मानव हस्तक्षेप के संकटों से गिरती भारतीय कीटों की आबादी, हमें जागरूक होना है आवश्यक

तितलियाँ व कीड़े
14-05-2022 10:13 AM
मानव हस्तक्षेप के संकटों से गिरती भारतीय कीटों की आबादी, हमें जागरूक होना है आवश्यक

जब कभी भी कोई कीट हमारी फसलों, खेतों, बगीचों या घर में मंडराते हुए दिखता है, तो हम उन्हें घृणास्पद निगाहों से देख अपने फसलों, पौधों या खाद्य सामग्री को बचाने के लिए उन्हें मारने के विभिन्न उपायों का उपयोग करने लगते हैं। लेकिन आगे से जब भी आप ऐसा करने वाले हों तो आपको ऐसा करने से पहले दो बार सोचना चाहिए, क्योंकि कीड़ों की आबादी दुनिया भर में तेज़ी से कम हो रही है। कीड़े हमारे वातावरण के संरक्षण और खाद्य पदार्थों के उत्पादन में भी अहम भूमिकानिभाते हैं। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि परागण करने वाले पौधों और खाद्य श्रृंखलाओं का समर्थन करके दुनिया को चलाने वाले कीड़े आज काफी गंभीर संकट से गुजर रहे हैं। नेचर (Nature) पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और गहन कृषि के संयोजन का कीड़ों की बहुतायत और विविधता पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है।
शोधकर्ताओं द्वारा दुनिया भर से एकत्र किए गए पहले प्रकाशित 264 जैव विविधता अध्ययनों का उपयोग किया गया, जिसमें मधुमक्खियों, बीटल, टिड्डे और तितलियों सहित लगभग 18,000 प्रजातियां शामिल थीं। अध्ययन में 750, 000 से अधिक तथ्य बिंदु शामिल हैं। अध्ययन में कहा गया है कि उन क्षेत्रों, जहां पर्याप्त गर्मी का दस्तावेजीकरण किया गया है और जहां भूमि को गहन कृषि (जिसका अर्थ है कि इसमें एकल कृषि या कीटनाशकों काउपयोग शामिल है) के लिए परिवर्तित किया गया है,में कीड़े लगभग 50 प्रतिशत कम प्रचुर मात्रा में हैं, और एक चौथाई से अधिक कम प्रजातियां पाई जाती हैं।उदाहरण के लिए, एकल कृषि अक्सर पेड़ की छायांकन को कम कर देती है, जिससे यह किसी दिए गए स्थान पर गर्म हो जाती है। उसके ऊपर जलवायु परिवर्तन इसे और अधिक गंभीर बना देता है।जिस वजह से जिन कीड़ों को गर्मी से राहत की आवश्यकता होती है या ठंडी जलवायु के लिए उत्तर की ओर बढ़ने की आवश्यकता होती है, वे बड़े खेतों से उचित आवास की कमी मिलने के परिणामस्वरूप ये अधिक खतरों में आ जाते हैं। यह विशेष रूप से इंडोनेशिया (Indonesia) और ब्राजील (Brazil) जैसे देशों में एक समस्या है, जहां जंगलों को साफ किया जा रहा है और तापमान दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक गर्म हो रही है।कष्टप्रद मिज (Midge) जैसे कीड़ों के लिए यह परिवर्तन काफी मुश्किल है।कोको (Cocoa) को मुख्य रूप से मिज द्वारा परागितकिया जाता है और लोग मिज को काफी न पसंद करते हैं।क्योंकि उनका काटना काफी असुविधाजनक लगता है। लेकिन अगर आपको चॉकलेट पसंद है तो आपको सराहना करनी चाहिए क्योंकि उनके बिना हमारे पास बहुत कम कोको होंगे।
मधुमक्खियों के बारे में भी यही कहा जा सकता है, जिन्हें जलवायु परिवर्तन और एकल-फसल खेती से अधिक गर्मी होने पर मुश्किल हो रही है।अमेरिकी कृषि विभाग के अनुसार, कीट परागणक मानव आहार के लगभग एक तिहाई के लिए जिम्मेदार हैं। और 2016 की संयुक्त राष्ट्र विज्ञान रिपोर्ट में कहा गया है कि अकशेरुकी परागणकों की 5 में से 2 प्रजातियाँ, जैसे कि मधुमक्खियाँ और तितलियाँ, विलुप्त होने की ओर हैं। वहीं वैज्ञानिकों के अनुसार आने वाले वर्षों में वैश्विक स्तर पर कीटों की 40 प्रतिशत प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना है। भारतीय कीटविज्ञानी इस बात से सहमत हैं कि भारत में पहले से ही कीटों की संख्या में कमी देखी जा रही है। वहीं क्रिकेट और टेटिगोनिडी की संख्या में भी कमी को देखा गया है, एक कीट ध्वनि-विषयक बताते हैं कि इस गिरावट के पीछे का कारण बढ़ता शहरीकरण है।केरल के तिरुवनंतपुरम के वेल्लयानी में कृषि कॉलेज के एक कीटविज्ञानी प्रतापन दिवाकरन के अनुसार, 90 के दशक में बेंगलुरु में जीकेवीके (GKVK) परिसर में वनस्पति-उद्यान से एकत्र किए गए पिस्सू बीटल की दो प्रजातियां अब स्थानीय रूप से गायब हैं।पिस्सू भृंगों के एक विशेषज्ञ, जिन्होंने 80 नई प्रजातियों और सात नई प्रजातियों का वर्णन किया है, दिवाकरन बताते हैं कि वे ब्रिटिश भारत के जीवों के विवरण में वर्णित कई प्रजातियों का पता लगाने में सक्षम नहीं हैं।ऐसा ही इक्नेमोनिड ततैया (Ichneumonid wasp) के साथ हो रहा है, चने की फसल को प्रभावित करने वाले पतंगों को नष्ट करने के लिए फसलों में कैम्पोलेटिस क्लोराइड (Campoletis chlorideae) कीट नियंत्रक का प्रयोग किया जाता है, जो इन ततैयों के लिए भी काफी हानिकारक है। पिछले प्रकाशित विवरणों में इन ततैया के 70 प्रतिशत की उपस्थिति चने की फली पर दिखाई गई थी।फिर भी 1990 में,राष्ट्रीय कृषि कीट संसाधन ब्यूरो, बेंगलुरु के निदेशक ने मुश्किल से 20 प्रतिशत ततैया को इन चनों की फली पर दर्ज किया। क्या इस गिरावट के लिए कीटनाशकों के उपयोग को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? अभिलेखों की कमी इस प्रश्न को अनुत्तरित छोड़ देती है।वहीं उत्तराखंड के देहरादून में भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा जुगनू की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है।
वे अब उनकी स्थिति की निगरानी के लिए एक परियोजना की योजना बना रहे हैं।ये कई उपाख्यानात्मक अभिलेखों में से कुछ हैं जो कि कीड़ों की संख्या में बदलाव और कुछ प्रजातियों के निवास स्थान में अनुपस्थिति की ओर इशारा करते हैं जहां से उन्हें पहले दर्ज किया गया था। अधिकांश लोगों के मन में यह सवाल आवश्यक उत्पन्न हो रहा होगा कि उनका पतन चिंता का विषय क्यों बना हुआ है? आमतौर पर अक्सर लोगों द्वारा कीड़ों के द्वारा लाए गए लाभों को नकार कर उनके द्वारा किए जाने वाले नुकसान को बड़ी गंभीरता से देखा जाता है। उदाहरण के लिए, कैटरपिलर (Caterpillars), जो अनिवार्य रूप से तितलियों और पतंगों जैसे लेपिडोप्टेरान (Lepidopteran) के कीटडिंभ हैं, इन्हें अक्सर उन कीटों के रूप में मान लिया जाता है जो कई खाद्य पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं।हालांकि, वे जिन तितलियों और पतंगों में विकसित होते हैं, वे एक महत्वपूर्ण परागणक होते हैं, जो हमारे द्वारा उपभोग किए जाने वाले पौधों को फल देने के लिए आवश्यक होते हैं।2016 में प्रकाशित एक पेपर में, जीकेवीके द्वारा बताया गया कि, भारत में, अधिकांश खाद्य फसलों को पर्याप्त सफल परागण के लिए कीट (और मुख्य रूप से मधुमक्खी) परागणकों की आवश्यकता होती है। इन फसलों में तिलहन, सब्जियां, फलियां और फल शामिल हैं।कीटों का अन्य आर्थिक महत्व भी है। 113 देशों में 3,000 जातीय समूहों द्वारा लगभग 1,500 खाद्य कीट प्रजातियों का सेवन किया जाता है, टिड्डे, सिकाडा, चींटियां, कीड़े, भृंग, कैटरपिलर लोगों की एक बड़ी आबादी के लिए भोजन हैं।कीड़े भी कशेरुकियों के विविध समूहों के भोजन हैं। मेंढक, सरीसृप, पक्षी और कई स्तनधारी कीटभक्षी होते हैं। पशु चिकित्सकों और पक्षीविज्ञानियों ने मेंढकों, सरीसृपों और पक्षियों की घटती संख्या पर चेतावनी देनी शुरू कर दी है और इसका एक मुख्य कारण भोजन के लिए कीड़ों की कमी है।
इसके अलावा मीठे पानी की झीलें और नदियाँ (जो पीने के पानी के स्रोत हैं), में आमतौर पर पोषक तत्वों की कमी होती है। इनमें गिरने वाले कीड़े इन पारिस्थितिक तंत्रों को समृद्ध करने के लिए कार्बन (Carbon), नाइट्रोजन (Nitrogen) और फास्फोरस (Phosphorus)को काफी मात्रा में पानी में मिलाते हैं और इस प्रकार जलीय समुदायों की गतिशीलता को आकार देने में मदद करते हैं।परागण के अलावा, जैविक नियंत्रण, खाद्य प्रावधान, कार्बनिक पदार्थों का पुनर्चक्रण, शहद, रेशम, लाख, दवाएं और भोजन का उत्पादन कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से हमें कीड़ों की आवश्यकता होती है। उनकी पारिस्थितिक भूमिका और आर्थिक मूल्य को देखते हुए कीड़ों के विलुप्त होने के बारे में जागरूक होना आवश्यक है। हालांकि वैज्ञानिकों द्वारा भारत में कीड़ों के बारे में पर्याप्त जानकारी और दस्तावेज़ीकरण की कमी कई प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने में बाधा बनी हुई है। उल्लेखनीय रूप से जंगली मधुमक्खी परागणकों की स्थिति और उनकी जनसंख्या की गतिशीलता, जीवन इतिहास, निवास स्थान की आवश्यकताओं, फसल के अन्य तत्वों और फसल से जुड़ी जैव विविधता, परागणकों की पारिस्थितिकी, या उनके पतन के अंतिम परिणामों के साथ परागण में उनकी आवश्यकताओं के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।अपने 2009 के शोध में निकोला गैलई और सह-लेखकों के अनुसार, भारत में पिछले 25 वर्षों के दौरान 40 प्रतिशत से अधिक मधुमक्खियां गायब हो गई हैं।
भारत में कई फसलें जंगली मधुमक्खियों द्वारा परागित की जाती हैं। इनमें न केवल जंगली मधुमक्खियाँ, बढ़ई मधुमक्खियाँ, भौंरा मधुमक्खियाँ और मेगाचिलिडे (Megachilidae) परिवार की पत्ती काटने वाली मधुमक्खियाँ शामिल हैं, बल्कि एंड्रेनिडे (Andrenidae), कोलेटिडे (Colletidae) और मेलिटिडे (Melittidae) परिवार की मधुमक्खियाँ भी दुर्लभ हैं।लेकिन जीकेवीके के अनुसार भारत से मधुमक्खियों की संरचना पर कोई स्पष्ट विवरण उपलब्ध नहीं है।अन्य प्रमुख फसल परागणकों जैसे मक्खियों, पतंगों, ततैया, भृंग और तितलियों के परिमाण के क्रम में कोई विवरण भी उपलब्ध नहीं है।20वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रकाशित ब्रिटिश (British) भारत का पशुवर्णन, आज तक भारतीय कीड़ों पर एकमात्र व्यापक दस्तावेज मौजूद है। लेकिन दस्तावेज़ में वर्णित कीड़े भारतीय कीट विज्ञानियों के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि उनमें से अधिकांश अब यूरोपीय (European) संग्रहालयों में पाए जाते हैं।शहरीकरण, और परिणामी आवास परिवर्तन और प्रदूषण ने कीड़ों की आबादी पर कहर बरपाया है। इसलिए देर होने से पहले उन्हें फलने-फूलने में मदद करना हमारी जिम्मेदारी है।कीट पौधों के साथ सह-विकसित होते हैं। पौधों की रूपरेखा बदल रही है क्योंकि हम देशी पेड़ों को तेजी से बढ़ने वाले विदेशी पेड़ों के साथ बदल रहे हैं, और प्राकृतिक मेजबान पौधों के नुकसान से कीड़ों को उनके भोजन और प्रजनन के अवसर से वंचित कर रहे हैं।कीटों की आबादी में गिरावट को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाना समय की मांग है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3yA1Iju
https://nbcnews.to/3LdarLf
https://bbc.in/3FFRDDi
https://bit.ly/38oWcWk

चित्र संदर्भ
1. विभिन्न कीटों को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
2. खेतों में कीटनाशक छिड़कते किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. ब्लैक-स्पॉटेड लॉन्गहॉर्न बीटल को दर्शाता एक चित्रण ( Pixabay)
4. कृषि कीटों को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
5. अनेक कीटों को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)

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