भारतीय जैविक कृषि से प्रेरित, अमरीका में विकसित हुआ लुई ब्रोमफील्ड का मालाबार फार्म

भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
20-05-2022 09:57 AM
भारतीय जैविक कृषि से प्रेरित, अमरीका में विकसित हुआ लुई ब्रोमफील्ड का मालाबार फार्म

लुई ब्रोमफील्ड (Lewis Bromfield) एक अमेरिकी लेखक और संरक्षणवादी थे। उनका जन्म 1896 में ओहियो (Ohio) के मैन्सफील्ड (Mansfield) में हुआ था। उनके पिता चार्ल्स ब्रोमफील्ड (Charles Brumfield) एक बैंक कैशियर और माता एनेट मैरी कूल्टर ब्रोमफील्ड (Annette Marie Coulter Brumfield) ओहियो के एक किसान की बेटी थी। ब्रोमफील्ड ने बाद में अपने नाम की वर्तनी को "लुई ब्रोमफील्ड (Louis Bromfield)" में परिवर्तित दिया क्योंकि उन्हें लगा कि यह अधिक अनोखा लग रहा है। ब्रोमफील्ड को खेत में काम करना बहुत पसंद था।
1914 में, उन्होंने कृषि का अध्ययन करने के लिए कॉर्नेल विश्वविद्यालय (Cornell University) में दाखिला लिया। लेकिन उनके परिवार की बिगड़ती आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें केवल एक सेमेस्टर के बाद स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनके माता पिता बहुत ज्यादा कर्ज में डूब गए थे इसीलिए उन्होंने सेंट्रल मैन्सफील्ड में अपना घर बेच दिया और शहर के बाहरी इलाके में ब्रोमफील्ड के दादा के खेत में निवास करने के लिए चले गए। 1915 से 1916 तक, ब्रोमफील्ड ने वसी़यत में मिली अपनी अनुत्पादक पारिवारिक खेती को पुनर्जीवित करने के लिए संघर्ष किया। इससे उन्हें एक अनुभव की प्राप्ति हुई जिसे उन्होंने बाद में अपने आत्मकथात्मक उपन्यास "द फार्म" (The Farm) में उल्लेखित किया है। 1916 में, उन्होंने पत्रकारिता का अध्ययन करने के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय (Columbia University) में दाखिला लिया। कोलंबिया में उन्होंने बहुत कम समय व्यतीत किया। वह कोलंबिया में एक साल से भी कम समय बिताने के बाद अमेरिकी फील्ड सर्विस के साथ प्रथम विश्व युद्ध में स्वयंसेवा करने के लिए चले गए।
1920 के दशक में लुई ब्रोमफील्ड को पहली बार एक लेखक के रूप में सफलता प्राप्त हुई। उनकी प्रत्येक कहानियों का विषय पलायन का विचार हुआ करता था जो उनके हर संस्करण में बखूबी चर्चित होता था। उनके शुरुआती कार्यों में उनके स्वयं के जीवन के पाठ्यक्रम को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया था, जिसमें सभी पात्र एक दम घुटने वाले छोटे शहर से पलायन कर रहे थे। कद और प्रसिद्धि में उनके उदय की विडंबनापूर्ण परिस्थिति उनके 10 वें उपन्यास, द मैन हू हैड एवरीथिंग (The Man Who Had Everything) में पाई जा सकती है, जब मुख्य चरित्र को धन, संपत्ति इत्यादि सब कुछ प्राप्त होता है लेकिन इसके बावजूद वह खुद को अपने धन और प्रमुखता से घुटा हुआ पाता है, और वह अपनी सफलता से बचने की खोज करता है। बड़ौदा के महाराजा और महारानी ने 1933 में ब्रोमफील्ड को भारत आने के लिए निमंत्रित किया। उनके निमंत्रण पर ब्रोमफील्ड को जनवरी 1933 में भारत भेज दिया गया। उस समय कई सारे प्रमुख नेता इंग्लैंड (England) में आयोजित एक ऐतिहासिक राजनीतिक सम्मेलन से लौट रहे थे, इसलिए उन्हें कई प्रमुख हस्तियों से मिलने का अवसर मिला, जिनके निमंत्रण ने ब्रोमफील्ड के लिए विशाल राष्ट्र के विभिन्न हिस्सों को देखने का रास्ता खोल दिया। एक बार वह भारत के पश्चिमी तट पर, बॉम्बे के दक्षिण में एक कृषि क्षेत्र का निरीक्षण कर रहे थे। वहां ब्रोमफील्ड का सामना एक ऐसे युवक से हुआ, जिसके अंदर कृषि क्षेत्र में सुधार करने का जुनून भरा हुआ था। उन्हें देखने के बाद ब्रोमफील्ड की आत्मा में सोया हुआ आदर्शवादी फिर से जाग गया। कृषि क्षेत्र और मिट्टी के प्रति उनके इस अतुल्य प्रेम ने उनमें एक नए लक्ष्य को पाने के उत्साह को आमंत्रित किया, और उन्होंने ठीक उसी समय ठान लिया कि वह एक खेत खरीदेंगे और अपनी धरती और अपनी क्षीण आत्मा को पुनर्जीवित करने के लिए काम करेंगे। भारत में आए इस विचार के कारण, उन्होंने अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ओहिओ में एक खेत खरीदा और इस पर परियोजना शुरू करने से पहले गणेश प्रतिमा भी स्थापित की, इस खेत को आज मालाबार फार्म (Malabar Farm) के रूप में जाना जाता है! विश्व में मौजूद कृषि भूमि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है लेकिन इसके बावजूद भी इस भूमि को संरक्षित करने का विषय इस सदी के लिए सबसे दयनीय पर्यावरणीय चुनौती है। द न्यूयॉर्क टाइम्स (The New York Times) के पूर्व स्तंभकार स्टीफन हेमैन (Stephen Heyman) ने अपनी एक नोवेल "द प्लांटर ऑफ मॉडर्न लाइफ (The Planter Of Modern Life)" में अमेरिकी कृषि इतिहास के संबंध में एक आकर्षक जीवनी का उल्लेख किया है।
हेमैन की इस रचना का मुख्य विषय पुलित्ज़र-पुरस्कार (Pulitzer Prize) विजेता उपन्यासकार लुई ब्रोमफ़ील्ड थे, जो औद्योगीकृत खेती के प्रमुख आलोचक भी थे। हेमैन कहते हैं कि कुछ साल पहले ग्रामीण इंडियाना (Indiana) में ताजा जुताई वाले खेतों से गुजरते हुए, वे भूमि में उर्वरता की कमी को देख रहे थे और फिर उन्हें यह आभास हुआ कि हम सभी को तत्काल उन विधियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है जो भूमि की इस उर्वरता को पुन: उत्पन्न करने में मदद कर सकती हैं। 1930 के दशक में फ्रांस (France) में, ब्रोमफील्ड ने अपने पड़ोसी किसान की खाद बनाने और मल्चिंग प्रक्रिया को एक बंजर और मलबे से भरी भूमि को उपजाऊ भूमि के भूखंड में परिवर्तित करने के लिए उपयोग किया था। वह जानना चाहते थे कि सदियों से फ्रांसीसी बागानों की खेती कैसे की जाती थी। संयुक्त राज्य की मिट्टी धूल की भांति उड़ती जा रही थी, उन्होंने महसूस किया कि भूमि के प्रबंधन की व्यवस्था सही नहीं है। इसके पश्चात ब्रोमफील्ड ने भारत में अल्बर्ट हॉवर्ड (Albert Howard) के खेतों का दौरा किया, जो एक प्रसिद्ध अंग्रेजी वनस्पतिशास्त्री थे। हावर्ड ने पश्चिमी कृषि तकनीकों को सिखाने के लिए भारत की यात्रा की थी, लेकिन इसके विपरित उन्होंने भारत से कृषि की पारंपरिक तकनीकों का दस्तावेजीकरण किया और उन विधियों को औपनिवेशिक कृषि के अनुकूल बनाया, जिससे जैविक आंदोलन का प्रारंभ हुआ।
ब्रोमफील्ड ने इंदौर में हावर्ड के खेत पर, बड़े पैमाने पर खाद निर्माण को देखा और उपजाऊ मिट्टी को बनाए रखने के लिए प्रकृति का अनुकरण करने की सलाह को अवशोषित किया। इसके बाद ब्रोमफील्ड, द्वितीय विश्व युद्ध से बचने के लिए ओहियो वापस चले गए। वहां जाने के बाद ब्रोमफील्ड ने एक पुस्तक "रॉयल्टी" (Royalty) के साथ एक खेत भी खरीदा। जब वसंत ऋतु के हिमपात में उनकी भूमि की आधी ऊपरी मिट्टी चौड़ी-चौड़ी नालियों में बह गई है तो उन्होंने हॉवर्ड की विधियों को प्रयोग में लाया। ब्रोमफील्ड ने भूमि में खाद का निर्माण और मल्च की प्रक्रिया द्वारा भूमि को उपजाऊ बनाया और उसमें फसलें लगाईं और मंथन करने का अभ्यास किया और भूमि में खड़ी ढलानों को बिना जुताई के छोड़ दिया। उन्होंने एक ही खेत में एक साथ कई फसलें उगाईं। ब्रोमफील्ड के पड़ोसियों ने उसके इन तरीकों को देख उसे पागल समझा, लेकिन ब्रोमफील्ड की मिट्टी में तेजी से सुधार हुआ, और उन्हें विश्वास हो गया कि कृषि करने की यह तकनीक अब वृद्धि की ओर बढ़ रही है। कृषि की इस तकनीक को हम अब पारंपरिक खेती या जैविक कृषि (Organic Farming) कहते हैं। हावर्ड की इस कृषि तकनीक और विधियों को फैलाने के लिए ब्रोमफील्ड ने अपनी साहित्यिक प्रमुखता का उपयोग किया और उन्होंने इन सभी के बारे में तथा अपने व्यक्तिगत अनुभवों के बारे में 1945 में "प्लीसेंट वैले" (Pleasant Valley) और 1948 में "मालाबार फार्म" (Malabar Farm) नामक लोकप्रिय संस्मरण लिखे। उन्होंने साथ ही अपने लेखन और फिल्म निर्माण संबंधित काम को भी जारी रखा और अपने सबसे लोकप्रिय उपन्यास "Then the rains came" का निर्माण किया, जिसे उन्होंने भारत में भी सेट किया। हॉलीवुड निर्देशकों द्वारा इस पुस्तक पर दो बार सफल व्यावसायिक फिल्में भी बनाई गई थी, जिन्हें आज यूट्यूब (Youtube) पर भी मुफ्त में देखा जा सकता है। इसी के साथ उन्होंने अपने खेत को हजारों आगंतुकों और पर्यटकों के लिए खोल दिया ताकि वे सबूत के तौर पर फसलों की खेती के एक वैकल्पिक दृष्टिकोण के लिए एक प्रतिरूप देख सकें।

संदर्भ:

https://go.nature.com/3yJT8ig
https://bit.ly/3lrA2pn
https://bit.ly/3z2lNzt
https://bit.ly/3FWs5SB
https://bit.ly/3yG6QCS

चित्र संदर्भ

1  लुई ब्रोमफील्ड के मालाबार फार्म को संदर्भित करता एक चित्रण ( Picryl)
2. सबसे अधिक बिकने वाले उपन्यासों के पुल्ट्जर पुरस्कार विजेता लेखक लुई ब्रोमफील्ड (बाएं) ने अपना एक टाइपराइटर सरकार को बेच दिया, ताकि यह युद्ध के प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। जिस तस्वीर को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
3. मालाबार फार्म को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मालाबार फार्म में पहाड़ी पर मुख्य घर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. मालाबार फार्म पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (Amazon)

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