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ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम और एकनाथ की भजन कविताएं मध्ययुगीन मराठी है,लेकिन
आधुनिक हिंदी बोलने वाले लोग इन्हे आसानी से समझ लेते हैं। भारतीय संस्कृति में भक्ति
आंदोलन के प्रभाव के जरिए केवल वैष्णव परंपरा में ही नहीं,बल्कि अधिकांश आधुनिक
भारतीय भाषाओं में मराठी भाषा की कविता का प्रभाव दिखाई देता है।यहां तक कि भारत
आने वाले कई यूरोपीय लोगों जिनमें फ्रांसीसी और अंग्रेजी मिशनरी शामिल थे,ने भी इन
महत्वपूर्ण कवियों और उनकी कविताओं का अनुवाद करने और उन्हें समझने का प्रयास
किया।
मराठी साहित्य, भारत की इंडो-आर्यन मराठी भाषा में लेखन का निकाय है। बंगाली साहित्य
के साथ, मराठी साहित्य भारत-आर्य साहित्य में सबसे पुराना है, जो लगभग 1000 ईस्वी पूर्व
का माना जाता है।13वीं शताब्दी में, दो ब्राह्मणवादी संप्रदाय उत्पन्न हुए, महानुभाव और
वारकरी पंथ, दोनों ने मराठी साहित्य को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया। वारकरी पंथशायद
अधिक उत्पादक था,क्योंकि यह भक्ति आंदोलनों से जुड़ा था, विशेष रूप से पंढरपुर में
विठोबा के लोकप्रिय पंथ के साथ। इसी परंपरा से प्रारंभिक मराठी साहित्य के महान नाम
सामने आए, जिनमें 13वीं शताब्दी के ज्ञानेश्वर, नामदेव(जिनके कुछ भक्ति गीत सिखों की
पवित्र पुस्तक आदि ग्रंथ में लिखे गए हैं),16वीं शताब्दी के लेखक एकनाथ (जिनकी सबसे
प्रसिद्ध कृति भागवत-पुराण की 11वीं पुस्तक का मराठी संस्करण है) शामिल हैं।
महाराष्ट्र
के भक्ति कवियों में सबसे प्रसिद्ध कवि तुकाराम हैं, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में कई
महत्वपूर्ण कृतियां लिखीं।उन्होंने लगभग 5000 मराठी रचनाएं की, जो मराठा समाज के
सभी हिस्सों में लोकप्रिय हैं। मराठी का एक अनूठा योगदान पोवदास की परंपरा (योद्धा
लोगों के बीच लोकप्रिय वीर कहानियां) है। 17वीं शताब्दी के दौरान यह परंपरा विशेष रूप से
महत्वपूर्ण थी, जब महान मराठा राजा शिवाजी ने मुगल सम्राट औरंगजेब की शक्ति के
खिलाफ अपनी सेनाओं का नेतृत्व किया था। मराठी कविता में आधुनिक काल के शवसुत से
शुरू हुआ और यह 19वीं सदी के ब्रिटिश रूमानवाद (British Romanticism) और उदारवाद,
यूरोपीय राष्ट्रवाद, और महाराष्ट्र के इतिहास की महानता से प्रभावित था।
केशवसुत ने पारंपरिक मराठी कविता के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की और एक स्कूल शुरू
किया, जो 1920 तक चला। इसमें घर और प्रकृति, गौरवशाली अतीत और शुद्ध गीतवाद
पर जोर दिया गया था।उसके बाद, इस अवधि में रविकिरण मंडल नामक कवियों के एक
समूह का प्रभुत्व था, जिन्होंने घोषणा की,कि कविता केवल विद्वानों और संवेदनशील लोगों
के लिए ही नहीं है, बल्कि यह रोजमर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा है।1945 के बाद मराठी
कविता ने मानव जीवन को उसकी सभी विविधताओं में तलाशने की कोशिश की।
मराठी भाषा मुख्य रूप से भारतीय राज्य महाराष्ट्र में बोली जाती है और देवनागरी और
मोदी लिपि में लिखी जाती है। इसके इतिहास की बात करें तो इसे प्राचीन काल,यादव
काल,दक्कन सल्तनत काल,मराठा काल,ब्रिटिश काल आदि में बांटा जा सकता है। प्राचीन
काल में महाराष्ट्री प्राकृत नर्मदा और गोदावरी के तट पर बोली जाती थी।महाराष्ट्री वैदिक
संस्कृत की एक शाखा थी। एक अलग भाषा के रूप में महाराष्ट्री का सबसे पहला उदाहरण
लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है। पुणे जिले के जुन्नार के नानेघाट की एक गुफा में
पाया गया एक पत्थर का शिलालेख ब्राह्मी लिपि का उपयोग करके महाराष्ट्री में लिखा गया
था। महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने दावा किया है कि मराठी कम से
कम 2300 साल पहले अस्तित्व में थी। ऐसे कई साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जो यह बताते हैं कि
12वीं शताब्दी तक मराठी एक मानक लिखित भाषा थी।हालाँकि, 13वीं शताब्दी के अंत तक
मराठी में किसी भी वास्तविक साहित्य का कोई रिकॉर्ड नहीं है। प्रारंभिक मराठी, साहित्य से
उना (यादव) शासन के दौरान उभरा, जिसके कारण कुछ विद्वानों ने यह सिद्धांत दिया है
कि इसे यादव शासकों के समर्थन से तैयार किया गया था।यादवों ने मराठी को आम जनता
से जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में माना। यादव शासन की अंतिम आधी
शताब्दी के दौरान मराठी ने कन्नड़ और संस्कृत को शिलालेखों की प्रमुख भाषा के रूप में
प्रतिस्थापित किया।
प्रारंभिक मराठी साहित्य ज्यादातर धार्मिक और दार्शनिक प्रकृति का था,और महानुभाव और
वारकरी संप्रदायों से संबंधित संत-कवियों द्वारा रचित था।अंतिम तीन यादव राजाओं के
शासनकाल में, पद्य और गद्य में, ज्योतिष, चिकित्सा, पुराण, वेदांत, राजाओं और दरबारियों
पर बहुत साहित्य बनाया गया था।नलोपख्यान, रुक्मिणीस्वयंवर और श्रीपति की ज्योतिष
रत्नमाला (1039) इसके कुछ उदाहरण हैं। बहमनी सल्तनत (1347-1527) और बीजापुर
सल्तनत (1527-1686) के शुरुआती दिनों में मराठी में अपेक्षाकृत कम गतिविधि थी।वारकरी
संत-कवि एकनाथ इस अवधि के दौरान एक प्रमुख मराठी साहित्यकार थे।उन्होंने कई अभंग
(भक्ति कविताएँ), कथाएँ और छोटी-छोटी रचनाएँ लिखीं, जो भागवत पुराण से संबंधित
थीं,उन्होंने एकनाथी भागवत, भावार्थ रामायण, रुक्मिणी स्वयंवर हस्तमालक और भरुद की
रचना की। दासोपंत इस युग के एक अन्य उल्लेखनीय कवि थे।एकनाथ के पोते मुक्तेश्वर ने
भी महाकाव्य महाभारत के अनुवाद सहित मराठी में कई रचनाएँ लिखीं।
मराठी भाषी मूल निवासी मराठों ने 17वीं शताब्दी में शिवाजी महाराज के नेतृत्व में अपना
राज्य बनाया,इस अवधि के दौरान मराठी साहित्य के विकास में तेजी आई। तुकाराम और
समर्थ रामदास, जो शिवाजी के समकालीन थे, प्रारंभिक मराठा काल के प्रसिद्ध कवि
थे।तुकाराम भक्ति आंदोलन के साथ पहचाने जाने वाले सबसे प्रमुख मराठी वारकरी
आध्यात्मिक कवि थे, और बाद के मराठा समाज पर उनका बहुत प्रभाव था।
ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की बात करें तो, इस समय ईसाई मिशनरी विलियम कैरी
(William Carey) के प्रयासों के माध्यम से मराठी व्याकरण का मानकीकरण देखा गया।
कैरी ने बाइबिल के नए और पुराने टेस्टमेन्ट (old and new testament of holy bible)
का क्रमशः 1811 और 1820 में मराठी में अनुवाद किया। औपनिवेशिक अधिकारियों ने
जेम्स थॉमस मोल्सवर्थ (James Thomas Molesworth) के नेतृत्व में मराठी के
मानकीकरण पर भी काम किया। ईसाई मिशनरियों ने मराठी साहित्य में पश्चिमी रूपों का
परिचय दिया।
संदर्भ:
https://bit.ly/3BGz1mK
https://bit.ly/3BG09SQ
https://bit.ly/3JwGo1G
चित्र संदर्भ
1. देवनागरी लिपि, मराठी भाषा में ज्ञानेश्वरी पृष्ठ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. संत नामदेव की पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (Exotic India Art)
3. बृहदीश्वर मंदिर परिसर, तंजावुर के अंदर मराठी शिलालेख को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. संत एकनाथ की डाक टिकट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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