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हम सभी इतिहास से जुड़े तथ्यों में गुप्त या मौर्य काल की स्वर्णिम मुद्राएं तथा तांबे अथवा चांदी के
सिक्के जैसे शब्दों को अक्सर सुनते हैं। लेकिन आपने, भारत में किसी शासक द्वारा लेनदेन के
लिए कागज़ के नोटों के प्रयोग का वर्णन शायद ही कभी सुना हो। आज प्रारंग के साथ हम कागज़ के
नोटों की क्रोनोलॉजी अर्थात कालक्रम को बारीकी से समझेंगे।
18वीं शताब्दी के दौरान कई यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों का आगमन भारत में हुआ। इन्हीं
व्यापारिक कंपनियों ने निजी बैंकों की स्थापना की, जिन्होंने पहली बार भारतीय उपमहाद्वीप में
टेक्स्ट-आधारित कागजी मुद्राएं जारी की। लेकिन आधिकारिक तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में
पहली बार कागजी मुद्रा की शुरुआत 1861 में चार्ल्स कैनिंग, प्रथम अर्ल कैनिंग (Charles
Canning, 1st Earl Canning) द्वारा की गई।
आधुनिक अर्थों में, भारत में कागजी मुद्रा की शुरुआत अठारहवीं शताब्दी के अंतिम भाग में हुई जब
निजी और अर्ध-सार्वजनिक बैंकों ने इस मुद्रा को पेश करना शुरू किया। पेपर करेंसी एक्ट, 1861
(Paper Currency Act, 1861) द्वारा भारत सरकार को बैंक नोटों को प्रिंट करने और प्रसारित
करने का विशेष अधिकार दे दिया गया और इस तरह निजी प्रेसीडेंसी बैंकों द्वारा बैंक नोटों की
छपाई और प्रचलन को समाप्त कर दिया। 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना होने
तक, बैंक नोट छापना और जारी करने का काम भारत सरकार द्वारा ही किया जाता था। भारतीय
रिजर्व बैंक का औपचारिक रूप से उद्घाटन सोमवार, 1 अप्रैल, 1935 को कलकत्ता में अपने केंद्रीय
कार्यालय के साथ किया गया था।
कागज़ के नोटों का प्रचलन बढ़ाने के पीछे मुख्य कारण यह था की ईस्ट इंडिया कंपनी की
विस्तारवादी रणनीतियों से बंगाल को सोने और चांदी के बुलियन की कमी होने लगी। अतः एक
उभरते हुए ऋण संकट को भांपते हुए, ब्रिटिश अधिकारीयो ने भारत में कागजी मुद्रा की शुरुआत
की।
बैंक नोट सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) द्वारा स्थापित बैंक ऑफ हिंदोस्तान
(1770-1832) , जिसे बंगाल और बिहार में सामान्य बैंक माना जाता था (1773-75) और बैंक ऑफ
बंगाल (1784-91) में जारी किए।
हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा गठित सरकार ने इन कागजी मुद्राओं को आधिकारिक तौर पर
मान्यता नहीं दी थी, क्यों की ये प्रतिबंधित वचन मुद्राएं थीं तथा केवल निजी उपयोग के लिए
कानूनी थीं। आखिरकार वित्तीय गड़बड़ी के कारण, तीनों बैंक और नोट बंद कर दिए गए थे। 1861 में
कागजी मुद्रा अधिनियम के लागू होने के बाद, 1862 में महारानी विक्टोरिया (Queen Victoria)
के सम्मान में बैंक नोटों और सिक्कों की एक श्रृंखला जारी की गई थी, जिनमें उनका चित्र छपा हुआ
था।
जनवरी 1936 में, भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली बार किंग जॉर्ज VI (King George VI) के चित्र वाले
पांच रुपये के नोट जारी किए। फिर फरवरी में 10 रुपये के नोट जारी किए गए, मार्च में 100 रुपये
के नोट और जून 1938 में 1000 और 10000 रुपये के नोट जारी किए गए। किंग जॉर्ज VI के चित्र
वाले नोट 1948 में और बाद में 1950 तक जारी किए गए, जिसके बाद अशोक स्तंभ की तस्वीर
वाले नोट जारी किए जाने लगे।
ब्रिटिश भारत के नोटों का पहला सेट 10, 20, 50, 100, 1000 के मूल्यवर्ग में जारी 'विक्टोरिया
पोर्ट्रेट' श्रृंखला के था। ये नोट एकतरफा थे, इसमें दो भाषा पैनल लिए गए थे तथा यह लेवरस्टॉक
पेपर मिल्स (Laverstock Paper Mills) में निर्मित हाथ से बने कागज पर मुद्रित किए जाते थे।
इनकी सुरक्षा सुविधाओं में वॉटरमार्क (watermark) (भारत सरकार, रुपये, दो हस्ताक्षर औरलहराती रेखाएं), मुद्रित हस्ताक्षर और नोटों का पंजीकरण शामिल था। सुरक्षा के लिहाज से नोटों
को आधा काट भी दिया गया। जिसका एक सेट डाक से भेजा जाता था तथा इसके प्राप्त होने की
पुष्टि पर शेष आधा सेट डाक द्वारा भिजवा दिया जाता था। हालांकि नोट पर चित्रित विक्टोरिया
पोर्ट्रेट श्रृंखला को जालसाजी के चलते वापस ले लिया गया था और इसे 1867 के दौरान 'अंडरप्रिंट
सीरीज़ ('Underprint Series')' द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया था।
अंडर प्रिंट सीरीज के नोट मोल्डेड पेपर (molded paper) पर प्रिंट किए जाते थे और इसमें 4 भाषा
पैनल (ग्रीन सीरीज़) शामिल थी। अंक के मुद्रा चक्र के अनुसार भाषाएँ भी भिन्न होती थीं। लाल
श्रृंखला में भाषा पैनल को बढ़ाकर 8 कर दिया गया। बेहतर सुरक्षा सुविधाओं में एक लहराती रेखा
वॉटरमार्क, वॉटरमार्क में निर्माता का कोड (डेटिंग में बहुत भ्रम का स्रोत), गिलोच पैटर्न (guilloche
pattern) और एक रंगीन अंडर प्रिंट शामिल थे।
भारत में छोटे मूल्यवर्ग के नोटों की शुरुआत अनिवार्य रूप से अत्यावश्यकता के कारण हुई ।
दरसल प्रथम विश्व युद्ध की मजबूरियों ने छोटे मूल्यवर्ग के कागजी मुद्रा की शुरुआत की। भारत
सरकार ने 1935 तक मुद्रा नोट जारी करना जारी रखा इसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा
नियंत्रक के कार्यों को संभाल लिया। ये नोट 5, 10, 50, 100, 500, 1000, 10,000 रुपये के
मूल्यवर्ग में जारी किए गए थे।
1928 में नासिक में करेंसी नोट प्रेस (currency note press) की स्थापना के साथ, भारत में करेंसी
नोट उत्तरोत्तर मुद्रित होने लगे। 1932 तक नासिक प्रेस भारतीय मुद्रा नोटों के पूरे स्पेक्ट्रम की
छपाई कर रहा था। भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकार से अब तक मुद्रा नियंत्रक और इंपीरियल बैंक से
सरकारी खातों और सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन द्वारा किए गए कार्यों को अपने हाथ में लेकर
परिचालन शुरू किया। कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास, रंगून, कराची, लाहौर और कानपुर में मौजूदा मुद्रा
कार्यालय बैंक के निर्गम विभाग की शाखाएँ बन गए। (तब दिल्ली में ऑफिस का होना जरूरी नहीं
समझा जाता था।) आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 22 ने इसे भारत सरकार के नोट जारी
करने के लिए तब तक जारी रखने का अधिकार दिया जब तक कि इसके अपने नोट जारी करने के
लिए तैयार नहीं हो जाते। बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने सिफारिश की कि संशोधनों के साथ बैंक नोट
मौजूदा नोटों के सामान्य आकार, स्वरूप और डिजाइन को बनाए रखें।
संदर्भ
https://bit.ly/3q4fp4L
https://bit.ly/3ehO0K9
चित्र संदर्भ
1. 1 रुपये के बैंकनोट के लिए परीक्षण डिजाइन। भारत सरकार, 1940 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. औपनिवेशिक भारतीय दस रुपये (1937-43) को दर्शाता एक चित्रण (jenikirbyhistory)
3. 1917-1930, 1 रुपये के इश्यू नोट को दर्शाता एक चित्रण (jenikirbyhistory)
4. 1861 में महारानी विक्टोरिया के पोर्ट्रेट 20 रुपये के नोट को दर्शाता एक चित्रण (jenikirbyhistory)
5. ब्रिटिश इंडिया नोट्स ने धन के अंतर-स्थानिक हस्तांतरण की सुविधा प्रदान की। सुरक्षा के लिहाज से नोटों को आधा काट दिया जाता था। जिसको दर्शाता एक चित्रण (rbi.org.in)
6. पुराने नोटों के समूह को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
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