मिट्टी से जुड़ी हैं, भारतीय संस्कृति की जड़ें, क्या संदर्भित करते हैं मिट्टी के बर्तन या कुंभ?

म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण
18-05-2022 08:49 AM
मिट्टी से जुड़ी हैं, भारतीय संस्कृति की जड़ें, क्या संदर्भित करते हैं मिट्टी के बर्तन या कुंभ?

भारतीय संस्कृति में आपको प्रकृति की छाप हर जगह देखने को मिलेगी! प्राचीन काल से ही हम प्रकृति के साथ, शानदार समंजयस्य बनाने में सफल रहे है। इस सामजंस्य ने हमेशा से मानव सभ्यता को एक नई रफ़्तार प्रदान की है, जिसके प्रमाण प्राचीन भारतीय संस्कृतियों एवं सभ्यताओं में धातु एवं मिट्टी के बर्तनों के अवशेषों में देखने को मिलते हैं।
संस्कृत भाषा में मिट्टी के बर्तन हेतू "कुंभ" शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ "शरीर" होता है। संस्कृत भाषा के सबसे पहले स्थापित शब्दकोषों में से एक में कहा गया है कि, पृथ्वी का एक पर्याय कुम्भिनी (बर्तन) भी है। ब्रह्म (ब्रह्मांड) के साथ व्यक्तिगत आत्मा के संबंध की मुख्य अद्वैत दार्शनिक सादृश्यता (Advaita philosophical analogy) को, बर्तन के अंदर और बाहर की हवा के संबंध के माध्यम से वर्णित किया गया है। वर्षों से, कई अनुष्ठान समारोहों में टेराकोटा या धातु के बर्तनों का उपयोग किया जाता रहा है, जहां उनका उपयोग एक विशिष्ट उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया गया है। भारतीय साहित्य में बर्तन को एक ऐसे पात्र के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिसमें जीवन, आत्माएं और मृत व्यक्ति मौजूद होते हैं।
कुंभ या कलश का वैदिक, बौद्ध और जैन कर्मकांडों में न केवल धन और उर्वरता के प्रतीक के रूप में, बल्कि नश्वर अवशेषों के भंडार (mortal remains) के रूप में भी जबरदस्त महत्व रहा है। टेराकोटा या धातु के बर्तनों का उपयोग आत्माओं के रखवाले के रूप में भी किया जाता था। हिंदू धर्म में, ब्रह्मा के बाएं हाथ में कमंडल को ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है जिसके माध्यम से ब्रह्मांड का निर्माण होता है। बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म में, कमंडल में पानी, जीवन, उर्वरता और धन के अमृत का प्रतीक है।
प्रारंभिक वैदिक युग से, बर्तनों ने रोजमर्रा की जिंदगी में एक अभिन्न भूमिका निभाई है। सिंधु घाटी सभ्यता के विनम्र उत्तरजीवी, टेराकोटा के बर्तन और कटोरे, प्राचीन काल के अध्ययन को आगे बढ़ाने में इतिहासकारों की सहायता कर रहे हैं। पानी के संग्रह हेतु, बर्तनों की बहुमुखी प्रतिभा और उपयोगिता सदियों से लोकप्रिय बनी हुई है। मटके के विभिन्न आकार, डिजाइन और उपयोग भारतीय परिवार के धर्मनिरपेक्ष जीवन में पूरी तरह से निहित हैं। पहले हर घर में कुएं, नदी या तालाब से पानी लाने के लिए, पीतल के, तीन या चार घड़े होते थे। प्रत्येक बर्तन, उसके आकार के आधार पर, इस तरह संरचित किया गया था कि, यह सिर या वाहक के कूल्हे पर संतुलित हो सकता था।
औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों ने, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड (Sulfuric Acid, Nitric Acid) तथा नील, कपास और चीनी के बागानों पर खाद के रूप में आवश्यक अन्य रसायनों के परिवहन के लिए मिट्टी के घड़ों का आयात किया। इन पात्रों को मानकीकृत किया गया था, और वजन और क्षमता के साथ मुहर लगाई जाती थी। इन्हें खाली करने के बाद साफ कर बाजार में बेचा जाता था। एंटीसेप्टिक, मजबूत और एसिड के लिए गैर-प्रतिक्रियाशील गुणों के कारण, भारतीयों ने इन जारों को अचार को संरक्षित करने के लिए सही पाया! ग्रामीण भारत में कई विशाल और विविध परंपराएं हैं, जहां मिट्टी के बर्तनों के प्रयोग सदियों से लगभगअपरिवर्तित रहे हैं। माना जाता है की दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में, भारत में सबसे अधिक कुम्हार रहते हैं। और निस्संदेह मिट्टी और घड़ा भारत में और भारतीय मानस क्षेत्र के हिस्से में मौजूद है। भारतीय संस्कृति में पृथ्वी के महत्व को मिट्टी और मटके के रूपकों द्वारा चित्रित किया गया है जो न केवल भारतीय पवित्र ग्रंथों में बल्कि मिथकों, कविता और साहित्य में भी शाश्वत सत्य की व्याख्या करने के लिए बार-बार उपयोग किए गए हैं। भारत के कई हिस्सों में देवी-देवता भी मिट्टी से बने हैं। चूंकि मिट्टी को धरती माता के रूप में सम्मानित किया जाता है, इसलिए बिना पकी हुई मिट्टी में बनाई गई छवियों को देवताओं को बनाने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
भारत में कुम्हारों के शिल्प के कई पौराणिक प्रकरण या किवदंतियां देखी जा सकती हैं। एक प्रचलित मिथक के अनुसार, तीन प्रमुख देवताओं में से एक, विनाश के देवता भगवान शिव, हिमालय की पुत्री पार्वती से शादी करना चाहते थे। लेकिन उनके पास कोई कुम्भ या मिट्टी का घड़ा नहीं था, जिसके बिना विवाह नहीं हो सकता था। तब उन्हें एक ब्राह्मण व्यक्ति, कुललुक ने, अपनी सेवा प्रदान करने की पेशकश की। लेकिन बर्तनों के निर्माण के लिए उन्हें औजारों की आवश्यकता थी। इसलिए संरक्षण के देवता विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र (उनका दिव्य हथियार) कुम्हार के पहिये के रूप में दिया। शिव ने पहिया घुमाने के लिए अपना घोटाना (भांग पीसने के लिए उसका मूसल) दिया। साथ ही उन्होंने पानी को पोंछने के लिए अपना लंगोटा, और बर्तन को काटने के लिए अपना जनेऊ या पवित्र धागा भी दिया। सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने अपने आदि-कुर्मा (कछुए) को एक खुरचनी के रूप में उपयोग करने के लिए दिया। कहानी में एकमात्र महिला माता पार्वती द्वारा सबसे महत्वपूर्ण घटक-मिट्टी प्रदान की गई थी, जिन्होंने मिट्टी का निर्माण करने के लिए प्रतीकात्मक रूप से अपने शरीर को पोछा। इन उपकरणों से कुललुक ने बर्तन तैयार किए और इस प्रकार भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ। कुललुक के वंशजों को खुम्भर या "बर्तन बनाने वाला" कहा जाता है।
आज भी एक हिंदू विवाह में अनाज और पवित्र जल से भरे बर्तन, उर्वरता और ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिन्हें आमतौर पर शादी के मंडप के चारों कोनों पर या दूल्हे और दुल्हन के चारों ओर देखा जा सकता हैं। मिट्टी बर्तन भारतीय अनुष्ठानों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, जहां विभिन्न अनुष्ठानों में मिट्टी के बर्तन भक्त और देवता के बीच मध्यस्थ (mediator) बन जाते है। कई हिंदू, बौद्ध और जैन स्थापत्य संरचनाओं में अतिप्रवाहित बर्तन की छवि पाई जाती है। अतिप्रवाहित बर्तन को पुराणघाट कहा जाता है जो बहुतायत और शून्य (abundance and void) दोनों का प्रतीक है। गोल तले वाला पानी का घड़ा, भारत के हर गाँव की आधारशिला होता है। 3000 ईसा पूर्व की सिंधु सभ्यता के पुरातत्व स्थलों से भी इसी रूप का पता चला है। गोल तली वाले बर्तन के अंदर का पानी ठंडा रहता है। हालांकि इसके बावजूद आज हल्के प्लास्टिक के बर्तन, मिट्टी के बर्तन की जगह ले रहे हैं। प्रशीतन के उपयोग (use of refrigeration) के साथ, पारंपरिक पानी के बर्तन विशेष रूप से शहरी घरों में अपना प्रमुख स्थान खो रहे हैं।
30 साल पहले भारत में समाज की जरूरतों को पूरा करने वाले लगभग दस लाख कुम्हार रहते थे, हालांकि आज बहुत कम पारंपरिक कुम्हार बचे हैं और अगली पीढ़ी को भी इस शिल्प में उतनी दिलचस्पी नहीं है। भारतीय संस्कृतियों में कुम्हार को रहस्यवादी शक्तियों का स्वामी और एक कीमियागर माना जाता है क्योंकि वह अग्नि द्वारा शुद्ध की गई पृथ्वी को प्रयोग करने योग्य 91 रूपों में परिवर्तित करता है। अपनी सामग्री के माध्यम से वह पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और अंतरिक्ष के पांच पवित्र तत्वों का उपासक और मध्यवर्ती बन जाता है। भारत के कुछ हिस्सों में कुम्हार एक पुजारी की भूमिका भी निभा सकता है। उत्तर प्रदेश के एक अनुष्ठान में दुल्हन चक पूजा नामक एक समारोह या शादी में प्रजनन क्षमता और खुशी सुनिश्चित करने के लिए कुम्हारों के पहिये की पूजा करती है। कुम्हार का पहिया पवित्र और निर्माता प्रजापति का यंत्र माना जाता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3wyWv9g
https://bit.ly/37L1LOt

चित्र संदर्भ
1  मिट्टी के बर्तन बनाते कुम्हार को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
2. प्राचीन भारतीय मिट्टी के बर्तनों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मिट्टी के घड़ के निर्माण को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
4. भारतीय कुम्हार और उसकी पत्नी को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)

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