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कई लोग अपनी नौकरियों के छिन जाने के लिए मशीनों को दोष देते हैं! लेकिन इस एकतरफा
विचारधारा को बदलने का सबसे शानदार उदाहरण आज हमारे पास है! आपको जानकर हैरानी
होगी की आज दुनियाभर में कृषि प्रधान देश के रूप में लोकप्रिय हमारा भारत भी, किसी दौर में
अकाल और भुखमरी के संकट से जूझ रहा था! लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद जब भारतीय
किसानों को पहली बार ट्रैक्टरों (tractors) का साथ मिला! जो की दस-दस मजदूरों का काम अकेले
मिनटों में कर सकता है! तब से किसानों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज हम युद्ध और
महामारी के वैश्विक संकट के बीच भी, दुनिया को देश का अनाज निर्यात करने में सक्षम हो गए हैं!
आज भारत में ट्रैक्टर, कृषि क्षेत्र का प्रतीक बन गया है।
भारत की आजादी के बाद से इसका समृद्ध कृषि इतिहास रहा है। ट्रैक्टरों का विकास प्रौद्योगिकी
के विकास और भारत में ट्रैक्टर कंपनियों द्वारा किसानों को सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले कृषि उपकरण
प्रदान करने की गहरी प्रतिस्पर्धा के कारण हुआ है।
भारत में सबसे पहले ट्रैक्टर 1940 के दशक के मध्य में युद्धों के दौरान खरीदे गए थे। 1947 में
जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो ट्रैक्टर निर्माण की कई कंपनियां अस्तित्व में आईं। 60, 70 और
80 के दशक में ट्रैक्टर उद्योग का मुख्य विकास भारत में ही हुआ। उस दौरान भारत सरकार की
पंचवर्षीय योजनाएं कृषि यंत्रीकरण के विकास पर दृढ़ता से केंद्रित थीं। जिस कारण ट्रैक्टर उन कृषि
उपकरणों में से एक बन गए जिन्हें सरकार द्वारा विशेष सहायता दी गई थी। भारत में 60 के दशक
के दौरान आयशर ट्रैक्टर, टैफे, एस्कॉर्ट्स, एमएंडएम (Eicher Tractor, TAFE, Escorts, M&M)
जैसी कंपनियां अस्तित्व में आईं।
60 के दशक के अंत तक देश में ट्रैक्टरों की लगभग 1,46,000 इकाइयां पहले से ही काम कर रही
थीं। 70 से 80 के दशक में ट्रैक्टर उद्योगों के विविधीकरण का काम शुरू हुआ। यूएसएसआर
(USSR) और पूर्वी ब्लॉक जैसे पड़ोसियों से ट्रैक्टर आयात किए गए थे। साल 1972 में एचएमटी
(HMT) ने भारत में भी ट्रैक्टरों का निर्माण शुरू किया था। 80 और 90 के दशक में ट्रैक्टर उद्योग ने
कई वैश्विक गठजोड़ किये। इसके बाद राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियां जैसे हरियाणा ट्रैक्टर,
पंजाब ट्रैक्टर और कई अन्य कंपनियां अस्तित्व में आईं। 1998 में, न्यू हॉलैंड ट्रैक्टर (New
Holland Tractor) ने भारत में दस्तक दी। इस कंपनी ने भारत में 70p ट्रैक्टर उपलब्ध कराने के
लिए $75 मिलियन डॉलर का निवेश किया। 1990 के दशक के बाद देश के भीतर भारत के दक्षिणी
और पूर्वी हिस्से तक भारतीय उद्योगों का विस्तार हुआ।
आज के दिन भारत में दुनिया की कुल ट्रैक्टर आबादी का लगभग 29% हिस्सा मौजूद है। 1959 में
बने गुजरात ट्रैक्टरों को अब महिंद्रा गुजरात ट्रैक्टर्स लिमिटेड कंपनी (Mahindra Gujarat
Tractors Limited Company) कहा जाता है, क्योंकि यह 2001 से महिंद्रा समूह से जुड़ गई। यह
कंपनी अब 30-60 एचपी (हॉर्स पॉवर) ट्रैक्टर बनाती है। इसके साथ ही जॉन डीरे ट्रैक्टर (John
Deere Tractors) कंपनी, 35 hp से 89hp तक के ट्रैक्टरों के कई अलग-अलग मॉडल बनाती है।
यह भी भारत के प्रमुख निर्यातकों में से एक है।
1963 से इंटरनेशनल हार्वेस्टर (International Harvester) के साथ गठजोड़ में रही महिंद्रा ट्रैक्टर
समूह के पास बी-275 मॉडल के निर्माण का अधिकार है। कंपनी अब सालाना लगभग 200,000
ट्रैक्टर बेचती है। इसके पास स्वराज ब्रांड के ट्रैक्टर भी हैं।
2010 में, महिंद्रा, संख्या के हिसाब से दुनिया का सबसे ज्यादा बिकने वाला ट्रैक्टर ब्रांड बन गया।
महिंद्रा का सबसे बड़ा उपभोक्ता आधार भारत और चीन में है। इसके अलावा उत्तरी अमेरिका और
ऑस्ट्रेलिया में भी इसका एक बढ़ता हुआ बाजार है। कंपनी भारत में सबसे बड़ी ट्रैक्टर निर्माता है
और इसकी क्षमता सालाना 150,000 ट्रैक्टर बनाने की है।
M&M ने 1963 में अपना पहला ट्रैक्टर Mahindra B-275 बनाया और भारतीय बाजार के लिए
Mahindra नेम प्लेट वाले ट्रैक्टरों के निर्माण के लिए International Harvester के साथ एक
संयुक्त उद्यम बनाया। महिंद्रा ट्रैक्टर्स ने सालाना लगभग 85,000 इकाइयां बेची, जिससे यह
दुनिया के सबसे बड़े ट्रैक्टर उत्पादकों में से एक बन गया। चीन में बढ़ते ट्रैक्टर बाजार में विस्तार
करने के लिए, महिंद्रा ने जियांगनिंग (jiangning) में बहुमत हिस्सेदारी हासिल कर ली।
महिंद्रा ट्रैक्टर्स का सबसे बड़ा उपभोक्ता आधार भारत और चीन में ही है। भारतीय उपमहाद्वीप,
संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सर्बिया, चिली, सीरिया, ईरान और अफ्रीकी महाद्वीप के एक
बड़े हिस्से में भी इसका काफी बड़ा ग्राहक आधार है। महिंद्रा अपनी सहायक कंपनियों जियांगनिंग,
महिंद्रा यूएसए और महिंद्रा ऑस्ट्रेलिया के जरिए चीन, उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी
परिचालन करती है।महिंद्रा के बाद सोनालिका ट्रैक्टर तब अस्तित्व में आया जब आईएलटी का रेनॉल्ट एग्रीकल्चर
(Renault Agriculture) के साथ गठजोड़ हुआ। इससे पहले यह इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड
सीएमईआरआई (International Tractors Limited CMERI) द्वारा डिजाइन किए गए ट्रैक्टर
बना रहे थे। इसके वाला भारत में एस्कॉर्ट्स, टैफे और आइशर मोटर (Escorts, Tafe and Eicher
Motor) जैसे बड़े निर्माता भी फल फूल रहे हैं!
ट्रैक्टर भारत जैसे देश के लिए अति महत्वपूर्ण हैं, जहां अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं। भारत में
सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों में से एक क्षेत्र कृषि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश की 70% से
अधिक आबादी को रोजगार प्रदान करता है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 25% है,
और देश के निर्यात का 13% से अधिक हिस्सा है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कृषि उत्पादक
है, और घरेलू खपत तथा अन्य देशों को निर्यात के लिए चावल, गेहूं, दालें, मसाले, गन्ना, तिलहन,
फल, सब्जियां, मूंगफली, काजू, चाय, जूट, कपास और अन्य फसलों का उत्पादन करता है। सबसे
अधिक फसल उत्पादन महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल,
मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश राज्यों से आती है, जहां कृषि मशीनीकरण विशेष रूप से ट्रैक्टरों के
व्यापक उपयोग ने इसमें निर्णायक भूमिका निभाई है।
भारत में सबसे पहले ट्रैक्टरों का आयात ब्रिटिश सरकार द्वारा 1914 में वन क्षेत्रों से झाड़ियों को
साफ करने और कृषि उद्देश्यों के लिए किया गया था। 1970 के दशक में, भारत सरकार ने ट्रैक्टर
आयात पर प्रतिबंध लगा दिया और आयातित ट्रैक्टर भागों पर उच्च शुल्क और कर लगाया, और
अधिक स्वदेशी ट्रैक्टर निर्माण को बढ़ावा देने पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
जिसके बाद भारतीय कंपनियों ने, विदेशी निर्माताओं के सहयोग से, भारत में उपयोग किए जाने
वाले अधिकांश ट्रैक्टरों का उत्पादन शुरू किया। एस्कॉर्ट्स ट्रैक्टर्स लिमिटेड (Escorts Tractors
Limited) का 35 एचपी ट्रैक्टर इस समय बेस्टसेलर (सर्वाधिक बिकने वाला) बन गया।
देश में ट्रैक्टरों का उत्पादन बढ़ता रहा और 1980 तक, भारत ने अन्य देशों में भारतीय निर्मित
ट्रैक्टरों का निर्यात करना शुरू कर दिया।
1990 तक, भारत में ट्रैक्टरों का वार्षिक उत्पादन 140,000 था और 1997 में यह बढ़कर 2
मिलियन से अधिक हो गया। इस दशक में हुए आर्थिक सुधारों के साथ, बजाज टेंपो लिमिटेड और
सोनालिका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स लिमिटेड जैसे अधिक भारतीय खिलाड़ियों ने ट्रैक्टर उद्योग में
प्रवेश किया। महिंद्रा एंड महिंद्रा, एस्कॉर्ट्स ट्रैक्टर्स लिमिटेड और टैफे लिमिटेड को पछाड़कर भारत
में ट्रैक्टरों का अग्रणी निर्माता बन गया। 2000 से 2018 तक, भारत सरकार ने देश भर में कस्टम-
हायरिंग केंद्रों की स्थापना, विकास और वित्त पोषण करना शुरू कर दिया ताकि भारतीय किसानों के
लिए महंगी और अन्यथा दुर्गम कृषि मशीनरी तक पहुंच आसान हो सके। ये कस्टम-हायरिंग केंद्र
(custom-hiring center) मुख्य रूप से ट्रैक्टर कंपनियों, उद्यमियों और गैर-सरकारी संगठनों
द्वारा संचालित किए जाते हैं, लेकिन व्यक्तिगत किसान जिनके पास ट्रैक्टर हैं, उन्होंने भी रोपण
और कटाई के मौसम के दौरान अन्य स्थानीय किसानों को अपने ट्रैक्टर किराए पर देने का
व्यवसाय शुरू किया है। आज भारत दुनिया में ट्रैक्टरों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, जो प्रति
वर्ष लगभग 660,000 इकाइयों का निर्माण करता है। ट्रैक्टर उत्पादन के मुख्य केंद्र कर्नाटक,
महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात राज्यों में हैं, और शीर्ष घरेलू बाजार महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा,
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में हैं। भारतीय ट्रैक्टर एशिया, अफ्रीका, यूरोप और
अमेरिका के अन्य देशों में भी निर्यात किए जाते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/2HIbXcY
https://bit.ly/3cw5EZH
https://bit.ly/3Pxljq7
चित्र संदर्भ
1. ट्रैक्टर से खेत की जुताई करते किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. इस्लिंगटन रेलवे में ट्रैक्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत के ग्रामीण क्षेत्र में ट्रैक्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. महिंद्रा ट्रैक्टर्स को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. विभिन्न ब्रांडों के ट्रैक्टर को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
6. महिंद्रा 5035 एचएसटी एमएफडब्ल्यूडी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. बिक्री हेतु रखे गए महिंद्रा ट्रैक्टर्स को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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