शिक्षक दिवस विशेष: शिक्षा के प्रतीक डॉ राधाकृष्णन के प्रभावशाली कार्य का संक्षिप्त विवरण

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
05-09-2022 10:43 AM
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शिक्षक दिवस विशेष: शिक्षा के प्रतीक डॉ राधाकृष्णन के प्रभावशाली कार्य का संक्षिप्त विवरण

हमें इस दुनिया में एक सफल नागरिक के रूप में आकार देने के उद्देश्य के साथ-साथ, शिक्षक हमें जीवन में अच्छा करने और सफल होने के लिए प्रेरित करते हैं और हमारे गुरुओं की इस कड़ी मेहनत को पहचानने के लिए शिक्षक दिवस को मनाया जाता है। विश्व शिक्षक दिवस वैसे तो 5 अक्टूबर को मनाया जाता है, लेकिन विभिन्न देशों में इस दिन को अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता है। ऐसे ही भारत में प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को बड़ी धूमधाम के साथ शिक्षक दिवस को देश के पूर्व राष्ट्रपति, विद्वान, दार्शनिक और भारत रत्न से सम्मानित डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन (जिनका जन्म 1888 में इसी दिन हुआ था) को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है।
जब 1962 में डॉ राधाकृष्णन ने भारत के दूसरे राष्ट्रपति का पद संभाला, तो उनके छात्रों ने 5 सितंबर को एक विशेष दिन के रूप में मनाने की अनुमति लेने के लिए उनसे संपर्क किया। इसके बजाय डॉ राधाकृष्णन ने उन से समाज में शिक्षकों के योगदान को पहचानने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन सबसे प्रभावशाली व्यक्ति में से एक थे जिन्होंने तथाकथित पश्चिमी मानक पर दुनिया के सामने भारतीय दर्शन का वर्णन किया और पूर्वी और पश्चिमी ज्ञान के बीचज्ञप्ति का एक पुल बनाया। राधाकृष्णन ने 1921 से 1932 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में मानसिक और नैतिक विज्ञान के किंग जॉर्ज पंचम (King George V) अध्यक्ष और 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (University of Oxford) में पूर्वी धर्म और नैतिकता के स्पाल्डिंग चेयर (Spalding Chair) पर कार्य किया। राधाकृष्णन ने अद्वैत वेदांत को हिंदू धर्म की बेहतरीन अभिव्यक्ति के रूप में माना क्योंकि यह अंतर्ज्ञान पर आधारित था। राधाकृष्णन के अनुसार, वेदांत परम प्रकार का धर्म है, क्योंकि यह सबसे प्रत्यक्ष सहज अनुभव और आंतरिक अनुभूति प्रदान करता है।राधाकृष्णन को उनके जीवन के दौरान कई उच्च पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें 1931 में नाइटहुड (Knighthood), भारत रत्न, 1954 में भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार और 1963 में ब्रिटिश रॉयल ऑर्डर ऑफ मेरिट (British Royal Order of Merit) की मानद सदस्यता शामिल है।वे हेल्पेज इंडिया (Helpage India) के संस्थापकों में से एक थे, जो भारत में वंचित बुजुर्गों के लिए एक गैर-लाभकारी संगठन है।
अपने जीवनकाल में, डॉ राधाकृष्णन ने कई किताबें लिखीं, जो ज्यादातर भारतीय धर्म, संस्कृति और दर्शन पर आधारित थीं।उनके कुछ प्रसिद्ध साहित्य और प्रकाशन हैं - मनोविज्ञान की अनिवार्यता (1912), रवींद्र नाथ टैगोर का दर्शन (1918), समकालीन दर्शन में धर्म का शासन (1920),इंडियन फिलॉसफी वॉल्यूम -1 (Indian Philosophy Vol.-1 (1923)), इंडियन फिलॉसफी वॉल्यूम -2 (1927), जीवन का हिंदू दृष्टिकोण(1926),जिस धर्म की हमें जरूरत है (The Religion We Need (1928)), कल्कि (1929), जीवन का एक आदर्शवादी दृष्टिकोण (1929),ईस्ट एंड वेस्ट इन रिलिजन (East & West in Religion (1933)), भारत की अंतरात्मा (1936), स्वतंत्रता और संस्कृति (1936), समकालीन भारतीय दर्शन (1936), रिलिजन इन ट्रांजिशन (Religion in Transition (1937)), गौतम बुद्ध जीवन और दर्शन(1938),पूर्वी धर्म और पश्चिमी विचार (1939), महात्मा गांधी (1939), भारत और चीन (1944), भगवद् गीता (1948), महान भारतीय (1949), धम्मपद (1950), पूर्वी और पश्चिमी में दर्शनशास्त्र का इतिहास (1952) ), श्रेष्ठ उपनिषद (1953), रिकवरी ऑफ फेथ (Recovery of Faith (1956)), ए सोर्स बुक इन इंडियन फिलॉसफी (A Source Book in Indian Philosophy (1957)),ब्रह्म सूत्र: आध्यात्मिक जीवन का दर्शन (1959), बदलती दुनिया में धर्म (1967), धर्म, विज्ञान और संस्कृति (1968)।
पश्चिमी ईसाई आलोचकों की चुनौती ने उन्हें भारतीय दर्शन और धर्म के आलोचनात्मक अध्ययन के लिए प्रेरित किया और यह पता लगाया कि इसमें क्या समकालीन है और क्या निस्सार है।उन्होंने हिंदू धर्म को तथ्यों के आधार पर एक वैज्ञानिक धर्म के रूप में देखा, जिसे अंतर्ज्ञान या धार्मिक अनुभवों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने समझाया कि अंतर्ज्ञान स्व-प्रमाणित और स्व-प्रकाशमान है तथा उनका दर्शन आदर्शवाद पर आधारित है।
राधाकृष्णन इस बात पर जोर देते थे कि शिक्षा सत्य और प्रेम के दोहरे सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए। शिक्षा को तभी पूर्ण कहा जाएगा, जब उसमें न केवल बुद्धि का प्रशिक्षण, बल्कि हृदय का शोधन और आत्मा का अनुशासन शामिल हो।शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण, मानव निर्माण, आध्यात्मिक मूल्यों का विकास और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण, व्यावसायिक विकास और राष्ट्रीय एकता होना चाहिए।राधाकृष्णन के अनुसार, जहां वैज्ञानिक ज्ञान समाप्त होता है, वहीं रहस्य का क्षेत्र शुरू होता है। वैज्ञानिक तथ्यों की दुनिया और मूल्यों की दुनिया अलग होती है। यदि शिक्षा मनुष्य के दिलों और दिमागों में ज्ञान और मानवता का निर्माण नहीं करती है, तो उसकी सभी पेशेवर, वैज्ञानिक और तकनीकी विजय व्यर्थ होगी। शिक्षा आत्मा का ज्ञान है जो अज्ञान को दूर करती है और व्यक्ति को प्रकाशित करती है। एक शिक्षक द्वारा एक ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जो छात्र को उसके जोशपूर्ण, दयालु, सुलभ, उत्साही और देखभाल करने वाले दृष्टिकोण से पोषित करे। उन्हें प्रत्येक छात्र को नेतृत्व की भूमिका निभाने के अवसर प्रदान करके उनके मन में नेतृत्व की भावना को उजागर करना चाहिए। शिक्षक और छात्र के बीच आपसी सम्मान कक्षा में सहायक और सहयोगी वातावरण प्रदान करने में मदद करता है। छात्रों के विचारों को महत्व देना छात्रों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए साहस प्रदान करता है और दूसरों का सम्मान करना और उन्हें सुनना जैसी सीख को सिखाता है।शिक्षक को नई शिक्षण रणनीतियों को सीखने का कोई डर नहीं होना चाहिए। उन्हें साझा निर्णय लेने और सामूहिक कार्य के साथ-साथ सामुदायिक निर्माण पर ध्यान देना चाहिए।
शिक्षा के प्रतीक डॉ राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध दार्शनिक, राजनेता होने के साथ-साथ एक शिक्षक भी थे। अपने जीवनकाल के दौरान, डॉ राधाकृष्णन एक प्रतिभाशाली छात्र, एक प्रसिद्ध शिक्षक, प्रसिद्ध लेखक थे और विभिन्न पदों पर रहे।डॉ राधाकृष्णन भारतीय मिट्टी के सच्चे राष्ट्रवादी व्यक्तित्व थे और बेखबर पश्चिमी आलोचकों के विरुद्ध हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति और सभ्यता की आजीवन रक्षा की।हिंदू धर्म, संस्कृति और दर्शन के प्रति उनके समर्पण के कारण, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें और पश्चिमी विचारधारा वाले विचार उनके लिए आलोचनात्मक रहे थे। लेकिन सभी आलोचकों की उपेक्षा करते हुए उन्होंने जीवन भर राष्ट्रवादी लेखन को जारी रखा और विश्व मानचित्र पर भारतीय दर्शन के प्रकाश को जलाते रहे।उन्होंने 17 अप्रैल 1975 को अपनी अंतिम सांस ली, लेकिन अंतर्ज्ञान की समझ और अनुभवों की व्याख्या का उनका दीपक युगों-युगों तक हमारे मार्ग को रोशन करेगा।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3Rdmvjk
https://bit.ly/2MO4b3g
https://bit.ly/3ebDeFb

चित्र संदर्भ
1. 1989 में भारत के डाक टिकट पर राधाकृष्णन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. राष्ट्रपति के तौर पर डॉ.एस.राधाकृष्णन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के साथ मदापति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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