काशी से हिमाचल की पहाड़ी और हिंद महासागर तक फैली है, शक्तिपीठों की दिव्यता

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
16-06-2022 08:54 AM
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काशी से हिमाचल की पहाड़ी और हिंद महासागर तक फैली है, शक्तिपीठों की दिव्यता

ऊर्जा अथवा शक्ति के बिना, इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड की कल्पना करना भी व्यर्थ प्रतीत होता है! इसीलिए सनातन धर्म में शक्ति को सर्वोपरि एवं सर्वशक्तिमान माना जाता है। भगवान शिव और शक्ति का अर्धनारीश्वर रूप, हिन्दू धर्म में बेहद पूजनीय माना जाता है। साथ ही विभिन्न प्राचीन हिंदू धार्मिक ग्रंथों में, शिव शक्ति प्रेम के प्रमाण, आज भी 52 शक्तिपीठों के रूप में पूजनीय हैं, जिनमें से पांच शक्तिपीठ अकेले हिमाचल में ही स्थित हैं। शक्तिवाद में, आदि पराशक्ति को सर्वोच्च व्यक्ति / भगवान के रूप में पूजा जाता है। हिंदू धर्म में, शक्तिवाद एक विशेष धार्मिक परंपरा है, जहां शक्ति का शाब्दिक रूप से अर्थ "ऊर्जा, क्षमता, प्रयास, होता है, और यह विशेष रूप से मौलिक ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। इस ऊर्जा को रचनात्मक, टिकाऊ,होने के साथ ही विनाशकारी भी माना जाता है, तथा इसे कभी-कभी ऊर्जा के शुभ स्रोत के रूप में भी जाना जाता है। शक्ति को कभी-कभी "आदि शक्ति" या "आदि परा शक्ति" (यानी, मौलिक अकल्पनीय ऊर्जा) के रूप में भी जाना जाता है।
सृष्टि के प्रत्येक तल पर, ऊर्जा स्वयं को पदार्थ के सभी रूपों में प्रकट करती है और यह सभी पराशक्ति के अनंत रूप माने जाते हैं। हालाँकि, परा शक्ति का वास्तविक रूप अज्ञात है, और मानव समझ से परे है। लेकिन आमतौर पर इसे अनादि (जिसकी कोई शुरुआत नहीं है, कोई अंत नहीं है) और नित्या (हमेशा के लिए) के रूप में वर्णित किया जाता है। शक्तिवाद, देवी को सर्वोच्च ब्रह्म के रूप में मानता है, और अन्य सभी प्रकार के देवत्व को केवल उनकी विविध अभिव्यक्ति ही माना जाता है। अपने दर्शन और व्यवहार के विवरण में, शक्तिवाद, शैववाद जैसा ही दिखता है। भारत में देवी का सबसे पुराना प्रतिनिधित्व त्रिकोणीय रूप में मिलता है। सोन नदी घाटी में पुरापाषाण काल ​​के संदर्भ में 9,000-8,000 ई.पू. में पाया गया, बघोर पत्थर, एक यंत्र का प्रारंभिक उदाहरण माना जाता है। पत्थर की खुदाई करने वाली टीम के सदस्यों ने माना की, इस पत्थर के शक्ति से जुड़े होने की अत्यधिक संभावना थी। इसके साथ ही सिन्धु घाटी सभ्यता में भी शिव और शक्ति की पूजा प्रचलित थी। शक्ति देवी को दक्षिण भारत, खासकर कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों में अम्मा के रूप में भी जाना जाता है। दक्षिण भारत के अधिकांश गांवों में, शक्ति देवी के विभिन्न अवतारों को समर्पित कई मंदिर स्थापित हैं। यहां के ग्रामीण मानते हैं कि, शक्ति गाँव की रक्षक, दुष्टों को दण्ड देने वाली, रोगों को दूर करने वाली और गाँव का कल्याण करने वाली है। शक्ति नामों के कुछ उदाहरण महालक्ष्मी, कामाक्षी, पार्वती, ललिता, भुवनेश्वरी, दुर्गा, मीनाक्षी, मरिअम्मन, येल्लम्मा, पोलेरम्मा और पेरंतलम्मा भी हैं।
शक्ति के विभिन्न रूपों को दर्शाते हुए, शक्तिपीठों को शक्तिवाद में महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता हैं। हिंदुओं के विभिन्न ग्रंथों में, 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता हैं, जिनमें से 18 को मध्यकालीन हिंदू ग्रंथों में महा (प्रमुख) के रूप में नामित किया गया है। शक्तिपीठ अस्तित्व में आने का वर्णन, विभिन्न किंवदंतियाँ करती हैं। इनमें से सबसे लोकप्रिय किवदंती देवी सती की मृत्यु की कहानी पर आधारित है। इसके पीछे यह अंतर्कथा है कि, दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शंकर को जानबूझकर नहीं बुलाया गया। शंकर जी की पत्नी और प्रजापति दक्ष की पुत्री सती, पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकर जी के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने चली गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कह दिए। भगवान शिव के इस अपमान से पीड़ित हुई सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। इस दुर्घटना से क्रोधित होकर भयंकर विलाप करते हुए, भगवान शिव, सती के जलते हुए शरीर को उठाकर, ब्रह्मांड में घूमने लगे। शिव को स्थिर करने के लिए, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग करके, माता सती के शरीर को 51 अंगों में काट दिया। माता सती के कटे हुए अंग, धरती पर जहां भी गिरे, वहां पर पवित्र शक्तिपीठों का निर्माण हो गया। प्राचीन और आधुनिक स्रोतों में कई किंवदंतियाँ थीं, जो इस साक्ष्य का दस्तावेजीकरण करती हैं।
आज देवी पूजा के इन ऐतिहासिक स्थलों (शक्तिपीठों) में से अधिकांश भारत में ही मौजूद हैं, लेकिन साथ ही बांग्लादेश में सात, पाकिस्तान में तीन, नेपाल में तीन और तिब्बत और श्रीलंका में भी एक-एक शक्तिपीठ स्थापित हैं। हमारे जौनपुर के निकट, प्रयागराज शहर के संगम तट पर माता की हाथ की अँगुली गिरी थी। यहाँ तीन मंदिरों को शक्तिपीठ माना जाता है। इस शक्तिपीठ को ललिता के नाम से भी जाना जाता हैं। उत्तर प्रदेश के साथ ही, पहाड़ी राज्य हिमांचल प्रदेश में, माता के शक्तिपीठ बेहद पूजनीय माने जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में कुल 5 शक्ति पीठ हैं। जिनकी सूची निम्नवत दी गई है: 1) नैना देवी मंदिर: नैना देवी मंदिर पीठ, बिलासपुर जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इस मंदिर में माता सती के नेत्र गिरे थे। यहां उन्हें 2 सोने की आंखों वाली पिंडी के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर का निर्माण बिलासपुर रियासत के राजा बीर चंद ने करवाया था। 2) चिंतपूर्णी मंदिर: हिमांचल में ऊना जिले के भरवई में, माता सती का सिर गिरा था। यहाँ देवी को मां छिन्नमस्तिका देवी के रूप में पूजा जाता है, जो मां दुर्गा के कई रूपों में से एक है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण तब हुआ था, जब देवी अपने भक्त, पंडित माई दास के सामने प्रकट हुई थी। उनका वंश आज भी मंदिर की सेवा करता है। 3) ज्वालामुखी मंदिर: यह पीठ हिमाचल में कांगड़ा जिले के ज्वालाजी कस्बे में स्थित है। कहा जाता है कि इस भूमि पर सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। यहाँ चट्टानों में दरारों के माध्यम से देवी नीली ज्वाला के रूप में प्रकट होती हैं। यहां की शाश्वत ज्वाला का दिव्य अनुभव, समृद्ध इतिहास और पहाड़ों की प्राचीन सुंदरता निश्चित रूप से तीर्थयात्रियों और यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देती है। 4) ब्रजेश्वरी मंदिर: मान्यता है की हिमांचल के ब्रजेश्वरी मंदिर में मां सती देवी ब्रजेश्वरी के रूप में निवास करती हैं। इस मंदिर में देवी का बायां स्तन गिरा था। यह हिमांचल के पीठ कांगड़ा जिले के नगरकोट शहर में स्थित है। यह मंदिर हरी-भरी हरियाली से आच्छादित है और कांगड़ा की शानदार घाटी, धौलाधार की बर्फ से ढकी पगडंडियां और अंतहीन धाराएं तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए स्वर्ग मानी जाती हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडवों ने मां दुर्गा के सपने में आने के बाद मूल मंदिर का निर्माण किया था। 1905 में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा कई बार लूटे जाने और विनाशकारी भूकंप के बावजूद, मंदिर अभी भी अपनी दिव्य उपस्थिति के साथ मजबूती से खड़ा है। 5) चामुंडा मंदिर: चामुंडा मंदिर हिमाचल के कांगड़ा जिले का एक और प्रसिद्ध मंदिर है जो धर्मशाला से 15 किमी दूर, बनेर नदी के तट पर स्थित है। इसे शिव और सती का निवास स्थान माना जाता है। चामुंडा नाम, दो राक्षसों चंड-मुंड के नाम से लिया गया है, जिनका वध माता द्वारा किया गया था। चामुंडा, एक आदिवासी देवी, मां दुर्गा का एक उग्र रूप है, जिन्हें अच्छाई को बुराई से बचाने के लिए सात मातृकाओं में से एक माना जाता है। स्थानीय लोगों के बीच इस मंदिर का बहुत महत्व है। मंदिर की वास्तुकला तंत्र की परंपरा से प्रेरित है, जो धौलाधार रेंज की उभरती चोटियों से मिलती जुलती है। मंदिर की समृद्ध विरासत किसी को भी मोहित कर सकती है।

संदर्भ
https://bit.ly/3Qf1yoh
https://bit.ly/3mKBsMb
https://bit.ly/3QgCJIF

चित्र संदर्भ
1. ज्वाला जी मंदिर हिमांचल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. देवी महेश्वरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. विभिन्न ईश्वरीय रूपों को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. शिव, शक्ति एवं विष्णु को दर्शाता चित्रण (flickr)
5. नैना देवी मंदिर हिमांचल प्रदेश को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. चिंतपूर्णी मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. ज्वालामुखी मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. हिमांचल के ब्रजेश्वरी मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
9. चामुंडा मंदिर हिमाचल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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