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भारत में हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन महात्मा गाँधी
जी ने स्वदेशी आँदोलन की शुरुआत की।इस दिन, सरकार और अन्य संगठन देश के सामाजिक-आर्थिक विकास
में हथकरघा बुनाई समुदाय को अपने अपार योगदान के लिए सम्मानित करते हैं। यह दिन भारत की अपनी
गौरवशाली हथकरघा विरासत की रक्षा करने और आजीविका सुनिश्चित करने के लिए अधिक से अधिक अवसरों
के साथ बुनकरों और श्रमिकों को सशक्त बनाने की पुष्टि का भी प्रतीक है।
हथकरघा वस्त्र भारत की प्राचीन संस्कृति और पारंपरिक कौशल का प्रतीक है। देश के कुल कपड़ा उत्पादन का
15% भाग हथकरघा क्षेत्र से आता है। हाथ से बुने हुए वस्त्रों का चलन भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में
काफी प्रचलित है। पूरे विश्व में हाथ से बुने हुए वस्त्रों का 95% भाग भारत से निर्यात किया जाता है। हथकरघा
कपड़े अपने विशिष्ट डिजाइनों, सुंदर और प्राकृतिक रंगो, उत्पादन के लचीलापन और बुनकरों के विशेष पैतृक
कौशल के कारण अपनी अनूठी विशेषता को कायम रखे हुए है।
हाथों से बुनकर तैयार किए गए वस्त्र हथकरघा उद्योग के अंतर्गत आते हैं। हथकरघा हमारी भारतीय संस्कृति
और परंपरा का अभिन्न अंग है। प्राचीन समय में राज-परिवार से लेकर आम जनता तक सभी लोग हाथ से बुने
हुए वस्त्रों को ही धारण किया करते थे। यह कौशल वर्षों पहले से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता आया है।
भारतीय हथकरघा सकल घरेलू उत्पाद में भी बड़ा योगदान प्रदान देता है। यह 43.31 लाख लोगों को रोजगार
प्रदान करता है। वर्ष 2013-14 में इस क्षेत्र का उत्पादन 7116 लाख वर्ग मीटर और वर्ष 2014-15 में 3547
लाख वर्ग मीटर दर्ज किया गया है।
भारत के पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के बाद हथकरघा सबसे बड़े रोजगार प्रदात्ताओं में से एक है, जिनमें
10% अनुसूचित जाति, 18% अनुसूचित जनजाति और 45% अन्य पिछड़े वर्गों के लोग शामिल हैं। साल भर
साल हथकरघा उद्योग को तीव्र आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बढ़ते
कर और घटती आमदनी के कारण कई कारीगर इस रोजगार को छोड़ रोजगार के अन्य साधनों की ओर रुख
कर रहे हैं।
हथकरघा उद्योग के कम विकसित होने का यह भी एक कारण माना जा सकता है कि मशीनों से तैयार वस्त्र
कम समय में अधिक उत्पादन करने में सक्षम हैं। हथकरघा उद्योग के उत्थान के लिए सरकार द्वारा महत्वपूर्ण
कदम उठाए जा रहे हैं। वर्ष 2015 में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस जो 7 अगस्त को प्रतिवर्ष मनाया जाता है, के दिन
चेन्नई में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र सिंह मोदी जी द्वारा इंडिया हैंडलूम ब्रांड (India Handloom Brand) का
शुभारंभ किया गया। इस ब्रांड के अंतर्गत सामाजिक और पर्यावरण अनुपालन, कच्चे माल का प्रसंस्करण,
अलंकरण और बुनाई के डिजाइन जैसे कई मापदंडों के संदर्भ में हथकरघा उद्योग की गुणवत्ता बढ़ाने तथा
उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक सशक्त योजना बनाई गई। भारतीय हैंडलूम ब्रांड का एक
ऑनलाइन पोर्टल (Online Portal) तैयार किया गया। इस पोर्टल के माध्यम से हथकरघा उत्पादकों और ग्राहकों
के पंजीकरण के लिए ऑनलाइन आवेदन करना सरल हो गया है। साथ ही प्रधानमंत्री जी ने उपभोक्ताओं को
हथकरघा उद्योग की प्रमाणिकता के बारे में भी जानकारी प्रदान की। इसके अलावा दोषमुक्त और पर्यावरण के
अनुकूल उच्च गुणवत्ता वाले हथकरघा उद्योग की ब्रांडिंग (Branding) भी इस योजना के तहत की गई। इस ब्रांड
के अंतर्गत पंजीकृत उपयोगकर्ताओं को राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम के अनुसार डिज़ाइन, विकास, संस्थागत
वित्त और तकनीकी सहायता प्रदान करने का भी आश्वासन दिया गया है।
भारतीय हैंडलूम ब्रांड के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है:
# कच्चे माल का प्रसंस्करण, अलंकरण, बुनाई डिज़ाइन, सुरक्षित रंगों, उच्च कोटि के सूत आदि गुणवत्ता मानकों
के आधार पर हथकरघा उत्पादों का समर्थन कर उपभोक्ताओं का विश्वास अर्जित करना।
# हथकरघा उत्पादन में सामाजिक और पर्यावरणीय अनुपालन सुनिश्चित करना।
# उच्च गुणवत्ता वाले हथकरघा उत्पादों के लिए एक विशिष्ट बाजार तैयार करना जो विशेष रूप से उच्च विकास
क्षमता वाली युवा पीढ़ी और निर्यात बाजारों के बीच विभिन्न उत्पाद की पूर्ति करता हो।
# बुनकरों की आय सुनिश्चित करना और आमदनी में वृद्धि करना।
# कपड़ा निर्माताओं के साथ-साथ उपभोक्ताओं में भी जागरूकता बढ़ाना।
# मीडिया के माध्यम से उत्पादों की मांग में वृद्धि करने के अभियान को बढ़ावा देना।
# ई-कॉमर्स के माध्यम से हथकरघा उत्पादों के विपणन की सुविधा प्रदान करना।
इस अभियान के तहत बुनकर सीधे बाजार से जुड़ सकेंगे और थोक ऑर्डर की आपूर्ति कर उच्च मजदूरी प्राप्त
करने में सक्षम हो पाएंगे।
फरवरी 1983 में भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम लिमिटेड (National
Handloom Development Corp) के नाम से एक सार्वजनिक उपक्रम की स्थापना की गई। भारत के 07 क्षेत्रीय
कार्यालयों और 32 शाखा कार्यालयों में बंटा यह उपक्रम बुनकरों को उचित मूल्य पर कच्चे माल की आपूर्ति,
हथकरघा एजेंसियों के विपणन प्रयासों में वृद्धि, तकनीकी सहायता और उत्पादकता में सुधार आदि उद्देश्यों की
पूर्ति के लिए उत्तरदायी है। भारत सरकार और कपड़ा मंत्रालय ने राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम लिमिटेड को
एक ब्रांड के रूप में भारतीय हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए एक कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नियुक्त किया
है। यह एजेंसी हाथ से बुने हुए कपड़ों को बढ़ावा देने के लिए एक 360 डिग्री अभियान चला रही है। इस
अभियान के तहत घरेलू और विदेशी मीडिया के माध्यम से लोगों को हथकरघा उत्पादों को खरीदने के लिए
प्रेरित कर रही है। इन अभियानों का महत्वपूर्ण उद्देश्य उच्च कोटि के सामाजिक और पर्यावरण के अनुरूप
हथकरघा उत्पादों के आधार पर विशिष्ट उत्पादों को प्रचारित करना है।
भारत के इस अद्वितीय कौशल और पारंपरिक विरासत को भविष्य के लिए संजोये रखना भारत सरकार का
मूल उद्देश्य है। मशीनों से तैयार वस्त्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं। भारतीय
हथकरघा उत्पादों को इस समस्या के समाधान के रूप में भी देखा जा सकता है।
भारत हथकरघा ब्रांड पहल में भाग लेने के लिए उपयोगकर्ताओं में बुनकर, मास्टर बुनकर, प्राथमिक सहकारी
समितियां, शीर्ष हथकरघा समाज, खुदरा विक्रेता, निर्यातक और अन्य शामिल हैं। अन्य में स्वयं सहायता समूह ,
संघ, हथकरघा बुनकर समूह, उत्पादक कंपनियां, संयुक्त देयता समूह आदि को शामिल किया गया है। इसके
अतिरिक्त ब्रांडिंग (Branding) के लिए उत्पादों को इस प्रकार सूचीबद्ध किया गया है:
1. साड़ी:
# कपास: जामदानी, शांतिपिरी, पोचमपल्ली, तंगैल, धनियाखली, बिचित्रपुरी, बोमकाई, कोटपाड़, वेंकटगिरी, उप्पदा,
सिद्दीपेट, नारायणपेट, मंगलगिरी, चेतिनाद, कासरगोड, कुथमपल्ली, बलरामपुरम, चेंदमंगलम (धोती)
# रेशम: सुलकुच रेशम, खंडुआ, धर्मवरम, बरहामपुरी, बोमकाई रेशम, बनारस ब्रोकेड, तंचोई, बनारसी, मुगासिल्क,
बुटीदार, बलूचरी, जांगला, पोचमपल्ली, कांचीपुरम, अर्नी रेशम, मोलकलमुरु,बनारसी कटवर्क, पैठनी, पटोला, चंपासिल
रेशम, बिक्री रेशम, अशवली रेशम (धोती), उप्पदा, जामदानी।
# कॉटन सिल्क साड़ी: चंदेरी, माहेश्वरी, कोटा डोरिया, गडवाल, कोवई कोरा कॉटन
2. पोशाक सामग्री
# कपास: ओडिशा ओकट, पोचमपल्ली इकत
# रेशम: तंचोई, कटवर्क, ओडिशा इकत, मूगा फैब्रिक, बनारसी, पोचमपल्ली इकत, तुसर फैब्रिक, मेखला / चादर
दुपट्टा / शॉल / चादर
कनी शॉल, कुल्लू शॉल, किन्नौरी शॉल, तंगलिया शॉल, कच्छ शॉल, वांगखेई फी
3. चादरें
# पोचमपल्ली इकात, ओडिशा इकत
आवेदन शुल्क की बात करें तो सभी आवेदकों के लिए पंजीकरण शुल्क ₹500 रखा गया है। इस आवेदन शुल्क
का भुगतान आवेदकों द्वारा आवेदन पत्र जमा करते समय किया जाएगा। आवेदन पत्र ऑनलाइन (Online) और
ऑफलाइन (Offline) दोनों प्रक्रियाओं के माध्यम से जमा किया जा सकता है। एक आवेदन 3 वर्षों के लिए वैद्य
है। एक आवेदन का उपयोग एक से अधिक मदों के लिए किया जा सकता है। उत्पादों की गुणवत्ता मापदंडों के
आधार पर पंजीकृत आवेदक को 3 साल के उपरांत भी ब्रांड का उपयोग करने की अनुमति है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3zuiBek
https://bit.ly/3vIUgk6
https://bit.ly/3vHHH8r
चित्र संदर्भ
1. साड़ी बनाते भारतीय बुनकर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. असम में जातीय हथकरघा बुनती एक आदिवासी महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. इंडिया हैंडलूम ब्रांड को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. राष्ट्रिय हथकरघा दिवस को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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