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जौनपुर के स्वर्णिम इतिहास का एक सुनहरा पन्ना हमारे भारत में बना सबसे पुराना ज्ञात एटलस
भी है! जिसे पहली बार 17 वीं शताब्दी में हमारे जौनपुर शहर में ही, हाथों से निर्मित किया गया था!
आधुनिक मशीनों के बिना निर्मित, इस एटलस की सटीकता आज भी विद्वानों को चकित कर देती
है!
मुहम्मद सादिक इस्फ़हानी द्वारा पहली बार जौनपुर में निर्मित एटलस (मानचित्र), इंडो-
इस्लामिक कार्टोग्राफी (Indo-Islamic Cartography) के इतिहास में अद्वितीय रचना माना
जाता है। इसका काम 1646-47 के दौरान जौनपुर में ही पूरा हुआ था। यह एटलस एक
परिचयात्मक विश्व मानचित्र के तौर पर शुरू होता है, तथा जिसे देशांतर और अक्षांश की रेखाओं
द्वारा चित्रित किया गया है। इसके बाद 33 क्षेत्रीय मानचित्र हैं, जो इसका जिक्र करते हैं। इस विश्व
मानचित्र में, भूमध्य रेखा बाएँ किनारे का निर्माण करती है। कैस्पियन सागर (Caspian Sea) और
फारस, एटलस के केंद्र में हैं। ऊपर (पश्चिम) में अफ्रीका और अंडालूसिया (Andalusia) तथा नीचे
(पूर्व) में भारत, तुर्किस्तान और चीन हैं। मानचित्र में समुद्र को लाल और भूमि को सफेद दर्शाया
गया है। यह अंडालूसिया, टंगेर, मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत, तिब्बत एवं चीन की खाड़ी सहित
देशांतर और अक्षांश को भी दर्शाता है।
वास्को डी गामा (Vasco Da Gama) द्वारा उपमहाद्वीप के समुद्री मार्ग की खोज के दशकों बाद,
पुर्तगाली औपनिवेशिक साम्राज्य ने अपनी नेविगेशन तकनीक को एक राष्ट्रीय रहस्य ही रखा और
कई पुरस्कार प्राप्त किए, जिससे ब्रिटिश तथाडच (British and Dutch) यह जानने के लिए बेताब
हो गए कि इतनी लंबी और विश्वासघाती यात्रा को कैसे पार किया जा सकता है?
आखिरकार आर्कबिशप (Archbishop) के सहायक के रूप में, वैन लिंकोश्तीन (जान ह्यूजेन वैन
लिंकोश्तीन (Jan Huyghen van Linschoten) एक डच व्यापारी और इतिहासकार थे। उन्होंने
पुर्तगाली प्रभाव के तहत ईस्ट इंडीज क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर यात्रा की और 1583 और 1588 के बीच
गोवा में आर्कबिशप के सचिव के रूप में कार्य किया।) ने गोवा में पांच साल बिताए, यहां उन्होंने
पुर्तगाली साम्राज्य की संरचना और इस क्षेत्र को नियंत्रित किया! इसके अलावा उन्होंने यहां के
निवासियों, संस्कृति और स्थानीय जीवन के बारे में सब कुछ सीखा। उन्होंने यह जानकारी
इटिनरारियो (Itinerario), एक मौलिक पुस्तक जो उन्होंने 1592 में नीदरलैंड लौटने पर लिखी थी,
में दर्ज की।
लिस्बन से गोवा तक की यात्रा, पुर्तगाली साम्राज्य के क्षेत्रों और नौकायन निर्देशों के बारे में व्यापक
जानकारी के अलावा, इस पुस्तक में क्षेत्र के विस्तृत मानचित्र भी शामिल थे, जिन्हें इतने लंबे समय
तक गुप्त रखा गया था।
1596 में प्रकाशित, यह पुस्तक तत्काल बेस्ट-सेलर (सर्वाधिक बिकने वाली) बनी और जल्द ही
इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। आखिरकार डच और अंग्रेजों को मानचित्र नामक वह चाबी
मिल ही गई जिसकी वे इतने लंबे समय से तलाश कर रहे थे।
वैन लिंकोश्तीन द्वारा इटिनेरारियो प्रकाशित करने के 400 से अधिक वर्षों के बाद, उनका एक
ऐतिहासिक मानचित्र अब कलाकृति आर्ट गैलरी के हैदराबाद स्थित सह-संस्थापक प्रशांत लाहोटी
के पास भी है।
लाहोटी के 5,000 पुराने नक्शों में वैन लिंकोश्तीन का ही नाम है। ये सभी 15 वर्षों की
अवधि में एकत्र किए गए, 1482 और 1913 के बीच डेटिंग और आठ देशों से प्राप्त किए गए हैं।
इनमें से कुछ 18 अप्रैल तक बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में प्रदर्शित हैं।
अंग्रेजों ने विशेष रूप से कई मानचित्र तैयार किए, जो वर्षों से दर्शाते हैं कि उन्होंने पूरे क्षेत्र में तेजी से
नियंत्रण कैसे लिया। लेकिन भारत की महत्वपूर्ण रूपरेखाओं का मानचित्रण करने की अपनी खोज
में, उन्होंने उस समय यह क्षेत्र कैसा दिखता था, इसका एक रिकॉर्ड भी बनाया, जो आज विशेष रूप
से मूल्यवान है।
उनके संग्रह में सबसे सुंदर रंगीन नक्शों में से एक, जेन ह्यूगेन वान लिंकोश्तीन (Jan Heugen
Van Linschoten) का भारत और मध्य पूर्व का नक्शा भी है। लेकिन इसके पीछे जासूसी की एक
दिलचस्प कहानी है। लिंकोश्तीन एक डच व्यापारी था, जो गोवा में आर्कबिशप के सहायक के रूप में
काम करते हुए पुर्तगाली प्रशासन के गुप्त दस्तावेजों और नक्शों पर एक नज़र डालने में कामयाब
रहा। ऐसे समय में जब उपमहाद्वीप के साथ यूरोपीय व्यापार में पुर्तगालियों का वर्चस्व था,
लिंकोश्तीन के नक्शे ने डच और अंग्रेजों को सिखाया कि भारत के लिए लंबा रास्ता कैसे पार किया
जाए, और इस प्रकार पुर्तगाली आधिपत्य के अंत की शुरुआत हुई।
उत्तरी भारत, मुगल साम्राज्य, विलियम बाफिन (1625)
यह उत्तरी भारत का पहला नक्शा है जो इस क्षेत्र के भूगोल और मुगल साम्राज्य के प्रसार को
लगभग सटीक रूप से दर्शाता है, तथा जो उत्तर में अफगानिस्तान और कश्मीर से लेकर दक्षिण तक
फैला हुआ है। विलियम बाफिन (William Baffin) द्वारा निर्मित, यह सम्राट जहांगीर के अंग्रेजी
राजदूत द्वारा प्राप्त खुफिया जानकारी पर आधारित था।
जौनपुर सहित सैकड़ों वर्ष पूर्व निर्मित ऐसे ऐतिहासिक मानचित्र, आज भी इतने मायने क्यों रखते
हैं?
दुनिया के "बेहतरीन निजी संग्राहकों" के बीच अपना प्रतिष्ठित स्थान अर्जित करने में डेविड रम्सी
(David Rumsey) का विशेष स्थान रहा है। अपना नक्शा संग्रह शुरू करने के बाद, रुम्सी ने
डिजिटलीकरण को आगे बढ़ाने के लिए प्रारंभिक कला-तकनीकी रुचि का ही उपयोग किया। रुम्सी
के अनुसार "नक्शे लोगों से बहुत सीधे बात करने का एक तरीका होते है। मेरे लिए वे जनता को
इतिहास पढ़ाने के लिए एकदम सही उपकरण हैं।" उनके अनुसार जो बात मुझे किसी विशेष
मानचित्र की ओर आकर्षित करती है वह यह है कि यह वास्तविक स्थान कैसे दिखा रहा है।
सर्वेक्षण उपकरण, त्रिभुज का उपयोग करना, वास्तव में एक नक्शा बनाने में ऐसे मानदंड हैं, जिस
पर आप विश्वसनीय माप कर सकते हैं और वह स्थान भी देख सकते हैं जैसे कि आप उसमें खड़े हैं।
आज के नक़्शे की तुलना में उसी क्षेत्र के पुराने मानचित्र को देखें तो आप सभी पूर्ण हो चुके भवनों
को देखते हैं, बंद गली-मोहल्लों को देखते हैं। इस प्रकार पारंपरिक एवं पुराने नक्शों से आपको
स्थानों को देखने का एक नया तरीका मिलता है।
संदर्भ
https://stanford.io/3bozWgC
https://bit.ly/3zJF4Fx
https://bit.ly/3OEWV4Q
चित्र संदर्भ
1. भारत का पहला एटलस (Atlas) बना था जौनपुर में को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. जौनपुर में निर्मित एटलस (मानचित्र), को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. जेन ह्यूजेन वैन लिंकोश्तीन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. जेन ह्यूजेन वैन लिंकोश्तीन के उत्तरी भारत के नक़्शे को दर्शाता एक चित्रण (qz.com)
5. विलियम बाफिन के उत्तरी भारत और मुगल साम्राज्य के नक़्शे को दर्शाता एक चित्रण (qz.com)
6. जेन ह्यूजेन वैन लिंकोश्तीन द्वारा अफ्रीका के नक़्शे को दर्शाता एक चित्रण (qz.com)
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