पौराणिक कथाओं में श्रावण मास की पूर्णिमा को श्रावणी, सावनी, सलूनो या रक्षाबंधन मनाने का महत्‍व

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
11-08-2022 10:18 AM
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पौराणिक कथाओं में श्रावण मास की पूर्णिमा को श्रावणी, सावनी, सलूनो या रक्षाबंधन मनाने का महत्‍व

हिंदू चंद्र-सौर कैलेंडर के श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन और ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian calendar) के अगस्त महीने में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है, रक्षा का यह पर्व कई वर्षों से मनाया जा रहा है। हिंदू परंपरा के अनुसार, यह लोकप्रिय पर्व भाइयों और बहनों, जो रक्‍त संबंधित या मुंहबोले भी हो सकते हैं, के बीच प्यार के जश्न के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी (एक पवित्र धागा) बांधती है और उसकी समृद्धि के लिए प्रार्थना करती है, जबकि भाई उसे एक सांकेतिक उपहार और उसकी रक्षा करने का वचन देता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है।
भारतीय पौराणिक कथाओं में रक्षाबंधन से कई किवदंतियां जुड़ी हुयी हैं। भविष्य पुराण के उत्तरा पर्व के 137वें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को हिंदू चंद्र कैलेंडर के श्रावण के महीने की पूर्णिमा के दिन शाही पुजारी (राजपुरोहित) द्वारा अपनी दाहिनी कलाई में रक्षा (संरक्षण) सूत्र बांधने की रस्म का वर्णन किया था। एक किवदंति के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध में देवों के राजा इंद्र अपना साम्राज्‍य लगभग हारने वाले होते हैं तब वह समाधान ढुंढने के लिए वैदिक काल के ऋषि गुरु बृहस्पति के पास जाते हैं। गुरू ने कहा यदि तुम विजय चाहते हो तो श्रावण पुर्णिमा पर पवित्र मंत्रों के साथ अपनी कलाई पर एक पवित्र डोरी बांधो। भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों पर बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है)-
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
अर्थात: जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।
द्रौपदी और कृष्ण: सबसे प्रसिद्ध भारतीय लोककथाओं में से एक भगवान कृष्ण और द्रौपदी की है। एक बार मकर संक्रांति के दिन कृष्ण की छोटी उंगली कट गयी थी। द्रौपदी ने कृष्ण का खून बहते देख अपनी साड़ी के कौने से एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली में बांध दिया। परिणामत: श्री कृष्ण ने उनकी रक्षा करने की कसम खाई। द्रौपदी के चीरहरण के दौरान श्रीकृष्‍ण ने उनके लाज की रक्षा की।
यम और यमुना: जब मृत्यु के देवता यम अपनी बहन यमुना से मिलने नहीं गए तो यमुना ने गंगा से मदद मांगी। गंगा ने यमुना का संदेश यम तक पहुंचाया, तब यम ने यमुना के पास जाने का निर्णय लिया। अपने भाई के आने से रोमांचित होकर, यमुना ने यम के लिए एक पर्व की व्यवस्था की और उन्हें राखी बांधी। मुग्ध होकर, यम ने अपनी बहन से पूछा कि उसे आशीर्वाद के रूप में क्या चाहिए। वह चाहती थी कि उसका भाई जल्द ही उससे मिलने आए। अपनी बहन की आराधना से प्रेरित होकर, उन्होंने उसे अनंत जीवन दिया, इस प्रकार यमुना, गंगा की सबसे लंबी और दूसरी सबसे बड़ी सहायक नदी है जो आज भी उत्साह से बहती है।
बाली और देवी लक्ष्मी: हिन्‍दू पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा बलि ने भगवान विष्‍णु से अपना साम्राज्‍य दुश्‍मनों के प्रपंचों से बचाने हेतु आग्रह किया। अपने भक्‍त के अनुरोध पर भगवान विष्‍णु ने ब्राहम्‍ण स्‍त्री का रूप लेकर राजा बलि के निवास में रहने का संकल्‍प लिया, परंतु इस प्रतिज्ञा को सुन भगवान विष्‍णु की पत्नि देवी लक्ष्‍मी ने राजा बलि से अपने स्‍वामी को स्‍वर्गलोग नहीं छोड़ने के लिए निवेदन किया। श्रावण की पूर्णिमा के दिन, जब लक्ष्मी ने अपनी सुरक्षा के लिए बाली की कलाई पर धागा बांधा, तो उन्‍होंने उनसे पूछा कि उसे आशीर्वाद के रूप में क्या चाहिए। लक्ष्मी ने मूल रूप से उस अभिभावक का संकेत दिया जिसने उसके वास्तविक व्यक्तित्व को उजागर किया। बाली अपनी प्रतिबद्धता के प्रति वफादार रहा और अनुरोध किया कि विष्णु लक्ष्मी के साथ घर लौट आए, हालांकि, विष्णु ने हर साल चार महीने बाली के साथ बिताने की कसम खाई।
रोक्साना और राजा पोरस: जब सिकंदर और राजा पुरु के बीच युद्ध होने वाला था तो सिकंदर की पत्नी रोक्साना राजा पुरु के पास आती है। वह उन्हें अपने भाई बनाते हुए उनके हाथ में रक्षा सूत्र बांधती है। राजा पुरु भी उसका पूरा आदर-सत्कार करते है तथा उसे अपनी बहन के रूप में स्वीकार करते है। रोक्साना राजा पुरु से वचन लेती है कि यदि वह सिकंदर को हरा भी देते है तो उनका वध नही करेंगे। राजा पुरु उसका यह आग्रह स्वीकार कर लेते है। इसके बाद सिकंदर तथा राजा पुरु की सेना के बीच भयानक युद्ध होता है, जिसमें पुरू हार जाते हैं किंतु सिकंदर की नजरों में अपने लिए सम्‍मान जीत लेते हैं जिससे सिकंदर उन्‍हें उनका साम्राज्‍य लौटा देता है।
हुमायूँ और रानी कर्णावती: हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि युद्ध की विपत्ति के दौरान मेवाड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल शासक हुमायूँ को पत्र और राखी भेजी थी, जिसके बाद वो तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़ा था। कहानी कुछ यूँ है कि गुजरात पर शासन कर रहे कुतुबुद्दीन बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। इसी दौरान महारानी कर्णावती ने मुग़ल शासक हुमायूँ को पत्र भेजा। साथ में उन्होंने एक राखी भी भेजी और मदद के लिए गुहार लगाई। इसके बाद हुमायूँ तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़ा था। इस घटना को रक्षाबंधन से भी जोड़ दिया गया।
रबिन्द्रनाथ टैगोर और 1905 का बंगाल विभाजन: 1905 में, जब बंगाल के विभाजन ने राष्ट्र को विभाजित किया, नोबेल पुरस्कार विजेता रबिन्द्रनाथ टैगोर ने रक्षा बंधन मनाने और बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रेम और एकजुटता के बंधन को मजबूत करने के लिए राखी महोत्सव शुरू किया। उन्होंने उनसे अंग्रेजों के खिलाफ विरोध करने का भी आग्रह किया। विभाजन ने भले ही राज्य को विभाजित कर दिया हो, लेकिन पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में उनकी परंपरा जारी है, क्योंकि लोग अपने पड़ोसियों और करीबी दोस्तों को राखी बांधते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3BFzNQH
https://bit.ly/3JwJwuu
https://bit.ly/3Jv90bS
https://bit.ly/3Q0Fa17

चित्र संदर्भ
1. पौराणिक राखी किवदंतियों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. इंद्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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