंजा का एक प्रमुख कारण बन गए। H1N1 और H3N2 के बीच पुन: वर्गीकरण से H1N2 का उत्पादन हुआ। 1999 में कनाडा (Canada) में, H4N6 का एक स्ट्रेन (Strain) पक्षियों से लेकर सूअरों तक की प्रजातियों में फैल गया, लेकिन यह एक ही खेत में सीमित था।
स्वाइन फ्लू को मनुष्यों में पशुजन्य रोग के रूप में कई बार सूचित किया गया है, आमतौर पर सीमित संक्रमण के साथ। हालांकि सूअरों में प्रकोप आम है, इसलिए यह उद्योग में महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान का कारण बनता है।लेकिन स्वाइन फ्लू अपने उच्च मानव-से-मानव संचरण दर और हवा से संक्रमण की आवृत्ति के कारण दुनिया भर में बहुत तेजी से फैल रहा है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3Rphh48
https://bit.ly/3RwoBuT
https://bit.ly/3qicVA3

चित्र संदर्भ
1. स्वाइन फ्लू की चेतावनी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. H1N1 विषाणु को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. स्वाइन फ़्लू से भारत में प्रभावित राज्यों (काला- मृत्यु , लाल- प्रभावित) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मनुष्यों में शूकर इंफ्लूएंजा के मुख्य लक्षणों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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